Posts

हमारे गॉड़फॉदर मोदीजी हमारी इच्छा पूरी करेंगे

अभी हाल ही में एक रियल इस्टेट व्यापारी ने आत्महत्या कर ली, यह व्यापारी हालाँकि बहुत बड़ा बिल्डर नहीं था, लेकिन नोटबंदी के बाद पहली बार इस तरह की ख़बर सुनने में आयी कि अब अमीर लोग भी आत्महत्या करने लगे हैं। ज़मीनों के दाम घरों के दाम सारे देश में बुरी तरह से गिर चुके हैं। हालाँकि हर शहर के बीचोंबीच अभी भी दाम करोड़ों रुपये के चल रहे हैं, लोग अब प्रॉपटों ख़रीद भी रहे हैं। लेकिन आम जनता जो बहुत ही तकलीफ़ से पैसा कमाती हैं वे अब इत्मिनाम से रेट गिरने का इंतज़ार कर रहे हैं। क्योंकि एक तो मोदीजी ने गारंटी दी है कि २०२२ तक सारे भारतवासियों को मकान वे बनाकर देंगे। इससे नयी पीढ़ी में बहुत आशा जागी है, कि हमारे गॉड़फॉदर मोदीजी हमारी इच्छा पूरी करेंगे। अब हैदराबाद के शमशाबाद में छह लाख या सात लाख रुपये में पप्लैट बिक रहा है, डबल बेडरूम, वह पलैट वाला विज्ञापन तो दे रहा है, लेकिन जाकर बात करें तो वही बिल्डर गंदी, छिछोरी बातें करेगा कि इस फ्लैट का दाम सात लाख तो हैं मगर मैं यहाँ पार्किंग के पैसे अलग से लूटुंगा, चमन के अलग से लूटुंगा, काफ़ी मज़ाकिया बातें कहकर पैसे ऐंठेगा लेकिन ले देक...

आईपीएल-10 में रोहित का करिश्मा

आईपीएल-१० सिर्फ़ एक रन से मुंबई जीती, इस एक रन से खरबों रुपये की शर्त लोग हार गये, क्योंकि सभी ने पुणे पर बहुत सारा पैसा लगाया था, पहली पारी के बाद तो सारा का सारा पैसा पुणे के नाम पर लगा दिया गया था चार सौ चालीस वॉट का करंट मारा था, उस दिन जब मुंबई ने एक रन से मैच पुणे से जीत लिया था, काश, धोनी को अॉर्डर में ऊपर भेजा जाता तो पाँच गेंदों में सात रन तो वे आराम से बना लेते, लेकिन सामने अनुभवी मिचाल जॉनसन थे, जिनकी बदौलत मुंबई ने एकदम मुश्किल मैच में जीत हासिल की। मैच में सारा का सारा पैसा पुणे पर लगा था, क्योंकि वे मुंबई को तीन बार इसी बार हरा चुके थे, सो, अस्सी प्रतिशत लोग पुणे पर ही भरोसा कर रहे थे, लेकिन उस दिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था, आख़री ओवर में रोहित शर्मा के चेहरे को देखकर लग रहा था कि उन्होंने हाथ से मैच को छोड़ दिया लेकिन जैसे ही स्मिथ का कच पकड लिया गया तब आशा जागी और फील्डरों को धन्यवाद दिया जाना बदल डाला है। आईपीएल की यह दसवीं किस्त थी और नौजवान लोग इस खेल को जुनूनी हद तक चाहने लग गये हैं हर घर दुकान पर नौजवान रोज़ाना बैठकर आईपीएल को व्यापार में बदल चुके थे, कभी इस ...

बहुत सारा धन शोहरत कमाने के लिए नयी पीढ़ी अपना जीवन बर्बाद कर रही है

बहुत सारा धन और बहुत सारी शोहरत कमाने के लिए नयी पीढ़ी अपना जीवन बर्बाद कर रही आज का जवान लड़का बहुत सारा काम तो कर रहा है, लेकिन उसे मनचाहा पैसा नहीं मिल रहा है। जिससे वह बहुत ही छटपटा रहा है। जवान लोग जवान होते ही विदेश भाग रहे हैं, बेचारे वहाँ पर जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। वहाँ वे सोलह से अट्ठारह घंटे मेहनत कर रहे हैं तब जाकर उनका मनचाहा पैसा मिल रहा है, लेकिन फिर उनपर पैसे का भूत इस क़दर सवार हो रहा है कि वे अपना जीवन जीना ही भूल जाया करते हैं, दिन-रात पैसे की हाय-हाय में ही सारा जीवन गुजार रहे हैं। बेचारे वहाँ पर अपना बच्चा चला जाता है जब वह केवल २२ साल का होता है, और वहाँ से कमाना शुरू करता है तो वह घर वालों की पूरी तमन्नायें पूरी करने करने के बाद तीस या पैंतीस साल में जाकर शादी करता है, और अंत में वह भारत आने से मना कर देता है, इसलिए बहुत सारा पैसा कमाता है तो वहीं का होकर रह जाता है, वह उस तरह के वर्क कल्चर में पूरी तरह से समा जाता है, फिर उसी में उसका सारा जीवन रम जाया करता है। इधर भारत में रहने वाला जवान भी बहुत ही परेशान हैं, आजकल अमीर घर के बच्चे ज़्यादा प...

पाकिस्तान और हिंदुस्तान मुसलमानों का हो जायेगा, हिंदू भजन गाते रह जाएँगे

Image
डॉ. किशोरीलाल व्यास दक्षिण समाचार के १ फ़रवरी  २०१७ के अंक में शकील अख़्तर के कश्मीर पर विचार पर पढ़े, इस लेख से अलगाववाद की बू आती है। हिज़बुल मुजाहिदीन के शसस्त्र बुरहानवानी के मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी मं उसके जनाज़े में लोगों की भीड़ उमड़ी तथा प्रदर्शन होते रहे, सुरक्षाबलों तथा पुलिस पर जो पथराव होता रहा, वह क्या सूचित करता है। पाकिस्तान के झंडे लहराना, आई.एस.आई की पताकाएँ फहराना किस बात का संकेत हैं। कश्मीरी युवकों पर एक भी गोली चली, न एक भी युवक मारा गया। घुसपैठिये से लोहा लेते सैनिकों पर कश्मीरियों ने पत्थर बरसाये, कई स्कूल जला डाले। लेकिन हमारे सुरक्षाबल हाथ बाँधे हुए लड़ाई लड़ रहे हैं। अलगाववादियों के पत्थरों से गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। फिर भी न गोली चला रहे हैं, न लाठी। अगर इस्त्राइल या जर्मनी में ऐसी घटना घटती तो बंदूक की गोली से सभी पत्थरबाज़ों को उडा दिया जाता। आपके लेखक शकील अख़्तर ने कहा है-यह गतिरोध की स्थिति है। कश्मीरी युवाओं के रास्ते बंद हैं। जबकि पाकिस्तान एक ओर से आतंकवादी भेजता है, दूसरी ओर बातचीत की पेशकश करता है। एक ओर बम विस्फोटों के षड...

हिंदुस्तान को बेहतर कर रहे है मोदी

पिछले चार साल से मैं हिंदी मिलाप में छप रहे रेड एलर्ट कॉलम को रोज़ाना पढ़ता रहा हूँ, इसमें आत्महत्याएँ और हत्याओं के बारे में ख़बरें आया करती हैं। नोटबंदी के पहले हरदिन कम से कम दो लोग या चार लोग आत्महत्या करते थे, वह भी पैसे की तंगी के कारण आत्महत्या करते थे, इसमें अधिकतर लोग कर्जदेनेवालों के सताये जाने के कारण आत्महत्या करते थे। कर्ज देने वाले इनको दस प्रतिशत ब्याज पर पैसा दिया करते थे और रोज़ाना पैसे लेने छाती पर बैठ जाया करते थे, पैसे न दो तो हलक में हाथ डालकर पैसे निकालने जितनी गंदीगालियाँ दिया करते थे। हमारी आत्मा भी तड़प जाये इस तरह से सताया करते थे। मोहल्ले के बीचोंबीच ठहराकर चप्पलों से मारा करते थे, हर सप्ताह इस तरह की ख़बरों के माध्यम से कम से कम हर सप्ताह अट्ठारह लोगों के आत्महत्या करने की ख़बर छपाकरती थी। मगर अब नोटबंदी के बाद सप्ताह में केवल दो या तीन आत्महत्याएँ ही पैसे की तंगी के कारण हो रही हैं। मोदीजी ने इन बेसहारा ग़रीब लोगों को जो भारी ब्याज पर पैसा उधार लेकर आत्महत्या करते थे, उन लोगों को बिना सेक्यूरिटी के एक लाख रुपये लोन देना शुरू किया जिससे उन्होंने सबसे...

नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा

Image
नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा नोटबंदी नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा एक छोटी सी ख़ुशख़बरी मोदीजी नेदी है कि पेट्रोल के दामों में पाँच रुपये की कमी कर दी है। अब जो लोग रोज़ानासौ किलोमीटर गाड़ी चलाते हैं वे बीस रुपया रोज़ बचा सकते हैं। कारवाले ज़्यादा बचा सकते हैं। यानी छह सौ रुपये महीने के बचा सकते हैं। इसी तरह से महँगाई को कम करते चले जाना है, तभी आम आदमी चैन की साँस ले सकते हैं। नोटबंदी होते ही सबसे पहले किसानों ने सब्जी और अनाज के दाम बहुत ही ईमानदारी से कम कर दिये हैं केवल किसान ही देश का सबसे ईमानदार इंसान है, किसान अपना सबकुछ लुटा देता है लेकिन आम आदमी का साथ हमेशा देता रहा है, आज़ादी के पहले से ही किसान ईमानदारी से जिया है। बाक़ीय कुछ सोने चाँदी की दुकान वाले, कुछ रियल इस्टेट वाले, कुछ शेयर बाज़ार वाले, कुछ महँगे स्कूल के फ़ीस वाले, कुछ महँगे अस्पताल वाले, ये सारे के सारे महाशय एक नंबर के बेईमान और बट्टेबाज़ होते हैं, इनकी गेंडे की चमड़ी पता नहीं कब इंसान की चमड़ी बनेगी। हमें मोदीजी पर पूरा भर...

बूढ़े लोग नयी पीडी से घबरा रहे है

बूढे माँ-बाप की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है या वे नये ज़माने से घबरा रहे हैं ? एक बूढे व्यक्ति ने कहा कि मैंने 70 साल तक नौकरी की। घर के पाँच बच्चों को पाला-पोसा उनके लायक बनाया, बडा घर बनाया, पाँच बेडरूम का। अपने घर को आगे बढाया। अपना मकान आज मैंने अपने बेटों के नाम पर कर दिया है। अब अचानक तबीयत बिगड जाने से घर पर बैठा हुआ हूँ। घर में मेरे से कोई बात तक नहीं करता है। चौबीस घंटों में बेटे-बहू मेरे से दो या तीन वाक्‌य ही बात करते हैं। वह भी मतलब की बात रही तो करते हैं। कोई रिश्तेदार आ जाता है तभी मेरे से बात किया करते हैं। कुछ कहता हूँ तो डाँट देते हैं, अब मैं आ°ड©र देने की हालत में तो बिल्‌कुल नहीं हूँ, हाँ, चुपचाप बच्चों का आ°ड©र सुन लेता हूँ, नहीं सुनो तो बुरी तरह से डाँट दिया करते हैं। अपने बारे में कुछ बुरा सुनता हूँ तो बुरा लगता है, कुछ बुरा देखता हूँ तो बुरा लगता है। मैंने तय कर लिया है कि मैं अपनी आँख बंद कर लूँगा, कान से सुनना बंद कर दूँगा। मुँह से कुछ भी कहना बंद कर दूँगा। ये तीनों खोलूँगा तो दुख मुझे ही होगा। मुँह से कुछ कहूँगा तो डाँट पडेगी, कुछ बुरा सुनूँगा तो सा...

नौजवानों में जलन कुंठा बहुत बढ गयी है

नौजवानों में कोई महीने के 8 हज़ार कमा रहा है तो कोई महीने के 1 लाख, इससे उनके बीच जलन-बेचैनी-कुंठा बहुत बढ गयी है  पहले बिरादरी के 500 नौजवानों में कोई एक डॉक्‌टर-इंजीनियर बना करता था। लेकिन अब तो हर दूसरे परिवार में आईटी वाला बच्चा भी पैदा हो रहा है। यहाँ अपने देश में पैसा नहीं मिल रहा है तो ये लोग विदेश भाग रहे हैं। हाल ही में एक पिता मिल गये उन्होंने अपने लडके पर 20 लाख रुपया खर्च किया वह भी कर्ज़ा लेकर। तब भी वह नौकरी ढूँढ रहा है। बेचारे पिता इसी आस में कर्ज़ का ब्याज भरते जा रहे हैं कि बच्चा आज नहीं तो कल एक लाख की नौकरी पा लेगा। लोग दोक्टोरी, इंजीनियरिंग,एम.बी.ए. बच्चे से करवा रहे हैं तो एम.बी.ए. भारत में 2 लाख में भी हो रहा है तो विदेश में यही पढाई 20 लाख रुपये में भी हो रही है। लोग ज्यादा पैसा खर्च करके बच्चे को बहुत ही ऊँचा मुकाम दिलवाना चाह रहे हैं।

माता पिता की लाशों पर घर बनाया

कई लोगों ने माता-पिता, भाई-बहन की छाती को रौंदकर, उनकी लाशों पर चलकर अपने मकान बनाये है  एक घर में पिता गुज़र गये। माता रह गयी। माता ने 8 हज़ार की नौकरी कर ली। वह बच्चों को पाल रही थी। बच्चे बडे हुए। बच्चों ने कमाना शुरू किया तो वे माता को एक भी पैसा नहीं देते थे। बडा बेटा एक भी पैसा नहीं देता था तो छोटे ने कहा कि बडा नहीं देता है तो मैं क्‌यों दूँ? बडा बेटा कहता था कि माता मुझे तन™वाह नहीं मिलती मैं अभी ट्रेिनग पर हूँ न, तीन साल तो ट्रेqनग में ही बिना तन™वाह के निकल जाएँगे। छोटे ने कहा मेरे व्यापार में नुकसान हो रहा है। मैं उस नुकसान को बहुत ही मुशि्कल से कवर कर पा रहा हूँ, तुमसे ही तो उल्‌टे एक-एक हज़ार लेकर लोगों को नुकसान भर रहा हूँ।

नोटबंदी के बाद रहन-सहन में फर्क आ गया है

Image
नोटबंदी के बाद लोगों के रहन-सहन में फर्क आ गया है, लोगों के पास पैसे की कमी बहुत हो गयी है, हालात बहुत ही बद से बदतर होते चले जा रहे हैं  नोटबंदी नोटबंदी के बाद दो महीनों तक तो लोगों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। जो लोग प्राइवेट नौकरी कर रहे थे, उनकी नौकरी खतरे में आ गयी थी, कईयों की नौकरी चली गयी, लोग बस बिना कुछ किये दो महीने तक जिंदगी गुजार रहे थे। व्यापारियें को कहीं से भी पेमेंट नहीं आ रहे थे। सारे होटलों में किसी तरह का ग्राहक ही नहीं था, सिनेमाघरों में भीड़ नहीं थी, लोगों के पास बड़ा इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे, ऑटो खाली जा रहे थे, कारों की सवारी कोई नहीं कर रहा था। जबकि करीब एक लाख युवाओं ने ओला, ऊबर कार वंपनियों के भरोसे ब्याज पर कारें खरीदीं थीं, उनकी हालत दो महीने तक बद से बदतर हो गयी थी। और आज तो हालात बद से बदतर हो गयी है, क्योंकि लोग अब अपनी लैविश यानी अमीरों जैसी fæजदगी जीने जैसे लायक ही नहीं रहे  गये हैं, पहले ऑटो वाला अपने दो बच्चों को महँगी फीस के स्कृल में पढ़ा रहा था। नोटबंदी के बाद उसके पास बच्चों की फीस भरने के लाले पड़ गये। उस...

मोदी समाजवाद ला सकते हैं

Image
आज मोदीजी का रूतबा इतना बढ़ गया है कि वे भारत से बाजारवाद को खत्म करके समाजवाद ला सकते हैं और पूरी जनता आँख बंद करके उनका पूरा सहयोग करेगी भारत की सारी जनता ने हर बार समाजवाद को ही गले से लगाया है, यहाँ पर पूँजीपतियों को कभी सराहा नहीं गया है। नेहरूजी-इंदिराजी और मोदीजी के सारे समय में समाजवाद ही देश में सिर उठाकर चला है। समाजवाद में सारे लोग अपना स्वाथर्र नहीं देखते थे बलि्क समाज का भला पहले चाहते हैं। अपने बेटे को जितना चाहते हैं पड़ोसी के बच्चे को उतना ही चाहते हैं, या कहिए कि पड़ोसी और रिश्तेदार के बच्चे को अपने बच्चे से ज्यादा चाहते हैं। जबकि बाजारवाद जो लगातार आज देश में चल रहा है। पिछले 24 साल से चल रहा है, उसमें स्वाथर्र पूरी तरह से बढ़ गया है। बाæजारवाद ने सबसे बड़ी बुरी आदत हर आदमी में यही दी है कि लोग अपनी ही तारीफ करने से नहीं थकते हैं और दूसरों की बुराई करने से भी नहीं थकते हैं। नेहपालक भी घोर स्वाथर्र पालक हो जाते हैं। इस बाजारवाद का सबसे बड़ा नारा यही रहा है कि अपना काम है बनता भाड़ जाये जनता। ऐसा होने से यह हुआ कि जनता का एक वगर्र तो पूरी तरह से गुलछरेर्रबाजी में लग गया, ल...

Labels

Show more