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अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं

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महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी  अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन अब तो माता-पिता अपनी बेटी को भी नहीं निभा रहे हैं,जबकि माता-पिता के पास लाखों रुपया पड़ा रहता है आज सारी दुनिया में यही शोर चल रहा है कि दामाद बहुत ही ख़राब है, जल्लाद की तरह है, इसलिए हम अपनी ब्याहता बेटी की भी मदद नहीं करेंगे। दामाद का तो ऐसा होता है कि उसकी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं होती है फिर भी वह घमंड की बातें हमेशा किया करता है। ससुराल के सामने वह डींगे हाँकने लग जाता है, झूठ बोलता है, लेकिन वह ससुराल के सामने नहीं झुकता है। यह दामाद की असल में यही फितरत पहले से ही रही है, और रहेगी भी। लेकिन सभी को यह भी तो समझना चाहिए कि उसी दामाद के कब्जे में तो हमारी बेटी भी तो रहती है, बेटी चाहे तीस साल की हो जाय या पचास साल की, दामाद हमेशा बेटी के मायके को बुरी-बुरी गालियाँ दिया करता है। यह सब देखकर माता-पिता हमेशा के लिए बेटी को ही त्यागा कर रहे हैं उससे हमेशा के लिए जान छुडा रहे हैं, जो कि बहुत ही बुरी बात है, अपने ही पेट से जन्मी हुई बेटी को ही वे हमेशा के लिए दामाद के कब्जे में रख ...

हमदर्द और मशहूर मोदीजी

हमदर्द भी, परपीड़क भी, ममता से भरे, हंटर वाले, घोर अनुशासित, के रूप में मोदीजी मशहूर हो चुके हैं पिछले तीन साल में टेक्सटाइल वाले और गहने वालोंने हड़ताल की, हड़ताल चलती रही, चलती रही, लेकिन सरकार नहीं मानी तो थक हारकर वो लोग ही मान गये। अब सरकारी विभाग वालों की तनख्वाहों पर ही मोदी सरकार ऐसा प्रहार कर रही है, और सरकारी लोगों की पोस्ट ऑफिस बचत पर ऐसा हमला कर रही है कि सरकार के किसी भी विभाग वाले हड़तालें करने के लायक ही नहीं बचे हैं, वो मन ही मन कह रहे हैं कि सरकार तो हमें उल्टा लटकाकर मार रही है, सारे सरकारी कर्मचारी उल्टा जान बचाकर मुँह पर उंगली रखकर काम कर रहे हैं। पहले तो किसी न किसी देश के बड़े सरकारी क्षेत्र जैसे बैक, परिवहन, बिजली, डाकघर, रेल आदि विभाग की लगातार हड़तालें चलती ही चली जाती थी, चलती ही चली जाती थी। तीन साल में हड़तालें बंद हो गयीं, दोबारा हुई तो सरकार का हंटर चलेगा, तो चारों ख़ाने चित्त हो जाएँगे। भारत बंद, बंद हो गये, राज्यों में बंद, बंद हो गये, शहरों में बंद, बंद हो गये। अब तो आप १५ अगस्त के दिन भी दुकान खोल रहे हैं तो कोई पूछने वाला नहीं है, दो अक्तूबर ...

पाकिस्तान और हिंदुस्तान मुसलमानों का हो जायेगा, हिंदू भजन गाते रह जाएँगे

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डॉ. किशोरीलाल व्यास दक्षिण समाचार के १ फ़रवरी  २०१७ के अंक में शकील अख़्तर के कश्मीर पर विचार पर पढ़े, इस लेख से अलगाववाद की बू आती है। हिज़बुल मुजाहिदीन के शसस्त्र बुरहानवानी के मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी मं उसके जनाज़े में लोगों की भीड़ उमड़ी तथा प्रदर्शन होते रहे, सुरक्षाबलों तथा पुलिस पर जो पथराव होता रहा, वह क्या सूचित करता है। पाकिस्तान के झंडे लहराना, आई.एस.आई की पताकाएँ फहराना किस बात का संकेत हैं। कश्मीरी युवकों पर एक भी गोली चली, न एक भी युवक मारा गया। घुसपैठिये से लोहा लेते सैनिकों पर कश्मीरियों ने पत्थर बरसाये, कई स्कूल जला डाले। लेकिन हमारे सुरक्षाबल हाथ बाँधे हुए लड़ाई लड़ रहे हैं। अलगाववादियों के पत्थरों से गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। फिर भी न गोली चला रहे हैं, न लाठी। अगर इस्त्राइल या जर्मनी में ऐसी घटना घटती तो बंदूक की गोली से सभी पत्थरबाज़ों को उडा दिया जाता। आपके लेखक शकील अख़्तर ने कहा है-यह गतिरोध की स्थिति है। कश्मीरी युवाओं के रास्ते बंद हैं। जबकि पाकिस्तान एक ओर से आतंकवादी भेजता है, दूसरी ओर बातचीत की पेशकश करता है। एक ओर बम विस्फोटों के षड...

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