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Showing posts from January, 2017

मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है

मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय, इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है, लोग होटलबाज़ी से ऊबकर घर की ओर लौट रहे हैं  नोटबंदी करने से नयी पीढ़ी में फ़ैशनबाज़ी, होटलबाज़ी, गुलछर्रेबाज़ी में बहुत कमी हो गयी है, नयी पीढ़ी नोटों की सप्लाई नहीं होने की वजह से सालों के बाद घरों के भीतर दिखाई दे रहे हैं| यह परिवारो के लिए बहुत ही अच्छा संदेश दिखाई दिया| लोगों के पास सिनेमा देखने के लिए चार-चार हज़ार रुपये नहीं दिखाई दिये|  लोगों को तनख़्वाह भी बहुत ही धीरे-धीरे करके मिलने लगी थी| कुल मिलाकर कुछ समय तक रुक कर जीवन के बारे में सोचने का समय भी लोगों को मिला और नोटों की अहमियत लोगों को पता चली| लेकिन एक बात तो तय है कि लोग जब शॉपिंगबाज़ी के बारे में नहीं सोचते हैं तो देश के लिए सोचने लग जाते हैं, और इस समय मोदीजी ने देश को सबसे अच्छा माहौल दिया है| कहीं पर भी सांप्रदायिकता नहीं है, कोई भी हिंदू-मुस्लिम के अलग-अलग होने की बात तक ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| लोग जातिवाद की बात पर भी ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| इस समय शेयर बाज़ार बहुत ही अच्छे तरीक़े से चल रहा है| लगभग २७ हज़ार के पार चल रहा है| यानी आपके पास पैसा है तो

नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में बहुत यादगार रोल निभाया

शाहरुख़ ख़ान से बेहतर और बहुत यादगार रोल निभाया है नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में  रईस फ़िल्म वैसे तो एक मसाला फिल्म की तरह ही है, इसमें शाहरुख़ ने जैसा अभिनय किया है, उससे कहीं बेहतर अभिनय अमिताभ बच्चन ने दीवार फ़िल्म में किया था, अब जाकर दीवार की अहमियत सामने आ रही है| लेकिन यहॉं रईस में शाहरुख़ ख़ान ने अतुल कुलकर्णी को मारते समय जो रो-रोकर उसकी हत्या करने का शांत अभिनय किया है वह लाजवाब है और दूसरे एक दृश्य में ग़ुस्से में फ़ोन पटकने का दृश्य है वह भी अति उत्तम है| अब आते हैं लिटिल मास्टर नवाज़ुद्दीन भाई पर|  नवाज़ का न चेहरा है, नक़द है, न काठी, न शरीर से बलवान, लेकिन एक्टिंग की मशीन| रईस फ़िल्म में निर्देशक राहुल ढोलकिया ने हालॉंकि नवाज़ को लंबे स्क्रीनप्ले नहीं दिये,ज़्यादा बाज़ी मार सकते थे| सीधे कट टू कट लगभग क्लोज़ अप दृश्य दिये हैं, जबकि शाहरुख़ को लंबे-लंबे स्क्रीनप्ले दिये हैं| लेकिन उनमें भी कम स्कोप रहने पर भी नवाज़ भाई ने अभिनय में जो जादू जगाया है, वह कम से कम कहें तो बहुत जादुई है| हर दृश्य को असीम गहराई से किया है, राहुल ने उन्हें कैमरा प्लेसमेंट बहुत ही अच्छी जगह दिये हैं हर दृश्य मे

नोटबंदी का बहुत फ़ायदा हुआ है

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नोटबंदी का बहुत फ़ायदा हुआ है लोगों का ख़ून चूस कर धन संचय करने की आदत कम हुई है, अब सरकार को वंचित लोगों का भला करना चाहिए   नोटबंदी के बाद महँगाई आश्‍चर्यजनक तरीक़े से कम हो गयी है, टमाटर पॉंच रुपये किलो हो गये थे, सड़कों पर फेंके जा रहे हैं, टमाटर सस्ते इसलिए हो गये कि दरअसल इसका सही दाम यही हुआ करता था, ये तो बिचौलिये थे जो इसका काम दाम बहुत ज़्यादा करने जनता को लूटा करते थे, अरहर-तुअर की दाल के दाम आश्‍चर्यजनक तरीक़े से कैसे नीचे आ गये, क्योंकि नोटबंदी के कारण लोगों ने महँगी दाल ख़रीदना बंद कर दिया था, तो व्यापारियों ने सोचा कि इतनी महँगी दाल बेचेंगे तो कोई लेगा नहीं, लोग दूसरी दालें खा लेंगे, और हमारी अरहर की दुकानें बंद हो जाएँगी, फिर लोगों ने या कहिए कालाबाज़ारियों ने झक मारकर नोटबंदी के कारण दाल को सस्ती कर दी और आज दाल सत्तर रुपये से लेकर केवल नब्बे रुपये में बेच रहे हैं, जबकि नोटबंदी के पहले यही दाल १६० रुपये से लेकर २५० रुपये किलो तक बिक रही थी| कालाबाज़ारी लोग अब लहसुन के दाम बढ़ा रहे हैं, ये वे ही कालाबाज़ारी करने वाले लोग है जो बाज़ार में किसी न किसी तरह का षड़यंत्र किया करत

मोदीजी क्या व्यापारियों को पेंशन दी जायेगी? - EDITOR NEERAJ KUMAR

नोटबंदी की वजह से दो महीने के भीतर कई व्यापारियों की दुकानें व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं, क्या व्यापारियों को पेंशन दी जायेगी?  नोटबंदी में सारे देश की जनता ने मोदीजी का भरपूर सहयोग दिया है| मोदीजी अब इस समय उन लोगों की ओर ध्यान न दें जो कालाधन को सफ़ेद करने में सफ़ल रहे| क्योंकि करोड़ों लोगों के दिल में भ्रष्टाचार रग-रग में बस चुका था| लोगों में धारणा घर कर गयी थी कि पैसा होगा तभी इज़्ज़त होगी| रिक्शावाला से लेकर अरबपति सभी के लिए पैसा ही भगवान हो गया था| और इन बीस साल में सच में पैसा ही भगवान हो चुका था, पैसा है तो आप भगवान नहीं तो हैवान  कहला रहा था, इंसान| इस ज़माने में जो भ्रष्ट लोग हो गये थे, उनके आगे-पीछे सारी दुनिया चल रही थी, अगर आपने कहा कि मैं ईमानदार हूँ, तो लोग आपको गालियॉं दे रहे थे| पूरी तरह से उल्टी गंगा बह रही थी|  लोगों ने ईमानदारी में जीकर देखा तो उसमें नसीहतें, गालियॉं, ज़लालत, हिकारत, मुफ़लिसी, यही मिल रहा था| बहुत अच्छा हुआ कि मोदीजी ने नोटबंदी कर दी, इससे लोगों को एहसास तो हो गया कि जो पैसा भगवान माना जाता था, उसी पैसों पर चोंट की जा सकती है| कुछ लोग

क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है - EDITOR NEERAJ KUMAR

क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है या नहीं, हम नहीं लेते तो बच्चे हमें ताने मारते हैं कि आपने ईमानदारी की ज़िंदगी जीकर क्या हासिल किया? आजकल सबसे बड़ा पाप है तो वह यह है कि हम ईमानदारी से जी रहे हैं| आज ईमानदार आदमी के पास क्या है, दस साल पुराना ़िफ्रज, छह साल पुराना बत्तीस इंच का टीवी, एक कार पुरानी या नयी, दो स्कूटर, एक छोटा सा मकान, या नहीं तो एक किराये का मकान| जबकि दुनिया बहुत ही आगे निकल चुकी है| लोगों के पास बहुत सारे पैसे हो गये हैं| पचास इंच का टीवी, एक घर में तीन तीन कारें, हर कमरे में पचास इंच का टीवी, पचास हज़ार के तीन मोबाइल, कम से कम दो करोड़ का मकान, उसके अलावा तीन और मकान| लोग अपने रिश्तेदारों की तरफ़ देखते हैं तो कहते हैं वो लोग कितना आगे निकल गये, हम पीछे ही रह गये|  बहुत सारे लोगों ने अपनी ससुराल से एक भी पैसा नहीं लिया| और ससुराल वाले इस बात की तारीफ़ भी नहीं करते हैं वे कहते हैं कि आप गधे थे जो ससुराल से पैसा नहीं लिया| सभी लोग लेते हैं, आप ईमानदारी में ही मरते रह गये, लोगों ने तो अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए ससुराल से पैसे लिए और आज वे अपने बच्चों को

महिलाएँ पैसा कमाने का बहुत सारा टेंशन ले रही हैं - EDITOR NEERAJ KUMAR

महिलाएँ पैसा कमाने का बहुत सारा टेंशन अपने पर ले रही हैं जिससे उनकी मौत जवानी में ही हो जा रही है, जबकि पहले मर्द पहले मरते थे और महिलाएँ बहुत जिया करती थीं पैसे के लोभ-हिरस के कारण महिलाओं का जीवन बहुत ही टेंशन से भरपूर हो चुका है, एक केवल पैंतीस साल की महिला ब्यूटीपार्लर का काम सिखाने का काम तीस लड़कियों को सिखाया करती थी| तीस लड़कियों के साथ उसने क्रिसमस की पार्टी मनायी| क्रिसमस के दिन उसने बहुत सारा केक खा लिया| उसे पता था कि उसे शुगर की बीमारी है, और वह शुगर की गोलियों में एक हज़ार रुपया लग रहा है, इसलिए वह गोलियॉं भी नहीं खा रही थी, वह सोच रही थी कि मीठा कम खाऊँगी तो शुगर कंट्रोल में रहेगी| लेकिन केक खाते समय शुगर के बारे में सोचना बंद कर दिया, उसके यह बात ध्यान से ही निकल गयी थी| उस दिन रात में केक खाने से शुगर शूटअप हो गयी और बेहोश होकर गिर गयी| और पॉंच मिनट के भीतर ही उसकी अस्पताल ले जाते समय मौत हो गयी| सो, उस केवल पैंतीस साल की महिला की मौत केवल एक दिन के पार्टी के मनाने और बहुत मीठा खाने से मौत हो गयी|  उसकी चार साल और आठ साल की दो बेटियॉं हैं| अब उनकी ज़िंदगियों का क्या

आज के बाद लोगों को विश्‍वास नहीं होगा कि धौनी जैसा चमत्कारिक कप्तान भारत के लिए क्रिकेट खेला था! - EDITOR NEERAJ KUMAR

आज के बाद लोगों को विश्‍वास नहीं होगा कि धौनी जैसा चमत्कारिक कप्तान भारत के लिए क्रिकेट खेला था! औने पौने दे घुमा के, खर्चन खुरचन दे घुमा, जुटा हौसला, बदल फ़ैसला....दे घुमा के घुमा के दे घुमा के... यह गीत २०११ के विश्‍वकप का भक्ति गीत था, और इस गीत को पूरी तरह से दे घुमा देने वाला जुमला, हक़ीक़त में बदलने का जज़्बा धौनी की कप्तानी में ही देखा गया| यह बहुत ही बड़ी जीत एक जीती जागती सच्चाई के रूप में दिखाई दिया| और हम विश्‍वकप जीतकर २०११ के विश्‍वविजेता बने थे| अपने समय के दि ग्रेट फ़िनिशर (मैच बल्लेबाज़ी से  आसानी से ख़त्म कर लेना) और अपने समय के बेहतरीन कप्तान के रूप में उन्हें आँका जाना बेशक हमारे लिए शान रही और दुनिया के लिए मजबूरी भी रही| विश्‍वकप जीतना, २०-२० कप जीतना और चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीतने का आला दर्जे का कप्तानी कीर्तिमान केवल और केवल इन्हीं महाशय को जाता है| एक जादूगर कप्तान और एक अभेद्य बल्लेबाज़ के रूप में एकदिनी मैच में धौनी के भारतीय टीम में आने के पहले और बाद में दो बातें बदल गयीं, उनके टीम में आने के पहले हम सभी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का ब्लडप्रेशर क्रिकेट मैच देखते सम

आज हर इंसानकिसी न किसी बड़े क़र्ज़े या बड़े ख़र्चे में पड़ गया है - EDITOR NEERAJ KUMAR

आज हर दूसरा इंसान या कहिए हरेक इंसान किसी न किसी बड़े क़र्ज़े या बड़े ख़र्चे में पड़ गया है, वहॉं से वह निकल ही नहीं पा रहा है, क़रीब दस से पंद्रह साल उसके उसी में फँस जा रहे हैं जिससे उसका जीना हराम हो गया है टीवी, अख़बार,मोबाइल, दोस्ती, रिश्तेदार इन सब लोगों से आजकल दूर रहकर ही अपनी जान बचायी जा सकती है| टीवी देखते हैं तो बड़े-बड़े बंगले या फ़्लैट ख़रीदने के विज्ञापन दिखाये जाते हैं| हम किसी बिल्डर के पास जाते हैं तो वह कहता है कि हम आपको तीन साल के भीतर एक आलीशान फ़्लैट बनाकर देते हैं फ़्लैट की क़ीमत चालीस लाख रुपया है, आप अभी हमें बीस लाख रुपया दे दीजिए, बाक़ी के बीस लाख फ़्लैट में गृहप्रवेश की पूजा के दिन दे दीजिए| अगर हम बीस लाख रुपये दे देते हैं तो वह बिल्डर हमारा घर तीन साल से भीतर में बनाकर नहीं देता है| वह उसमें पॉंच साल से लेकर आठ साल लगा देता हैं| जबकि बीस लाख रुपया देकर हम फँस जाते हैं| और इंतज़ार में, नया फ़्लैट ख़रीदने के इंतज़ार में हमारी माता मर जाती है, पिता मर जाते हैं, भाई मर जाता है लेकिन वह फ़्लैट बनकर तैयार ही नहीं हो पाता है| और जब हो पाता है, तब तक हमारे बाल सफ़ेद हो जाते हैं, भा

क्या अपने ही साले, जीजा और बहन की प्रगति नहीं चाहते साले ऐसा क्यों करते हैं?

मेरे से ज़्यादा पैसा मेरे किसी भी रिश्तेदार के पास नहीं होना चाहिए| ऐसी बात आजकल हरेक के मन में हो गयी है| कोई किसी से आगे बढ़ रहा है यह किसी से देखा नहीं जा रहा है| कोई किसी के पास मर जाता है तो यही सोचा जाता है कि अब वो इंसान तो मर गया अब देखते हैं उसका घर कैसे चलता है| फिर उस परिवार की मदद तक नहीं की जाती है, बैठकर सारे लोग तमाशा ही देखते रहते हैं कि वह परिवार कैसे ग़रीबी में पल रहा है, उनकी ग़रीबी देखकर उनको बहुत ही मज़ा आता रहता है|   लोग पहले तो यह चाहते हैं कि मेरे सगे भाई के पास मेरे से पैसा कम होना चाहिए| भाई के बच्चे पैसे पैसे को मोहताज होते रहना चाहिए, जबकि मेरे बच्चे राज करते रहने चाहिए| और जिसके पास पैसा कम हो वह भाई तड़पता रहना चाहिए| ऐसा लोग चाहते हैं फिर जो लोग ऐसा चाहते हैं कि वे लोग भाई की बर्बादी के बाद अपने जीजा या साले की बर्बादी का सोचते हैं| जीजा चाहता है साले के पास पैसा नहीं होना चाहिए और साला चाहता है कि मेरे जीजा के पास पैसा कम से कम होना चाहिए और जीजा साले के टुकड़ों पर पलता रहना चाहिए| यह तो बहुत अजीब बात है कि साला अपनी बहन के घर को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाह

ऐसा लग रहा है कि मोदीजी के हाथ में देश सुरक्षित ही नहीं चरित्रवान बन रहा है

ऐसा लग रहा है कि मोदीजी के हाथ में देश सुरक्षित ही नहीं चरित्रवान बन रहा है, महँगाई कम हो रही है, पेट्रोल के दाम कम होंगे तो बेहतर होगा, ये गांधी,जेपी और लोहिया का देश बनना चाहिए, जहॉं धन नहीं चरित्र ऊँचा होना चाहिए, समाजवादी इसी तरह का देेश चाहते हैं   कुछ गुजरातियों से मैंने पूछा कि हमारे नरेंद्र दामोदर मोदी किस तरह के व्यक्ति हैं? सभी का कहना रहा कि वह वचन के पक्के हैं और उनके कार्य में एक तरह का रहस्य रहता है, वे जो ठान लेते हैं वो करके दिखाते हैं, उन्होंने पहले से हर दूसरा काम जोखिम उठाकर किया है| सो, इस तरह के प्रधानमंत्री को हम सभी ने मिलकर ढाई साल पहले चुना था |  नोटबंदी से देश को बहुत बड़ा अच्छा झटका ये लगा है कि लोगों को भारत का पॉंच हज़ार साल पुराना समय याद आ गया है| लोग कह रहे हैं कि पहले भारत के गॉंवों में ब्राह्मण लोगों की हर बात सुनी-अमल में लायी जाती थी, साथ ही शिक्षक और वैद्य की बात भी गंभीरता से ली जाती थी, और  दूसरी ओर ज़मींदारों का धन से बैभव से राज रहा करता था, पूरा दबदबा रहा करता था| ज़मींदार सभी को दबाकर रखा करते थे और ब्राह्मण लोग जो अच्छे चरित्र की बातें कहा

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