अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं


महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी
महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी 
अभी तक तो भाई और बहन एक दूसरे का साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन अब तो माता-पिता अपनी बेटी को भी नहीं निभा रहे हैं,जबकि माता-पिता के पास लाखों रुपया पड़ा रहता है आज सारी दुनिया में यही शोर चल रहा है कि दामाद बहुत ही ख़राब है, जल्लाद की तरह है, इसलिए हम अपनी ब्याहता बेटी की भी मदद नहीं करेंगे। दामाद का तो ऐसा होता है कि उसकी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं होती है फिर भी वह घमंड की बातें हमेशा किया करता है।
ससुराल के सामने वह डींगे हाँकने लग जाता है, झूठ बोलता है, लेकिन वह ससुराल के सामने नहीं झुकता है। यह दामाद की असल में यही फितरत पहले से ही रही है, और रहेगी भी। लेकिन सभी को यह भी तो समझना चाहिए कि उसी दामाद के कब्जे में तो हमारी बेटी भी तो रहती है, बेटी चाहे तीस साल की हो जाय या पचास साल की, दामाद हमेशा बेटी के मायके को बुरी-बुरी गालियाँ दिया करता है। यह सब देखकर माता-पिता हमेशा के लिए बेटी को ही त्यागा कर रहे हैं उससे हमेशा के लिए जान छुडा रहे हैं, जो कि बहुत ही बुरी बात है, अपने ही पेट से जन्मी हुई बेटी को ही वे हमेशा के लिए दामाद के कब्जे में रख देते हैं, जिससे कि दामाद आपकी ही बेटी को पीटने को भी तैयार हो जाता है, और आपकी बेटी को पीटता ही चला जाता है। आजकल के माता-पिता तो इतने ढीठ हो गये हैं कि अपने बेटे और बहूपर तो पैसे पर पैसा न्योछावर करते ही चले जाते हैं, क्योंकि वह सोचते हैं कि बेटा ही अंतिम समय में मातापिता का सहारा बनता है, बेटी का तो दूसरा घर होता है, बेटे को माता-पिता सबकुछ देते हैं लेकिन दूसरे घर में ब्याही बेटी के लिए उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं हुआ करती है। एक बेटी है जो ब्यूटी पार्लर का काम करती है, उसके पास पैसे के लाले पड़ गये थे। फिर भी माता-पिता ने उस बेटी की बिल्कुल भी मदद नहीं की। लेकिन बेटी भी बहुत ही हिम्मत वाली निकली, बेचारी अपने पेट के भीतर बेटी को लेकर स्कूटर पर पच्चीस-तीस किलोमीटर तक जाकर ब्यूटी पार्लर का काम किया करती थी, जिससे उसे दिन भर के एक हज़ार रुपया मिल जाया करता था। माता-पिता को यह मालूम भी था, बेटी पेट में बच्ची लेकर घूम रही है, लेकिन उनको बिल्कुल दया नहीं आयी,लेकिन वह यही कहते जा रहे थे कि भाई हम क्या करें दामाद की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपनी बेटी को पाला करे हम क्यों उसका ठीकरा अपने सिर पर लें। व्यापार या नौकरी में हरेक इंसान पचास साल तक की उम्र तक ही भागादौड़ी कर सकता है उसके बाद उसके हाथ-पैर ढीले पड़ जाते हैं। तब तक उसने कमा लिया तो ठीक नहीं तो उसकी मदद करने के लिए उसके ससुराल वालों को कम से कम साल के पचास हज़ार रुपये का इंतेज़ाम करना ही चाहिए। लोग क्या करते हैं कि अपने घर के बेटे और बहू को साल में एक लाख रुपया देते हैं लेकिन अपनी बेटी के लिए उनके पास पैसा ही नहीं रहता है। जबकि उनके पास एक-एक करोड़ रुपया घर में रखा-रखा सड़ रहा होता है। सो, इस तरह से बेटियाँ झकमारकर भी अपने लिए कमाने के लिए खुद जाया करती हैं, एक बेटी ने पेट में बेटी रखकर नौ महीने तक काम किया और अपने माता-पिता से पैसे लिये बगैर उसने सरकारी अस्पताल में जाकर डेलिवरी कराई तो सरकार ने १२ हज़ार रुपये बेटी पैदा होने पर उसे तोहफ़े की तरह दिये, लेकिन माता-पिता ने उस लाचार बेटी को कुछ नहीं दिया, डेलिवरी के पैसे देना तो दूर की बात है पैदा होने के बीस दिन के बाद वह बेटी को देखने के लिए आये। वही बेटी आज अपने बड़े बेटे के हाथ में तीन महीने की बेटी को स्कूटर के पीछे बैठाकर ख़ुद स्कूटर चलाकर ब्यूटी पार्लर का काम कर रही है, लेकिन वह अपने माता-पिता से एक भी पैसा लेने से इनकार कर चुकी है। भगवान इस मेहनती बेटी का भरपूर साथ दे रहे हैं, बेटी को भगवान ने माइग्रेन की बीमारी दे दी, कमर की बीमारी दे दी, लेकिन बेटी की हिम्मत में किसी भी तरह की कमी आने नहीं दी है। बेटी जब ब्यूटी पार्लर का काम करती है उसका बड़ा बेटा उस छोटी-सी प्यारी बहन को गोद में लेकर बैठा रहता है उसे खिलाता रहता है, उसको खिलौने दिखाकर फुसलाया करता है उसके पेशाब और पायख़ाने की चिंता नहीं होती क्योंकि वह बेटी बाहर जाती है तो डायपर पहनकर जाया करती है। और इधर घर की बेटी ब्यूटी पार्लर का काम करती है, ऐसी बेटियों की जितनी तारीफ़ की जाय कम है, और उधर इसी बेटी के माता-पिता हवाई जहाज़ में सारे देश के टूर पर जा रहे हैं, और वहाँ से फ़ोन करके इसे अपने सुख की कहानी सुनाते रहते हैं। बेटी बेचारी खून का घूंट पीकर रह जाती है, उनका फ़ोन आने के बाद उसी रात से बेटी को माइग्रेन का दर्द शुरू हो जाता है जो चार दिन तक लगातार चलता ही रहता है, बेटी की बुरी हालत देखकर माता पिता का जी नहीं कलपता है यह कैसे पत्थरदिल माता पिता होते हैं। यानी यह है कि अब माता पिता इतने क्रूर हो गये हैं कि अपने मज़े की बातें अपनी लाचार बेटी को सुना-सुनाकर उसका खून जलाया करते हैं, लेकिन यही बेटी जब घर के बाहर निकलती है तो उसके चेहरे पर भरपूर मुस्कुराहट होती है। जबकि उसके माता-पिता के पास इस समय सत्तर लाख रुपया बैंक में पड़ा हुआ है। लेकिन वह अपनी बेटी को कुछ महीनों तक ही सही पाँच हज़ार रुपये की मदद तक नहीं करते हैं। एक और बेटी की अजब सी दास्तान है, उसको अपने घर के ऊपर एक-दो कमरे बनाने के लिए पाँच लाख रुपये की ज़रूरत है, वह चाह रही है कि अगर पाँच लाख मिल गये तो उसका चार हज़ार रुपया किराया आता रहेगा तो घर को एक आमदनी शुरू हो जायेगी। जो अगले सौ साल तक चलती ही रहेगी। ख़ास बात क्या है कि माता-पिता उसे गिफ्ट के तौर पर पाँच लाख रुपया देने को तैयार भी हैं, लेकिन एक दिक्कत है कि बेटी के माता-पिता चाहते हैं कि उनके दामाद आकर यह पैसा माँगकर ले जाएँ। बेटी के माता-पिता चाहते हैं कि हम दामाद के मुँह से सुनना चाहते हैं कि उसे पैसे की ज़रूरत है, क्योंकि यह बात दामादजी कहेंगे तो उनका सिर हमेशा के लिए हमारे सामने झुक जायेगा और हम समय आने पर दामाद को उसी दिन की याद दिला-दिलाकर उन्हें दबा-दबाकर रख सकते हैं। अब बात इसी बात पर अटकी हुई है कि दामाद कह रहे हैं कि बेटी के हाथ में पैसा दे दिये तो क्या बुरा है। मैं उनके सामने झुकने वाला नहीं हूँ। इसी बात को लेकर बात पाँच साल से अटकी हुई है, और इस समय में ढाई लाख किराये का नुकसान भी बेटी को हो चुका है, क्योंकि पाँच साल यह मामला केवल माता-पिता के घमंड के कारण अटका हुआ है। ऐसे समय में माता-पिता को यही समझना चाहिए कि हम यह पैसा बेटी के नाम पर दे रहे हैं और दामाद इस बात के लिए भी तैयार हैं कि सारा घर बेटी के नाम पर ही रखवा दीजिए लेकिन बेटी के माता-पिता इसी बात पर अड़े हुए हैं कि बेटी का पति यानी दामाद जब तक कंधे झुकाकर हमसे पैसा नहीं माँगता है हम देने वाले नहीं है, दामाद ने यह भी कहा कि सारी बिरादरी के सामने बैठाकर आप अपनी बेटी को पैसा दे दीजिए तो बेटी के पिता ने कहा कि बिरादरी आपकी भी उस मीटिंग में होनी चाहिए। दामादजी ने कहा कि बिरादरी हमारी होगी तो उससे बेहतर तो यह है कि मैं ही आकर आपसे पैसा ले लू, लेकिन मैं नहीं लूगा आपको देना है दो, नहीं तो हम इसी ग़रीबी में खुश हैं, दामाद को कोई नशा नहीं है, बस अपने स्वाभिमान से वह जीना चाहते हैं। बात अभी भी लटकी ही हुई है। यह तो कुछ भी नहीं है आने वाले दस साल के बाद की तैयारी एक और परिवार ने कर ली है, वहाँ पर अट्ठारह साल की बेटी है और बीस साल का एक बेटा है, बेटे की गुलछरेंबाज़ी में हर महीने सात हज़ार से लेकर दस हज़ार रुपया भी ख़र्च हो जाया करता है, लेकिन बेटी का बहुत ही बुरा हाल है, बेटी रोज़ाना कॉलेज जाते समय पिता से बीस रुपया ख़र्च माँगती थी तो पिता बहुत ही चिढ़ चिढ़ करके वह पैसा दिया करते थे। माता-पिता ने बेटी से कहा तुम तीन हज़ार रुपये के टयूशन पढ़ा लो और अपना ख़र्च निकाल लो, वे चाहते हैं कि बेटी शादी के पहले से ही उनपर किसी तरह का बोझ नहीं बने और शादी के बाद तो हम ऐसे हालात पैदा कर देंगे कि बेटी दामाद आये हमारे यहाँ भोजन करके जाएँ उसके अलावा उनको किसी तरह की फूटी कौड़ी तक नहीं मिलने वाली है। सो, इस तरह से देखिये कि दुनिया कितनी बुरी होती ही चली जा रही है, पहले के ज़माने में लोग दूर से सही मदद कर दिया करते थे, सभी लोग घर की बेटी पर जान छिड़का करते थे, दामाद अगर बेरोज़गार होता था तो उसका घर तक चलाया करते थे, लेकिन लोगों में जिस तरह से पैसे की भूख दिन ब दिन बढ़ती ही चली जा रही है उससे एक बहुत ही डरावना दृश्य रिश्तेदारी में सामने उभरकर आ रहा है, लगता है क़यामत और घोर कलयुग के दिन यही चल रहे हैं, और वह दिन दूर नहीं जिस दिन सारी दुनिया बर्बाद हो जायेगी, क्योंकि धरती पर पाप बढ़ता ही चला जा रहा है। लोग यह आसानी से कह देते हैं कि दामाद की ज़िम्मेदारी क्या है लेकिन बेटी के माता पिता की ज़िम्मेदारी क्या है इस बात पर कोई अब तो सोचने को भी तैयार नहीं हो रहा है।

Comments

Post a Comment

Labels

Show more