मोदीजी आये हैं लेके दिल में इश्क मोहब्बत

मोदीजी आये हैं लेके दिल में इश्क मोहब्बत, सबको गले लगाना अपने कल्चर की है आदत, स्वैग से करेंगे सबका स्वागत आमदनी अट्टनी ख़र्चा रुपय्या के हिसाब से आज भारत का हरेक नागरिक जी रहा है। कमाई धेले की नहीं है, ख़र्चा का अंबार लगा हुआ है। पिटते-पिटाते सब जी रहे हैं और मोदी सरकार की तरफ ललचायी नज़रों से देख रहे हैं और भजन गा रहे हैं, ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले....। पिंजरे के पंछी रे एएएए तेरा दर्द ना जाने कोई तेरा दर्द न जाने कोई....। इस जग की अजब तस्वीर देखी एक हँसता है दस रोते हैं....। दिमाग़ में पुराने पुराने गीत आ रहे हैं, कवि प्रदीप, के. एल. सहगल, मुकेश के गीत याद आ रहे हैं....दिल जलता है तो जलने दे आँसू न बहा फरियाद न कर, दिल जलता है तो जलने दे...।।


गहराई से सोचें तो हम लोग ही आमदनी अट्टनी ख़र्चा रुपया का जीवन जी रहे हैं, और सरकार को कोस रहे हैं। बच्चों को महँगे स्कूल कॉलेजों में भेजकर उनकी भारी फीस का लबादा ओढ़ रहे हैं। चालीस साल पहले एक बच्चा अग्रवाल स्कूल में पढ़ता था, फीस थी एक रुपया, उस एक रुपय्या को बचाने के लिए फीस माफ़ कराने की लाईन में ग़रीब बच्चों के साथ खड़ा रहता था। तब उसे शर्म नहीं आती थी, लाईन में खड़ा होकर फीस माफ़ करवाता था, तब वह और उसका परिवार आराम से थे, चैन की बंसी बजाया करते थे, और गीत गाते थे, दिल का हाल सुने दिल वाला चु चु चु चु चु छोटी सी बात में मिर्च मसाला कहके रहेगा कहने वाला, दिल का हाल सुने दिल वाला....। मगर अब वह एक रुपय्या फीस माफ़ करवाने वाला वही बच्चा अपने खुद के बच्चे को चालीस हज़ार के स्कूल में पढ़ा रहा है, कहता है। समय के साथ चल रहा है, यह ख़र्चा वह अपने ही सिर पर ख़र्चा का लबादा ओढ़कर रो रहा है, अपने शरीर को बीमारियों का हेडऑफिस बनाकर रख रहा है। इसे कहते हैं पेड़ का काँटा लेकर अपने ही नितंबों यानी पिछवाड़े में चुभो लेना। और मोदीजी का रोना रोता कि हाय रे मोदीजी ने संकट में डाल दिया। अब तो हाल यह हो गया है कि कोई मरा तो मोदीजी की वजह से, बच्चा भी पैदा हुआ तो मोदीजी की मेहरबानी से, अई ऐसा भी हो रहा है क्या....मोदीजी पूरी तरह से इस समय भारत की जनता के ज़हन में इस क़द्र घुस गये हैं कि दिन रात लोग मोदीजी को कोस रहे हैं, और जब हम पूछते हैं कि 2019 के चुनाव में कौन जीतेगा तो कहते हैं कि मोदीजी ही जीतेंगे। ऐसा भी बोलते हैं वैसा भी बोलते हैं। तो भाई मेरे वोट उनको दे कौन रहा है, वही वोट दे रही है, जो जनता अभी तक लाचार थी, जो दो वक्त की रोटी बेहद मुश्किल से कमा रही थी। और यह सोचिये कि उनकी संख्या इतनी ज़्यादा है कि हरेक राज्य में मोदीजी का ही डंका बज रहा है। । सबसे पहले तो हमें अपने ही द्वारा जो ख़र्चा का लबादा यानी मुसीबत मोल ही है उसे ही जब तक हम अपने सिर पर से नहीं उतारेंगे जीवन भर इसी तरह से रोते ही रहेंगे। आज किसी बच्चे को बुखार आता है तो सीधे वह बड़े अस्पताल में दस हज़ार का बिल बनवा देता है, जबकि उसी का बाप सरकारी उस्मानिया अस्पताल में चिट्ठी बनाकर लाईन में लगा रहता था। घबराहट बहुत फैल गयी है, इसे जनता ही मिलकर सुलझा सकती है।
अब मुसलमानों की बात करते हैं मुसलमान लोग तो मोदीजी की सरकार को सद्दाम हुसैन, ओसामाबिन लादेन से भी ख़तरनाक मान रहे हैं, सद्दाम हुसैन तो कोड़ों से मारते थे, ये मोदीजी तो एक मार दो टुकडे कर रहे हैं। मुसलमानों को तीन तलाक़ का मामला बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है, वे सोच रहे हैं कि ग
र रहे हैं कि गले के नीचे बात नहीं उतर रही है कि मोदीजी के ज़माने में ही तीन तलाक़ वाला मामला क्यों उठा। एक मुसलमान ने कहा कि हम माजूर महिला को सहारा देने के लिए दो दो तीन तीन शादियाँ करते हैं, तो फिर आमिर ख़ान ने दो तो शादियाँ कर लीं, अब तीसरी को तैयार हैं, क्या रीना और किरण राव माजूर थीं। अब क्या फ़ातिमा भी माजूर है। बाक़ी भारत की जनता समझदार है। अपने आप समझ जायेगी कि ये क्या चल रहा था, मोदीजी डाकिये की तरह हो गये हैं जो यह गीत गाते हैं ऐसा लगता है, डाकिया डाक लाया डाकिया डाक लाया खुशी का पैग़ाम कभी कभी दर्दनाक लाया, डाकिया डाक लाया।
हमने परसों ही पनीर सिक्सटीफाई खाया केवल 60 रुपये में ही, जो पनीर 65 हम 140 में खा रहे थे, वह साठ रुपये में ही मिल गया, क्योंकि कभी पेटाइम से कूपन के रूप में डिस्काउंट मिल जाता है तो कभी स्विंगी डिस्काउंट दे रहा है, यानी ग़रीब की थाली में पनीर यानी ग़रीब की बल्ले बल्ले ओ शावा शावा.... यह कैसे हो पा रहा है, असल में पेटाइम और स्विगी के शेयर खरीदने वाले दनादन इन कंपनियों के शेयर ख़रीद रहे हैं तो हमें डिस्काउंट मिल रहा है। ठीक स्विगी की तरह ही फूड पांडा, ज़ोमाटो, फासोस, बॉकुएट इस तरह की पंद्रह कंपनियाँ हैं जिसमें हर रोज़ डिस्काउंट लगातार चल रहा है, जिससे भोजन खाने वाले की बल्ले बल्ले होती चली जा रही है। यानी इसी बात को हम बड़े रूप में समझें तो दुनिया के कुछ अमीर शेयर धारक ग़रीब का पेट पनीर से भर रहे हैं। अब दुनिया की अमीर जनता ही ग़रीब का पेट भर रही है, अब एक किलो टमाटर साठ रुपया होगा तो इधर बना बनाया पनीर ही केवल साठ रुपये में ही मिल जायेगा, तो लोग तो चटख़ारे लेकर पनीर ही खाएँगे न। दुनिया में एक मनावता की हवा फैल रही है, एक इंसान दूसरे इंसान को बचाकर अपने शेयर का बलिदान करके दूसरे का पेट भर रहा है। यानी अमेरिका का आदमी भारतवासी का पेट भर रहा है, साठ रुपये का पनीर वह भी आपके घर के दरवाज़े पर लाकर स्विगी वाला लाकर दे रहा है, यानी एक ऑटोचालक भी तीन सौ रुपये मर मर कमाता है तो भी वह पनीर खा सकता है, टमाटर साठ रुपया किलो है तो उससे सस्ता तो अंडा हो गया है। सात रुपये का अंडा। अंडा खाइये मत मगर बात तो समझिये।
सो, अब जो लोग जमाख़ोरी करके मोदीजी के सपने को मिट्टी में मिलाना चाहते थे, महँगाई बढ़ाना चाहते थे, चावल दाल के दाम बढ़ाना चाहते थे, प्याज के आँसू लाना चाहते थे, उनकी पैरों तले ज़मीन खिसक रही है और रामराज्य स्थापित हो रहा है, बोलो सियावर रामचंद्र की जय...। सारी विश्व की जनता को बचाने के लिए विश्व के अमीर लोग भारत के लोगों को बहुत ही वाजिब दाम में भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं। एक अमीर आदमी एक ग़रीब को भी पाल ले तो वह उसकी ओर से मानवता का बहुत ही सुंदर तोहफ़ा होगा। गांधीजी भी ऊपर बैठकर मुस्कुराते रहेंगे कि ऐसा ही भारत तो हम चाहते थे।
अबे तेरी ऐसी की तैसी अब तो बोल अच्छे दिन आये कि नहीं, हाँ हाँ आ गये हैं। इधर सोने पे सुहागा केवल पाँच रु एरिया से हरेक घर का आधार कार्ड लेकर हरेक को पाँच रुपये का भोजन चार थाली पार्सल के रूप में आधार कार्ड के हिसाब से दिया जाना चाहिए। जिससे घर के हरेक घर का ग़रीब पेट भर सके, अब औरतें तो आकर सरकार की पाँच रुपये की दुकान पर सड़क पर ठहरकर भोजन तो नहीं कर सकती है। इसीलिए आधार कार्ड के आधार पर पाँच रुपये की चार थालियाँ दी जानी चाहिए। सुना है दिलसुखनगर में तो बारीक चावल पाँच रुपये की थाली में दे रहे हैं। जय हो केसीआर...। इसी बात पर तेलंगाना का गीत छुक छुप रैलू वस्तुनदी पक्ककी पक्ककी जरगनडी...। जय तेलंगाना।
मोदीजी के आने के बाद जिस किसी ग़रीब का घर केवल चालीस या पच्चीस गज़ पर ही था, वह अब बैंक से लोन लेकर तीन मंज़िला मकान कम ब्याज पर बनवा रहा है, दो माले का जो किराया आ रहा है, उससे बैंक का क़र्ज फेड रहा है, ग़रीब के घर के काग़ज़ सही रहे तो उसको एक महीने में ही लोन दिया जा रहा है। बाद में लोन का कुछ हिस्सा माफ़ भी किया जा रहा है। यानी कि जो हिस्सा माफ़ किया जाता है, उसका रोज़ क्वार्टर लाकर गाना गाते हुए इंसान सो सकता है। हंगामा है क्यों बरपा आ आ थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है, हंगामा है क्यों बरपा।
किसान और कश्मीर भारत की ये दो बहुत ही बड़ी समस्याएँ वर्षों से चली आ रही है। आधे किसान तो शहर आकर बढ़ई, मज़दूर, हम्माल, दूधवाले, ऑफिस बॉय, सेक्यूरिटी का काम कर रहे हैं। सच में हमने भी पिछले सत्तर साल से किसान की देश की सिपाही की तरह तारीफ़ तो की है, लेकिन उसको आत्महत्या के मुँह में धकेला है, इसके ज़िम्मेदार हम ही हैं। हम तो एक बोल्ड बात कहते हैं कि अब किसानी छोड़कर सभी को शहर की तरफ ही आना चाहिए, यहाँ पर इज्जत की रोटी तो मिलती है, बात रही अनाज की तो हम दूसरे देशों से मँगवाते ही रहे हैं, आगे भी मँगवा लेंगे, उनका भी घर चल जायेगा, हमारा भी चल जायेगा। किसानों के आधे बच्चे तो शहर आ चुके हैं, बाकियों को भी यही करना चाहिए। न जाने किसानी में कितने किसानों की पीढियों की पीढियाँ बर्बाद हो चुकी हैं। उधर कश्मीर को न पाकिस्तान छोड़ रहा है और न भारत छोड़ रहा है। दोनों देशसिपाहियों की मौत की गिनती गिन रहे हैं। एक एक सिपाही की मौत दिल पर पत्थर की तरह मार पड़ने की तरह होती है, इसका इलाज मोदीजी जल्दी ही निकाल लें तो बेहतर होगा, क्योंकि हम एक के बदले दस मारेंगे तो वे तो दो के बदले बीस या दस के बदले हज़ार भी भेज सकते है, मगर क्यों हम अपने सैनिकों मरने दें। हाल ही में जातीय संघर्ष जो महाराष्ट्र में हुआ, अंततः उसमें एक ही व्यक्ति की ही मौत हुई,
शासन बहुत ही मुस्तैदी से काम कर रहा है, वरना भारत का मीडिया तो लाशों की गिनती करके सरकार को गिरा सकता है। कोई न मरे इसी तरह से होना चाहिए। जान माल ही हानि नहीं होनी चाहिए। पहले तो ऐसा था कि हरेक हिंसा में बीस से सौ लोग मारे जाते थे। दिल्ली की भाजपा और राज्यों की भाजपा अगर इस तरह से तालमेल बैठाकर हिंसा पर भरपूर अंकुश लगाती है तो भारत पूरी तरह से सुरक्षित हो सकता है, मगर हरेक समस्या का हल बहुत ही शांति से हल करना चाहिए, उसे टालना नहीं चाहिए। पहले क्या होता था कि मामला कुछ भी हो, हरेक को तोहफे के रूप में सरकारी नौकरी दी जाती थी, अब तो मोदीजी इतने कडक हैं कि काम करेगा तो ही पैसा मिलेगा कह रहे हैं। देखते हैं यह प्रयोग कितने दिन या वर्ष तक चलता है। मगर मोदीजी बैंकों में ब्याज अब तीन साल तक कम मत कीजिए, बूढों की दुआ लेनी चाहिए, बददुआ नहीं। बेचारे वे लोग उसी ब्याज से अपने बच्चों, पोतों का रखरखाव करते है, परायी औरतों का घर चलाते हैं। और रात में ठर्रा पीकर सो जाते हैं। आपने ब्याज कम किया तो पीकर आपको ही बुरा भला कहेंगे।

सबसे अच्छी बात तो यह है कि मोदीजी अमीरों से ज़्यादा उस अंतिम आदमी की भी चिंता कर रहे हैं जो बेहद संघर्ष करके जी रहा था, उसे भी मौक़ा दिया जा रहा है। लोग अब प्रेम से जिएँ एक दूसरे की मदद करके जिएँ जो दो बंगले बना चुका है, वह मालिक अपने बुजुर्ग नौकर को वन रूम किचन गिफ्ट की तरह दें, क्योंकि वह भी मेहनत करके आपका अन्नदाता किसी न किसी रूप में होता । चेक जमा कराता है तो पैसा आता है। मोदीजी प्यार से काम ले रहे हैं, इश्क से काम ले रहे हैं, उनपर एक गीत हो जाये, सो, विविध भारतीय के पंचरंगी कार्यक्रम में यह गीत पेश हैं जिसकी फरमाईश पप्पू ने की है, गीत सुनिये...इश्क के आगे कुछ नहीं कुछ नहीं, इश्क से बेहतर कुछ नहीं कुछ नहीं, इश्क बिना कुछ नहीं, इश्क से ऊँचा कुछ नहीं, चाहे जो आये लेके दिल में इश्क मोहब्बत, उसको गले लगाना अपने कल्चर की ही आदत, स्वैग से करेंगे सबका स्वागत, इसमें कटरीना कैफ चड़ी पहनकर नाची, लाज शर्म नहीं रही, इस नारी को समझाइये...। कपडों पर जीएसटी लगाते ही कैटरीना से चडी से काम चला लिया।

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