बूढ़े लोग नयी पीडी से घबरा रहे है

बूढे माँ-बाप की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है या वे नये ज़माने से घबरा रहे हैं ?

एक बूढे व्यक्ति ने कहा कि मैंने 70 साल तक नौकरी की। घर के पाँच बच्चों को पाला-पोसा उनके लायक बनाया, बडा घर बनाया, पाँच बेडरूम का। अपने घर को आगे बढाया। अपना मकान आज मैंने अपने बेटों के नाम पर कर दिया है। अब अचानक तबीयत बिगड जाने से घर पर बैठा हुआ हूँ। घर में मेरे से कोई बात तक नहीं करता है। चौबीस घंटों में बेटे-बहू मेरे से दो या तीन वाक्‌य ही बात करते हैं। वह भी मतलब की बात रही तो करते हैं। कोई रिश्तेदार आ जाता है तभी मेरे से बात किया करते हैं।
कुछ कहता हूँ तो डाँट देते हैं, अब मैं आ°ड©र देने की हालत में तो बिल्‌कुल नहीं हूँ, हाँ, चुपचाप बच्चों का आ°ड©र सुन लेता हूँ, नहीं सुनो तो बुरी तरह से डाँट दिया करते हैं। अपने बारे में कुछ बुरा सुनता हूँ तो बुरा लगता है, कुछ बुरा देखता हूँ तो बुरा लगता है। मैंने तय कर लिया है कि मैं अपनी आँख बंद कर लूँगा, कान से सुनना बंद कर दूँगा। मुँह से कुछ भी कहना बंद कर दूँगा। ये तीनों खोलूँगा तो दुख मुझे ही होगा। मुँह से कुछ कहूँगा तो डाँट पडेगी, कुछ बुरा सुनूँगा तो सारा दिन मूड खराब रहता है। कोई गलत इशारा करता है तो भी बुरा लगता है। मैं टीवी पर समाचार देखता हूँ तो मेरा बेटा मुझसे पूछे बगैर चैनल बदल देता है, एक बार पूछकर चैनल बदले तो लगता है कि वह मेरा सम्मान करता है, कुछ कहता हूँ तो कहता है सारा दिन तो आप घर में बैठे रहते हैं। समाचार कभी भी देख सकते हैं, हम तो दो घंटे देखकर बाहर चले जाएँगे। सो, आँख-कान-मुँह जिस दिन ंबंद करके रखे हैं उस दिन से मैं बहुत ही सुखी हूँ।




मगर ऐसा करने से भी मुझे पूरा सुख नहीं मिलता है। घर में रहकर भी बहुत बेगाना लगता हूँ। ऐसा लगता है किसी मुसाफिरखाने में रह रहा हूँ। मेरा ज़माने से यही कहना है कि हर बूढे आदमी का एक बैंक एकाउंट ऐसा होना चाहिए जिसके बारे में किसी को पता नहीं होना चाहिए। बेटे, बेटी तो क्या बीवी को भी इस एकाउंट के बारे में पता नहीं होना चाहिए। जिस दिन आप मर जाएँगे वो सारा पैसा बैंक वालों को खाने दीजिए, लेकिन आप तो कम से कम हाथ में कुछ पैसा तो लेकर मरेंगे, नहीं तो जीते जी मर जाएँगे। हर महीने जाकर बैंक से 3-4 हज़ार रुपया ब्याज लाकर घर में दे देने से घर-परिवार वाले अपने को बहुत अच्‌छी नज़र से देखते हैं। हमको सम्मान देते हैं, जिस दिन से हम बूढे लोग पैसा लाकर देना बंद कर देते हैं उस दिन से हमारी घर में दो कौडी की इज़्‌ज़त हो जाती है।  यह भी याद रखना चाहिए कि मरते दम तक अपने नाम पर जो घर होता है उसे बेटे या बेटी के हाथ में कभी नहीं देना चाहिए। वरना अपने हाथ से घर चला गया तो उस दिन से बच्चे अपनी बात को सुनना ही बंद कर देते हैं उल्‌टे बात-बात पर अपमान किया करते हैं। जो लोग अभी तक सीक्रेट एकाउंट नहीं बनाये हैं उन्हंे आज से ही उस खाते में धीरे-धीरे पैसा डालना शुरू कर देना चाहिए। मैं तो कहता हूँ कि यह काम 40 साल के बाद अवश्य शुरू कर देना चाहिए। पत्नी को इसलिए नहीं बताना चाहिए कि पत्नी अपने बच्चों की बातों में आकर सारा एकाउंट खाली करवा देती है जिस दिन एकाउंट खाली हुआ कि नहीं अगले दिन से आपका अपमान शुरू हो जता है।  बाद मंे जाकर आत्महत्या करने की नौबत आ जाती है। इतना सब कहकर उन्होंने एक फिल्‌म का गीत गाया, कसमें वादे प्‌यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या कसमें वादे प्‌यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या...।


आजकल दुकान में बैठने वाले बूढों का भी बुरा हाल हो चला है। उनको दुकान में कोई भी काम करने का हक नहीं मिल रहा है। जबकि दुकान पिता की ही होती है, उसी दुकान के मालिक भी वही होते हैं, लेकिन उनको कुछ करने नहीं दिया जाता है। अब बेटे को वे दुकान से निकाल भी नहीं सकते हैं अपने ही बेटे को दुकान से निकालेंगे तो घर जाने के बाद बहू उनको खाना परोसकर थोडे ही खिलाएगी। और जब हाथ पैर नहीं चलेंगे तो बाप की हालत तो कुत्ते से भी बदतर होती चली जाती है। सो, यह सब भविष्‌य का सोचकर बाप बेचारा दुकान में बच्चा जैसा चाहता है वैसा ही करता चला जाता है। आजकल के बच्चे बाप का घर, बाप के नाम पर की दुकान रहे तब भी परेशान रहते हैं, वे लोग सोचते हैं कि 20 लाख के 60 लाख कैसे किये जा सकते हैं। एक करोड के 2 करोड कैसे किये जा सकते हैं। आजकल पैसे की भूख लोगों को इतनी ज्यादा हो चुकी है कि जो है उसमें वे कतई सुखी नहीं रहते हैं। और चाहिए, और चाहिए यही करते रहते हैं। इस भागदौड में, पिता जो सुरक्षा बेटे को दे चुका होता है उससे वे खुश ही नहीं रह पाते हैं। हमेशा पैसे की भूख में पिता को भी अपमानित करते चले जाते हैं। आज छह लोगों का घर अपना मकान, अपनी दुकान हो तो 15 हज़ार में आराम से चल जाता है। लेकिन लोगों को तो आज 50 हज़ार की कमाई भी बहुत कम नज़र आ रही है। अब इसका तो कोई इलाज ही नहीं है कि आप पैसे की भूख बिलावजह बढाते चलें और बेचारे बाप को रोज़ाना बेइज़्‌ज़त करते रहें। बेचारे बूढे पिता दुकान में कुछ भी कहते हैं तो बेटे उनको बुरी तरह से बेइज़्‌ज़त कर देते हैं। वे ग्राहक से बात करने की भी हिम्मत नहीं करते हैं। अब तो यह हाल हो चला है कि बेटा जो कहता है वह पिता को चुपचाप करना पडता है। कुछ लोग बेटों से तारतम्य बनाकर अच्‌छा जीवन जी तो पा रहे हैं वहाँ पर बेटा भी पिता का सम्मान कर रहा होता है, लेकिन जहाँ पर बेटा पूरी तरह से पिता  को दुकान से धक्के मारकर निकालने की सोचता हो वहाँ पर रोज़ाना पिता को बहुत बेइज़्‌ज़त होना पडता है। भलाई शायद इसी में है कि पिता को अपना सीक्रेट एकाउंट रखकर अपना भोजन वगैरह का इंतेज़ाम देख लेना चाहिए, किसी के आसरे नहीं रहना चाहिए। अपनी पत्नी के हाथ में भी पैसा रखना चाहिए। साथ ही, अपना घर अपने ही नाम पर मरते दम तक रखना चाहिए। आज से पाँच साल पहले हमने इसी कॉलम में लिखा था कि पिता को अपना मकान बेटे के नाम पर करके राम राम राम की माला जपना चाहिए। लेकिन अब ज़माना और खराब हो चुका है। अब वह सि्थति नहीं रही कि बेटा पिता का सम्मान करेगा। चलिए एक बार फिर वही गीत गुनगुनाते हैं कसमें वादे प्‌यार वफा.... इस गीत की अंगली पंकि्त भी बहुत दमदार है, ये है वो पंकि्त...होगा मसीहा, सामने तेरे फिर भी न तू बच पाया, तेरा अपना, खून ही आखिर तुझको आग लगायेगा, आसमान में उडने वाले मिट्टी में मिल जायेगा, कसमें वादे प्‌यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या...।
बूढों का दुख सबसे बडा दुख होता है। क्‌योंकि उस उम्र लोग अपने सारे जीवन का क्या निचोड निकला है, उसका हिसाब-किताब करना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि मैंने अपनी सारी qज़दगी बच्चों को तकलीफ नहीं देकर उन्हें सुख देने में गुज़ार दी। दिन-रात मेहनत बच्चों के लिए की थी। तिल-तिल करके पैसा कमाया था, बचाया था। न कोई शौक पाला था, न कोई नशा किया था। सोचा था, आखिर में जाकर मेरे बच्चे मेरे बुढापे की लाठी बनेंगे लेकिन वे मुझे ही बातों की लाठी से मार रहे हैं। सोचा कि qज़दगी की शाम ऐसी सुहानी होगी कि बच्चे-पोते-पोतियाँ आस-पास खलेंगे तो उसका मज़ा ही कुछ और होगा। जब तक नौकरी की, व्यापार किया तब तक सोचा ही नहीं था कि अपना ही घर मुझे नरक की तरह लगेगा। यह सोचकर भी घबराहट होती है कि वो मर्द कैसे जी रहे होंगे जिनकी पत्नी पहले मर जाती है उसके दस साल के बाद पति की मृत्यु होती है, वे पति अपना बचाकुचा जीवन बिना पत्नी के कैसे गुज़ारते होंगे। आज सारी दुनिया के मर्द यही कह रहे हैं कि हे भगवान पहले हम मदा] को मौत दे दे, बाद में मेरी पत्नी को मौत दे, पत्नी तो चूल्‌हे चौके में बिना पति के भी समय गुज़ार लेती है, लेकिन हम एक बार लाचार हो गये, और फिर पत्नी का सहारा चला जाए तो हमको उठकर कोई दवा खिलाने वाला भी नहीं रह जाता है, सारे लोग हमारी बीमारी को बुरी नज़र से देखते हैं, एक बात पुरानी है लेकिन सच है कि हमारा बच्चा रोता था तो हम उसे हज़ार बार समझाते थे, लेकिन आज हम एक बार रूठते हैं तो हमारा बच्चा हमें एक बार भी प्‌यार से नहीं मनाता है, हमने उनकी टट्टी साफ की, लेकिन वे हमारी टट्टी साफ करते हैं तो हमें कोसते हैं कि आप जल्‌दी क्‌यों नहीं हमको मुकि्त दे देते। यह इतना बुरा समय चल रहा है कि हमें मौत का इंतज़ार करना पड रहा है। चलिए उसी गीत कसमें वादे... की अगली पंकि्त ये रही..... सुख में तेरे साथ चलेंगे, दुख में सब मुख मोडेंगे, दुनिया वाले तेरे बनकर तेरा ही दिल तोडेंगे, देते हैं, भगवान को धोखा, इंसान को क्या छोडेंगे, कसमें वादे प्‌यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे....।
फिर भी आशा की किरणें अभी भी बाकी है। अपने बच्चों का पैसे का पागलपन देखकर उसका मज़ा ले सकते हैं। देखिए आजकल के बच्चे दरि¨दे हो चुके हैं उसकी नादानी को देखकर उसका मज़ा लीजिए। अपने संघष© के दिन याद कीजिए, आपने जो संघष© किया जो सारे समाज को निभाया, उसपर गव© कीजिए अपनी पुरानी यादों को ताज़ा कीजिए उसमंे आजकल के जैसा छल-कपट कहीं नहीं नज़र आयेगा। उन बातों पर गव© कीजिए। कलयुग की गुंडगद© देखिए,खुश रहिए कि आप महापुरुषों के युग में पैदा हुए थे, आपके बच्चे अभागे हैं जो गुंडों के बीच पल-बढ रहे हैं उनकी ही सोहबत में वे भी अपना जीवन गँवा रहे हैं।बंगले बन रहे हैं लेकिन उनके दिल दिन ब दिन छोटे होते चले जा रहे हैं। आपने जिस सम्मान से अपने माता-पिता को पाला था, उन दिनों को याद कीजिए। चलिए यह जीवन भी गुज़रा है, गुज़र जाएगा। इस घोर कलयुग में अपने ही बच्चों के राक्षसीपन पर तरस खाईये, उस पर अट्टाहास लगाईये। बच्चों को दरि¨दा होता देख उसका मज़ा लीजिए। जब वे भूल गये हैं मेरा बाप मेरा बाप नहीं है तो आप क्‌यों भावुक हो रहे हैं कि मेरे बच्चे इतने खराब हो चुके हैं। अगर बच्चे आपको सडता हुआ देखना चाहते हैं तो बच्चे की गलतियों पर आप भी मन ही मन ठहाका लगाईये। अपनी नज़रों के सामने देखिए कि अपनी आज्ञा नहीं मानने वाला बच्चा कैसे तडप रहा है। दया एक हद तक करनी चाहिए। आप भी घर में रहकर अनजान रहकर भी तमाशा देखिए। तमाशा यह देखिए कि आपके बेटे की सबसे बडी दुश्मन तो आपकी बहू ही है। बहू ही आपके बेटे का अपमान करती है। बहू ही अपने पति से बदतमीज़ी से बात करती है। आज से पाँच साल पहले बेटे ने बाप से सवाल किया था आपने हमारे लिए किया ही क्या है, पाँच साल बाद वही सवाल उस बेटे की चुडैल बीवी अपने पति से यही सवाल ज़रूर करेगी कि आपने हमारे लिए किया ही क्या है। जो जैसा करेगा वैसा ज़रूर भरेगा। अगर बेटे ने बाप को दुत्कारा है तो नियम है कि जो एक को दुत्कारता है, वह दूसरे से ज़रूर दुत्कारा जाएगा।
जीवन के इन अंतिम पलों को अंतिम पल मत सम{झये। हर पल मज़े से गुज़ारिये। सोचिए मत की मौत नज़दीक है जब आना है ज़रूर आयेगी और आयेगी भी तो आपको उसी भगवान के पास लेकर जाएगी कि जिसकी पूजा आप जीवन भर करते रहे सोचिए कि आप मर चुके हैं आपकी आत्मा खुशी से आज़ाद होकर जा रही है भगवान से मिल रही है, भगवान से कह रही है कि आपने मुझे दरि¨दे बेटे से मुक्त कराया है, अब आपके चरणों में आया हूँ। भगवान आपको बहुत आनंद से अपनी गोद में बैठाएँगे। आपको चूमेंगे, कहेंगे कि तुमने हमारी सारी परीक्षाएँ पास की, माता-पिता की सेवा की, जीवन भर उन्हें दुख नहीं दिया। बच्चों को फूलों की तरह पाला, उनको घर-भोजन सब दिया। आपका जीवन तो बहुत ही सफल रहा। हम आपके जीवन से इतने आनंदित हैं कि यहाँ स्वग© के रेजिस्टर में आपका नाम लिखा जाएगा, यहाँ आनंद से रहिए, ये लीजिए हम आपको फिर से युवा बना देते हैं। वह यौवन फिर से लौट आयेगा, वो अप्‌सराओं का नृत्य, वो गुलाबजल पीते हुए, स्वग© का आनंद उठाना, सबकुछ रहेगा भगवान के पास जाने के बाद। भगवान कहेंगे कि हमने मानवों को धरती पर इसलिए जन्म दिया कि वे भगवान बनने के गुण पैदा करें लेकिन वे तो हैवान बनने की सारी हदें लांघ रहे हैं। चंद सिक्कों के लिए जन्मदाताओं को बेइज़्‌ज़त कर रहे हैं। दुनिया का हर दुखी पिता ज़रूर स्वग© में जाएगा। जीवन के हर पल का मज़ा लीजिए। जितने दिन हैं उसे हँसकर गुज़ारिये। रो धो कर रोटी तो मिल जाती है, बस रोटी खाईये आनंद से रहिए। अरे, भाई पहले तो खाने को खाना नहीं था, अब घर भी है, टीवी भी है सोफा भी है, पलंग भी है, सब देखकर खुश रहिए, पहले तो साइकिल भी नहीं थी, अब तो कार है, यह सोचकर आनंद मनाइये। जीवन में जितने भी सुख हैं उसे तलाशिये, आपके अतराफ सुख ही सुख है, उसे खोजिए। चाय की चुसि्कयों का आनंद लीजिए। दाल चमचे से पीने का आनंद लीजिए। सब्‌ज़ी अच्‌छी बनी तो आनंद लीजिए। छोटे-छोटे आनंद तलाशिये। बस, सुखी रहिए, सुखी रहिए, सुखी रहिए।

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