नोटबंदी के बाद रहन-सहन में फर्क आ गया है

नोटबंदी के बाद लोगों के रहन-सहन में फर्क आ गया है, लोगों के पास पैसे की कमी बहुत हो गयी है, हालात बहुत ही बद से बदतर होते चले जा रहे हैं 
नोटबंदी के बाद रहन-सहन में फर्क आ गया है
नोटबंदी

नोटबंदी के बाद दो महीनों तक तो लोगों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। जो लोग प्राइवेट नौकरी कर रहे थे, उनकी नौकरी खतरे में आ गयी थी, कईयों की नौकरी चली गयी, लोग बस बिना कुछ किये दो महीने तक जिंदगी गुजार रहे थे। व्यापारियें को कहीं से भी पेमेंट नहीं आ रहे थे। सारे होटलों में किसी तरह का ग्राहक ही नहीं था, सिनेमाघरों में भीड़ नहीं थी, लोगों के पास बड़ा इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे, ऑटो खाली जा रहे थे, कारों की सवारी कोई नहीं कर रहा था। जबकि करीब एक लाख युवाओं ने ओला, ऊबर कार वंपनियों के भरोसे ब्याज पर कारें खरीदीं थीं, उनकी हालत दो महीने तक बद से बदतर हो गयी थी।

और आज तो हालात बद से बदतर हो गयी है, क्योंकि लोग अब अपनी लैविश यानी अमीरों जैसी fæजदगी जीने जैसे लायक ही नहीं रहे  गये हैं, पहले ऑटो वाला अपने दो बच्चों को महँगी फीस के स्कृल में पढ़ा रहा था। नोटबंदी के बाद उसके पास बच्चों की फीस भरने के लाले पड़ गये। उसने दस प्रतिशत पर उधार लाकर वह फीस भरी है। होता क्या है कि जून से लेकर माचर्र तक लोग स्कृल की फीस देने में आना-कानी करते रहते हैं। हर महीने स्कृल वालों को फीस देने के लिए अय्या-अप्पा करके उनको टरका-टरका कर टालते रहते हैं। लेकिन जब स्कृल में सालाना परीक्षा होती है तो स्कृल वाले हॉल fटकट यानी परीक्षा प्रवेश पहचान पत्र रोक लेते हैं और स्कृल की पूरी फीस भरने पर ही उन्हें हॉल fटकट दिया जाता है। नोटबंदी के बाद सारे धंधे नवंबर से लेकर माचर्र तक धूल चाट रहे थे,  लोगों  ने यह फीस वैसे भरी उनका दिल ही जानता है, क्योंकि ऑटो वालों के पास पिछले चार महीने से काम ही नहीं है, वे कह रहे हैं कि नोटबंदी के बाद तो महिलाओ के पास शॉपिंग करने के ही बिल्कुल पैसे नहीं रह गये थे। वे सड़कों पर निकल ही नहीं रही है, सड़क पर व्यापार की भीड़ ही नहीं दिखाई दे रही है। सारा का सारा व्यापार ठप्प पड़ गया है। लोगों को बहुत ही मुशि्कल ही भोजन मिल पा रहा है, लोग संडे के दिन आउfटंग पर निकला करते थे, वह भी बंद हो गया है।


नोटबंदी के बाद ऐसे हालात हो गये हैं जैसे कि भारत में बहुत बड़ा युद्ध हुआ है और युद्ध के बाद जैसे सारे के सारे लोग वंगाल हो गये हैं। नवंबर से देश वंगलों का देश हो गया है। जो लोग ब्याज पर पैसा चला रहे हैं उनका व्यापार तो बहुत ही मस्ती से चल रहा है। ब्याज पर धंधा चलाने वाले कई लोग बैंकों से युवा लोन, कई तरह के लोन लेकर उसी पैसे को ब्याज के धंधे में लगाकार खूब धन कमा रहे हैं। अब सरकार की ही कमर तोड़ कर उसी पैसों से गरीबों को दस प्रतिशत पर ब्याज पर पैसा दे रहे हैं। उससे पैसा कमा रहे हैं,नोटबंदी के बाद किसी से नहीं सोचा था कि गरीब की हालत पतली हो जायेगी।


लेकिन पिछले पाँच महीने से लोग बेतहाशा पैसे की कमी के कारण यहाँ से वहाँ, इस शहर से उस शहर की ओर भाग रहे हैं। ताकि रोजगार नया मिल सके, लेकिन हर जगह व्यापार के नाम पर त्राहि-त्राहि मची हुई है, पिछले पंद्रह दिन से जरा धंधा सुधर रहा है, मगर कुल मिलाकर लोग बहुत ही तकलीफ से गुजर रहे हैं।  उनको नॉमर्रल सि्थति में आने में कम से कम एक साल लगेगा, बहुत सारे दाग धब्बे लग चुके हैं।  लोगों ने बच्चों की स्कृल फीस तो सोना fगरवी रखकर दी है, लोगों ने अपनी मोटरसाइकिल, वंप्यूटर, लैपटॉप, सबकुछ औने पौने दामों पर बेचकर अपने स्कृल की फीस भरी है, महिलाओं ने तो कान की बालियाँ, पैर की पायल बेचकर अपने टीवी के किस्त भरे, क्योंकि किसी को भी पता ही नहीं था कि इस तरह से नोटबंदी आयेगी और सारा कुछ एक तèफान की तरह बहाकर ले जायेगी। नौकरियाँ तो बहुत सारी चली गयीं। क्योंकि कई लोगों की तो अचानक नौकरी ही चली है, नोटबंदी एक भूचाल की तरह आया है और बीस बीस साल पुराने नौकरों को नौकरी से निकाला गया है, बड़ी वंपनियाँ बिकने के कगार पर आ गयी हैं, कई रिसॉटर्र बिकने के कगार पर आ गये हैं। क्योंकि लोगों के पास अब वेश्वावृति्त करने के भी पैसे नहीं रह गये हैं। लोगों के पास शराब पीने के भी पैसे नहीं रह गये हैं। लेकिन एक बात तो पक्की है इस मुसीबत में लोगों को इंसानियत क्या होती है, उसका एहसास हुआ। अब लोग सभी से घमंड से नहीं इज्जत से बात कर रहे हैं। बड़ों का सम्मान कर रहे हैं।
पिछले चार महीने में सबसे दुखद बात यह हो गयी है कि बहुत ही युवा जवान लोगों की मौत हो गयी है, क्योंकि उनकी बहुत सारा पैसा लोन लेकर उडाने के आदत हो गयी थी, उनके पास एकदम से पैसे की कमी होने से इस बात को वे बदार्रश्त ही नहीं कर पाये, और कई जवान लोगों की हाटर्र अटैक आकर मृत्यु हो गयी, कई जवान लोग बहुत सारी बीमारियों से ग्रस्त हो गये हैं। क्योंकि वे लोग बहुत ही मस्ती से जी रहे थे, बèडों को अपमानित करके जी रहे थे, उनको भी बहुत मजा आरहा था, लेकिन जैसे ही नोटबंदी के बाद अचानक उनका बिजनेस ठप्प हो गया, अगले दो महीने तक जब व्यापार करने कोई कुत्ता भी नहीं आया तो वे हैरान बौरान परेशान हो गये, अधेड़ उम्र के लोग तो अनुभवी थे लेकिन इनको समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या  हो रहा है, सारे युवा लोग नोटबंदी के पहले, आज तो मजे उडा लो, कल की कल देखेंगे ऐसा सोचने वालों का तो बहुत ही बुरा हाल हो गया। क्योंकि इनके पास एक पैसे की बचत नहीं थी, रोज कमाकर होटलबाजी कर रहे थे। आज उनको तो किसी तरह का कोई भी उधार पैसा देने वाला भी तैयार नहीं हो रहा था। नोटबंदी के बाद पहले दो महीने तो बहुत ही झुंझलाहट और झल्लाहट के देखे गये। उस समय रिलायंस का तीन महीने का सस्ता फोन कनेक्शन ही सबसे प्यारा लग रहा था। लोग कम से कम आपस में बात करके अपने गम को बाँट तो रहे थे।
इस दो महीने के दौरान जो पैसे के घमंड से बिछड़ा हुआ परिवार था, वह एक हो गया, क्योंकि सभी के सभी किसी न किसी तरह की परेशानी में आ गये थे। किसी की कार की किस्त अटक गयी थी, किसी की घर की लोन की किस्त पिछले पाँच महीने से अटकी हुई है, उन्हें कोटर्र का नोfटस आ चुका है। किसी को कुछ तो किसी को कुछ। महिलाएँ ब्यूटी पालर्रर जाना बंद कर दी थीं, महिलाएँ जो हरेक शादी में हर बार नयी साड़ी पहनकर जाया करती थी, वे लोग पुरानी साड़ी ही पहनकर जाने लग गयी थी, और कोई किसी से कुछ भी नहीं कह रहा था, सभी को पता था कि सब लोग पूरी तरह से वंगाल हो चुके हैं। मैंने खुद यह देखा है लोगों ने अपनी दुकान आधी तुडवाकर आधी किराये पर दे दी है, और बहुत ही कम किराये पर दुकान दे दी है, वे लोग सोच रहे हैं कि कम से कम पाँच हजार रूपये भी आ जाये तो हमारा महीने का राशन तो आ जायेगा। कम से कम भोजन के लाले तो नहीं पड़ जायेंगे।
अब तो ऐसा हो गया है कि अच्छे से अच्छे लोग भी यही कह रहे हैं कि पूरी जिंदगी बैंगन में मिल गयी है, भेंडी, आलू में मिल गयी है। शादी भी आधे खचर्र में हो रही है तो बारात भी बैंगन, आलू, भेंडी में मिल गयी है। अभी इस समय सबसे बड़ी एमरजेंसी हो गयी है कि हम अपने बच्चों को कम से कम फीस वाली स्कूल में डाल दें। क्योंकि सच्चे अनुभव बताते हैं कि जो बच्चे नारायणा-चैतन्या स्कृल में पड़  रहे हैं उनको भी आगे जाकर केवल तीस हजार की ही नौकरी मिल रही है। तीस हजार सोलह घंटे में, सोलह घंटे ईयNफोन लगा रहता है, यानी तीस हजार रूपये तो ऑटो वाला भी सोलह घंटे मेहनत करके कमा सक रहा है, यानी यह सब पढ़ाई लिखाई तो एक बहुत बड़ा झाँसा और तमाशा हो गयी है, एक हैरत की बात कहता हूँ कि जिसको तीस हजार रूपये की  तनख्वाह मिल रही है, उसकी तनख्वाह असल में एक लाख बीस हजार रूपये होती है, लेकिन बीच में भारत की वंपनी वह सारी तनख्वाह खा जाती है, और भारत की कंपनी अमेरिका से लाखों रूपया कमा रही है, बिचौलिया बनकर खा रही है, यानी पूरी तरह से भारतीयों का शोषण बुरी तरह से हो रहा है। आजकल तीस हजार रूपये से क्या हो रहा है, अकेले पत्नी और पति दो बच्चों के साथ किराये के घर में रह भी नहीं पा रहे हैं। सभी लो रो-रोकर जीवन गजार रहे हैं।
अब दुनिया पूरी तरह से बदल गयी है, महँगे स्कृलों से बच्चों को निकालो, बीमार मत होओ, नहीं  तो अ्स्पताल आपको निगल जायेगा, गटक लेगा, सब्जी बड़ी मंडी में जाकर लो, एक एक पैसा बचाओ, ये तो संकट की शुरूआत है आगे आगे देखिये होता है क्या। नौकरी जो भी मिले छह महीन तक कर लो, फिर हालत ठीक हो जाये तो कुछ और सोचो। शमार्रओ मत, जिसने की शमर्र उसके पूटे करम।  कम किराये के मकान में चले जाओ। कुछ भी करके अपने को संकट से उबारों, वरना आप संकट में पडोगे तो रिश्तेदार तो क्या कुत्ता भी पूछने नहीं आयेगा, घुट घुटकर मर जाओगे तो मय्यत में भी कोई नहीं आयेगा।  
नोटबंदी के बाद से भारत के छोटे-बड़े व्यापारियों में एक वहम-डर शुरू हो गया है कि सारे छोटे धंधे बंद हो जाएँगे, जैसे कि किराना की दुकान, कपड़ों की दुकान, प्लासfटक की दुकानें, बरतन की दुकानें, स्पेयर पाटर्र की दुकानें, अनाज की थोक दुकानें, ज्वेलरी की दुकान, छोटे कल-पुजोंर्र की दुकानें, मसाले की दुकानें  सभी कुछ और इस पर अंबानी, अडाानी, टाटा, बिरला आदि का कब्जा हो जायेगा, छोटा व्यापारी अपनी दुकानें बंद करके नौकरी करने लग जाएँगे। कहा जा रहा है कि छोटे व्यापारियों के दुकान के सारे के सारे शटर fगर जाएँगे।
लोगों का कहना शुरू हो गया है कि सरकार ने इस पर बहुत ही तेजी से काम शुरू कर दिया है और 2024 के आते-आते सारे तरह के व्यापार बंद हो जाएँगे। जबकि लोग पूरी तरह से उल्टा सोच रहे हैं। आने वाले सालों में छोटे व्यापार ही बहुत ही अच्छी तरह से चलने वाले हैं। और सारे बड़ी वंपनी के लोग आँसू बहाने वाले हैं, छोटी पैक्टरी के लोग ही पनपने वाले हैं।
क्योंकि सरकार, छोटे व्यापारियों को बैंक से आसानी से कजर्र दे रही है, वह तो चाहती है कि आम आदमी मेहनत करके चार पैसे कमा ले। सरकार अब गरीबी की दुश्मन हो गयी है, इसलिए उसने नोटबंदी करके गरीबों को अवसर दिया है कि लोन लीजिए और आप भी आगे बæfढये।
लोग बड़ी वंपनियों से डर रही है, उन्हें डरने की बिल्कुल जरूरत ही नहीं है, एक उदाहरण देता हूँ कि एमडीएच मसाले भी चल रहे हैं, बादशाह मसाले भी चल रहे हैं और हैदराबाद में अटल मिचर्र स्टोर के मसाले भी चल रहे हैं, आनंद मसाले भी चल रहे हैं, भारत के पास सबसे बड़ी तिजोरी है, वह तिजोरी है कि भारत के पास 125 करोड़ लोगों की जनता है, यहाँ पर मसिर्रडीज कार तक इतनी सारी बिक जाती है कि दुनिया में कहीं नहीं बिकती हैं। इसका सारा श्रेय बालू प्रसाद यादव को जाता है जिन्होंने 9-9 बच्चे पैदा किये, एनटीआर को जाता है जो कि्रकेट टीम पैदा कर चुके हैं, आज उन्हीं की आगे की पीfढ़याँ ही सारे देश में उपभोक्ता बनकर देश को चला रही हैं, इसलिए मोदीजी जितने महान हैं लालूजी जो अपनी पत्नी के साथ नौ-नौ बार अंत्याक्षरी खेल चुके हैं, अगला गीत शुरू किया क अक्षर से तो क से नाम रखने वाला बच्चा भी पैदा कर दिया करते थे।  उसी जमाने का पूरा मजा आज का भारत ले रहा है। पुरानी फिल्मों में एक मोटी कलाकार होती थीं, टुनटुन उसका नाम उमा देवी था, वह दस बच्चे जॉनी वॉकर, धूमल के द्वारा पैदा किया करती थी, फिल्म में असली जीवन में नहीं, उसी का अनुकरण भारत की सारी जनता ने किया। पिता लोग पान चबा-चबाकर बच्चे पैदा करते चले जाते थे, कहते थे कि पड़ोसी को दस है तो मुझे ग्यारह चाहिए। थोक में बच्चे पैदा होते थे-भकाक भकाक भकाक भकाक, चलने तो बालकिशन, चलने दो बालकिशन, दे मार दे मार देमार देमार....। यह बात मजाक में नहीं गंभीरता से देखना होगा कि भारत के पास इतने उपभोक्ता आये कहाँ से, इन्हीं लालुओं, एनटीआरों से तो आये हैं।
पहले बात करते हैं मसाले बेचने वाले वंपनी की बात, कोई बड़ी वंपनी मसाले बेच ही नही सकती है। आपने देख लिया कि मोर, रिलायंस, बिग बाजार वालों ने अनाज अपना बेचकर देख लिया। वे हरेक मसाले का दाम बाजार से ज्यादा रखते हैं, चावल के दाम उनके मामूली किराना दुकान से हर बार दस रूपया बढ़कर ही रखते हैं। तुअर-अरहर की दाल जब 160 रूपये किलो बिक रही थी, बड़ी वंपनियों ने आकर उसी दाल को 180 रूपये में बेचा, 200 रूपये किलो से भी बेचा, 220 रूपये किलो से भी बेचा। पूछने पर कहने लगे कि हमारी क्वालिटी बहुत अच्छी होती है।
अब से रिलायंस, बिग बाजार इतने सारे शहरों में तो खुल गये हैं लेकिन इसपर 24 घंटे निगरानी कोई नहीं रखता है, जैसे मारवाड़ी की दुकान में पंfडत जी आकर पूजा करते हैं वहाँ कोई नहीं करता है, जैसे मारवाड़ी रोजाना नहाकर दुकान आता है, कोई नहीं आता है, स्वच्छता का बहुत अच्छा असर व्यापार पर होता है, सबसे बड़ा उदाहरण है रत्नदीप सुपर मावेर्रट यह मावेर्रट रिलायंस जितना ऊँचा अभी तो नहीं है, लेकिन इसने आम इंसान की नब्ज इतनी अच्छी तरह से पकड ली है, जिसकी कोई हद नहीं,  आज हैदराबाद में इसकी 27 आउटलेटें हैं, इसके सुपर मावेर्रट में भीड़ उमड़ रही है, क्योंकि यह सच में सभी का पेट भरने के बाद ही अपना पेट भरता है, इसका मुकाबला आज की तारीख मंें कोई नहीं कर पा रहा है। छोटे-छोटे सुपर मावेर्रट बहुत ही मेहनत करके अपनी टीम बना रहे हैं, इनका काम होता है कि वे आम आदमी की ताकत देखकर ही काम करते हैं, अलवाल में एक सुपर मावेर्रट है अग्रवाल सुपर मावेर्रट वे लोग भी बहुत ही मेहनत करके छोटे थोक व्यापारी से सस्ते दाम में सामान खरीदकर वे आम आदमी को भा जाये उस तरह का दाम रखा करते हैं।
आपको याद होगा कि पहले हैदराबाद में ति्रनेत्रा सुपर मावेर्रट की बहुत सारी शाखाएँ थीं, जहाँ पर देखो वहाँ पर ति्रनेत्रा का ही नाम चला करता था, लेकिन आज वह गायब हो चुका है, क्योंकि जो मेहनत से जी चुरायेगा उसका व्यापार ठप्प हो जाना ही है। आज बिग बाजार इसलिए चल रहा है क्योंकि उसने कई तरह के चीजों के दाम कम कर दिये हैं, ये जो पबि्लक है वो सब जानती है, बिग बाजार में किराना की ओर कोई नहीं जाता है, लेकिन रत्नदीप सुपर मावेर्रट में लोग किराना का सामान लेने कारें लेकर पहुँच रहे हैं, बिग बाजार में पहले साड़ी की दुकान थी, वह बंद हो गयी, क्योंकि उसने महँगे में साड़ी बेचनी शुरू कर दी थी, आपको साडी लेना हो तो जरूर साउथ इंfडया मॉल में चले जाइये, बहुत ही सस्ती साfड़याँ वहाँ पर मिल रही है, जिसके पास जो सस्ता और fटकाऊ है वही बिक रहा है, साउथ इंfडया के पास साæfडयाँ ही ज्यादा बिक रही हैं, और कुछ नहीं बिक रहा है।
बिजनेस का पिछले पाँच साल से यही मंत्रा, यही पंडा चल रहा है कि जो रोजाना मेहनत करके नयी-नयी चीज लेकर आयेगा वही चलेगा, दूसरे कोई लोग नहीं चलेंगे, आपको पता होना चाहिए कि साfड़यों में सबसे ज्यादा मेहनत कौन करते हैं, मदीना, रिकाबगंज, की पुटपाथ से लेकर बड़ी दुकान वाले बेहद ही मेहनत करते हैं वे सौ सौ रूपये के लिए महिला ग्राहकों को दो-दो घंटे तक मनाते रहते हैं। फिर भी महिला ग्राहक सबसे गंदी ग्राहक होती है, वह दो घंटे तक साडी, जेवर देखकर भी बिना कुछ लिए बहुत ही बेददार्री से चली जाया करती है। लेकिन इन महिलाओं को छोड़ भी नहीं सकते हैं क्योंकि इनको एक बार दुकान पसंद आ गयी तो ये ही महिलाएँ लाखों के कपड़े भरोसे की दुकान से लिया करती हैं, और महिला ग्राहक इतनी होशियार होती है, कि पहले एक घंटे तक दुकान के सेठ को ही डाँटती रहती है, कहती है कि आपके पास तो fड़जाइन ही नहीं है, हमने तो फलाना दुकान में देखा था वहाँ बहुत अच्छी साड़ी मिल रही है, वह पुराने दुकानदार, भरोसे के दुकानदार को भी बुरी तरह से डाँटते हुए कहती है कि आपने नयी fड़जाइन नहीं बताई तो आगे से आपके पास आना बंद कर देंगे। हम तो कहते हैं कि आप महिला ग्राहकों की बातों को बहुत  ही गंभीरता से लीजिए, वह इशारा कर रही हैं कि व्यापार में रोजाना कुछ न कुछ नया करना चाहिए, जब तक आप प्रयोग करते रहेंगे तभी तक आपका व्यापार चलता रहेगा, नहीं तो बंद हो जायेगा ठप्प होजायेगा, हैदराबाद के रामकोट के किराना के दुकान चावला और चप्पल बाजार के देवड़ा किराना की दुकान वाले पूरा अनाज साफ करके देते हैं, तभी जाकर लोग उनसे अनाज ले रहे हैं,  बेगम बाजार की एम. मेघराज किराना की दुकान के बारे में तो तेलुगु लोगों में यह बात मशहूर है कि जितना उच्चकोfट का सामान, साफ सुथरा, मेघराज के पास मिलता है, उतना तो शहर में कहीं भी नहीं मिलता है, मलकपेट के महबूब मेंशन में भी आर. के. अग्रवाल ने भी बहुत ही तगड़ी मेहनत करके अपना मुकाम हासिल किया है, पंडा हम फिर बतलाते हैं कि जो रोज मेहनत करेगा वही चलेगा, बडी चावडी में मुरूगन घी की दुकान है, उसके पास भगवान की दया से इतनी भीड़ रहती है उतनी तो सुपर मावेर्रट में भी नहीं रहा करती है, जोशी मसाले में भी लोग दूर गाँव से लोग आया करते हैं, रामभरोसे मिठाई भंडार के पास एक छोटा सा सुपर मावेर्रट है, बहुत ही छोटा, राजश्री नाम का, लेकिन वह इतने प्यारे आइटम रखता है कि उसकी दुकान भी चला करती है, सो, इस तरह से जो लोग बेहद मेहनत कर रहे हैं, वही चल रहे हैं। आज बैठकर दुकान चलाने से ही धंधे नहीं चल रहे हैं बलि्क मावेर्रट को हर पल गहराई से देखना बहुत ही जरूरी हो गया है।

सच बताएँ तो  चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाये लेकिन एम.मेघराज के पास मरने की पुसर्रत नहीं होती है, उतना सारा काम होता है, आज हैदराबाद में जो व्यापारी मेहनत कर रहा है, उसी का जीवन बहुत ही अच्छा चल रहा है, पुराने ढरेर्र पर व्यापार चलने बंद हो गये हैं।
भारत में सुपर मावेर्रट का चलन भी हो रहा है, लेकिन छोटे व्यापारी की मौत कभी भी नहीं हो सकती है, सरकार चाहे जितना भी  ऐड़ी चोटी का जोर लगा ले यह नहीं हो सकता है, व्यापार में सबसे होशियार मारवाड़ी आदमी होता है, वह पैसा कहाँ से लाता है किसी को पता नहीं चलता है, एक मारवाड़ी ही दूसरे मारवाड़ी की मदद करता है, चलो अपनी ही जाति का भाई  है अपनी ही जाति का आदमी है करके उसकी मदद की जाती है, और मारवाड़ी आदमी में खास बात यह होती है कि वह अपने शहर में तो दिन रात घूमता ही रहता है, दूसरे शहरों को भी जाकर देखता रहता है कि वहाँ क्या चल रहा है।
लोग रिलाएंस वंपनी से ड़र रहे हैं जबकि उनके सारे पेट्रोल पंप बंद हो चुके हैं, उनके सुपरमावेर्रट कहीं बंद हो गये तो कहीं नयी जगह खुल रहे हैं, उनमें लगातार अफरा तफरी मची हुई है। बजाज का मोटरसाइकिल माइलेज अच्छा देता है लेकिन fटकाऊ नहीं है, जबकि हीरो होंडा 30 साल तक भी चलता है। रिलायंस ने सीडी जिसमें फिल्म होती है वह भी किराये पर देने का काम किया लेकिन नहीं चला, आज बजाज इलेक्ट्रानिक नये नये प्रयोग करके आगे बढ़ रहा है, एक साडी की दुकान थी बहुत ही बड़ी वह कॉसमॉस बैंक को 300 करोड़ रूपये का चूना लगाकर बैठ गयी है, विजय माल्या का क्या हाल हुआ है किसीको बताने की जरूरत नहीं है।
(अगले अंक में व्यापार पर रिपोटर्र जारी कि समय के साथ चलना नहीं, दौड़ना बहुत जरूरी होगया है)

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