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अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए

अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए, अपने ही दामाद से झगड़ा करके दामाद के सगे भाई-बहनों से दामाद की चुग़ली नहीं करनी चाहिए दामाद के लिए एक बात की सौ बात होती है कि दामाद चाहे कितना भी अच्छा हो, या चाहे कितना भी बुरा हो, उसे सम्मान देना चाहिए। जो लोग दामाद से चिढ़ते हैं उन्हें सारा जीवन एक ही कहावत पर काम करना चाहिए कि बहन के लिए बहन के पति यानी दामाद को, गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, करके दामाद का रिश्ता निभाना चाहिए। वह चाहे हमारा कितना भी अपमान कर ले उसे सम्मान देना चाहिए। क्योंकि हमारी जान यानी हमारी बेटी-बहन दामाद के पास हमेशा के लिए अटक जाती है। दामाद को हम खुश रखेंगे तो बेटी खुश रहेगी नहीं तो बेटी खुश नहीं रहेगी। एक परिवार ने सारे दामादों को बारी-बारी करके बेइज़्ज़त करके घर से निकाल दिया। उस परिवार के लोग पैसे से बहुत प्यार करते हैं। चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये वाला हिसाब है उस परिवार में। असल में, वे दामादों को दावत खिलाकर अपना पैसा खर्च नहीं करना चाह रहे थे। इसलिए उन्होंने दामादों से झगड़ा कर लिया। उस दिन के बाद से उस परिवार के पास पैसा आना ही बंद हो गया। क्योंकि उन्ह

इधर जनसंख्या कम हो रही है, उधर दस करोड़ लोग गरीबी रेखा से हर दूसरे साल ऊपर आ रहे हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं

पिछले दिनों एक अच्छी ख़बर आ रही है कि भारत में हर मिनट में पहले पैंतालीस बच्चे पैदा हुआ करते थे, अब एक मिनट में उनतीस बच्चे पैदा हो रहे हैं। क्योंकि अब यह सिलसिला थमना ज़रूरी था, क्योंकि जो जी रहे हैं उनको को भोजन ठीक से मिल जाये तो बढिया होता है। भारत की एक सौ तीस से चालीस करोड़ तक की आबादी से भारत ही नहीं सारा विश्व भी मज़े लूट रहा है, सारे भारत के ही लोग दुनिया भर में फैले हुए हैं, भारतीयों के बारे में कहा जाता है कि वे खुशमिज़ाज, संयमी, भगवान से डरने वाले और अपने काम से मतलब रखने वाले, शांतिप्रिय लोग होते हैं। यह गुण मुसलमान भी पैदा कर लें तो ठीक रहेगा। जनसंख्या बढ़ने से एक ही नौकरी पर चार चार लोग नज़र ताकते हुए बैठे रहते हैं और बददुआ देते हैं कि वह मर जाये तो मैं उसी नौकरी पर चढ़ जाऊँ। पहले की फिल्मों में मुकरी-टुनटुन के दस दस बच्चों की फौज दिखाई जाती थी, उस समय हरेक फिल्म का कॉमेडी ट्रैक ढेर सारे बच्चों से ही दिखाया जाता था। तब के भोजन में मिलावट नहीं थी, तीर भी निशाने पर लग जाता था तो बच्चे पैदा होते ही रहते थे। आजकल तो भोजन इतना नक़ली है कि तीसरा या चौथा बच्चाही बेदम पैदा

किसानों की कहानी, शहरों की कहानी, महानगरों का मिज़ाज समय बहुत ही तेज़ी से बदल रहा है।

देश बहुत तेज़ी से बदल रहा है। लेकिन हमारे देश की जनता नहीं बदल रही है। हाल ही में कांग्रेस की सरकार तीन राज्यों में जीतकर आयी। कांग्रेस ने आते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया। किसानों का कर्ज माफ़ करते ही अंदर ही अंदर लोगों में बहुत ही गुस्सा बढ़ गया है। लोग कह रहे हैं कि हम जीएसटी देकर सरकार को मज़बूत बना रहे हैं। हम व्यापार करते हैं तो टैक्स के रूप में पैसा काटा जा रहा है, हम नौकरी करते हैं तो टैक्स के रूप में पैसा काटा जा रहा है। हम खून पसीना एक करके सरकार को पैसा कमाकर दे रहे हैं। और वहीं कांग्रेस सरकार किसानों को घर बैठे उनका क़र्ज माफ़ करती चली जा रही है। व्यापारी उद्योगपति कह रहे हैं कि क्या हम नासमझ हैं जो जीएसटी भरकर किसानों को बैठाकर जीवन भर खिलाते रहेंगे। लोगों का कहना है कि हरेक साल किसानों का क़र्ज माफ़ करते रहेंगे तो बैंकों का, भारतीय तिजोरी का सारा पैसा क़र्ज माफ़ी में ही चला जायेगा। तो देश दोबारा सत्तर साल पीछे चला जायेगा। और यह लगेगा कि हम २०१८ में भी १९४७ जैसा ही जीवन जी रहे हैं। और इधर हम जो अमेरिका जैसे मज़बूत होने का सपना छोड़कर दोबारा उसी मुफलिसी, दरिद्रता, भुख

घर के बूढा बूढी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए

घर के बूढा बूढी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए शहर से दूरदराज के इलाके में कम से कम 200 या 100 गज की जमीन लेकर वहां पर एक दो मंजिल का मकान बनाना चाहिए जिसमें शुरू में 5 साल तक पहले माले पर घर । बनाना चाहिए और उस एक मंजिल यानी ग्राउंड फ्लोर में तीन बेडरूम बनाने चाहिए। घर के बूढ़े माता-पिता को जिंदगी देने के लिए उनको सम्मान से जीवन जीने देने के लिए अब लोगों को दोबारा फ्लैट कल्चर को छोड़कर इंडिपेंडेंट मकान बनाने के बारे में सोचना चाहिए। फ्लैट में रहने की वजह से यहां पर केवल दो बेडरूम या तीन बेडरूम रहते हैं। तो ऐसे में बूढ़े लोगों को जीवन जीना बहुत ही मुश्किल होता चला जा रहा है। दो बेडरूम में बच्चे रहते हैं माता-पिता रहते हैं और ड्राइंग रूम में बेचारे बूढ़े दादा दादी रहते है। ' और ड्राइंग रूम में बार बार जब उनका बेटा बहू और पोता पोती आते जाते रहते हैं। तो वह लोग अपने दादा दादी से बहुत ही चिढ़ा कुढा करते हैं कि यह लोग अभी तक जिंदा क्यों है। और यह लोग मर क्यों नहीं जाते है। तो ऐसे में आजकल एक नया कल्चर शुरू करना चाहिए। कि लोगों को शहर से दरदराज के इलाके में कम से कम 200 या 100 गज की ज

मोदी राज में बैठकर खाने वालों की बिल्कुल जगह नहीं है

मोदी राज में बैठकर खाने वालों की बिल्कुल जगह नहीं है बैठकर सरकारी कुर्सियों पर नींद लेने की बिल्कुल जगह नहीं रही है  बैठ कर भ्रष्टाचार करने वालों के लिए इस देश में अब कोई जगह नहीं है। जब से सवर्णों का आरक्षण सरकार द्वारा घोषित किया गया है सवर्गों के बीच बहुत ही खुशियां मनाई जा रही है। लेकिन सवर्णो की खुशियां तभी रंग लाएगी जब सारे सब मिलकर मोदी जी को वोट दे। वोट डालने के लिए दौड़ दौड़ कर जाएंगे। और तब भारत का वोट प्रतिशत 70 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत हो जाएगा। सवर्णो को सरकारी नौकरियाँ नहीं देने से सवर्ण लोग वोट डालने भी नहीं जाया करते थे, वे सोचते थे कि वोट हम डालें और मलाई कोई और ले जाये, सो, यह निराशा अब समाप्त हो गयी है, सो, वोट प्रतिशत इस बार बहुत बढ़ जायेगा। | इस तरह से यह मोदी जी का लिया गया ऐतिहासिक फैसला है। लेकिन यहीं पर बात अटकती है अब देखना यह होगा कि सवर्णों की प्रगति से दूसरी अन्य जातियां किस तरह से मोदीजी का साथ देती है या फिर इसका बदला लेती है। मोदी जी के समय में दो बड़ी बातें बहुत ही अच्छी तरह से सामने आई। 1990 में जब भारत का सारा श्रमिक वर्ग तैयार हो रहा था तब

In MP, Chhattisgarh, there were fifteen-year-old BJP governments they had to change, in Rajasthan, the government has been changing for the past twenty-five years, therefore, this not a very big loss for BJP party

In MP, Chhattisgarh, there were fifteen-year-old BJP governments they had to change, in Rajasthan, the government has been changing for the past twenty-five years, therefore, this not a very big loss for BJP party. Some election analysts call that this is a semi final for lok Sabha election, it  means a lot.  Muslims united and voted for the Congress because the issue of the Babri Masjid was heated and the muslims wandered. Looking at the recent elections, it seems that this time, all the muslims have voted for the Congress together. Because of which the BJP has completely lagged behind as muslims probably turn all the dice into India's election. The reason for this is that this time the BJP has raised the issue of the Babri Masjid issue again. BJP wants the temple to be built as soon as possible. Muslims may be silent in case of divorce but in the matter of the temple mosque, the voters  specially muslims go towards the Congress and it seems that this time muslims have voted f

मप्र, छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल पुरानी भाजपा सरकारें थीं

मप्र, छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल पुरानी भाजपा सरकारें थीं, तो उनको बदलना ही था, राजस्थान में भी पिछले पच्चीस साल से सरकार बदल रही है, इसीलिए भाजपा को नाराज़ होने के बजाय केवल मुसलमानों को पटाकर रखना चाहिए

अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं

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महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी  अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन अब तो माता-पिता अपनी बेटी को भी नहीं निभा रहे हैं,जबकि माता-पिता के पास लाखों रुपया पड़ा रहता है आज सारी दुनिया में यही शोर चल रहा है कि दामाद बहुत ही ख़राब है, जल्लाद की तरह है, इसलिए हम अपनी ब्याहता बेटी की भी मदद नहीं करेंगे। दामाद का तो ऐसा होता है कि उसकी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं होती है फिर भी वह घमंड की बातें हमेशा किया करता है। ससुराल के सामने वह डींगे हाँकने लग जाता है, झूठ बोलता है, लेकिन वह ससुराल के सामने नहीं झुकता है। यह दामाद की असल में यही फितरत पहले से ही रही है, और रहेगी भी। लेकिन सभी को यह भी तो समझना चाहिए कि उसी दामाद के कब्जे में तो हमारी बेटी भी तो रहती है, बेटी चाहे तीस साल की हो जाय या पचास साल की, दामाद हमेशा बेटी के मायके को बुरी-बुरी गालियाँ दिया करता है। यह सब देखकर माता-पिता हमेशा के लिए बेटी को ही त्यागा कर रहे हैं उससे हमेशा के लिए जान छुडा रहे हैं, जो कि बहुत ही बुरी बात है, अपने ही पेट से जन्मी हुई बेटी को ही वे हमेशा के लिए दामाद के कब्जे में रख देते

मोदीजी आये हैं लेके दिल में इश्क मोहब्बत

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मोदीजी आये हैं लेके दिल में इश्क मोहब्बत, सबको गले लगाना अपने कल्चर की है आदत, स्वैग से करेंगे सबका स्वागत आमदनी अट्टनी ख़र्चा रुपय्या के हिसाब से आज भारत का हरेक नागरिक जी रहा है। कमाई धेले की नहीं है, ख़र्चा का अंबार लगा हुआ है। पिटते-पिटाते सब जी रहे हैं और मोदी सरकार की तरफ ललचायी नज़रों से देख रहे हैं और भजन गा रहे हैं, ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले....। पिंजरे के पंछी रे एएएए तेरा दर्द ना जाने कोई तेरा दर्द न जाने कोई....। इस जग की अजब तस्वीर देखी एक हँसता है दस रोते हैं....। दिमाग़ में पुराने पुराने गीत आ रहे हैं, कवि प्रदीप, के. एल. सहगल, मुकेश के गीत याद आ रहे हैं....दिल जलता है तो जलने दे आँसू न बहा फरियाद न कर, दिल जलता है तो जलने दे...।। गहराई से सोचें तो हम लोग ही आमदनी अट्टनी ख़र्चा रुपया का जीवन जी रहे हैं, और सरकार को कोस रहे हैं। बच्चों को महँगे स्कूल कॉलेजों में भेजकर उनकी भारी फीस का लबादा ओढ़ रहे हैं। चालीस साल पहले एक बच्चा अग्रवाल स्कूल में पढ़ता था, फीस थी एक रुपया, उस एक रुपय्या को बचाने के लिए फीस माफ़ कराने की लाईन म

अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं

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अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ दया-करुणा की नहीं नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ दया-करुणा की नहीं नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं, जबकि अमीर भाई का फ़र्ज बनता है कि गरीब बहन की मदद करें, मदद नहीं करें तो कमों का फल यहीं मिल जाता है शादी के बाद बहन की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाती है, या तो वह महलों में राज करती है या नहीं तो छोटे से घर में तड़प-तड़पकर जी लेती है। इसलिए बहनों की रक्षा करना उनके माता-पिता का ही फ़र्ज नहीं है बल्कि भाईयों का भी फ़र्ज बनता है। आजकल तो भाईयों को अपनी बहन की ग़रीबी दिखाई ही नहीं देती है, भाई लोग अमीरी के मज़े लूटते हैं तो बेचारी बहन सड़-सड़कर जी रही होती है। भाई अपनी पत्नी और बच्चे का गुलाम हो जाता है। तो वह बहन का कुछ अच्छा नहीं चाह सकता है। लेकिन भाईयों को चाहिए कि वे लोग बहन की सदा के लिए मदद करते रहें। दो भाईयों की एक बहन की शादी एक बहुत ही बड़े महल जैसे घर के बेटे से हुई। भाईयों ने सोचा कि बहन को अब जीवन भर पलटकर देखने की ज़रूरत ही नहीं है। मन में सोच रहे थे कि चलो हमारी पीड़ा तो चली गयी, तीस साल की हो गयी थी, कोई उस

नोटबंदी से केवल पचास प्रतिशत काम हुआ है

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नोटबंदी से केवल पचास प्रतिशत काम हुआ है नोटबंदी अभी भ्रष्टाचार का आधा काम बाक़ी है नोटबंदी के बाद भी लोगों में पैसे की भूख कम नहीं हुई है। हाल ही में एक बीस करोड़ की शादी हुई हैदराबाद के नोवाटेल होटल में तो मुझे कई फ़ोन आये कि आप तो बड़ी-बड़ी बातें लिखते हैं लेकिन समाज में तो लोग पैसा अभी भी पानी की तरह बहा रहे हैं। उसका जवाब यह है कि शादियों पर पैसा लुटाने का सिलसिला आज का नहीं दस हज़ार साल से चला आ रहा है। लेकिन हमको अपने संयम से रहना चाहिए। क्यों गांधीजी ने शर्ट पैंट उतारकर घुटने के ऊपर तक की धोती पहनी और शर्ट भी नहीं पहना, क्योंकि वे भारत के आम इंसान की तरह दिखना चाहते थे, हमें भी चाहिए कि हम धोती और शर्ट तो पूरा पहनें लेकिन अतिरिक्त कमाई का हिस्सा दूसरों की पढ़ाई और उनके जीवन को सुधारने में लगाएँ। हमें मूखों की तरह किसी की देखादेखी नहीं करनी चाहिए। देखादेखी करने के कारण ही तो हम परेशान हो रहे हैं। आपको हैरानी होगी कि हमारे पैसे से ही अमीर लोग महँगी शादी करते हैं, और हम उल्लुओं की तरह उनकी शादी देखते हैं, हम शेयर बाज़ार में जो पैसा डालते हैं अरे, मूखों सरीखी जनता उसी से

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