ऐसा लग रहा है कि मोदीजी के हाथ में देश सुरक्षित ही नहीं चरित्रवान बन रहा है

ऐसा लग रहा है कि मोदीजी के हाथ में देश सुरक्षित ही नहीं चरित्रवान बन रहा है, महँगाई कम हो रही है, पेट्रोल के दाम कम होंगे तो बेहतर होगा, ये गांधी,जेपी और लोहिया का देश बनना चाहिए, जहॉं धन नहीं चरित्र ऊँचा होना चाहिए, समाजवादी इसी तरह का देेश चाहते हैं 

कुछ गुजरातियों से मैंने पूछा कि हमारे नरेंद्र दामोदर मोदी किस तरह के व्यक्ति हैं? सभी का कहना रहा कि वह वचन के पक्के हैं और उनके कार्य में एक तरह का रहस्य रहता है, वे जो ठान लेते हैं वो करके दिखाते हैं, उन्होंने पहले से हर दूसरा काम जोखिम उठाकर किया है| सो, इस तरह के प्रधानमंत्री को हम सभी ने मिलकर ढाई साल पहले चुना था

नोटबंदी से देश को बहुत बड़ा अच्छा झटका ये लगा है कि लोगों को भारत का पॉंच हज़ार साल पुराना समय याद आ गया है| लोग कह रहे हैं कि पहले भारत के गॉंवों में ब्राह्मण लोगों की हर बात सुनी-अमल में लायी जाती थी, साथ ही शिक्षक और वैद्य की बात भी गंभीरता से ली जाती थी, और  दूसरी ओर ज़मींदारों का धन से बैभव से राज रहा करता था, पूरा दबदबा रहा करता था| ज़मींदार सभी को दबाकर रखा करते थे और ब्राह्मण लोग जो अच्छे चरित्र की बातें कहा करते थे उसे गॉंव के सारे लोग सुना करते थे| तब गॉंव के लोग पुराने कैसे भी कपड़े पहना करते थे लेकिन उनका चरित्र बेहद लगभग ईश्‍वर तुल्य होता था| कोई भ्रष्टाचार नहीं, मरते मर जाते थे, लेकिन ईमानदारी के सौ फ़ीसदी पक्के लोग थे|

यह भी तथ्य रहा कि ब्राह्मण लोग बहुत संपन्न और समर्थ नहीं थे| वे सदाचार की बात करते थे, लेकिन किसी को पीछे से लूटते नहीं थे, वे भी सादा जीवन जिया करते थे|  एक विशिष्ट बात तब यह होती थी कि जो पैसे से संपन्न लोग थे, उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा नहीं जाता था, उन्हें व्यापारी और बनिया इत्यादि कहकर उन्हें भी मुख्यधारा से जोड़ा नहीं जाता था| उनकी किसी भी बात का सम्मान भी नहीं किया जाता था|  उनसे यही कहा जाता था कि वे ब्राह्मण की बातें सुनें और अपनी बात न रखें| उन्हें अलग-थलग ही रखकर उनके राय-मशविरा भी नहीं किया जाता था| तब व्यापारी से लोग घबराया करते थे कि इनके नज़दीक आने से लोग धन-लोलुपता की ओर न बढ़ जाएँ और धन से चरित्र बिगड़ने का भय सभी को लगा रहता था, चरित्र ही तब सबकुछ था, चरित्रवान लोगों का आशीर्वाद लेने के लिए धनवान व्यक्ति के साथ-साथ सारा गॉंव आया जाया करता था| धन दूसरी या तीसरे श्रेणी में रखा जाता था| इसीलिए तब धन का महत्त्व नहीं था, जो किसान अनाज उगाता वही सारा गॉंव खाया करता था, और किसानी करने वाले ही जनता का सबसे बड़ा हिस्सा रहा करता था| पीढ़ियों की पीढ़ियॉं किसानी ही करती थीं, कोई अपना गॉंव छोड़कर सैकड़ों वर्षों तक बाहर नहीं जाता था| अनाज की कमी नहीं होती थी, और हर छोटे अवसर पर पूरे गॉंव को दावत दी जाती थी| ये तो सरकारी नौकरियॉं निकलने के बाद लोग अपने पैतृक गॉंव को छोड़ने लगे थे|
धन से ख़रीदी जाने वाली चीज़ जो परिवार को धनी बनाती थी, उसे सरकार ही बहुत देरी से मुहैया कराती थी, जैसे एक टेलीफ़ोन लगने में कम से कम पॉंच से दस साल लग जाते थे, एक कार आने में दस साल लग जाया करते थे| घर बनाने के लिए जो लोन दिये जाने थे, उन्हें पास होनेे में वर्षों गुज़र जाया करते थे| तब एयरकंडीशन की ज़रूरत लोग महसूस ही नहीं करते थे| ऐसे में धनी लोग रौब से नहीं रहा करते थे, बल्कि सभी सादा जीवन उच्च विचार की ही तरह जीवन जिया करते थे|
हुआ यह कि बाज़ारवाद के आने के बाद यही व्यापारी वर्ग देश का नीति निर्धारक हो गया| यही धनी लोग मुख्यधारा से जुड़ गये, राजनीतिज्ञों ने उनको सिर पर बैठा लिया, सत्ता में आते ही राजनीतिज्ञ उनके दरवाज़े पर जाने लगे, सत्ता में आने से पहले भी चुनाव का  ख़र्च भी उन्हीं से लिया गया| वे ठहरे व्यापारी देंगे तो सूद समेत लेंगे, सो, राजनीतिज्ञ उनके ग़ुलाम बनने लग गये|  यह दौर मोरारजी देसाई के हटनेे के बाद से शुरू हो गया था| यानी १९८० से ये चलन शुरू हुआ कि राजनीतिज्ञों ने उद्योगपतियों से हाथ मिलाया और यहीं से पूरे देश का चरित्र तेज़ी से बदलने लगा| उद्योगपतियों का चरित्र कभी भी ठीक नहीं रहता है, किसी भी समय, चाहे अच्छा हो या बुरा हो वो अपने ही लाभ का सोचता है, उसके लाभ के लिए वह देश को भी बर्बाद करने से पीछे नहीं हटता है, ठीक इसीलिए पुराने समय में व्यापारियों को इसीलिए जनता अपने से दूर रखा करती थी|
आज के समय में देश के अन्ना हज़ारे, वरवर राव, मेधा पाटकर, बाबा रामदेव को कहीं कोने में रख दिया गया| रामदेव तो राष्ट्रपति बनाये जाने चाहिए थे, लेकिन रामदेवजी ने ही तेल साबुल बेचना शुरू कर दिया तो वे उस सूची से बाहर कर दिये जाएँ तो ही बेहतर होगा| और अंबानियों, टाटा, बिरला, ऐसों को सिर पर चढ़ा लिया गया है| जिसकी कोई हद नहीं है| मोदीजी भी अंबानियों की व्यापार यूनिटों के उद्घाटन कर रहे थे, यही लोग देश का भविष्य तय करने लग गये थे| मोदीजी भी उद्योगपतियों के प्रभाव में आने लग गये, उन्होंने भी दस लाख रुपये का सूट पहनकर दिखाया| देश सन्न रह गया| मगर फिर वे अपने मौलिक लिबास में आ गये तो लोगों ने राहत की सॉंस ली|
कांग्रेस के समय में काफ़ी चरित्र का पालन किया गया था| इसमें कोई शक नहीं था, कांग्रेस पहले विनोबा भावे, राममनोहरलोहिया, जयप्रकाश नारायण की बातें ग़ौर से सुना करती थी, और जो सत्ताभोगी नहीं थे उनकी बातों को भी सुना करती थी| कांग्रेस ने ही बहुत समय तक देश के चरित्र को निभाया था| लेकिन १९८० के बाद से जो भटकाव देश में शुरू हुआ| उसने बहुत ही भयंकर रूप ले लिया| अंबानियों, टाटा, बिरला से होते हुए धनलोलुपता हरेक भारत के घर में पसर गयी| हर पिता व्यथित हो गया कि हमने जिस चरित्र को दादा परदादाओं के समय से निभाया था, उसका ऐसा हश्र हो रहा था कि यह सब उनके समझ के बाहर हो रहा था| जिससे परिवारों का भयंकर बिखराव देखा गया| भला होता कि चरित्रवान व्यक्तियों की लीक पर ही देश पहले चल रहा था, वैसे ही चलता तो आज नोटबंदी की नौबत नहीं आती|
जब से नोटबंदी हुई है, देश की महँगाई ऑटोमेटिकली कम होती ही चली जा रही है| हमारे-आपके बच्चे जो नौकरियों पर लगकर लोगों को फ़ोन करके धोखा दे रहे थे, कि आपके लिए अच्छी स्कीम है, घर बीस लाख का है, फिर बैठकर बात करते थे तो उस बीस लाख के मकान को चालीस लाख बताते थे, सारे विज्ञापन झूठ का पुलिंदा बन गये थे, और नयी पीढ़ी उसी झूठ के साथ आगे बढ़ रही थी, भविष्य का भारत उसी झूठ पर बन रहा था| नोटबंदी जैसे ही हुई सबकुछ झूठ का पुलिंदा धड़ाम से गिर गया है| लोग अब चरित्र की ओर बढ़ रहे हैं| लोग अथाह धन, ईज़ी मनी, इन्सटेंट मनी कमाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रहे थे, अब जब घर में नोट को जमा करके रखने का चलन ही कम हो गया है तो लोग झूठ का सहारा क्यों लेंगे| लेकिन अब मोदीजी से बहुत बड़ी दरकार यही की जा रही है कि अगर पेट्रोल-डीज़ल के दाम भारी मात्रा में घटेंगे तो महँगाई और भी कम हो सकती है|
मेरे पिता मुनींद्रजी, पत्रकार निखिल वागले ने पहले से ही मुझे शायद जन्मघुट्टी पिला दी थी, धनी व्यक्तियों से एक तरह की दूरी बनायी रखना है, इसलिए मैं इस तरह की प्रवृत्ति में नहीं पड़ा, इसलिए मैं प्रकाश में कभी नहीं आया| क्योंकि जब भी मैं धनी व्यक्तियों की संगत में जाने की कोशिश की है, वे मुझे लोभ लालच, सरकार को लूटने के नुस्ख़े, सिखाते रहे और मुझे ऐसा नहीं करने पर मुझे मूर्ख ठहराते रहे, मुझे मूर्ख बनना ही पसंद रहा है, मैं तो यही देखता हूँ कि लोहियाजी ने कैसे जीवन जिया होगा, जेपी ने कैसे पीछे रहकर भी भारत की बेहद चरित्रवान पीढ़ी तैयार की, ख़ासकर जेपी की वजह से सैकड़ों ईमानदार पत्रकार आज भी काम कर रहे हैं, और जेपी के शार्गिद अक्सर जेब में इस्तीफ़ा लेकर नौकरी किया करते रहे और कर रहे हैं| आज भी इसिलए पत्रकारिता में व्यवस्था के ख़िलाफ़ स्वर अभी भी जीवित है| और बेहद सुखद लगा जब मोदीजी नोदबंदी के ख़िलाफ़  गांधी,जेपी और लोहिया का ही नाम लिया और किसी भी सत्ताधारी नता का नाम नहीं लिया|
मोदीजी का मन बहुत साफ़ लग रहा है| उनके हाथ में देश की सुरक्षा सुनिश्‍चित लग रही है| अब यहॉं से देश को चरित्र के रूप में ऊँचा उठाने का काम करना चाहिए, और भटक चुकी नयी पीढ़ी को राह पर लाना चाहिए| सारी दुनिया बाज़ारवाद की ओर जाकर मन और धन से खोखली हो चुकी है, उसे हम सभी को बेहतर बनाना होगा|

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