हमदर्द और मशहूर मोदीजी

हमदर्द भी, परपीड़क भी, ममता से भरे, हंटर वाले, घोर अनुशासित, के रूप में मोदीजी मशहूर हो चुके हैं





पिछले तीन साल में टेक्सटाइल वाले और गहने वालोंने हड़ताल की, हड़ताल चलती रही, चलती रही, लेकिन सरकार नहीं मानी तो थक हारकर वो लोग ही मान गये। अब सरकारी विभाग वालों की तनख्वाहों पर ही मोदी सरकार ऐसा प्रहार कर रही है, और सरकारी लोगों की पोस्ट ऑफिस बचत पर ऐसा हमला कर रही है कि सरकार के किसी भी विभाग वाले हड़तालें करने के लायक ही नहीं बचे हैं, वो मन ही मन कह रहे हैं कि सरकार तो हमें उल्टा लटकाकर मार रही है, सारे सरकारी कर्मचारी उल्टा जान बचाकर मुँह पर उंगली रखकर काम कर रहे हैं। पहले तो किसी न किसी देश के बड़े सरकारी क्षेत्र जैसे बैक, परिवहन, बिजली, डाकघर, रेल आदि विभाग की लगातार हड़तालें चलती ही चली जाती थी, चलती ही चली जाती थी। तीन साल में हड़तालें बंद हो गयीं, दोबारा हुई तो सरकार का हंटर चलेगा, तो चारों ख़ाने चित्त हो जाएँगे। भारत बंद, बंद हो गये, राज्यों में बंद, बंद हो गये, शहरों में बंद, बंद हो गये। अब तो आप १५ अगस्त के दिन भी दुकान खोल रहे हैं तो कोई पूछने वाला नहीं है, दो अक्तूबर को भी दुकान खोल सकते हैं, या फिर त्योहार के दिन नेगोशियेबल एक्ट के तहत बंद रहा तो भी आप दुकान खोल सकते हैं। सो, काम करोगे तो पैसा मिलेगा नहीं तो सरकारी लोग काम से हटा दिये जाएँगे। पेंशन के पैसे पर भी चोंट कर दी जायेगी। सारा देश अब पूरी जी-जान से मेहनत कर रहा है, एकदम गुमसुम होकर, हालाँकि लोगों के मन में गुस्सा बेइंतेहा है लेकिन बोले तो किससे बोले वाली स्थिति हो गयी, आखिर में यूपी के चुनाव ने तो फ़ैसला देही दिया कि अब चलेगी तो मोदी लहर ही चलेगी दूसरी सारी लहरें बंद हो जाएँगीं। मोदीजी की रॉबिनहुड सरकार हो गयी है। अमीरों को चैन से रहने नहीं दे रही है और ग़रीबों पर रियायतों की बरसात कर रही है। सारे व्यापार तंत्र को जैसे लकुआ मार गया है, स्टार्ट अप व्यापार का ऐसा जाल तेज़ी से फैल रहा है कि बडे-बड़े बिज़नेस घरानों का आगे जाकर क्या होगा लोग इस बारे में तेज़ी से सोच रहे हैं। मगर घरानों को शेयर बाज़ार में आगे बढ़ने का पूरा मौक़ा दिया जा रहा है। कांग्रेस की सरकार के समय शेयर बाज़ार का भट्टा बैठ गया था, लेकिन अब लोग दोबारा शेयरों पर भरोसा कर रहे हैं, मोदीजी ने माहौल तो बहुत अच्छा तैयार किया है। देखना आगे जाकर क्या क्या हो सकता है। मोदीजी के आने के बाद हर घर में दो हज़ार रुपये की बचत हो रही है, आने वाले समय में इंटरनेट काबिल एक हज़ार से पाँच सौ रुपये ही हो जायेगा, केबल टीवी वाले को लोग हटा रहे हैं, स्मार्ट टीवी आते ही लोग हर ख़बर स्मार्टटीवी पर ही देख रहे हैं। अनाज में अब एक हज़ार रुपये की बचत हो रही है क्योंकि जो लोग पाँच हज़ार का राशन ले रहे थे उन्हें चार हज़ार का ही राशन लेना पड़ रहा है। बाबा रामदेव तो सुंदरियों के लिए सस्ते के कॉस्मेटिक दे रहे हैं, टूटपेस्ट और बिस्किट भी बहुत ही कम दाम में दे रहे हैं, आटा, बेसन आदि सभी कुछ सस्ते दाम पर दिया जा रहा है, हर पचास सौ क़दम पर अब बाबा रामदेव की दुकानें खुल चुकी हैं। स्कूल-कॉलेजों की फ़ीस भी सस्ती होने की गुंजाइश बन रही है, अब यह बड़ा काम हो जाये तो बहुत सारा तनाव लोगों का कम हो सकता है। अगर स्कूल कॉलेजकी फ़ीस को तीस हज़ार से लाकर दस हज़ार पर पटका गया तो अगले पाँच साल मोदीजी के लिखकर रख लीजिए। अब यह देश अपना देश लग रहा है। पहले तो हमरेफ्यूजी की तरह रह रहे थे। अपनाही देश अपनों को ही लूट लूटकर खा रहा था। मुँह में हाथ डालकर कलेजा निकाला जा रहा था। इस तबाह ज़िंदगी को देखकर लोगों नये नये शब्द इजाद कर रहे थे, जैसे ज़िंदगी हो गयी झंड, टेंशन से भरी ज़िंदगी, जीने से तोमर जाना अच्छा है, इंसान की ज़िंदगी कुत्ते से भी बदतर हो गयी है, इस तरह के शब्द ईजाद हो रहे थे। ऐसे में आशा की किरण आयी, ८ नवंबर को मेरी शादी की सालिगरह के दिन नोटबंदी हुई और सारा देश एक नये देश को आशा भरी दृष्टि से देखने लग गया। सो, दोऐतिहासिक घटनाएँहुई, मेरी शादी और नोटबंदी। रात में आठ तारीख़ को आठ बजे नोटबंदी का शंख बजा तो रात में रेल में बैठे यात्री सुबह पाँच सौ रुपये का नोट जेब से निकालकर स्टेशन पर का नाश्ता तक नहीं ख़रीद पा रहे थे। इधर भारत के शहरों में आतंकवादी घटनाएँएकदम कम हो गयी हैं। मुंबई में जो आतंकवादी हमला हुआ था, उसकी गूँज का असर भारत के हर घर में देखा गया था, यह एक अघोषित युद्ध था, अब तो सारा कुछ आराम से चल रहा है, न कोई एसिडिटी, न कोई गैस का अटकना, बस मेहनत ही मेहनत करते चलोजाओ और रात में ईमानदारी की रोटी खाओ। उस तरह नहीं कि पहले कांग्रेस के मंत्री शिवराज पाटिल आतंकवादी घटना के बाद हर बार नये नये कपड़े बदलकर मौत के तांडव का मज़ालिया करते थे, लेकिन हमारा मानना है कि अब भी नक्सलवाद को बातचीत से ही बंद किया जा सकता है। एक बहुत ही बड़ा एरिया है जहाँ पर मोदीजी को भारी प्रहार करना चाहिए नहीं तो लोगों का जीना मरने के बराबर हो जायेगा। वह है कि घर के किराये आजकल कम से कम तीन हज़ार रुपये प्रति घर हो गये हैं। सारे भारत के बड़े शहरों में यही हाल चल रहा है। जो मज़दूर लोग रोज़ाना के चार सौ रुपये कमा पाते हैं और रियल इस्टेट के धड़ाम से गिर जाने के कारण मज़दूर आत्महत्या कर रहे हैं, उन्हें अपना क्षेत्र बदल लेना चाहिए। क्योंकि अब रियल इस्टेट तो गया। ग़रीब के घर का किराया कम से कम हज़ार और ज़्यादा से ज़्यादा से दो हज़ार रुपया ही होना चाहिए। वरना वह खायेगा क्या निचोड़ेगा क्या।






क्योंकि काम कम हो गया है, कमाई कम हो गयी है, लेकिन अच्छे भविष्य के लिए लोग बहुत कुछ हँसी खुशी सहन भी कर रहे हैं। हाल ही में हमने सुना कि हैदराबाद की सबसे महँगी इमारत लैंको हिल्स में एक फ्लैट का किराया, ४२ हज़ार रुपये चल रहा है, जिसमें नौजवान लोग तीन तीन चार चार करके रह रहे हैं और किराया बाँटकर दे रहे हैं, लेकिन जैसे ही मंदी का दौर शुरू हो जायेगा यह सबकुछ धड़ाम करके गिर जायेगा और रामराज्य फिर से स्थापित हो जायेगा। जय माहेश्पति, आज भारत का हर दूसरा बंदा मोदीजी को देखकर यही गीत गा रहा है, जयजयकारा जय जयकारा, स्वामी देना साथ हमारा, जयमोदीजी जययोगीजी, दंडालय्या दंडालय्यामातो नू उंडालया.। हाल ही में बंजारा हिल्स और जुबुली हिल्स जाने का मौक़ा मिला जैसे मुंबई में नेकलेस रोड के घर होते हैं उसी तरह हैदराबाद का यह रिहायशी इलाक़ा हो गया है। मैं चाहता हूँकि भारत पुरानी दिल्ली की तरह दोबारा हो जाये, हैदराबाद के चारमीनार की तरह हो जाये, लखनऊ की तरह हो जाये, इंदौर की तरह हो जाये, बनारस और नाँदेड़ की तरह हो जाये, रतलाम की तरह हो जाये, जहाँ बेहिसाब बड़ी इमारतें ही न हों, ग़रीब को जीने का भी मौक़ा मिल जाये। पिछली कांग्रेस की जो सरकार थी वह पैसा कमाओ पैसा कमाओ का नारा दे रही थी, जिससे लोगों को इंस्टेंट मनी की आदत लग गयी थी, और लोग भ्रष्टाचार की सारी सीमाएँलांघ चुके थे, भ्रष्टाचार सिर से ऊपर जा चुका था, और सभी की फितरत यही हो गयी थी कि पैसा है तो इज्जत है नहीं तो नहीं। माहौल भी वैसा ही बन गया था, पुजारी, शिक्षक, मज़दूर, कवि, पुलिस, पत्रकार, बूढ़े माता पिता जो पेंशन नहीं पाते थे, क्लकों की पूरीजमात, चपरासियों की पूरीजमात, तीसरे और चौथे दर्जे के कर्मचारी चाहे सरकारी ही क्यों न हो, सारे के सारे समाज से धकेल दिये गये, मुख्यधारा से इन्हें उठाकर कहीं दूर ले जाकर पटक ही नहीं दिया गया, बल्कि हर क़दम पर इनका अपमान होता ही चला गया। इन सभी के बच्चे बेहद शर्मिदा होकर विदेश भाग गये, या नहीं तो कॉरपोरेट जगत में जाकर नौकरी करके हम ही पर बुरी तरह से धौंस जमाने लग गये। समाज तो दूर की बात है, परिवार के भीतर हीरोज़ाना हमें कुचला जा रहा था, कुचला जा रहा है, क्योंकि अभी भी पूरी तरह से नशा नहीं उतरा है, बाज़ारवाद का, लेकिन नोटबंदी के बाद एक बहुत अच्छी बात सामने आयी है कि लोगों में बहुत तेज़ी से इंफ़ीरियारिटी काम्पेलेक्स यानी लघुता ग्रंथि ख़त्म होती जा रही है। अब लोगों को लग रहा है कि हम कितने ही छोटे आदमी पैसे से भले ही हों, हम सम्मान सेजी सकते हैं। नोटबंदी के पहले तो छोटे इंसान को दुत्काराजा रहा है, पैसे वाला भ्रष्टाचार करके वहशी दरिंदा बनता चला जा रहा था, सरकारी लोग सरकारी सुविधाएँ भोगकर सुविधा भोग रहे थे, और उसमें भी अगर लूटने की गुंजाइश रहती थी तो लूट लेते थे, हम तो ऐसी ऐसी बातें सुने हैं कि सरकारी दफ्तर में जो अतिथि को पाँच सौ रुपये का गिफ्ट दिया जाता था, उसमें भी लोग चार सौ का गिफ्ट लाकर सौ रुपये बचाकार रात में बोतल का इंतेज़ाम किया करते थे, अब तो सारा कुछ चेक से पेमेंट करने की संस्कृति हो रही है, यह गंदी चोरियाँ करके इंसान जो अपने आप से धोखा कर रहा था, वह तो रुक जायेगा। मोदीजी का और तेज़ी से प्रहार करना बेहद ज़रूरी हो गया है। वे अब कर रहे हैं दवाइयों की दुकानों पर हमलाकर रहे हैं, हर चीज़ का हिसाब माँग रहे हैं। जीनाहराम कर रहे हैं। दवाई वाले भी बहुत सता चुके हैं, पहले पाँच फ़ामूले की दवा की गोली एक ही थी, उसे तीन गोलियों में बाँटकर दवा का दाम बेहिसाब रखरहे थे। बुखार आ जाये तो हज़ार रुपये का तमाचा तैयार रहता था, पथरी पचास हज़ार की हो चुकी है, अपेनडिक्स का दाम चालीस हज़ार हो चुका है। हर्निया का दाम सत्तर हज़ार रुपया चल रहा है। यह अस्पतालों और दवाई वालों की खुली लूट चल रही थी, लूटो लूटो लूटो लूटो, दिन भर भी प्लूटो लूटो बोले तो कम ही होगा। डॉक्टर की फीस पाँच सौ रुपया हो गयी, पेपर पर चार लाईनें लिखने से आप पाँच सौ रुपये के आदमी हो गये। पुजारी शादी कराता है उसे ५ हज़ार में पूरा कर देते हैं, और डॉक्टर को पाँच सौ रुपये, वह लुटकर आता था, वह हमें लूट रहा था। मोदीजी तेज़ी से सड़कों का निर्माण भी कर रहे हैं ताकि व्यापार बहुत तेज़ी से बढ़े, व्यापार का माहौल तो बहुत अच्छा है लेकिन व्यापारी लोग अभी भी भ्रष्टाचार कर रहे हैं, पुराने नोट अभी भी निकाल रहे हैं, पिछले ही दिनों एक और पैंसठ लाख की खेप हैदराबाद में ही पकडी गयी है। कितने दुख की बात है कि पैसा कहाँ से कमाया गया और आखरी में जाकर पुलिस के हाथ में चला गया, बेचारों ने ६५ लाख कमाने में खून पसीना बहाया होगा, वह भी बेकार चला गया है। वीपी सिंह ने मंडल का हंटर चलाया था, उसके बाद हंटर चलाने वाले मोदीजी दूसरे प्रधानमंत्री हो चुके हैं। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाये तो हमारे प्रधानमंत्री गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा रहे हैं। बैड कोलेस्ट्रॉल कोटाटा बाय बाय कर रहे हैं। सबसे खुशी की बात देखिये कि नौजवानों को कितना शुद्धता से भरा माहौल मिल रहा है, जहाँ वे आज़ादी की साँस ले पा रहे हैं। अब उनके सामने सारा आकाश ज़मीन सबकुछ हैं जहाँ पर वे जातिवाद के बिना खुलकर साँस ले सकते हैं।

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