अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए

अपने दामादों को हमें ही सँभालकर रखना चाहिए, अपने ही दामाद से झगड़ा करके दामाद के सगे भाई-बहनों से दामाद की चुग़ली नहीं करनी चाहिए दामाद के लिए एक बात की सौ बात होती है कि दामाद चाहे कितना भी अच्छा हो, या चाहे कितना भी बुरा हो, उसे सम्मान देना चाहिए। जो लोग दामाद से चिढ़ते हैं उन्हें सारा जीवन एक ही कहावत पर काम करना चाहिए कि बहन के लिए बहन के पति यानी दामाद को, गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, करके दामाद का रिश्ता निभाना चाहिए। वह चाहे हमारा कितना भी अपमान कर ले उसे सम्मान देना चाहिए। क्योंकि हमारी जान यानी हमारी बेटी-बहन दामाद के पास हमेशा के लिए अटक जाती है। दामाद को हम खुश रखेंगे तो बेटी खुश रहेगी नहीं तो बेटी खुश नहीं रहेगी।
एक परिवार ने सारे दामादों को बारी-बारी करके बेइज़्ज़त करके घर से निकाल दिया। उस परिवार के लोग पैसे से बहुत प्यार करते हैं। चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये वाला हिसाब है उस परिवार में। असल में, वे दामादों को दावत खिलाकर अपना पैसा खर्च नहीं करना चाह रहे थे। इसलिए उन्होंने दामादों से झगड़ा कर लिया। उस दिन के बाद से उस परिवार के पास पैसा आना ही बंद हो गया। क्योंकि उन्होंने दामादों का अपमान किया था। पैसा आता भी था तो भगवान ऐसा चक्कर चला देते थे कि उस पैसे को वे ऐसी जगह निवेश करते गये कि जहाँ जाकर पैसा डूब जाता था। जब घर की बेटी अपने मायके से दूर हो जाती है तो उस घर पर भगवान का आशीर्वाद कम होता चला जाता है। और उस घर से भगवान उसकी सबसे प्यारी चीज़ पैसा छीनने लग जाता है।
इतना ही नहीं अगर दामाद ख़राब हैं तब भी भगवान दामाद को भी सबक़ सिखाते हैं। एक दामाद हैं जो ख़ुद तो ससुराल से बहुत उम्मीदें लगाकर रखते हैं लेकिन अपनी ही बहन के पति यानी खुद के दामाद को बेइज़्ज़त करते रहते हैं। भगवान ने इस आदमी को भी पैसे से बर्बाद कर डाला, इस आदमी ने एक 2 करोड़ की ज़मीन ख़रीदी। रेजिस्ट्री के बाद उस ज़मीन के, ज़मीन बेचने वाले के घर और दो हिस्सेदार निकल गये। जिससे सारी ज़मीन झंझटों में आ गयी और पिछले चार साल से इनके 2 करोड़ रुपये अटक चुके हैं।
संसार का जो नियम है वह है, भगवान एक ही पेट से संतानें पैदा करता है। तो भगवान सभी से उम्मीद भी करता है कि सभी लोग एक दूसरे का ध्यान रखें। किसी को चार बेटियाँ, दो बेटे होते हैं। किसी को आठ बहनें और चार भाई होते हैं। किसी-किसी को तो आठ बहनें और एक ही भाई होता है। बेटियों की शादी के बाद से तो शराबी-जुंआरी-तिकड़मी-शबाबी-गुस्सैल-हिंसक सभी तरह के दामादों को निभाकर चलना ही होता है। हम चाहे कितना भी सिर पटक लें लेकिन भगवान हर युग में हर तरह के लोग पैदा ही करता है। दुनिया चाहे कितनी भी क्यों न बदल जाये, हर तरह के लोग हर युग में पैदा होते हैं। सो, हर तरह के दामाद को निभाना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
कई लोग अपने दामाद से इसलिए रिश्ता तोड़ते हैं कि वह सारे ससुराल के लोगों को बातों में गिरा-गिराकर बात करता है। वैसे दामाद को यह कहना चाहिए कि दामादजी इस परिवार के आप ही बड़े हैं। यह परिवार तो आपका ही है, आप ही अपने परिवार को बातों में गिरा-गिराकर बात करेंगे तो आपके ही परिवार को दुख होगा न। और आपकी ही जगहँसाई होगी कि देखो दामाद ही अपने परिवार को बातों में गिरा-गिराकर बात कर रहा है। फिर दामाद को बार-बार इस बात का एहसास दिलाते रहने से वह भी एक दिन हार मान जाता है। बुरे से बुरे दामाद को अच्छा बनाने वाले भी हज़ारों परिवार रहे हैं। दामाद पर लाखों-करोड़ों लुटाकर भी बेटी को सुख से रहने वाले परिवार भी हज़ारों रहे हैं। ये तो कुछ नहीं, साढू भाइयों ने भी एक दूसरे की बेहद मदद करके अपने ससुराल का नाम रोशन किया है। आज भी एक साढ़ अपने दसरी साढ़ की बेटी की फ़ीस दे रहा है। दरअसल हआ क्या है से बचाकर पैसा जमा किया जा रहा है। जबकि मिल-बाँटकर खाने की आदत रहनी चाहिए। जितनी कमाई है उसका कम से कम तीस प्रतिशत या 10 प्रतिशत दामादों पर लुटाना ही चाहिए।
साल के हर दूसरे तीज-त्योहार पर कुछ न कुछ देना, बेटी को साड़ियाँ भेजना, दामाद को कपड़े देना, दामाद घर आये तो पान के साथ एक सौ एक या एक हज़ार एक या पाँच हज़ार एक रुपया देना। दामाद के बच्चों की सालगिरह मनाना। आजकल लोग जितना भी पैसा कमाते हैं ज़मीन-शेर-ज़ेवर लेते रहते हैं। इन सभी में पैसा डूबता रहता है। लोग पैसा डुबोने में शर्म नहीं करते लेकिन अपने ही दामाद-बेटी को सुखी रखने में उनको बेहद तकलीफ़ होने लगती है। गंगा उलटी बह रही है। अगर अपने दामाद के लिए कुछ नहीं करोगे तो भगवान तो है ही उनको बर्बाद करके के लिए। भगवान उन्हें बर्बाद करता चला जाता है, उस घर को बीमारियाँ देता है, उस घर का सारा पैसा डुबो देता है। नहीं तो बीपी-शुगर की बीमारी देकर उनका हर महीने दो हज़ार रुपया तो दवाइयों पर खर्च करवाता
__ आजकल के दामाद तो ससुराल का खिलौना हो चुके हैं। घर के दामाद को फुटबॉल की तरह यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ पैर से मारा जाता है। इसमें दामाद की ग़लती कम, जबकि दामाद के ससुराल वालों की ग़लती ज़्यादा होती है। अपना दामाद अपना होता है, उसमें दूसरों को दखल नहीं देना चाहिए। जैसे एक आदमी का दामाद है उसी आदमी को सोचना चाहिए कि मेरा दामाद मेरे घर आये, और यदि उस आदमी का दामाद किसी दूसरे यानी उस आदमी के भाई, उसकी बहन, उसके चचेरे भाई, चचेरी बहन के पास जाये तो उस आदमी से पूछ कर जाये या उन सभी भाई-बहनों को चाहिए कि वह पूछे कि आपके दामाद को क्या हम अपने घर बुला सकते हैं।
आजकल हो क्या गया है कि सगे भाईयों, चचेरे भाइयों, ममरे भाइयों में बहुत झगड़ा चलता है। ये लोग क्या करते हैं कि अपने भाई-बहनों की बुराई उनके दामादों को बुलाकर, दामाद से करते हैं। दामाद के भी कुछ पुराने ज़ख़्म ससुराल से होते हैं, वह भी ससुराल की बुराई उनके सगे-चचेरे भाइयों से करने लग जाता है। ऐसा होने से जिसका सगा दामाद होता है उस परिवार वालों को अपने दामाद
और बेटी पर बहुत दुख होता है कि वे हमारे दुश्मनों से क्यों मिल रहे हैं। उनके घर का खाना क्यों खा रहे हैं। फिर जब अपने चचेरे भाई के दामाद उनसे नाराज़ हो जाते हैं तो उनको ये परिवार वाले बुलाते हैं। उनकी बुराई करते हैं। प्यार से खाना खिलाते हैं। सौ बात की एक बात यही कि अपने दामाद को हमें निभाकर चलना चाहिए।
इधर साले लोग भी दामाद को बेइज़्ज़त करने के लिए दामाद की बुराई दामाद के सगे भाइयों से करते हैं। दामाद को पता ही नहीं चलता, फिर भी दामाद के सगे भाई को दामाद के ससुराल वाले बुलाते हैं। और अपने ही दामाद की बेहद बुराई करते हैं। दामाद को पता नहीं चलता कि उसका दुश्मन उसका ही सगा भाई है। दामाद के ही ससुराल में छिप-छिपकर दावतें उड़ा रहा है। और बेचारा दामाद तो ससुराल ही जाना बंद कर चुका होता है। साले लोग क्या हैं कि अपने दामाद की पोल-पट्टी दामाद के ही भाई के सामने खोलते रहते हैं। आजकल समाज में इतनी बुरी तरह से दामादों को बेइज़्ज़त किया जा रहा है जिसकी कोई हद नहीं। दामाद के ससुराल में, दामाद के भाई-बंधुओं को दामाद से पूछकर ही जाना चाहिए कि क्या भाई हम आपके ससुराल जा सकते हैं या नहीं। क्योंकि दामाद से ही उस परिवार का रिश्ता बना है, अगर दामाद ही न होता तो रिश्ता ही क्यों बनता। लेकिन लोग एक तरह की साज़िश करके दामाद को फुटबॉल की तरह यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ फुटबॉल की तरह मारा करते हैं। आजकल ख़ास ससुर अपने दामाद को नहीं निभा रहे हैं। बल्कि उसके मामा-चाचा ससुर दामादों को निभा रहे हैं। इससे परिवार पूरी तरह से तितर-बितर हो चुका है।
दामाद के साथ लोगों को कैसे निभाना चाहिए? एक तो दामाद ग़रीब हो तो दामाद को पैसा देना चाहिए। उन्हें भी अपनी बराबरी का सम्मान देना चाहिए। हाथ में पैसा न भी रखो तो, बहन के घर का राशन, उसके बच्चों को कपड़े, दामादजी को कपड़े ज़रूर देने चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर दामादजी के घर का किराया भी देना चाहिए। आप कहेंगे कि तो फिर क्या हम लुट जाएँ। भगवान के घर देर हैं अँधेर नहीं है, दामादजी नहीं तो उनका बच्चा ऐसा चमत्कार करता है कि उनका बेटा पैसा कमाकर आपका भ आदमी अपने दामाद पर पैसा लुटाता है वही आदमी समाज में इज़्ज़त पाता है। आपके पास पैसा है तो दामाद पर हमेशा लुटाना ही चाहिए। यूँ समझना चाहिए कि दामाद को मैं दान-धर्म कर रहा हूँ। दूसरी जगह दान करने की ज़रूरत नहीं है, अपने ही पास दान करके बेटी-बहन को बर्बाद होने से बचा रहा हूँ।

एक और ज़रूरी बात, दामाद और बेटी से सबसे बड़ी जलन साले की बीवी को होती है। वह दामाद-बेटी को ऊपर ही आने नहीं देना चाहती। ऐसे में साले को एक बेहद ज़रूरी काम करना चाहिए कि छिप-छिपकर बहन और जीजाजी के लिए पैसा जुटाना-लुटाना चाहिए। कानों-कान ख़बर नहीं होनी चाहिए अपनी बीवी को। माँ-बाप के मरने के बाद घर के बेटे को ही माँ-बाप की भूमिका में आ जाना चाहिए और बेटी दामाद यानी बहन-जीजाजी के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहना चाहिए। दुनिया में अभी भी ईमानदारी है। कितने ही परिवार है जहाँ पर बर्बाद होते परिवार को दामादों ने अपने कंधे पर उठाया है। और फ़कीर से राजा बनाया है। अच्छा व्यवहार रहेगा तो दामाद ही साले को बिना ब्याज़ का क़र्ज़ देंगे। जिस दिन बेटी की शादी होती है, उस दिन से ही बेटी के बाप को सोचना चाहिए कि मुझे एक और बेटा दामाद के रूप में मिल गया है। मैं वही करूँगा जो अपने बेटों के साथ करता हूँ, सालों को सोचना चाहिए कि हमें जीजाजी के रूप में एक और भाई मिल गया है, संसार इसी तरह से चला है, भारत देश इसी तरह से चला है, दामाद को बचाइये, इंसानियत को जिंदा रहने दीजिए। दामाद के सामने झुकिये, वह हमारी बहन को निभा रहा है। संसार अच्छाई से ही चला है। कुछ लोग सोलह आने सच्ची बात कहते हैं कि इस देश में ईमानदार लोगों की ही संख्या ज़्यादा है जिससे यह देश बचा हुआ है। सच में केवल 5 प्रतिशत ही बेईमान हैं, बाक़ी सारी दुनिया को अच्छी ही है। मगर नये ज़माने के साथ नहीं, पुराने लोगों की तरह जीना सीखिये।

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