मोदी समाजवाद ला सकते हैं

आज मोदीजी का रूतबा इतना बढ़ गया है कि वे भारत से बाजारवाद को खत्म करके समाजवाद ला सकते हैं और पूरी जनता आँख बंद करके उनका पूरा सहयोग करेगी

भारत की सारी जनता ने हर बार समाजवाद को ही गले से लगाया है, यहाँ पर पूँजीपतियों को कभी सराहा नहीं गया है। नेहरूजी-इंदिराजी और मोदीजी के सारे समय में समाजवाद ही देश में सिर उठाकर चला है। समाजवाद में सारे लोग अपना स्वाथर्र नहीं देखते थे बलि्क समाज का भला पहले चाहते हैं। अपने बेटे को जितना चाहते हैं पड़ोसी के बच्चे को उतना ही चाहते हैं, या कहिए कि पड़ोसी और रिश्तेदार के बच्चे को अपने बच्चे से ज्यादा चाहते हैं। जबकि बाजारवाद जो लगातार आज देश में चल रहा है। पिछले 24 साल से चल रहा है, उसमें स्वाथर्र पूरी तरह से बढ़ गया है। बाæजारवाद ने सबसे बड़ी बुरी आदत हर आदमी में यही दी है कि लोग अपनी ही तारीफ करने से नहीं थकते हैं और दूसरों की बुराई करने से भी नहीं थकते हैं। नेहपालक भी घोर स्वाथर्र पालक हो जाते हैं। इस बाजारवाद का सबसे बड़ा नारा यही रहा है कि अपना काम है बनता भाड़ जाये जनता। ऐसा होने से यह हुआ कि जनता का एक वगर्र तो पूरी तरह से गुलछरेर्रबाजी में लग गया, लेकिन दूसरा वगर्र इनको बहुत ही दुखी मन से बस ताकता ही रह गया। इस गुलछरेर्रबाजी में समाज के वैसे लोग बदमाशी पर उतर आये थे, जो समाज के पहले रक्षक माने जाते थे। जैसे शिक्षक, साहित्यकार, पत्रकार, ये तीनों विदशों की यात्राओं में लग गये। खुले तौर पर ये जब भी पुस्तक लिखते तो उसमें लिखते कि उन्होंने किन-किन देशों की यात्रा की है। कोई साहित्यकार लिखता हमने 14 देशों की यात्रा की है। कोई लिखता हमने 20 देशों की यात्रा की। ऐसा लिखकर वे यह साबित करना चाहते थे कि देखों हम कितने ऊँचे हैं कि हवाई जहाज का कितना मजा ले चुके हैं। और आप कितने उजाड़ आदमी रह गये जो विदेश यात्रा करने की औकात ही नहीं बना पाये। उनके व्यवहार में विदेशों से लौटने के बाद एक तरह धौंस आ गया, घमंड आ गया। दूसरों को दबोचकर बात करने की इनकी शैली हो गयी। इनमें व्यवहार कुशलता भी जाती रही और पूरी तरह से ये शानो शौकत वाले बहुत ही घमंडी और ओछी हरकतें करने लग गये और लगे हैं, विदेश की यात्रा करने के बाद इनमें हम भारतीयों को बहुत ही नीची नजर से देखने का बहुत ही निराला गुण आ गया। जबकि भारतीयों का हमेशा से स्वभाव रहा है कि वे चुपचाप जहर हँस-हँस कर पीते रहे। भारतीय समाज ने इस 24 साल के बाजारवाद को बहुत ही उदारता से बदार्रश्त भी कर लिया है। यह राक्षस काल यानी बाजारवाद 1992 से 2016आठ नवंबर यानी नोटबंदी के दिन तक चला।
सभी को याद होगा कि गांधीजी ने भारत को समझने के लिए पहले पूरे देश की रेलयात्रा की थी। और अfधकतर बार वे तीसरे दजेर्र के fडब्बे से यात्रा करते रहे। मैंने भी दो चार  बार तीसरे दजेर्र से यात्रा की थी, वहाँ पर इंसान पूरी तरह से भेड़ -बकरियों की तरह से ठूँसे जाते हैं। रात में सोते हैं बैठे-बैठे। एक दूसरे की छाती पर अपना पैर रखकर सो जाया करते हैं। सिकुडकर सो जाया करते हैं। रात में ठंड में fठठुरकर सो जाया करते हैं। आज भी भारत के लोग एक मोटरसाइकिल पर पाँच से लेकर छह लोगों को ठूँस-ठूँसकर ले जाया करते हैं। आज भी लोग कfठनाई से जीना जानते हैं, और अपना जमीर बेचा नहीं करते हैं, रूखी-सूखी ही सही खा कर जी लिया करते हैं। कवि, साहित्यकार, पत्रकार के बेटे बेfटयाँ विदेशों में ऊँची तनख्वाह पर नौकरी करने लगे तो ये कवि विदेश जाकर भारत की गरीबी, मुफलिसी, भारत के संघषर्र को व्यंग्य की चाशनी में घोलकर इस तरह विदशों में कविता के रूप में सुनाने लगे कि  विदेश के लोग ठहाके लगाकर हँसने लगे, और उन कवियों को डॉलरों में इतना सारा पैसा दिया गया कि वे लोग भारत में आकर गुलछरेर्र उडाने लग गये।
इधर ऊँचे पत्रकारों के बेटे को शादियाँ कॉरपोरेट जगत ने करवानी शुरू कर दी, करोडों में शादियाँ की गयीं और उनकी कलम को खरीदा गया, नेताओं और सेलेबि्रटी के साक्षात्कार पाँच सितारा होटलों के लांज में लिये गये, यह काम अंग्रेजी चैनलों ने किया, जबकि भारतीय भाषाओं के चैनलों ने अपने स्टुfडयों में ही ये साक्षात्कार किये, किसी तरह की ओछी हरकतें नहीं कीं।
गांधीजी ने मरने से पहले कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा आदशर्र है, लेकिन बाजारवाद में उनका विचार एक बहुत ही बडा मजाक बनकर रह गया है। इतना बडा मजाक कि हर कदम पर उनके विचारों को जलालत ही मिलती रही। कभी उनका सम्मान नहीं किया गया। लेकिन मोदीजी जो संघ के आदमी रहे हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी कुसार्री के पीछे गांधीजी की फोटो रखी, और काम शुरू किया।
गांधीजी के विचार सारी दुनिया को संभालकर, बहुत ही अनुशासित तरीके से आगे बढ़ने के विचार हैं, आज नोटबंदी के बाद सारा भारत गांधीमय हो चुका है। बाæजारवाद की वो अतिपीड़ादायक चुभन, टीस, अब कम होने लग गयी है। बाजारवाद की इसी झुंझलाहट से तंग आकर बिल गेट्स ने अपनी सारी संपति्त दान कर दी, गांधीजी के बारे में एक बात कहना चाहता हूँ कि जीवन में जब कभी भी आपको घोर निराशा हो तो गांधी के विचारों की शरण में चले जाइये, उसके बाद आपको जीवन में इति्मनान इतना अfधक मिलेगा कि ये आपकी गंदी आधुनिक बीमारियाँ fडप्रेशन, घमंड, अहं, बेकार का स्वाथर्रपन पूरी तरह से दूर हो जायेगा।
गांधीजी की एक बहुत ही उत्तम बात जो मोदीजी ने मानी जिसकी वजह से मोदीजी आज पूरे भारत पर बहुत ही कुशलता से राज कर रहे हैं। उस बात को मैं गहराई से समझाता हूँ, बहुत ही रोचक बात है, गांधीजी ने एक व्रत लिया था कि मेरे देश में जितने भी नीची जाति के लोग हैं वे सम्माननीय है और उनको गांधीजी ने नाम दिया हरिजन। हरिजन यानी भगवान के भेजे हुए लोग। जब गांधीजी ने हरिजनों का साथ देना शुरू किया तो उनके आस-पास के सारे दिग्गज नेता उनको सलाह देने लग गये कि आप हरिजनों का साथ देकर अपने राजनीतिक जीवन पर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। बहुत समझाया गया। बहुत समझाया गया। गांधीजी टस से मस नहीं हुए। कई दिनों तक बात गांधी के साथ अनेक नेताओं ने की कि आपका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा। गांधीजी कभी इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाये कि मैं भारतीय जीवन बिना हरिजनों के मान लूँगा।
इधर मोदीजी ने गांधीजी की राह पर चलते हुए हरिजनों का साथ दिया। यूपी के जो चुनाव हुए मोदीजी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जातिवाद से ऊपर उठकर वोट दीजिए, मोदीजी ने कहा कि पानी रमजान के दिन भी आयेगा और होली के दिन भी भरपूर आयेगा। सो, गांधीजी की राह पर चलकर मोदीजी को जो सफलता मिल रही है, उससे शतिर्रया रूप  कहा जा सकता है कि मोदीजी आगे भी बहुत चलेंगे। मगर शतर्र यही है कि सबको न्याय मिले। सबका विकास हो, आज मोदीजी के काल में मुसलमान जितनी सुरक्षा में जी रहा है, उतना सुरकि्षत मुसलमान पिछले सत्तर साल में नहीं जिया। फिल्म अfभनेता सलमान खान ने बताया कि जब मोदीजी प्रधानमंत्री नहीं थे, तब वे सलमान से मिले थे, और भरपूर सलमान का स्वागत किया, और बातचीत के बाद सलमान को वे बाहर तक छोड़ने आये थे, याद रहे कि सलमान भी गणपतिजी की पूजा दो दिन तक अपने घर में रखते हैं। मोदीजी तो आज शासक है, उनके लिए मुसलमानों का साथ देना आसान है, मगर बहुत ही मुशि्कल भी, क्योंकि संघ ताक में बैठा है कि जैसे ही बड़ा दंगा होगा वे खुद मोदीजी को दबोच लेंगे, लेकिन संघ की जितनी तारीफ की जाय उतनी कम है कि मोदीजी के काम पर उन्हें रत्ती भर भी बुराई नहीं दिख रही है। क्योंकि कुछ किया भी नहीं जा सकता है, क्योकि मोदीजी अब भारतीयों के दिलों में इतने गहरे बैठ गये हैं कि उनका माजरा अब ये हो चुका है कि मोदीजी अगर जनता को सौ सौ कोड़े मार भी लेंगे तो जनता सहने को तैयार है, क्योंकि जनता को अब पूरा भरोसा हो चुका है कि मोदीजी के हाथ में भारत में पूरी तरह से महपूज हो चुका है। गांधीजी ने जो नींव रखी थी, और बहुत ही  कfठन समय में मुसलमानों का साथ दिया था, तब गांधीजी को मुसलमानों का साथ देने के लिए बहुत ही ढीठ नेता कहा गया था, लेकिन तब गांधीजी अगले हजारों वषोंर्र का सुनहरा भविष्य बना रहे थे, गांधीजी ने तब जो दूरदृfष्ट से काम लिया था, उसकी पूरी मलाई मोदीजी खा रहे हैं।
गांधीजी ने मुसलमानों का साथ तब दिया था जब हिंदू और मुसलमानों में इतिहास के सबसे बड़े दंगे हो रहे थे, मृतकों की संख्या लाख के ऊपर पहुँच गयी थी, वैसे समय में उनका मुसलमानों का साथ देना आत्महत्या करने के बराबर था, और हत्या का शिकार होने का रास्ता खोलने का था।  और सच्चाई यह रही कि गांधीजी के विचारों को पिछले सत्तर साल से घृणा ही बदार्रश्त  करनी पड़ी है, सत्तर साल से गांधीजी की आत्मा कलप रही थी, लेकिन मोदीजी ने आकर गांधी विचार को जो पुरसुकृन दिया है, वह इस समय की सबसे उत्वृष्ट बात है, पूरी तरह से देश में शांति। अब तो हिंदुओं में मुसलमानों के लिए घृणा पूरी तरह से जा चुकी, उस ओर लोग  सोचना भी बंद कर चुके हैं।  यह मोदीजी की गांधीजी को सबसे बड़ी भेंट कही जा सकती है। धन्य हैं मोदीजी हर दिन इतिहास बनता चला जाता है, गांधीजी के विचारों से यह सबक मिलता है कि इंसान भले ही मर जाये लेकिन वह अपने सशक्त  विचारों से अरबों लोगों का सुनहरा भविष्य बनाकर चला जाता है।
मुझे आश्चयर्र की बात तब लगी जब कम्युनिस्ट नेता शशिनारायण स्वाधीनजी ने अपनी  पति्रका के प्रथम पृष्ठ पर मोदीजी की फोटो छापी है, जबिक दो साल पहले उन्होंने मोदीजी के खिलाफ कविता छापी थी। सो, मेरी तरह स्वाधीनजी भी बदल रहे हैं, अब बारी रोहिताश्वजी की है, रोहिताश्वजी, आप भी मोदीजी के नाम के मंजीरे लेकर बजाने शुरू कर दीजिए। मैं उस दिन के इंतजार में हूँ जहाँ रोहिताश्वजी अपनी स्वरfचत, अक्खड़ वुंठाओं से बाहर आएँगे। अब क्या बताऊँ रोहिताश्वजी अपना fगरेबान झाँक लें। मानना पड़ेगा किशोरीलाल व्यास नीलवंठजी को, जो शुरू से भाजपाई रहे और अब मोदीजी के मुरीद।
मोदीजी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं कि कभी एटीएम से पैसे गायब कर रहे हैं, कभी बैंक को पैसे देने से रोक रहे हैं, इससे बाजारवाद पैर नहीं जमा पायेगा। गरीबों को लोन दिलवा रहे हैं ताकि वे भी आगे बढ़े। बाजारवाद ने भारत देश का बुरी तरह से चारिति्रक पतन किया है। अंग्रेजी में कहावत है कि वेल्थ लास्ट नfथंग लॉस्ट बट वेन कैरेक्टर लॉस्ट समfथंग लॉस्ट। देश का चरित्र कभी नहीं मरना चाहिए। बाजारवाद में सबसे घोर पतन यह हुआ कि गरीब अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा था। हर गरीब अपना अंत निकट में ही देख रहा था। मुसलमानों में चचार्र पूरी तरह से तेज हो रही थी कि जिस कयामत के बारे मंे हमारा मजहब कह रहा था वह कयामत यही बाजारवाद है। अपना काम है बनता भाड़ में जाये जनता। सभी का यही नारा हो गया था।
अब बस आम आदमी तो केवल दो बातें से ही परेशान हैं, स्कृल की भारी फीस और पेट्रोल के दाम ये दो कम हो जाये तो हालात बेहतर हो। जिस दिन से ट्रंप ने अमेरिका से मुसलमानों को भगाने की ठानी है उस दिन से मुसलमानों का तो कानवेंट संस्वृति पर से भरोसा कम होता जा रहा है। उसी तरह से सारे देश में यह हवा चलनी चाहिए कि भारी फीस वाले स्कृलों पर हम कम भरोसा करें।
अब लोगों पर से कानवेंट संस्वृति का भूत कम हो रहा है, क्योंकि हरेक को केवल तीस से चालीस हजार ही तनख्वाह मिल रही है, इंजीनियरिंग में आठ लाख रूपया लगाकर भी। किसी को तो बीस हजार ही मिल रही है, सारी दुनिया पर मंदी के दौर का भूत भी मंडरा रहा है। आज इंजीनियरिंग करके नौकरी करने वाले जो 30 हजार रूपया कमा रहे हैं उतना पैसा तो लोग ऑटो चलाकर भी कमा रहे हैं। क्योंकि ऑटो वाले के पास तो रातब यानी महीने के हिसाब के दस हजार के ग्राहक तो हैं ही....।  सो, समय बदल रहा है, मोदीजी यही कीजिए कि पैसे का नशा कम कर दीजिए।

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