रिटायर लोग नये अमीर कहला रहे हैं
पिछले बीस साल से जो लोग रिटायर हो रहे हैं वे नये अमीर कहला रहे हैं, और उनका घमंड सातवें आसमान पर चला गया है, जिससे वे खुद का ही नुकसान कर रहे हैं
जब कोई भी स्त्री या पुरुष सरकारी नौकरी से रिटायर होते हैं तो उनको पीफ के रूप में तीस लाख से लेकर एक करोड़ तक की धनराशि एक साथ मिल जाया करती है। यह उनके लिए बहुत ही खुशी की बात होती है, लेकिन १०० में ८० लोग ही असल में मिली हुई सही रकम बता पाते हैं वरना जिनको तीस लाख मिलते हैं वह बीस लाख बताते हैं, साथ में सौ तरह के झूठे कर्जे गिना देते हैं। जिनको चालीस लाख मिलते हैं वे बीस बताते हैं, जिनको पचास लाख मिलते हैं वह भी बीस लाख बताते हैं, जिनको साठ लाख मिलते हैं वे कहते हैं कि हमें अभी कुछ नहीं मिला है दो साल के बाद मिलना है, कार्रवाई चल रही है। जिनको एक करोड़ रुपया मिलता है वे कहते हैं कि हमें तीस लाख मिले हैं वह भी दस दस दस करके मिलने वाले हैं। कुछ लोग मोदीजी का नाम लेकर कह देते हैं कि उन्होंने सारा पैसा रोक लिया है, अब तो ऐसा हो गया है कि कुछ भी ग़लत होता है तो सरकारी कर्मचारी मोदीजी का ही नाम गिना दिया करते हैं। अब तो हर बात का इल्जाम मोदीजी पर ही लगाया जा रहा है, ग़नीमत यह है कि किसी को बच्चा होने वाला है तो यह नहीं कहते कि यह तो मोदीजी की मेहरबानी से हो रहा है। मोदीजी का आतंक बताकर लोग अपनी पेंशन में भी मोदीजी का नाम बदनाम कर रहे हैं, जबकि मोदीजी हरेक को उसका पूरा हक़ दे रहे हैं। रिटायर होने के बाद छह महीने तक रिटायर होने वाला यह महान आदमी अपने को एकदम कंगाल बताने लग जाते हैं। वे कहते हैं हमारा तो बंटाधार हो गया, पहले तो अस्सी हज़ार या एक लाख तनख्वाह मिलती थी, वह अचानक बंद होकर अब तीस हज़ार रुपये ही मिला करेंगे, हाय हम तो बर्बाद हो गये, तभी घर पर भगवान पर चढ़ाने वाले फूल देकर जाने वाले भय्या से कहते हैं कि भैया अब हम रिटायर हो चुके हैं अब रोज़ाना बीस रुपये के नहीं दस रुपये के फूल देना। दूध आधा लीटर कम कर देते हैं। नौकरानी को दो हज़ार से कम करके १५०० कर देते हैं और झाडू पोंछा खुद कर लेते हैं। फलाना ढ़िकाना कहते हैं। अंदर ही अंदर वे ज़मीन ख़रीदते रहते हैं। एफ.डी. कराते रहते हैं। छह महीने तक वे बहुत ही मायूस हो जाते हैं, रिश्तेदारी में अपने को एकदम कंगाल बतलाकर पेश किया करते हैं। रिटायर होते ही ब्याही हुई बेटी बार-बार मायके आना शुरू कर देती है तो सभी के चेहरे उतर जाते हैं कि यह ज़रूर हमसे कुछ न कुछ लेकर ही रहेगी। रिटायर होते ही भाईयों के चेहरे मायूस हो जाते हैं, वे यहाँवहाँ से पता कर लेते हैं कि कितने पैसे मिले होंगे, भाई जाकर रिटायर भाई से पूछता है उससे पहले ही रिटायर भाई कहना शुरू कर देता है, मेरी बेटी की शादी की थी, उसका कर्जा अभी तक है मैंने किसी को बताया नहीं, भाईयों की शादियाँ की थी उसका भी कर्जा अभी मंडरा रहा है, वह भरकर मरदूद भाईयों से कम से कम छुटकारा अब जाकर मिलेगा। ऐसा कहते हैं छोटा भाई पतली गली से निकल जाता है, वह सोचता है कि भाई साहब तो पुराने मुर्दे ही उखाड़ने में लगे हुए हैं तो अब उनसे क्या उम्मीद करना। वरना वह भी एक दो लाख की गिफ्ट की उम्मीद रखता है ताकि उसके बेटे के नाम पर एफ.डी. करा सके। छोटा भाई रिटायर भाई के घर जाते ही रिटायर भाई का चेहरा मातमी हो जाता है, जैसे कि घर में कोई बहुत ही बीमार हो गया हो, लेकिन जैसे ही छोटा भाई घर से चला जाता है तो चेहरा सभी का खिल जाता है, पत्नी कहती है रात का भोजन हम बहुत ही महँगी होटल में करेंगे। कार की प्लानिंग अभी से कर लेते हैं लेकिन लेते हैं रिटायर होने के दो साल के बाद, क्योंकि लोगों की नज़र लग जायेगी। एक फ्लैट अभी ले लेते हैं उसकी रेजिस्ट्री भी करवाकर किराये पर चढ़ा देते हैं लेकिन गृह प्रवेश अंदर ही अंदर करके उसकी दावत तीन साल के बाद ही देते हैं। अभी हम सब मिलकर क्या करते हैं कि तीर्थयात्रा पर निकल जाते हैं। चार लाख लगाकर तीर्थ यात्रा करके आते हैं। चलो तीर्थ यात्रा हो गयी, किसी की शादी में जाना है तो आरटीसी बस में जाते हैं, लोगों को एकदम लाचार, ग़रीब बतलाते हैं, ताकि किसी को पता न चले कि असल में हमें रिटायर होने पर कितने पैसे मिले। एक रिटायर मास्टर ने रिटायर होते ही २४ लाख का मकान बेटे को लेकर दिया। लेकिन चार साल तक अपनी बहन और बेटी से छिपाकर रखा। चार साल के बाद जब बेटी को पता चला तो वह बोरिया बिस्तर लेकर उसी घर में आकर टिक गयी और बहुत सारा झगड़ा करने लगी। वह भी २४ लाख पर अड़ गयी। कहने लगी कि दो तो बच्चे हैं, आपके दामादजी यानी मेरे पति भी आपके रिटायर होने का ही इंतज़ार कर रहे हैं। पिता ने कहा वह क्यों इंतज़ार कर रहे हैं, उनके पास कार है, अपना मकान है, बेटी ने कहा कि वह भी मकान लेकर किराये पर देना चाह रहे हैं। लोगों ने उनसे कहा कि आपको अस्सी लाख रुपया मिलने वाला है। पिता कहा मगर हमको तो तीस लाख रुपया ही मिला। अभी तक तेरी शादी के कर्जे ही फेडते रहे। बेटी ने कहा मेरी शादी को तो इक्कीस साल हो गये हैं, अभी तक यही तमाशा चल रहा था, हाँ, बेटी तुझसे हमने कभी नहीं कहा। बेटी तो इस बात को सरासर झूठ मानने लगी, लेकिन दिल पर पत्थर रखकर चुप हो गयी, वह कहने लगी कि आपने तो मेरी शादी से दस साल पहले से ही एफ.डी. कराकर रखे थे उसी से तो शादी की थी, पिता ने कहा खर्च दिखाई थोड़े ही देता है, हमको तक भी चार लाख और कर्ज हो गया था, तुझसे हर बात कहाँ तक बताते फिरें। बेटी ने कहा पैदा किया है तो शादी तो करनी ही होगी ना। आपका नवासा-नवासी भी बड़े हो रहे हैं उनकी इंजीनियरिंग की फ़ीस भी तो पाँच-पाँच लाख रुपया देनी ही होगी। मेरे पति ने तो सारी कुछ आपसे ही उम्मीद लगाकर रखी है, पिता ने कहा कि वह मेरी जान जलाने के लिए पैदा हुआ है या कमाकर कुछ अपना इंतेज़ाम करने के लिए भगवान ने पैदा किया है। बेटी ने कहा अपने बेटे को तो आपने २४ लाख का मकान लेकर देने में एक सेकेंड की देरी नहीं की, अपने पेट से जन्मी बेटी के लिए तो आपके पास कुछ नहीं है, बाहर से आयी बहू को बंगला बनाकर दे रहे हैं, ऐसा कहकर वह फूट-फूटकर रोपड़ी। बेटी के साथ उसकी माता भी हो गयी, माता तो बेटी के साथ ही होती है, माता ने अपनी पति से कहा कि बेचारी बेटी सही कह रही है, अगर वह भी २४ लाख का मकान लेकर किराये पर दे देती है तो उसके बच्चों की पढ़ाई इंजीनियरिंग में हो जायेगी। पति ने ज़ोर से पत्नी को डाँटकर कहा कि मुझे मिले हैंतीस लाख रुपये उसमें से किस किस का क्या करूं। पत्नी ने कहा झूठ क्यों बोलते मिले तो अस्सी लाख हैं, बेटी से क्या छिपाना, पति के चेहरे की हवाइयाँ उड गयी। क्योंकि साठ साल से छिपा हुआ रहस्य एक सेकेंड में बाहर आ गया। उनकी बोलती बंद हो गयी, बेटी की बाँछे खिल गयी, वह सोच रही तो अब तो २४ लाख का मकान मिलकर रहेगा। तभी पिता ने कहा कि कल को मेरी और मेरी बीवी की तबीयत ख़राब हो गयी तो कौन आकर मेरा बिल भरेगा। बेटी ने कहा कि पेंशन भी तो आती रहेगी चालीस हज़ार रुपये। इस मकान का तो किसी तरह का किराया नहीं देना है, माशाल्लाह बेटा कमारहा है, बहू कमा रही है, पिता ने कहा यानी मैं फिर से सड़क पर आ जाऊँ और इतना कमाकर भी ज़ीरो से शुरू करूं। हाय मेरी ज़िंदगी कैसी हो गयी करके पिता के मुँह से रुलाई निकल गयी। बेटी ने कहा मैंने भी तो सहा है आपकी वजह से, आपके घमंड की वजह से मेरा तलाक़ भी हो रहा था तो आप बचाने नहीं आये थे, मैं काम में बिज़ी हूँ ऐसा कह कर सास का फोन भी पटक दिया करते थे, तब मेरी सास जानवरों जैसा व्यवहार किया करती थी। मैंने कितनी ज़िल्लत सही मेरा दिल ही जानता है, आपको कुछ न हो जाये सारा कुछ मैंने ही सहा। क्योंकि तब आपको अपनी सरकारी नौकरी का ज़बरदस्त घमंड था, जब मेरी सास आपको मद्रास की पोस्टिंग के समय फ़ोन करके आपको हर दस दिन के बाद तलाक की धमकी देती थी तो आप घमंड के मारे उससे बात नहीं किया करते थे। उधर मैंने आपका घमंड बदशित किया, आप बात ही नहीं करते थे। अपनी सरकारी नौकरी का घमंड आपको सातवें आसमान पर चला गया था, आपका तो यह हाल हो गया था कि मैं मर भी जाऊँ तो आप मय्यत में भी नहीं आने वाले थे, इधर आपका घमंड सहूँ उधर पति ने बहुत बार पीटा, सबकुछ सहकर सबको साथ लेकर आज यहाँ तक पहुँची हूँ आपकी बहू तो बाल डाई करती है मैं तो चालीस साल में ही आधे बाल सफ़ेद करके घूम रही हूँ, आपको मेरी लाचारी क्यों नहीं दिखती। और आप हैं कि पेंशन के पैसे मिलते ही बेटी को तो भाड़ मे जाने दिया और बेटे के लिए पुश्तैनी ज़मीन पर पच्चीस लाख में मकान बनाकर दिया। इतना अन्यालम तो कोई पिता अपनी बेटी से नहीं करता है। पिता ने कहा कि तुम साले भूखे शेर मेरी पेंशन पर इतनी गहरी नज़र गढ़ाकर बैठे थे मैं समझ नहीं पा रहा था। इसीलिए पिछले दो साल से चूँकि मुझे पेंशन मिलने वाली थी, तुम्हारा और दामादजी का व्यवहार एकदम हमारे साथ बहुत अच्छा हो गया था, मैं इस षडयंत्र को तो समझ ही नहीं पा रहा था, दामादजी कभी नहीं मुस्कुराकर बात करते थे, अब तमीज़ से पेश आ रहे हैं, बच्चे नाना नाना नाना करके आते ही पैर छूते हैं, बहुत ही तुम सभी आज्ञाकारी हो गये थे, मैं दो दिन अस्पताल हाल ही में रहा तो बेटी दामाद चार चार बार टिफिन लेकर आये थे, तो ये सब ड्रामा तुम लोगों का चल रहा था, केवल और केवल पैसा ऐंठने के लिए। पिता ने उस दिन खुद बेटी को घर से हकाल दिया। उसके बाद चार बार बेटी आयी तो उसको बार बार हकाल दिया। दामाद ने आकर साले को गंदी गंदी गालियाँ दीं। लेकिन अगले दो साल तक पिता ने अपनी बेटी को एक भी पैसा नहीं दिया, माता ने कहा भी कि अपनी ही तो बेटी है, पिता ने कहा बेटा तो हमारी सेवा करेगा, बेटी तो मलाई लेकर हमको कंगाल करके चली जायेगी। सारी बात बिरादरी में फैल गयी, रिटायर आदमी नये नये अमीर बने थे, उसका घमंड उनको बहुत हो गया था, एक साथ जब अस्सी लाख रुपया देखा तो उन्हें वो बसों के दिन याद आ गये, जब वे बस की गेट
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First of all I would like to say terrific blog!
ReplyDeleteI had a quick question in which I'd likee to ask iff you do not mind.
I was curious to know how you center yourself and clear your thoughts before writing.
I have hhad a hard time clearing my thoughts in gettting my ideas out there.
I truyly do take pleasure in writing however itt ust seems like the first 10 to 15 minujtes tend to
bee lost simply just trying to figure out how to begin. Any recommendations oor hints?
Thank you!