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अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं

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महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी  अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन अब तो माता-पिता अपनी बेटी को भी नहीं निभा रहे हैं,जबकि माता-पिता के पास लाखों रुपया पड़ा रहता है आज सारी दुनिया में यही शोर चल रहा है कि दामाद बहुत ही ख़राब है, जल्लाद की तरह है, इसलिए हम अपनी ब्याहता बेटी की भी मदद नहीं करेंगे। दामाद का तो ऐसा होता है कि उसकी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं होती है फिर भी वह घमंड की बातें हमेशा किया करता है। ससुराल के सामने वह डींगे हाँकने लग जाता है, झूठ बोलता है, लेकिन वह ससुराल के सामने नहीं झुकता है। यह दामाद की असल में यही फितरत पहले से ही रही है, और रहेगी भी। लेकिन सभी को यह भी तो समझना चाहिए कि उसी दामाद के कब्जे में तो हमारी बेटी भी तो रहती है, बेटी चाहे तीस साल की हो जाय या पचास साल की, दामाद हमेशा बेटी के मायके को बुरी-बुरी गालियाँ दिया करता है। यह सब देखकर माता-पिता हमेशा के लिए बेटी को ही त्यागा कर रहे हैं उससे हमेशा के लिए जान छुडा रहे हैं, जो कि बहुत ही बुरी बात है, अपने ही पेट से जन्मी हुई बेटी को ही वे हमेशा के लिए दामाद के कब्जे में रख ...

नोटबंदी से केवल पचास प्रतिशत काम हुआ है

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नोटबंदी से केवल पचास प्रतिशत काम हुआ है नोटबंदी अभी भ्रष्टाचार का आधा काम बाक़ी है नोटबंदी के बाद भी लोगों में पैसे की भूख कम नहीं हुई है। हाल ही में एक बीस करोड़ की शादी हुई हैदराबाद के नोवाटेल होटल में तो मुझे कई फ़ोन आये कि आप तो बड़ी-बड़ी बातें लिखते हैं लेकिन समाज में तो लोग पैसा अभी भी पानी की तरह बहा रहे हैं। उसका जवाब यह है कि शादियों पर पैसा लुटाने का सिलसिला आज का नहीं दस हज़ार साल से चला आ रहा है। लेकिन हमको अपने संयम से रहना चाहिए। क्यों गांधीजी ने शर्ट पैंट उतारकर घुटने के ऊपर तक की धोती पहनी और शर्ट भी नहीं पहना, क्योंकि वे भारत के आम इंसान की तरह दिखना चाहते थे, हमें भी चाहिए कि हम धोती और शर्ट तो पूरा पहनें लेकिन अतिरिक्त कमाई का हिस्सा दूसरों की पढ़ाई और उनके जीवन को सुधारने में लगाएँ। हमें मूखों की तरह किसी की देखादेखी नहीं करनी चाहिए। देखादेखी करने के कारण ही तो हम परेशान हो रहे हैं। आपको हैरानी होगी कि हमारे पैसे से ही अमीर लोग महँगी शादी करते हैं, और हम उल्लुओं की तरह उनकी शादी देखते हैं, हम शेयर बाज़ार में जो पैसा डालते हैं अरे, मूखों सरीखी जनता उसी से...

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