क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है - EDITOR NEERAJ KUMAR

क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है या नहीं, हम नहीं लेते तो बच्चे हमें ताने मारते हैं कि आपने ईमानदारी की ज़िंदगी जीकर क्या हासिल किया?

आजकल सबसे बड़ा पाप है तो वह यह है कि हम ईमानदारी से जी रहे हैं| आज ईमानदार आदमी के पास क्या है, दस साल पुराना ़िफ्रज, छह साल पुराना बत्तीस इंच का टीवी, एक कार पुरानी या नयी, दो स्कूटर, एक छोटा सा मकान, या नहीं तो एक किराये का मकान| जबकि दुनिया बहुत ही आगे निकल चुकी है| लोगों के पास बहुत सारे पैसे हो गये हैं| पचास इंच का टीवी, एक घर में तीन तीन कारें, हर कमरे में पचास इंच का टीवी, पचास हज़ार के तीन मोबाइल, कम से कम दो करोड़ का मकान, उसके अलावा तीन और मकान| लोग अपने रिश्तेदारों की तरफ़ देखते हैं तो कहते हैं वो लोग कितना आगे निकल गये, हम पीछे ही रह गये| 

बहुत सारे लोगों ने अपनी ससुराल से एक भी पैसा नहीं लिया| और ससुराल वाले इस बात की तारीफ़ भी नहीं करते हैं वे कहते हैं कि आप गधे थे जो ससुराल से पैसा नहीं लिया| सभी लोग लेते हैं, आप ईमानदारी में ही मरते रह गये, लोगों ने तो अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए ससुराल से पैसे लिए और आज वे अपने बच्चों को दस लाख की भी पढ़ाई ससुराल से लिए गये पैसों से ही करवा रहे हैं और कल को यही बच्चा चार लाख लगाकर अमेरिका लंदन चला जायेगा और आपका बच्चा जिसके ईमानदार पिता ने ससुराल से पैसा नहीं लिया है, वह यहीं पर बीस हज़ार की नौकरी करता हुआ सड़ता हुआ नज़र आयेगा|
 जब उनका बच्चा अमेरिका से दो लाख की नौकरी करता हुआ, तन कर आपके बेटे के सामने खड़ा होगा तो आपके बेटे का सिर शर्म से झुका रहेगा, वह जितने दिन भारत में रहेगा आपका बेटा उसी को आदगर्श मानता रहेगा, उसकी परफ़्यूम देखेगा, उसका हज़ारों का टीशर्ट देखेगा, वह अमेरिका की ज़िंदगी बताता चला जायेगा तो अपने बच्चे का सिर और भी शर्म से झुकता चला जायेगा| फिर क्या होता है कि आपका बच्चा अपने बाप से पूछेगा कि जब ससुराल में मामा और नाना आपको पैसे देना चाह रहे थे तो आपने क्यों नहीं लिये, आज देखिये आपने उनसे बारह साल पहले दो लाख रुपये ले लिये होते तो वह डबल में डालकर नौ साल में चार लाख रुपये हो गये होते थे, और आज उन्हीं पैसों से मैं भी अमेरिका चला गया होता तो मेरी ज़िंदगी बन गयी होती|

ये क्या कर दिया पिताजी आपने मेरा सँवरने वाला जीवन आज उज़ाड दिया | और इसका एक ही कारण है आपकी गंदी ईमानदारी, पिताजी कहते हैं हमने पूरी ईमानदारी से जीवन जिया है, बेटा कहता है ज़माना कितना बदल गया है, ईमानदारी को आज बेवकूफ़ी समझा जा रहा है, घर के ख़र्चे इतने बढ़ गये हैं कि जहॉं से पैसा आ सकता है वहॉं से लोग पैसा खींच रहे हैं| चाहे वह कौनसा भी रिश्ता क्यों न हो| लोग तो बहन का ज़ेवर भी छीन रहे हैं|
बेटे ने पिता से कहा कि एक बार मैंने मामाजी से कहा कि पिताजी ने पैसा क्यों नहीं लिया, तो मामाजी तो पहले बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँसने लग गये| मामाजी ने कहा कि हम तो उनके हाथ में ले जाकर दे रहे थे, इतना भी कहा कि पैसे मत लीजिए आपको दो लाख की ज़मीन लेकर दे देते हैं, ज़मीन की निगरानी भी हम कर लेते हैं| बाद में ज़मीन का रेट बढ़ जाये तो उसी पैसे से आपको भविष्य में आराम रहेगा, बुढ़ापे में पैसे काम आएँगे| तेरे पिताजी यानी हमारे जीजाजी ने तब कहा कि मैं दहेज़ के ख़िलाफ़ हूँ| मैंने यानी मामा ने तब समझाया भी था कि पैसा न जाने किस व़क्त काम आ जाये, और हम लोग आज पैसा दे रहे हैं, और आज आप नहीं लोगे तो यह पैसा कभी नहीं मिलेगा| तब जीजाजी ने कहा हॉं भाई हॉं, कभी मत देना, कहकर हँसी में बात टाल दी|
बेटे ने कहा कि मामाजी ने एक बात की तारीफ़ आपके लिए की है, मामाजी कहते हैं कि आपने कभी भी ससुराल से पैसे नहीं लिये, अपना हाथ ऊँचा ही रखा, हम भी तुम्हारे पिताजी की तारीफ़ करते हैं इस बात के लिए, मगर क्या हासिल हुआ बताओ, आज भी हम पैसे लेकर तुम्हारे पिताजी के पास गये तो वो पैसे लेने से इनकार कर देंगे, बेटे ने कहा कि नहीं आज के दिन आप मेरे साथ चलिए पिताजी को पैसा दिलाने की ज़िम्मेदारी मेरी|
मामा और भानजे दोनों गये, पिताजी ने सारी बात सुनी, मामा ने कहा कि आपके बेटे को अमेरिका भिजवाने की ज़िम्मेदारी हमारी, पिताजी ने कहा तुम लोग ऐसा करोगे तो मैं इस घर से निकल जाऊँगा, या नहीं तो मेरे मरने के बाद तुम लोग ऐसा कर लेना| बेटे ने कहा कि पिताजी आप मेरी ज़िंदगी से क्यों खेल रहे हैं, पिताजी ने कहा कि लोगों से पैसा लेकर, ससुराल से पैसा लेकर जीना भी क्या जीना बेटा| जीवन में कुछ सिद्धांत होने चाहिए| बेटे ने कहा कि मामाजी कह रहे हैं पैसे बाद में दे देना, पिताजी ने कहा कि जिस पैसे के वापस आने की कोई गारंटी नहीं है, और मेरे पास भी उतना पैसा अभी नहीं है तो मैं कहॉं से ज़ुबान दे दूँ कि पैसा बाद में मिल जायेगा| मैं तो ज़ुबान नहीं देता हूँ, तुमको जो करना है कर लो| इस तरह ईमानदार पिता अपने बेटे की इच्छाओं के सामने अपने ईमान को मरता हुआ देख रहे थे|
 तब मामा को ग़ुस्सा आ गया कि इस ईमानदार आदमी का ईमान डोल ही नहीं रहा है, ये आदमी अपनी ईमानदारी का ढोल पिछले पच्चीस साल से पीट रहा है, इसे मज़ा चखाता हूँ और चार लाख रुपये देकर इसकी सारी बिरादरी में बदनामी कर देता हूँ कि अंत में जाकर जीजाजी ने ससुराल से चार लाख रुपये ससुराल से ले ही लिये, तब सारे लोग कहेंगे कि जीजाजी तो ईमानदारी का ढोल पीटा करते थे, अब कहॉं गयी उनकी ईमानदारी तब होशियारी से जीजाजी से मामा ने कहा कि मैं अपनी गारंटी पर आपके बेटे को पैसा देता हूँ| पिताजी ने कहा कि मेरा मन तो नहीं कर रहा है कि मेरे सामने से कोई मेरे बेटे को चार लाख रुपये में ख़रीदकर ले जा रहा है, हमारे पास था ही क्या बस हम ईमानदारी से जीवन जी रहे थे, लेकिन बाहर के बाज़ार ने बच्चे को भी अपने चपेट में ले लिया| मैं चाहता था कि मेरा बेटा अपने ही देश में रहे, थोड़ा कमाये मगर मेरे सिद्धांतों का पालन करें हम अपने बाद अपनी संतान से ही तो उम्मीद कर सकते हैं, उसने उस रात यह सारी बातें अपनी पत्नी से कहीं, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, पत्नी भी चाहती थी कि ये ईमानदारी का जीवन जी कर क्या मिला, बस हम सास-ससुर की सेवा कर सके, दो देवर की शादी कर पाये, और क्या मिला हमें? हमको क्या मिला जीवन में? औरतों को भी आजकल पैसे की इतनी भूख हो गयी है कि बेटे के सामने वे पिता को बुरी तरह से लताड़ रही हैं, बात-बात पर पिता की बेइज़्ज़ती की जाती है और अपने बेटे को महान बताया जाता है, जो घर का मालिक था, आज वह कुत्ते से भी बदतर ज़िंदगी जीने को लाचार हो गया है, क्योंकि उसने ज़िंदगी ईमानदारी से जी| और इसमें घर की माता भी पति का अपमान करने में शामिल हो गयी है|
ख़ैर, इधर ईमानदार पिता का बेटा अमेरिका चला गया| और बाप की इज़्ज़त घर में नहीं होने लगी, बार-बार मामा घर में आता तो मामा की बहुत इज़्ज़त हुआ करती थी, क्योंकि उसने चार लाख रुपये दिये थे, उसके लिए पकवान बनाये जाते थे, चाय दी जाती थी तो पहले मामा को बाद में पिताजी को मगर पहले क्या था कि मामा को पहले चाय दी जाती थी तो मामा ही कहा करते थे कि पहले जीजाजी को दो हमारे वह सम्माननीय है, लेकिन चार लाख के कांड के बाद मामा बड़े ही रौब से चाय को पहले ही लपक लिया करते हैं| जो पैसा देता है, उसकी छाती घमंड से फूल जाती है| यह सब व्यवहार में ऊँच-नीच देखते हुए पिताजी ने कहा कि साले साहब मुझे आपका चार लाख रुपया देना ठीक नहीं लग रहा है| दो महीने से मैं तड़प रहा हूँ कि हम ईमानदारी की लड़ाई हार गये हैं| साले ने हँसते हुए कहा कि बार-बार आप ईमानदारी की क्या रट लगाये रहते हैं मुझे तो आपकी ईमानदारी में कुछ ख़ास दम नहीं नज़र आता|
तब जीजाजी ने कहा कि मैं सरकारी बैंक में हूँ, मुझे एक से लेकर तीन करोड़ की रिश्‍वत का ऑफ़र मिला था, मैंने वह पैसा नहीं लिया, अगर वह ले लिया होता तो मेरा बच्चा आज डॉक्टरी पढ़ रहा होता वह भी अमेरिका से ही, मगर मैंने ईमानदारी का साथ निभाया और वह गंदा पैसा नहीं लेकर मैं ईमानदारी से ही जीवन जीता रहा, साले ने कहा क्या जीजाजी आपने एक करोड़ रुपया नहंीं लिया, लिये होते तो आपका अपना एक आलीशान बंगला हो गया होता एक क्या दो तीन बंगले आप बना चुके होते| आप तो बहुत ही सीधे निकले आजकल ऐसे सीधे लोगों को कोई नहीं पूछता है जीजाजी आजकल तो जिसके पास पैसा होता है उसी को इज़्ज़त मिला करती है| वरना आपको कोई नमस्ते भी नहीं करता है| जीजाजी ने कहा कि इतना होते हुए भी लोग आज भी ईमानदारी से जिया करते हैं आज भी देश के दस प्रतिशत बेईमान लोग ९० परसेंट ईमानदारों को दबाकर पैसे पर राज कर रहे हैं यह कितनी तकलीफ़ की बात है|
साले साहब ने कहा कि आप तो सच में ईमानदारी का पुतला हो, आज कौनसा परिवार है जो अपने बीवी बच्चों के अलावा किसी और के बारे में सोचता है, और बाहर के लोगों के बारे में सोचना तो सरासर बेवकूफ़ी और पागलपन समझा जा रहा है| लोग अपने सगे बाप और रिश्तेदारों को तक नहीं पूछते हैं, आप देश की सोच रहे हैं, आपकी बुद्धि पर तरस आता है| आज आप बाहर निकलकर देखिये लोगों का सोचने का तरीक़ा ही बदल गया है, अच्छा आपको क्या मिला ईमानदारी निभाकर, ईमानदार पिताजी ने कहा कि मुझे बड़े-बड़े बदमाशों को पैसे के लिए मना करना बहुत अच्छा लगता है, उन्हें रोकने में मज़ा आता है, वे लोग दूसरों से वह काम करवा लेते हैं मगर मैं एक पैसा रिश्‍वत लेने नहीं देता| साले साहब ने कहा कि दूसरा आपका काम करके पैसा खा लेता है, तो आप तो सरासर बेवकूफ़ साबित हुए, जीजाजी ने कहा मुझे बहुत ही अच्छी नींद आती है, लगता है जैसे मैं देश के लिए कुछ कर रहा हूँ| साले साहब बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँसने लग गये|
उतने में एक चमत्कार हो गया, जीजाजी अंदर गये और अंदर से चार लाख रुपये लेकर आये और साले को दिये, साले हैरान परेशान बौरान हो गये कि जीजाजी जैसे फ़कीर के पास चार लाख रुपये| तब जीजाजी की पत्नी ने कहा कि तुम्हारे जीजाजी दो दिन से बहुत रो रहे थे, रात भर करवटें बदलते रहते थे| कह रहे थे कि मैं ज़िंदगी की लड़ाई इतनी मुश्किल से लड़ा लेकिन अब हार गया हूँ, मेरी आत्महत्या करने की इच्छा हो रही है| दो दिन तक उनका तड़पना मुझसे देखा नहीं गया| इसलिए मैंने सारा ज़ेवर बेच दिया जो हमने बहू के लिए रक्खा था, इसमें सारा सोना तुम्हारे जीजाजी का ही है, मैंने मायके से कुछ नहीं लिया था, केवल मंगलसूत्र और दो कंगन क्योंकि तुम्हें भी पता है तब हमारे पास देने को कुछ नहीं था, उन्होंने मुझसे नौकरी भी नहीं करवायी, कहते रहे कि औरत का जिस्म घर के काम के लिए ही ठीक है| यह सारा ज़ेवर उन्हीं की कमाई का है|
साले की पूरी हवा निकल गयी, तब तक वह शर्म से सिर झुका चुका था, वह ईमानदारी के सामने हार चुका था, जीवन भर की ईमानदारी जीत गयी थी, ईमानदारी एक पहाड़ की तरह होती जो जिसमें आ गयी तो मौत के साथ ही जाती है| जय हो ईमानदारी की, साले ने कहा जीजाजी आप बेकार में परेशान हो रहे हो, जीजाजी ने कहा कि मैं ज़िंदगी भर किसी के पैसे का मोहताज नहीं रहा, हमने एक समय में तीन दिन तक भोजन नहीं खाया क्योंकि तनख़्वाह ख़त्म हो गयी थी, हमने मुरमुरे खाकर तीन दिन गुज़ारे थे, हमने तब वैसे कठिन से कठिन समय में ससुराल से मदद नहीं ली, अब क्यों ले, मेरा बेटा मेरे शरीर का हिस्सा है इसलिए उसकी पाई-पाई की ज़िम्मेदारी मेरी है, हम क़र्ज़ के बोझ तले नहीं जीना चाहते, और एहसानों का बोझ तो अंतिम समय तक चलता ही रहता है| साले ने तब जीजाजी के पैर छूकर कहा कि आपसे जीतना बहुत मुश्किल है, जीजाजी ने कहा ये बात जीत-हार की नहीं है, तुम्हें भी जिस दिन ईमानदारी का कीड़ा काटेगा ना तुम भी मेरी तरह ही पक्के इंसान हो जाओेेेेगे और सारे लोग हँसने लग गये|
अगले दिन बेटे का फ़ोन अमेरिका से आया तो पिताजी ने बिना नंबर देखे फ़ोन उठाया उधर से बेटे ने कहा कैसे हैं पिताजी, तो पिताजी ने कहा कि मैं अब शांति से मर सकता हूँ, कहकर ज़ोर ज़ोर से हिचकिया ले लेकर रोने लग गये, मॉं ने फ़ोन पकड़कर कहा पिताजी के कंधे पर से जीवन का सारा क़र्ज़ उतर गया है बेटा, वे हारते हारते जीत गये हैं, कोई तुम्हें ख़रीद रहा था, वापस पिताजी ने उनसे तुम्हें ले लिया| बेटा समझकर हँसने लग गया, कहा पिताजी यू आर ग्रेट लांग लिव ईमानदारी|
सच में ज़माना तो बहुत ही बदल गया है, ईमानदारी का कोई मोल ही नहीं रह गया है, लोग आजकल बेईमानी पर उतर आये हैं, लोगों में अब शर्म भी नहीं रही है, कोई जेल चला जाता है तो लोग कहते हैं देखना दस दिन में ज़मानत पर आ जायेगा, फिर वह ज़मानत पर आता है तो लोग चाहते हैं वह दोबारा ग़लत रास्ते से पैसा कमा लें, पैसा उसके पास हो| बेईमानी आज एक रोचक तमाशा हो गयी है, लोग बेईमानी को पसंद तक करने लग गये हैं| मगर ईमानदारी तो भगवानों का गहना रहा है, ईमानदारी से ही लोग इंसान से ऊपर उठ जाते हैं, आज भी सारे बेईमान रामचंद्रजी की पूजा करते हैं क्योंकि उन्होंने राज काज छोड़कर ईमानदारी से १४ साल का वनवास बर्दाश्त किया था, तभी वे भगवान कहलाये| ईमानदारी का रास्ता सबसे अच्छा रास्ता होता है, वह स्वर्ग का रास्ता होता है|

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