किसानों की कहानी, शहरों की कहानी, महानगरों का मिज़ाज समय बहुत ही तेज़ी से बदल रहा है।

देश बहुत तेज़ी से बदल रहा है। लेकिन हमारे देश की जनता नहीं बदल रही है। हाल ही में कांग्रेस की सरकार तीन राज्यों में जीतकर आयी। कांग्रेस ने आते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया। किसानों का कर्ज माफ़ करते ही अंदर ही अंदर लोगों में बहुत ही गुस्सा बढ़ गया है। लोग कह रहे हैं कि हम जीएसटी देकर सरकार को मज़बूत बना रहे हैं। हम व्यापार करते हैं तो टैक्स के रूप में पैसा काटा जा रहा है, हम नौकरी करते हैं तो टैक्स के रूप में पैसा काटा जा रहा है। हम खून पसीना एक करके सरकार को पैसा कमाकर दे रहे हैं। और वहीं कांग्रेस सरकार किसानों को घर बैठे उनका क़र्ज माफ़ करती चली जा रही है। व्यापारी उद्योगपति कह रहे हैं कि क्या हम नासमझ हैं जो जीएसटी भरकर किसानों को बैठाकर जीवन भर खिलाते रहेंगे।
लोगों का कहना है कि हरेक साल किसानों का क़र्ज माफ़ करते रहेंगे तो बैंकों का, भारतीय तिजोरी का सारा पैसा क़र्ज माफ़ी में ही चला जायेगा। तो देश दोबारा सत्तर साल पीछे चला जायेगा। और यह लगेगा कि हम २०१८ में भी १९४७ जैसा ही जीवन जी रहे हैं। और इधर हम जो अमेरिका जैसे मज़बूत होने का सपना छोड़कर दोबारा उसी मुफलिसी, दरिद्रता, भुखमरी के दौर में चले जाएँगे जैसा कि पहले होता रहा है। किसान पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहता है। बारिश हुई तो ठीक, नहीं तो उसका जीवन रामभरोसे हो जाता है, वह कोशिश तो करता है लेकिन बारिश नहीं होती तो फाँसी लगाकर मर जाता है। | आपने कभी सोचा है कि किसान आज के युग में ही सबसे ज्यादा आत्महत्या क्यों कर रहा है। पहले उतनी आत्महत्या नहीं करता था, जितनी आज कर रहा है। उसका कारण यह है कि आजकल सारे के सारे गाँव शहरों की तरह हो गये हैं। आप गावों में जाकर देखिये, या कहिए छोटे कस्बों में जाकर देखिये वहाँ पर भी महँगे किराये के मकान हो गये हैं। वहाँ पर भी चार हज़ार में टू बेडरूम हॉल किचन किराये पर मिल रहा है। वहाँ पर भी अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खुल गये हैं, वहाँ पर महँगे अस्पताल खुल गये हैं। गाँव में भी भरपूर ब्याज पर पैसा चलता है। वहाँ पर भी कपड़े लत्तों के शॉपिंग मॉल खुल गये हैं। सबसे बड़ी बात सभी गाँव तक इंटरनेट और केबल पहुँच गया है। ये सारा तमाशा किसान भी देख रहा है, अब गाँव के घरों में भी रोज़ाना शाम को पत्नी घर पर आये पति से यही पूछती है कि आज कितना कमाकर लाये हो, शहरों में तो पत्नियाँ पति की जेब से पूरा पैसा निकाल लिया करती है। लेकिन खेती से साल के चार महीने या आठ महीने ही पैसा आता है तो वह बारिश भरोसे रहकर केवल खेती कैसे कर पायेगा। अब गाँवों में बिजली आ गयी है। लेकिन किसान किसानी करता है बारिश के भरोसे। बैठा रहता है और बारिश नहीं आती तो आत्महत्या कर लेता है। सो, इसी वजह से सारा तमाशा देखकर जब उसकी कमाई नहीं होती है क़र्ज में डूब जाता है तो आत्महत्या कर लेता है। सो, दुनिया भर के ख़र्चे जैसा शहरों के लोगों की जान को लग चुके हैं वैसा ही हाल गाँवों का भी हो गया है। सो, चूँकि बारिश नहीं होती है तो किसानों के बेटे शहर को भागकर आ जाते हैं और यहाँ पर आकर एक ही कमरे में भर-भर कर दस-दस लोग रहते हैं। यह चलन अब मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरू, हैदराबाद में भी बहुत बढ़ गया है, यहाँ गाँव के लोग आकर छह हज़ार से दस हज़ार तक की नौकरी करते हैं और गाँव पैसा भेजा करते हैं। यह पलायन सारे देश के हरेक बड़े शहर में बढ़ता ही चला जा रहा है, हरेक आदमी मुसाफिर हो चला है। अब शहर का मौलिक आदमी केवल ३० प्रतिशत ही रह गया है बाहर के लोग क़रीब सत्तर प्रतिशत हो गये हैं।
सौ बात की एक बात अब लोगों को किसानी छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि रामभरोसे बारिश भरोसे आप सारा जीवन नहीं गुजार सकते हैं। अच्छा, दक्षिण भारत या कहिए उत्तर के राज्यों में यह हाल है कि बारिश मानसून में न आकर अक्सर अक्तूबर से लेकर दिसंबर में आती है तो जो पकी हुई फसलें होती हैं वह भी फसल कटाई के पहले ही अधपकी होने के कारण पूरी तरह से ख़राब हो जाती है, हाल ही में तेलंगाना में इससे २४० करोड़ का नुकसान हो चुका है।
सो, सोच कर देखिये कि जिस काम में हाथ डालने से अपनी ही बर्बादी हो रही है वह काम करना ही क्यों। पहले क्या था कि भारत के पास काम करने की किसी तरह की दृष्टि नहीं थी, पहले सरकारी दफ्तर में क्लर्क बाबू बनने का काम था या फिर किसानी का काम था। मगर अब तो दुनिया पूरी तरह से बदल गयी है। अब आप मिर्जापुर में बैठकर इंटरनेट के ज़रिये अमेरिका की प्रगति देख सकते हैं, तो लोगों को अपने आप ही नयी दृष्टि मिल जाया करती है, तो फिर या तो खेती में नये नये प्रयोग करो या खेती बाड़ी ही बंद कर दो। अब क्या हो गया है कि गाँव की खेती की ज़मीन के भाव भी बढ़ रहे। हैं, जिससे लोग खेती की ज़मीन बेचकर शहर में रह रहे उसके बच्चे की फीस भर देते हैं या फिर गाँव में अपनी ही लड़की की शादी ज़मीन बेचकर कर रहे हैं।
सो, इधर हज़ारों तरह के रोज़गार पैदा कर दिये गये हैं। लेकिन हम हैं कि फिल्मी गाने सुन लेते हैं और किसानी करके सारा जीवन गुजार देते हैं। और फिल्म में किसानों का गुणगान सुनकर हम किसान ही रह जाते हैं। एक गाना आपने सुना होगा--मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती....। सच में इसी तरह से कांग्रेस ने किसानों को देवता बना डाला उनकी पूजा भरपूर की, और उनको देवता बनाकर उन्हें अन्नदाता का नाम दे दिया। उन्हें अनपढ़ ही रहने दिया और अपना वोट बैंक सलामत रखा। ठीक है जो हुआ सो हुआ।
ठीक है, अभी भी आप नहीं समझे तो बतलाता हूँ कि क्यों किसान का बेटा शहर आकर शिक्षक बना, इंजीनियर बना, मज़दूर बना, रेलवे में काम किया, व्यापारी बना, डॉक्टर बना, पत्रकार बना, उसे भी अपने माता पिता की तरह की मर मरकर जीना चाहिए था। किसान बनकर। नहीं उसे वह ग़रीबी की जिंदगी पसंद नहीं थी, उसे किसानी से लगाव नहीं था, उसे पुश्तैनी काम से बिल्कुल मोह नहीं था, क्योंकि बारिश वह ला नहीं सकता था, और सिर पटक भी लो तो बारिश नहीं होती थी, अब आपने दूसरा गीत भी सुना होगा--फिल्म है लगान, गीत के बोल है--प्यारे मेघा प्यारे मेघा पानी तो बरसाओ, बिजली की तलवार नहीं बूंदों के बाण चलाओ....याद आया न वो गाना, बादल आते हैं चले भी जाते हैं। गाना भी ख़त्म हो जाता है। और किसान की जिंदगी भी फाँसी के फंदे पर लटक जाया करती है।
किसानी तब तक ठीक थी, जब तक पचास लोगों का घर एक साथ रहता था, सौ लोगों का घर एक साथ रहता था, हमारे पिताजी बताते हैं कि सैकड़ों साल गुजर जाया करते थे लेकिन किसी का रिश्तेदार गाँव छोड़कर शहर नहीं जाता था, पीढियों की पीढियाँ एक ही गाँव में तीन तीन चार चार सौ साल तक रहा करती थी, लेकिन जब एक ज़मीन के चार छह टुकडे करके बेटों में बाँटे गये तो वहाँ से ज़मीन छोटी होती चली गयी तो कमाई भी कम होती चली गयी, अब आकर तो वह एक बीघा, एक पट्टा हो गयी है। तो वह नहायेगा क्या निचोडेगा क्या।।
अब आप मुझसे अपने जीवन का सबसे बड़ा सवाल पूछिये, पूछिये पूछिये, डरते काहे हैं। कि हमारे किसान क्या करेंगे। मोदीजी वही करने जा रहे थे, वे किसानों की क़र्ज माफ़ी नहीं कर रहे थे, मोदीजी भी बुरा कर रहे थे, उनको चाहिए था कि जिस तरह से बाबा रामदेव ने पिछले पाँच साल चार लाख किसानों को अपने प्रोडक्ट बनाने के लिए काम पर लगाया था, उनसे खेती करवाई थी पूरे ऑर्गेनिक तरीके से। उसी तरह से मोदीजी को चाहिए था कि रामदेवबाबा को सरकार की ओर से भरपूर पैसा देकर उनसे ही करोड़ों किसानों को रोज़गार देने का काम करवाते। अब बाबा रामदेव ने तो अगले पाँच साल में पाँच करोड किसानों को गोद लेकर उनसे काम करवाने का निश्चय किया है। पाँच करोड़ किसान यानी उनके बाल बच्चे मिलाकर बाबा रामदेव भारत के क़रीब बीस करोड़ लोगों को एक तरह से गोद ले लेंगे। सरकार को तो चाहिए कि बाबा रामदेव जैसे होनहार लोगों को लेकर तेज़ी से देश की प्रगति करें। जिनके पास विज़न है, उसका इस्तेमाल करें। मगर इसमें भी एक सच्चाई है। कि हरेक इंसान बाबा रामदेव जैसा ईमानदार नहीं होता, रामदेवजी जिस तरह आज भी ज़मीन पर सोते हैं क्या दूसरा व्यापारी कर सकता है। बाबा रामदेव ज्यादा कंबल नहीं ओढते, क्या दूसरा व्यापारी करेगा।
यहाँ तो अंबानियों की शादी खरबों रुपये में होती है, पब्लिक का पैसा लुटाने का चलन यहाँ पर आज़ादी के बाद से ही चला आ रहा है। हम मानते हैं कि अंबानियों ने सारा टैक्स चुकता करके शादी की होगी, लेकिन देश को तो सेवक चाहिए भक्षक नहीं चाहिए।
एक सवाल किसान भी जनता से करता है कि हमारी खेती की ज़मीन पर लोग फ्लैट बंगले बना रहे हैं। सच बात है, क्योंकि शहर के लोग शहर में अमीर होकर वे गाँव की ओर आ रहे हैं, वहाँ की भी ज़मीन ख़रीदकर वहाँ पर अपना या अपने बच्चों का घर बना रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है। आज भी हैदराबाद में आपको सुनने में आता होगा कि बहादुरपुरा के शास्त्रीपुरम के एक घर में साँप घर में घुस आया, और सोते हुए इंसान की छाती पर बैठकर फन फैलाकर बैठा है, और जब वह सोता हुआ आदमी उठकर देखता है साँप छाती पर बैठा है, तो उसकी तो जान फटकर हाथ में आ जाती है, शास्त्रपुरम ही नहीं इधर एलबीनगर के आगे भी जान फटके हाथ में आ जाती है, अलवाल में भी, मीरपेट में भी, यह सारी की सारी ज़मीने पहले खेती की ज़मीनें थीं, वहाँ पर जाकर शहरवासियों ने घर बना लिये हैं, तो रातों रात जब साँप आपकी छाती पर बैठकर आपसे सवाल करता है कि भाई हम तो खेतों में गड्डा बनाकर रहते थे, इसी ज़मीन पर, आपने कैसे घर बना लिया। यह तो लोकतंत्र है उसका भी हक़ बनता है कि कन्हैया कुमार, ध्रुव राठी, अभिसार की तरह सरकार से सवाल करने का, जनता से सवाल करने का,तो वह छाती पर बैठकर सवाल करते ही आपकी जान फटकर हाथ में आ जाती है। तो फिर आप क्या करते हैं कि दो चार बड़े कुत्ते पालते हैं जो साँपों से लड़कर उन्हें मार गिराया करता है।
सो, किसानों ने जो गाँवों में पहले दस दस बीस बीस बच्चे पैदा किये थे, वही बच्चे शहरों में आकर भरपूर पैसा कमाकर अपना मकान बनाकर शहर से गाँव की ओर आ रहे हैं तो आप कर भी क्या नहीं सकते हैं।

सो, समय आ गया है कि किसान किसानी छोड़कर अन्य काम की ओर तेज़ी से निर्णय लेकर बढ़ता चला जाये। आजकल बड़े शहरों में नौकरियों की कमी नहीं है, एक घर तीन तीन लोग एक ही सुपर मार्केट में काम करके बहुत जल्द ही बड़े शहरों में रहकर भी शहर से पचास किलोमीटर दूर अपना घर बनाकर खरीदने की ताक़त में आ गये हैं। सो, आज तो सरकारी नौकरी से ज्यादा कमाई तो खुद के ईजाद किये हुए काम मे कमाई हो रही है। सो, सोच बदलिये और अपना जीवन सँवारिये, क्योंकि वक्त किसी से लिए रुकता नहीं है, आप सेकेंड के घड़ी के काँटे को रोक सकते हैं लेकिन दूसरी घड़ियों में तो समय का काँटा तेजी से बढ़ता ही चला जाता है।

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