मोदीजी ने नोटबंदी करके सभी भारतवासियों के सिर से बहुत भारी बोझ उतार दिया है।
गंदे पैसे का बोझ, भ्रष्ट पैसे का बोझ, नोंच नोंचकर खाने के पैसे का बोझ, एक ही चोंट मारी तो सारी धरती fहल गयी। भूचाल आ गया, आत्मा भी रो पडी भ्रष्टाचाfरयों की। जय हो मोदीजी, एक बाबा झोली लेकर आया और काम तमाम करके बैठा है शान से गद्दी पर। मोदीजी ने गरीबों के fलए सात सौ दवाओं के दाम भी कम कर fदये हैं, ये है मोदीजी का मानवता का उत्वृष्ट रूप वरना ये राक्षस दवाओं के दाम बढाकर जनता को रौंद रहे थे। इलाज पर तो चोंट धमाकेदार रही अब शिक्षा के वहशीपन पर भी वृपा करके जल्दी से जल्दी मोदीजी वुछ कीfजए, हम आपको एक ईश्वर के भेजे दूत की तरह देख रहे थे, आप हमारे fपतातुल्य हैं, बा॰जारवाद को आप बुरी तरह पाताल में गाडने की तैयारी कर रहे हैं। यह भी हमें पता है, महँगाई को दफन कर रहे हैं, देश के सबसे गरीब आदमी के चेहरे पर fदन ब fदन मुस्कान आ रही, यह मुस्कान चौडी होती जाये हम ईश्वर से इसी तरह की सद्बुfद्ध की कामना आपके fलए कर रहे हैं। दाढी वाले बाबा को लाख लाख प्रणाम।
भ्रष्टाचार का गंदा बोझ सभी के fसर से उतर गया है, अब मानवता की बातें हो रही हैं, पैसों का शहर मुंबई में महानगरपाfलका के चुनाव में भाजपा की जीत यह सीधा संकेत है fक पैसा का यह बबा&द शहर अब पैसों की धौंस से उकता चुका है, के अब नोटबंदी के बाद चैन की f॰जदगी जीना चाहते हैं। नोटबंदी के बाद गांधीजी की आत्मा को सबसे ज्यादा शांfत fमली होगी। क्योंfक गांधीजी की फोटो ही हर नोट पर छप रही थी और उसी गांधी के नाम पर लोग कालाधन इकùा कर रहे थे, तfकये फाड कर नोट fछपा रहे थे, तह॰खाने में, fकचन के fडब्बों में, कपबड& में, पलंग के बीच में नोट fछपा रहे थे, नोटबंदी होते ही, सभी की जान फटकर हाथ में आ गयी, हाय ये क्या हो गया, हम तो बबा&द हो गये, सबवुछ लूटकर नोट जमा fकये थे, सबका सत्यानाश हो गया। fरश्तेदारों की छाfतयों पर चलकर उनकी लाशों पर चलकर जो नोट जमा fकये थे, के पूरे नfदया में बहाने पड रहे है। हाय मोदीजी ये क्या कर fदया आपने। पूरी लुfटया ही डूब गयी।
नोटबंदी के एक fदन पहले तक यानी सात नवंबर 2016तक भारत की जनता एक बहुत हा r॰खराब मानfसकता में जी रही थी, सभी लोग एक ही स्वर में यही बात कह रहे थे, fक धन ही सबवुछ है, धन ही बहुत वुछ है, धन ही जीवन है, 2016 में बडी हो रही नयी पीढी पर तो पैसे का नशा छा गया था, के बुजुगों& को सम्मान नहीं दे रहे थे, उनके धन के आडे जो भी आ रहा था, उसे वुचल रहे थे, धकेल रहे थे, ईमानदार अफसरों की हत्या तक कर रहे थे। के समझ रहे थे fक ये घर के बूढे fजतना जल्दी मर जाएँ उतना जल्दी हम पैसे का उपभोग कर सकते हैं। अपनी बेटा बेटी को चार लाख रूपया से बीस लाख रूपया देकर इंजीfनयfरंग डॉक्टरी पढा रहे थे। बूढो को एडfमट करने के सस्ते अस्पताल हो गये थे और जवानों को Öौक्चर भी हो जाये तो उनपर लाखों लुटा रहे थे। जवानों की ॰कीमत इसfलए बढ गयी थी fक के ठीक होकर पैसा कमा सकते थे, जबfक बूढे की ॰कीमत उजाड इंसान की तरह हो गयी थी, उनकी बीमारी पर लोग इनकेस्ट नहीं करते थे, क्योंfक उन्हें लंगडा घोडा समझा जाता था, और लंगडे घोड़े को तो गोली मार दी जाती है। सारे जवान लोग और उनके बच्चे,fरटायड& लोग fजनके पास पेंशन थी, बहुत सारे लोग fवदेशों में घूम रहे थे, पैसा पानी की तरह बहा रहे थे, सारे के सारे ॰कÌज& में डूबते चले जा रहे थे, लेfकन उस ॰कज& को पूरा करने के fलए दूसरा ॰कज& ले रहे थे, एक-एक बंदे के पास दस से लेकर बीस क्रेfडट काड& हो गये थे, पैसे का गोलमाल करना उनको बहुत अच्छी तरह से आ गया था। लोग बेतहाशा ॰जमीन ॰खरीदने में पैसा डाल रहे थे। ॰जेवर ॰खरीदने में पैसा डाल रहे थे, लोगों के पास चार-चार घर होने के बाद भी उन्हें चैन नहीं आ रहा था। एक एक के पास लाखों रूपया fकराया आकर भी उन्हें चैन नहीं आ रहा था।
मनुष्य का ईमान तो दो कौडी का हो गया था और पैसा ही भगवान से भी बढकर हो गया था। जबfक पुराने लोग जो लोग समाजवाद का स्वण& युग देख चुके थे, के पैसे को हाथ का मैल ही समझ रहे थे, के चेता रहे थे fक यह पैसा fकसी काम का नहीं है, यह तो जीने का बस एक साधन मात्र है। लेfकन जो लोग पैसे को हाथ का मैल कह रहे थे, उनकी बुरी तरह से शामत आयी हुई थी, 1992 के बा॰जारवाद शुरू होते ही उनको बुरी तरह से लताडा जा रहा था, आपने जीवन में क्या fकया. सात बच्चे पैदा कर fलये, सौ ग॰ज ॰जमीन तक नहीं ले सके, हमारे fलये, हमारे fलए एक मकान तक बना नहीं सके, यही ताने सुनकर बेचारे बुरी तरह से अपमाfनत होकर मरते चले गये, उनको ढंग की दवा भी नसीब नहीं हो सकी थी, क्योंfक बाद में जाकर एक हाट& का अ@ापरेशन चार लाख का हो गया था, लोगों के पास तब तक पैसा जमा नहीं हो पाया था, तो इस तरह से 1992 के बाद बा॰जारवाद में fजतने भी बूढे मरे के इलाज के अभाव में ही मर गये, जबfक तब हरेक बूढे का ढंग से इलाज हो जाता तो और वह कम से कम पाँच साल और भी जी सकता था। इधर बूढे मरते चले गये लेfकन उसी पfरवार के पास दो से लेकर चार ॰जमीन हो गयीं और दो चार मकान भी बन गये, और सारे लोग अपने बच्चों की शादी के fलए भी बीस बास लाख एडवांस में जमा कर चुके थे, लेfकन अपने बूढे माँ बाप के fलए उनके पास पैसा तक नहीं था। पैसे का नशा पूरी तरह से छा गया था, सारे लोग चfरत्रहीन हो गये, अब लोग ईमानदारी की कहानी को बबा&दी की कहानी समझकर सुनने लगे और भ्रष्टाचार की कहानी को बहुत ही म॰जेदार कहानी समझकर सुनने लगे, भ्रष्टाचाfरयों को लोग बेहद सम्मान देने लगे, उनके चरण तक छूने लगे fक उनसे वुछ धन fमल जायेगा तो हमारी भी सौ ग॰ज ॰जमीन fमल जायेगी, पहले fन॰जाम की fजस तरह से दfसयों प्रेfमकाएँ उनसे प्रेम करके ॰जमीन दान में fलया करती थी, उसी तरह नये ॰जमाने में भ्रष्टाचाfरयों की सैकडों लैलाएँ हो गयीं थीं। बूढे लोग भी लैलाओं के साथ fमलकर मुन्नी बदनाम हुई डाfलं&ग तेरे fलये गीत पर नाच रहे थे, जो बूढे अशक्त थे के रात भर इन जवान लैलाओं के साथ आfलंगन करके ही मन बहला fलया करते थे। या रगडमपट्टी से भी काम चला fलया करते थे। पैसा पंेंक तमाशा देश का fहसाब हो गया था। क्योंfक लैलाओं को भी कार, मेकअप, कपडों, गुलछरे&बा॰जी की ऐसी लत लग गयी थी fक उनका अपना पfत दफ्तर जाते ही ये भी fकटी पाटा&ी के बहाने fनकल जाया करती थी। fरसॉट& कल्चर में ये लैलाएँ fरसॉट& में रहा करती थीं और भ्रष्टाचारी उनका उपभोग fकया करते थे। अब ये सारे के सारे धंधे ठप्प पडे हुए हैं। लैलाएँ अब अपने असली पfत के साथ सात जन्मों की ॰कसमें खा रही हैं, कल की मुन्नी आज की सती साfवत्री हो गयी है। पfत सत्यवान लग रहा है।
एक साल पहले ही एक बहुत बडा भंडाफोड हुआ था। एक fगरोह आँध्र प्रदेश में पैदा हुआ जो लोगों को बहुत ही बडे ब्याज पर पैसा fदया करता था, और के पैसा नहीं लौटाते तो उनकी बीfवयों के पास जाकर कहा जाता था, fक आज रात में पैसा लौटा देना नहीं तो हमारे साथ हमfबस्तर हो जाना। नहीं तो आपके पfत को मार fदया जायेगा। दो तीन हत्याएँ भी हुईं तो बीfवयाँ घबरा गयीं के रात में हमfबस्तर हो जाया करती थी, उनसे मुफ्त में केश्यावृfत्त करवायी जाती थी। यह कांड ह॰जारों पfरवारों तक पैल गया था, fफर जब एक ईमानदार पत्नी ने यह रामकहानी सुनाई तो वो पत्नी पfतझरने में वूद कर मर गये शम& के मारे। तब जाकर यह कांड बाहर आया। इस कांड में होता क्या था fक हरेक का वीfडयो बना fलया जाता था, fजससे वह बात को दबाकर रखा करती थीं।
बहुत ही म॰जेदार f॰जंदगी हो गयी थी, हर जगह नंगापन चल रहा था। बहुए बेfटयाँ घर में बरमूडा से लेकर चfúयाँ पहन रही थीं। नाfयका ॰जीनत अमान और हेलेन की तरह हर गृfहणी, खुले पीठ के कपडे पहनने लगी, घर की बेfटयों की बहुत सारी पोल खुलती चली जा रही थी, हर दूसरे घर में तलाक पर तलाक होते ही चले जा रहे थे, क्योंfक बहुएँ यह समझने लग गयीं थीं fक मुझे ये नहीं तो दूसरा fमल जायेगा शादी में fकये गये मंत्र और धम& की बातें तो पूरी की पूरी झूठी fनकल रही थीं। ऐसा क्यों हो रहा था, क्योंfक पूरी तरह से पैसा पूरी तरह से हमारे जीवन पर हावी हो गया था, fजन चfरत्रवान लोगों के पैर छुए जाते थे, उनको लोग पीठ के नीचे लात मारने लग गये थे। पहले लोग बुजुगों& की पैर की उंगfलयों को छूकर पैर छुआ करते थे, पैसा आने के बाद के घुटने छूने लगे, यानी पैर से ऊपर आ गये, fफर उसके बाद पेट तक हाथ ल्ेकर जाकर पेट छुआ करने लगे, उसके बाद तो वो भी बंद हो गया, क्योंfक उसके पास अथाह धन आ चुका था, उनका fदमा॰ग सातकें आसमान पर चढ गया था। सावन के अँधे को जैसे हरा हरा fदखता है, उसी तरह से पैसे के धनी को सबवुछ धन से लबालब fदख रहा था, लोगों के पास करोडों रूपये की संपfत्त हो गयी थी। जबfक समाजवाद यानी 1950 से लेकर 1992 तक तक यानी 42 साल तक सारा भारत पूरी तरह से चfरत्रवान था, सारे भारत की ॰जमीनें ॰खाली पडी हुई थीं। आठ आने, ग॰ज से fमला करती थीं। सोने के दाम तो आठ सौ रूपये तोले से लेकर बहुत हुआ तीन ह॰जार रूपये तक ही था। मकान के आंगन बहुत ही बडे हुआ करते थे। लोगों को fकसी भी बात की fचंता नहीं थी, लोग बस एक ही ाEचता करते थे fक वैसे भी करके पेट भर जाये लोगों को तब कपडे भारी के पहनने की ाEचता भी नहीं थी, तब हमें याद है, हमारी दोनों भाfभयों की शादी में दोनों को बनारसी साडी लायी गयी थी, fजसका दास आठ सौ रूपये और एक ह॰जार रूपये ही था, सभी लोगों को तब fरश्तों की बहुत ही fचंता होती थी, तब नेताओं को तो भगवान की तरह पूजा जाता था। जब 1980 में मोरारजी देसाई से एक रात में संासद fमलकर कहने लगे fक हम संांसद ॰खरीदकर आपको देते हैं तो उन्होंने स॰ख्ती से मना कर fदया था, और सरकार fगर गयी थी, कई कई सारी सरकारें fसद्धांतों के नाम पर चुटकी बजाते ही fगर जाया करती थी। तब fसद्धांत बडे थे वुसा&ी की कोई औ॰कात ही नहीं थी।
तब कांग्रेस पर ही सत्ता के भूखी होने का दावा fकया जाता था। लोग उस पाटा&ी से बहुत fचढा करते थे, और उसी पाटा&ी को बहुत सारा प्यार भी fदया करते थे, क्योंfक तब वुछेक बातों को छोडकर देश ठीक-ठाक ही चला करता था। कम से कम समाजवाद को लोग बेहद पसंद fकया करते थे। बडे -बडे लोग साइfकल पर चला करते थे. नेता मीलों तक पैदल चला करते थे। हर बडा नेता सैकडों मीलों की पदयात्रा पर fनकलता था तो एक साल से अfधक का समय लग जाया करता था। तब भारत के नेता तो क्या आम आदमी में भी चfरत्र इतना गहरे तक समाया था, fक लोग बेईमानी fबल्वुल भी नहीं fकया करते थे। बाद में तो सारी जनता के fसर पर पैसे का भूत सवार हो गया था। लोग बेतहाशा धन जमा करते जा रहे थे, fजसके fलए सभी लोग अपना ईमान-धम& बेच चुके थे। बेईमानी सभी के रक्त में आ गयी थी, ईमानदार लोगों का सच, ईमानदारी, पर से भरोसा पूरी तरह से उठ गया था। सभी पर धन कमाकर जमा करके रखने का चस्का ही नहीं, नशा सा चढ गया था, मोदीजी आपने जो नोटबंदी करके गंदे लोगों का काला धन नष्ट करके उनका भला fकया है, के आगे जाकर यह बात समझ जाएँगे, अfतधन कभी भला नहीं करता, सत्यानाश ही करता है, शास्त्रों में भी यही fलखा है fक ईश्वर ने हमें अfत धन से नवा॰जा है तो दान कर दीfजए। वरना अfत धन fजसके पास होता है, उसको लोग झूठा लाड ही fदखाते हैं, fदल से कोई नहीं चाहता है, अfत धन से पराया धन और परायी नारी पर न॰जर रहती है, इसfलए इस घोर कलयुग को सतयुग में बदलने की मोदीजी की यह कोfशश बहुत ही तारीफ करने लाय॰क है। धन्यवाद मोदीजी।
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