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Showing posts with the label नीरज कुमार

नोटबंदी क्यों की गयी, उसका क्या फ़ायदा हुआ है

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नोटबंदी क्यों की गयी, उसका क्या फ़ायदा हुआ है नोटबंदी आज आठ महीने के बाद भी ठीक से पता नहीं चला है। क्योंकि सरकार की तरफ से जनता को तो किसी तरह का सीधा फ़ायदा हाथ नहीं लगा है, न किसी के बैंक खाते में पाँच लाख रुपये डाले गये हैं नही पंद्रह लाख डाले गये हैं। इस तरह से हम समझ चुके हैं कि यह सरकार जनता को मुफ्त की रोटियाँ तो खिलाने वाली नहीं है। यह सरकार सीधा-सीधा संदेश दे चुकी है, कि पैसा कमाना है तो मेहनत करके पैसा कमाओ, हमें टैक्स दो तो हमें किसी तरह का ऐतराज़ नहीं है। मगर सरकार ने तीन सौ रुपये में जो दो लाख का बीमा योजना शुरू की है, उससे हर ग़रीब का जीवन बहुत ही सुरक्षित हो गया है, मेरा हिसाब बताता हूँ, अगर मैं मर जाता हूँ, तो मेरी पत्नी को दो लाख मिलेगा, मैने एक्सीडेंट का केवल बारह रुपये का मोदीजी का भी बीमा करा लिया है, तो दो लाख और मिलेगा यानी अगर टक्कर हो गयी तो, चार लाख मिलेगा, चार लाख का ब्याज होता है तीन हज़ार रुपया, छोटा तीन हज़ार में किराये का मकान आ ही जाता है, तेलंगाना से विधवा पेंशन मिलती है एक हज़ार, पत्रकार होने के नाते मुझे मिलेंगे एक लाख एक्सीडेंट हो गया तो मिले...

घर की सत्ता घर की औरत को दी जाए

घर की सत्ता घर की औरत को दी जाए या फिर घर के मर्द को दी जाय मर्द के हाथ में सत्ता हो तो मातापिता, भाई-बहन निभ जाते हैं औरत के हाथ में सत्ता हो तो सिर्फ़ पैसे से परिवार आगे बढ़ता रहता है यह सवाल हालाँकि पिछले तीस-चालीस बरसों से चल रहा है, कि घर में ताकत औरत की ज़्यादा हो या मर्द की हो, लेकिन अब यह सवाल और भी ज़रूरी हो गया है, जिस मर्द के माता-पिता जिंदा हैं उसकी पत्नी की धौंस-घमंड मर्द पर हावी रहती है। मर्द औरत पर दो चार तरह से अपनी धौंस-घमंड जमा सकता है। एक तो वो पत्नी को पीटता है, तो पत्नी डर जाती है कि पतितो पीट रहा है, पीटने से बदन दर्द हो रहा है इसलिए पति जो कह रहा है वह सुन लेती हूँ, पति के मातापिता की सेवा कर लेती हूँ, ननद भी आये तो सेवा कर लेती हूँ। इसी तरह से अभी तक देश के लगभग आधे परिवार चला करते थे, जो भी ताकत थी वो सास और ससुर के हाथ में हुआ करती थी, सास-ससुर के नाम पर घर हुआ करता था तो बेटा भी माता-पिता को निभा लिया करता था, दूसरे भाई भी माता-पिता को निभा लिया करते थे, जो ससुर कहते थे उसी बात को सभी परिवार के सदस्य माना करते थे, सारी की सारी बहुएँ माना करती थीं। सबसे बड...

शोले है सितारों की ज़िदगी

शोले है सितारों की ज़िदगी पंकज कपूर जो शाहिद कपूर के पिता हैं, वे अपनी जवानी में रंगमंच के नाटक खेला करते थे, वे बेहतरीन अभिनेता हैं लेकिन तब उनके भोजन के लाले पड़ गये थे। क्योंकि नाटकों से ज़्यादा पैसा नहीं मिलता था, तब उन्होंने करमचंद नाम का टीवी जासूसी सीरियल किया था, वह सीरियल उनके अभिनय के लिए सदैव याद किया जायेगा, उनकी रग-रग में अभिनय बसा था, इसलिए करमचंद की भूमिका बहुत ही आसानी से कर पाये, बाद में ऑफिस-ऑफिस सीरियल से भी बहुत मशहूर हुए। तो पेट पालने के लिए यह बेहतरीन कलाकर नाटकों से हटकर भी काम करता रहा, याद रहे नाटक खेलने वाले अभिनेता, अभिनय की खान होती है, वे अभिनय को पूरी भक्ति से करते हैं लेकिन पैसा कमाने के लिए छोटे-बड़े पर्दे का सहारा लेते हैं। शोले है सितारों की ज़िदगी । आलिया भट्ट के गीत अभी से अमर हो चुके हैं, कई गीत उनके मासूम अभिनय से यादगार हो गये हैं, इश्क वाला लव, लड़की कर गयी चुल, इक कुडी जिदा नाम मुहब्बत है गुम है, इन तीनों गीतों में आलिया भट्ट का इतना बेहतरीन अभिनय है कि अभिनय के देवता भी उनके शानदार अभिनय से इनकार नहीं करेंगे। उनकी मासूमियत, उनका चे...

हमदर्द और मशहूर मोदीजी

हमदर्द भी, परपीड़क भी, ममता से भरे, हंटर वाले, घोर अनुशासित, के रूप में मोदीजी मशहूर हो चुके हैं पिछले तीन साल में टेक्सटाइल वाले और गहने वालोंने हड़ताल की, हड़ताल चलती रही, चलती रही, लेकिन सरकार नहीं मानी तो थक हारकर वो लोग ही मान गये। अब सरकारी विभाग वालों की तनख्वाहों पर ही मोदी सरकार ऐसा प्रहार कर रही है, और सरकारी लोगों की पोस्ट ऑफिस बचत पर ऐसा हमला कर रही है कि सरकार के किसी भी विभाग वाले हड़तालें करने के लायक ही नहीं बचे हैं, वो मन ही मन कह रहे हैं कि सरकार तो हमें उल्टा लटकाकर मार रही है, सारे सरकारी कर्मचारी उल्टा जान बचाकर मुँह पर उंगली रखकर काम कर रहे हैं। पहले तो किसी न किसी देश के बड़े सरकारी क्षेत्र जैसे बैक, परिवहन, बिजली, डाकघर, रेल आदि विभाग की लगातार हड़तालें चलती ही चली जाती थी, चलती ही चली जाती थी। तीन साल में हड़तालें बंद हो गयीं, दोबारा हुई तो सरकार का हंटर चलेगा, तो चारों ख़ाने चित्त हो जाएँगे। भारत बंद, बंद हो गये, राज्यों में बंद, बंद हो गये, शहरों में बंद, बंद हो गये। अब तो आप १५ अगस्त के दिन भी दुकान खोल रहे हैं तो कोई पूछने वाला नहीं है, दो अक्तूबर ...

हमारे गॉड़फॉदर मोदीजी हमारी इच्छा पूरी करेंगे

अभी हाल ही में एक रियल इस्टेट व्यापारी ने आत्महत्या कर ली, यह व्यापारी हालाँकि बहुत बड़ा बिल्डर नहीं था, लेकिन नोटबंदी के बाद पहली बार इस तरह की ख़बर सुनने में आयी कि अब अमीर लोग भी आत्महत्या करने लगे हैं। ज़मीनों के दाम घरों के दाम सारे देश में बुरी तरह से गिर चुके हैं। हालाँकि हर शहर के बीचोंबीच अभी भी दाम करोड़ों रुपये के चल रहे हैं, लोग अब प्रॉपटों ख़रीद भी रहे हैं। लेकिन आम जनता जो बहुत ही तकलीफ़ से पैसा कमाती हैं वे अब इत्मिनाम से रेट गिरने का इंतज़ार कर रहे हैं। क्योंकि एक तो मोदीजी ने गारंटी दी है कि २०२२ तक सारे भारतवासियों को मकान वे बनाकर देंगे। इससे नयी पीढ़ी में बहुत आशा जागी है, कि हमारे गॉड़फॉदर मोदीजी हमारी इच्छा पूरी करेंगे। अब हैदराबाद के शमशाबाद में छह लाख या सात लाख रुपये में पप्लैट बिक रहा है, डबल बेडरूम, वह पलैट वाला विज्ञापन तो दे रहा है, लेकिन जाकर बात करें तो वही बिल्डर गंदी, छिछोरी बातें करेगा कि इस फ्लैट का दाम सात लाख तो हैं मगर मैं यहाँ पार्किंग के पैसे अलग से लूटुंगा, चमन के अलग से लूटुंगा, काफ़ी मज़ाकिया बातें कहकर पैसे ऐंठेगा लेकिन ले देक...

आईपीएल-10 में रोहित का करिश्मा

आईपीएल-१० सिर्फ़ एक रन से मुंबई जीती, इस एक रन से खरबों रुपये की शर्त लोग हार गये, क्योंकि सभी ने पुणे पर बहुत सारा पैसा लगाया था, पहली पारी के बाद तो सारा का सारा पैसा पुणे के नाम पर लगा दिया गया था चार सौ चालीस वॉट का करंट मारा था, उस दिन जब मुंबई ने एक रन से मैच पुणे से जीत लिया था, काश, धोनी को अॉर्डर में ऊपर भेजा जाता तो पाँच गेंदों में सात रन तो वे आराम से बना लेते, लेकिन सामने अनुभवी मिचाल जॉनसन थे, जिनकी बदौलत मुंबई ने एकदम मुश्किल मैच में जीत हासिल की। मैच में सारा का सारा पैसा पुणे पर लगा था, क्योंकि वे मुंबई को तीन बार इसी बार हरा चुके थे, सो, अस्सी प्रतिशत लोग पुणे पर ही भरोसा कर रहे थे, लेकिन उस दिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था, आख़री ओवर में रोहित शर्मा के चेहरे को देखकर लग रहा था कि उन्होंने हाथ से मैच को छोड़ दिया लेकिन जैसे ही स्मिथ का कच पकड लिया गया तब आशा जागी और फील्डरों को धन्यवाद दिया जाना बदल डाला है। आईपीएल की यह दसवीं किस्त थी और नौजवान लोग इस खेल को जुनूनी हद तक चाहने लग गये हैं हर घर दुकान पर नौजवान रोज़ाना बैठकर आईपीएल को व्यापार में बदल चुके थे, कभी इस ...

हिंदुस्तान को बेहतर कर रहे है मोदी

पिछले चार साल से मैं हिंदी मिलाप में छप रहे रेड एलर्ट कॉलम को रोज़ाना पढ़ता रहा हूँ, इसमें आत्महत्याएँ और हत्याओं के बारे में ख़बरें आया करती हैं। नोटबंदी के पहले हरदिन कम से कम दो लोग या चार लोग आत्महत्या करते थे, वह भी पैसे की तंगी के कारण आत्महत्या करते थे, इसमें अधिकतर लोग कर्जदेनेवालों के सताये जाने के कारण आत्महत्या करते थे। कर्ज देने वाले इनको दस प्रतिशत ब्याज पर पैसा दिया करते थे और रोज़ाना पैसे लेने छाती पर बैठ जाया करते थे, पैसे न दो तो हलक में हाथ डालकर पैसे निकालने जितनी गंदीगालियाँ दिया करते थे। हमारी आत्मा भी तड़प जाये इस तरह से सताया करते थे। मोहल्ले के बीचोंबीच ठहराकर चप्पलों से मारा करते थे, हर सप्ताह इस तरह की ख़बरों के माध्यम से कम से कम हर सप्ताह अट्ठारह लोगों के आत्महत्या करने की ख़बर छपाकरती थी। मगर अब नोटबंदी के बाद सप्ताह में केवल दो या तीन आत्महत्याएँ ही पैसे की तंगी के कारण हो रही हैं। मोदीजी ने इन बेसहारा ग़रीब लोगों को जो भारी ब्याज पर पैसा उधार लेकर आत्महत्या करते थे, उन लोगों को बिना सेक्यूरिटी के एक लाख रुपये लोन देना शुरू किया जिससे उन्होंने सबसे...

बूढ़े लोग नयी पीडी से घबरा रहे है

बूढे माँ-बाप की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है या वे नये ज़माने से घबरा रहे हैं ? एक बूढे व्यक्ति ने कहा कि मैंने 70 साल तक नौकरी की। घर के पाँच बच्चों को पाला-पोसा उनके लायक बनाया, बडा घर बनाया, पाँच बेडरूम का। अपने घर को आगे बढाया। अपना मकान आज मैंने अपने बेटों के नाम पर कर दिया है। अब अचानक तबीयत बिगड जाने से घर पर बैठा हुआ हूँ। घर में मेरे से कोई बात तक नहीं करता है। चौबीस घंटों में बेटे-बहू मेरे से दो या तीन वाक्‌य ही बात करते हैं। वह भी मतलब की बात रही तो करते हैं। कोई रिश्तेदार आ जाता है तभी मेरे से बात किया करते हैं। कुछ कहता हूँ तो डाँट देते हैं, अब मैं आ°ड©र देने की हालत में तो बिल्‌कुल नहीं हूँ, हाँ, चुपचाप बच्चों का आ°ड©र सुन लेता हूँ, नहीं सुनो तो बुरी तरह से डाँट दिया करते हैं। अपने बारे में कुछ बुरा सुनता हूँ तो बुरा लगता है, कुछ बुरा देखता हूँ तो बुरा लगता है। मैंने तय कर लिया है कि मैं अपनी आँख बंद कर लूँगा, कान से सुनना बंद कर दूँगा। मुँह से कुछ भी कहना बंद कर दूँगा। ये तीनों खोलूँगा तो दुख मुझे ही होगा। मुँह से कुछ कहूँगा तो डाँट पडेगी, कुछ बुरा सुनूँगा तो सा...

माता पिता की लाशों पर घर बनाया

कई लोगों ने माता-पिता, भाई-बहन की छाती को रौंदकर, उनकी लाशों पर चलकर अपने मकान बनाये है  एक घर में पिता गुज़र गये। माता रह गयी। माता ने 8 हज़ार की नौकरी कर ली। वह बच्चों को पाल रही थी। बच्चे बडे हुए। बच्चों ने कमाना शुरू किया तो वे माता को एक भी पैसा नहीं देते थे। बडा बेटा एक भी पैसा नहीं देता था तो छोटे ने कहा कि बडा नहीं देता है तो मैं क्‌यों दूँ? बडा बेटा कहता था कि माता मुझे तन™वाह नहीं मिलती मैं अभी ट्रेिनग पर हूँ न, तीन साल तो ट्रेqनग में ही बिना तन™वाह के निकल जाएँगे। छोटे ने कहा मेरे व्यापार में नुकसान हो रहा है। मैं उस नुकसान को बहुत ही मुशि्कल से कवर कर पा रहा हूँ, तुमसे ही तो उल्‌टे एक-एक हज़ार लेकर लोगों को नुकसान भर रहा हूँ।

नोटबंदी के बाद रहन-सहन में फर्क आ गया है

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नोटबंदी के बाद लोगों के रहन-सहन में फर्क आ गया है, लोगों के पास पैसे की कमी बहुत हो गयी है, हालात बहुत ही बद से बदतर होते चले जा रहे हैं  नोटबंदी नोटबंदी के बाद दो महीनों तक तो लोगों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। जो लोग प्राइवेट नौकरी कर रहे थे, उनकी नौकरी खतरे में आ गयी थी, कईयों की नौकरी चली गयी, लोग बस बिना कुछ किये दो महीने तक जिंदगी गुजार रहे थे। व्यापारियें को कहीं से भी पेमेंट नहीं आ रहे थे। सारे होटलों में किसी तरह का ग्राहक ही नहीं था, सिनेमाघरों में भीड़ नहीं थी, लोगों के पास बड़ा इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे, ऑटो खाली जा रहे थे, कारों की सवारी कोई नहीं कर रहा था। जबकि करीब एक लाख युवाओं ने ओला, ऊबर कार वंपनियों के भरोसे ब्याज पर कारें खरीदीं थीं, उनकी हालत दो महीने तक बद से बदतर हो गयी थी। और आज तो हालात बद से बदतर हो गयी है, क्योंकि लोग अब अपनी लैविश यानी अमीरों जैसी fæजदगी जीने जैसे लायक ही नहीं रहे  गये हैं, पहले ऑटो वाला अपने दो बच्चों को महँगी फीस के स्कृल में पढ़ा रहा था। नोटबंदी के बाद उसके पास बच्चों की फीस भरने के लाले पड़ गये। उस...

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