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Showing posts from August, 2019

अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए

अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए, अपने ही दामाद से झगड़ा करके दामाद के सगे भाई-बहनों से दामाद की चुग़ली नहीं करनी चाहिए दामाद के लिए एक बात की सौ बात होती है कि दामाद चाहे कितना भी अच्छा हो, या चाहे कितना भी बुरा हो, उसे सम्मान देना चाहिए। जो लोग दामाद से चिढ़ते हैं उन्हें सारा जीवन एक ही कहावत पर काम करना चाहिए कि बहन के लिए बहन के पति यानी दामाद को, गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, करके दामाद का रिश्ता निभाना चाहिए। वह चाहे हमारा कितना भी अपमान कर ले उसे सम्मान देना चाहिए। क्योंकि हमारी जान यानी हमारी बेटी-बहन दामाद के पास हमेशा के लिए अटक जाती है। दामाद को हम खुश रखेंगे तो बेटी खुश रहेगी नहीं तो बेटी खुश नहीं रहेगी। एक परिवार ने सारे दामादों को बारी-बारी करके बेइज़्ज़त करके घर से निकाल दिया। उस परिवार के लोग पैसे से बहुत प्यार करते हैं। चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये वाला हिसाब है उस परिवार में। असल में, वे दामादों को दावत खिलाकर अपना पैसा खर्च नहीं करना चाह रहे थे। इसलिए उन्होंने दामादों से झगड़ा कर लिया। उस दिन के बाद से उस परिवार के पास पैसा आना ही बंद हो गया। क्योंकि उन्ह

इधर जनसंख्या कम हो रही है, उधर दस करोड़ लोग गरीबी रेखा से हर दूसरे साल ऊपर आ रहे हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं

पिछले दिनों एक अच्छी ख़बर आ रही है कि भारत में हर मिनट में पहले पैंतालीस बच्चे पैदा हुआ करते थे, अब एक मिनट में उनतीस बच्चे पैदा हो रहे हैं। क्योंकि अब यह सिलसिला थमना ज़रूरी था, क्योंकि जो जी रहे हैं उनको को भोजन ठीक से मिल जाये तो बढिया होता है। भारत की एक सौ तीस से चालीस करोड़ तक की आबादी से भारत ही नहीं सारा विश्व भी मज़े लूट रहा है, सारे भारत के ही लोग दुनिया भर में फैले हुए हैं, भारतीयों के बारे में कहा जाता है कि वे खुशमिज़ाज, संयमी, भगवान से डरने वाले और अपने काम से मतलब रखने वाले, शांतिप्रिय लोग होते हैं। यह गुण मुसलमान भी पैदा कर लें तो ठीक रहेगा। जनसंख्या बढ़ने से एक ही नौकरी पर चार चार लोग नज़र ताकते हुए बैठे रहते हैं और बददुआ देते हैं कि वह मर जाये तो मैं उसी नौकरी पर चढ़ जाऊँ। पहले की फिल्मों में मुकरी-टुनटुन के दस दस बच्चों की फौज दिखाई जाती थी, उस समय हरेक फिल्म का कॉमेडी ट्रैक ढेर सारे बच्चों से ही दिखाया जाता था। तब के भोजन में मिलावट नहीं थी, तीर भी निशाने पर लग जाता था तो बच्चे पैदा होते ही रहते थे। आजकल तो भोजन इतना नक़ली है कि तीसरा या चौथा बच्चाही बेदम पैदा

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