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Showing posts from June, 2017

नोटबंदी क्यों की गयी, उसका क्या फ़ायदा हुआ है

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नोटबंदी क्यों की गयी, उसका क्या फ़ायदा हुआ है नोटबंदी आज आठ महीने के बाद भी ठीक से पता नहीं चला है। क्योंकि सरकार की तरफ से जनता को तो किसी तरह का सीधा फ़ायदा हाथ नहीं लगा है, न किसी के बैंक खाते में पाँच लाख रुपये डाले गये हैं नही पंद्रह लाख डाले गये हैं। इस तरह से हम समझ चुके हैं कि यह सरकार जनता को मुफ्त की रोटियाँ तो खिलाने वाली नहीं है। यह सरकार सीधा-सीधा संदेश दे चुकी है, कि पैसा कमाना है तो मेहनत करके पैसा कमाओ, हमें टैक्स दो तो हमें किसी तरह का ऐतराज़ नहीं है। मगर सरकार ने तीन सौ रुपये में जो दो लाख का बीमा योजना शुरू की है, उससे हर ग़रीब का जीवन बहुत ही सुरक्षित हो गया है, मेरा हिसाब बताता हूँ, अगर मैं मर जाता हूँ, तो मेरी पत्नी को दो लाख मिलेगा, मैने एक्सीडेंट का केवल बारह रुपये का मोदीजी का भी बीमा करा लिया है, तो दो लाख और मिलेगा यानी अगर टक्कर हो गयी तो, चार लाख मिलेगा, चार लाख का ब्याज होता है तीन हज़ार रुपया, छोटा तीन हज़ार में किराये का मकान आ ही जाता है, तेलंगाना से विधवा पेंशन मिलती है एक हज़ार, पत्रकार होने के नाते मुझे मिलेंगे एक लाख एक्सीडेंट हो गया तो मिले

घर की सत्ता घर की औरत को दी जाए

घर की सत्ता घर की औरत को दी जाए या फिर घर के मर्द को दी जाय मर्द के हाथ में सत्ता हो तो मातापिता, भाई-बहन निभ जाते हैं औरत के हाथ में सत्ता हो तो सिर्फ़ पैसे से परिवार आगे बढ़ता रहता है यह सवाल हालाँकि पिछले तीस-चालीस बरसों से चल रहा है, कि घर में ताकत औरत की ज़्यादा हो या मर्द की हो, लेकिन अब यह सवाल और भी ज़रूरी हो गया है, जिस मर्द के माता-पिता जिंदा हैं उसकी पत्नी की धौंस-घमंड मर्द पर हावी रहती है। मर्द औरत पर दो चार तरह से अपनी धौंस-घमंड जमा सकता है। एक तो वो पत्नी को पीटता है, तो पत्नी डर जाती है कि पतितो पीट रहा है, पीटने से बदन दर्द हो रहा है इसलिए पति जो कह रहा है वह सुन लेती हूँ, पति के मातापिता की सेवा कर लेती हूँ, ननद भी आये तो सेवा कर लेती हूँ। इसी तरह से अभी तक देश के लगभग आधे परिवार चला करते थे, जो भी ताकत थी वो सास और ससुर के हाथ में हुआ करती थी, सास-ससुर के नाम पर घर हुआ करता था तो बेटा भी माता-पिता को निभा लिया करता था, दूसरे भाई भी माता-पिता को निभा लिया करते थे, जो ससुर कहते थे उसी बात को सभी परिवार के सदस्य माना करते थे, सारी की सारी बहुएँ माना करती थीं। सबसे बड

शोले है सितारों की ज़िदगी

शोले है सितारों की ज़िदगी पंकज कपूर जो शाहिद कपूर के पिता हैं, वे अपनी जवानी में रंगमंच के नाटक खेला करते थे, वे बेहतरीन अभिनेता हैं लेकिन तब उनके भोजन के लाले पड़ गये थे। क्योंकि नाटकों से ज़्यादा पैसा नहीं मिलता था, तब उन्होंने करमचंद नाम का टीवी जासूसी सीरियल किया था, वह सीरियल उनके अभिनय के लिए सदैव याद किया जायेगा, उनकी रग-रग में अभिनय बसा था, इसलिए करमचंद की भूमिका बहुत ही आसानी से कर पाये, बाद में ऑफिस-ऑफिस सीरियल से भी बहुत मशहूर हुए। तो पेट पालने के लिए यह बेहतरीन कलाकर नाटकों से हटकर भी काम करता रहा, याद रहे नाटक खेलने वाले अभिनेता, अभिनय की खान होती है, वे अभिनय को पूरी भक्ति से करते हैं लेकिन पैसा कमाने के लिए छोटे-बड़े पर्दे का सहारा लेते हैं। शोले है सितारों की ज़िदगी । आलिया भट्ट के गीत अभी से अमर हो चुके हैं, कई गीत उनके मासूम अभिनय से यादगार हो गये हैं, इश्क वाला लव, लड़की कर गयी चुल, इक कुडी जिदा नाम मुहब्बत है गुम है, इन तीनों गीतों में आलिया भट्ट का इतना बेहतरीन अभिनय है कि अभिनय के देवता भी उनके शानदार अभिनय से इनकार नहीं करेंगे। उनकी मासूमियत, उनका चे

हमदर्द और मशहूर मोदीजी

हमदर्द भी, परपीड़क भी, ममता से भरे, हंटर वाले, घोर अनुशासित, के रूप में मोदीजी मशहूर हो चुके हैं पिछले तीन साल में टेक्सटाइल वाले और गहने वालोंने हड़ताल की, हड़ताल चलती रही, चलती रही, लेकिन सरकार नहीं मानी तो थक हारकर वो लोग ही मान गये। अब सरकारी विभाग वालों की तनख्वाहों पर ही मोदी सरकार ऐसा प्रहार कर रही है, और सरकारी लोगों की पोस्ट ऑफिस बचत पर ऐसा हमला कर रही है कि सरकार के किसी भी विभाग वाले हड़तालें करने के लायक ही नहीं बचे हैं, वो मन ही मन कह रहे हैं कि सरकार तो हमें उल्टा लटकाकर मार रही है, सारे सरकारी कर्मचारी उल्टा जान बचाकर मुँह पर उंगली रखकर काम कर रहे हैं। पहले तो किसी न किसी देश के बड़े सरकारी क्षेत्र जैसे बैक, परिवहन, बिजली, डाकघर, रेल आदि विभाग की लगातार हड़तालें चलती ही चली जाती थी, चलती ही चली जाती थी। तीन साल में हड़तालें बंद हो गयीं, दोबारा हुई तो सरकार का हंटर चलेगा, तो चारों ख़ाने चित्त हो जाएँगे। भारत बंद, बंद हो गये, राज्यों में बंद, बंद हो गये, शहरों में बंद, बंद हो गये। अब तो आप १५ अगस्त के दिन भी दुकान खोल रहे हैं तो कोई पूछने वाला नहीं है, दो अक्तूबर

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