नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में बहुत यादगार रोल निभाया

शाहरुख़ ख़ान से बेहतर और बहुत यादगार रोल निभाया है नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में 

रईस फ़िल्म वैसे तो एक मसाला फिल्म की तरह ही है, इसमें शाहरुख़ ने जैसा अभिनय किया है, उससे कहीं बेहतर अभिनय अमिताभ बच्चन ने दीवार फ़िल्म में किया था, अब जाकर दीवार की अहमियत सामने आ रही है| लेकिन यहॉं रईस में शाहरुख़ ख़ान ने अतुल कुलकर्णी को मारते समय जो रो-रोकर उसकी हत्या करने का शांत अभिनय किया है वह लाजवाब है और दूसरे एक दृश्य में ग़ुस्से में फ़ोन पटकने का दृश्य है वह भी अति उत्तम है| अब आते हैं लिटिल मास्टर नवाज़ुद्दीन भाई पर| 

नवाज़ का न चेहरा है, नक़द है, न काठी, न शरीर से बलवान, लेकिन एक्टिंग की मशीन| रईस फ़िल्म में निर्देशक राहुल ढोलकिया ने हालॉंकि नवाज़ को लंबे स्क्रीनप्ले नहीं दिये,ज़्यादा बाज़ी मार सकते थे| सीधे कट टू कट लगभग क्लोज़ अप दृश्य दिये हैं, जबकि शाहरुख़ को लंबे-लंबे स्क्रीनप्ले दिये हैं| लेकिन उनमें भी कम स्कोप रहने पर भी नवाज़ भाई ने अभिनय में जो जादू जगाया है, वह कम से कम कहें तो बहुत जादुई है| हर दृश्य को असीम गहराई से किया है, राहुल ने उन्हें कैमरा प्लेसमेंट बहुत ही अच्छी जगह दिये हैं हर दृश्य में| और हर बार नवाज़ के दृश्य को परदे के बीच में भी दिये हैं और परदे के दायें और बायें ओर भी दिये हैं| जिससे कि लोग उनकी तरफ़ ग़ौर से देख पाये|

रईस के निर्देशक न्यूयॉक से सीखकर भी आये हैं और वे आकर इस महत्त्वपूर्ण किरदार के लिए  मध्यप्रदेश के छोटे से गॉंव के थियेटर आर्सिस्ट को लेते हैं तो समझना चाहिए कि उन्होंने हीरा चुना होगा| इस तरह नवाज़ को ले लेते हैं और नवाज़ उसे उम्दा तरीक़े से निभा जाते हैं और सारे दर्शक अभिनय का लाजवाब जल्वा देखकर हॉल से बाहर निकलते हैं| वाह साहब मज़ा आ गया| लेकिन पुलिस वालों का जो पूरा हाव-भाव या कहें परसोना नवाज़ भाई ने अपने में उतारा है, वह हर दृश्य में शिद्दत से महसूस किया जा सकता है| मैं शर्तिया रूप से कह सकता हूँ कि केवल कुर्सी पर बैठे-बैठे इतने अति उत्तम दृश्य तो मारलन ब्रांडो(गॉडफ़ादर), दिलीप साहब (शक्ति),ऋतिक रौशन (गुज़ारिश), नाना पाटेकर(अब तक छप्पन), मोहनलाल (कंपनी) आदि ही कर सकते हैं| नवाज़ में यह  चुनौती बढ़ती ही चली जा रही है कि आपको बैठकर ही सारा टैलेंट दिखाना है तो उसे बेहतर तरीक़े से कर रहे हैं| ऊपर दिये गये विभिन्न किरदारों के साथ इन सभी के साथ नवाज़ के रईस के रोल को जोड़ना बहुत ही मुश्किल लगता है लेकिन सबसे अंत में इनका नाम रख देना चाहिए| क्योंकि ऐसे अभिनय आजकल दिखाई नहीं देते हैं|
रोचक बात यह है कि नवाज़ अपने हर दृश्य का होमवर्क किस तरह से करते होंगे, यह मुझे अभी भी रहस्य की तरह ही लगता है| क्योंकि जब हम उनके मंजे हुए अभिनय को बार-बार रिवाइंड करके देखते हैं, तो फिर उसे वे तैयार करने में कितने पापड़ बेलते हैोंगे और जब उन्हें पता चलता होगा कि सामने आमिर होंंगे, सलमान होंगे, या शाहरुख़ होंगे, अमिताभ होंगे, मेरे ख़याल से ये सामने के कलाकार इनसे बेस्ट निकलवाते होंगें| शाहरुख़ से एक बार मैंने पूछा था कि आप दृश्य को तैयार कैसे करते हैं तो उन्होंने कहा था,कि स्क्रिप्ट लेकर घर लेकर जाकर रात में होमवर्क करते थे, आईने के सामने ठहरकर, नवाज़ भाई कैसा तैयारी करते हैं जॉंच करके कभी बतलाता हूँ|
आप सभी ने एक बात ग़ौर की होगी कि रईस में सारे सशक्त संवाद शाहरुख़ के नाम चले गये हैं| नवाज़ के खाते में कोई संवाद नहीं आया है, एक संवाद शायद आया है, कि थाने के चाय की आदत डाल ले, वरना बाद में पछतायेगा| दूसरा संवाद है जब नवाज़ को कंट्रोल रूम में डाल देते हैं तो वह फ़ोन टेप के करके शाहरुख़ के दिल की धड़कन के क़रीब तक पहुँच जाता है और दोनों की रोमांटिक बातें भी सुनने लग जाता है| दूसरी बात रईस फ़िल्म में निर्देशक ने नवाज़ का किसी तरह का विशेष मैनरिज़्म भी नहीं दिया है, एक सफ़ेद काग़ज़ और उस पर लिखे गये शब्द, लेकिन देखिये साहब अभिनय का यह करिश्मा| एक बात इस फ़िल्म में नवाज़ की यह अच्छी है कि इस फ़िल्म में वे शाहरुख़ से ठीक उसी तरह से बात करते हैं जैसे कोई जीवन भर का ईमानदारी आदमी शाहरुख़ जैसे अपराधी से ज़रा सा बदतमीज़ से बात किया करता है| नवाज़ का बात करते समय का वह रौबदार लहज़ाअपराधी शाहरुख़ के लहज़े के सामने दमदार लगता है, क्योंकि तब शाहरुख़ दबकर बात करते हैं| नवाज़ के साथ वह लहज़ा उनका बहुत साथ देता दिखता है| पर उतने से काम चलने वाला नहीं था, सो, नवाज़ को वह सबकुछ करना पड़ा जो अभिनय के  मंजे हुए खिलाड़ी किया करते थे और हैं|
इस फ़िल्म में शाहरुख़ और नवाज़ के जितने भी दृश्य हैं वे बहुत ही रोचक और रोमांच पैदा करने वाले हैं| हर बात पर शाहरुख़ जिस तरह से नवाज़ को चकमा देकर चले जाते हैं वे बहुत ही रोचक हैं| एक बार तो वे रोड पर शाहरुख़ का माल ढूँढते रहते हैं शाहरुख़ समुद्र के रास्ते से माल लेकर चले जाते हैं|
पुलिस के रौब और पुलिस की ईमानदारी को नवाज़ ने रईस फ़िल्म में बढ़िया तरीक़े से निभाया है| एक दृश्य ऐसा है कि एक दूल्हे को आधे निकाह में से उठवाकर लाते हैं और रईस के शराब के अड्डे बताने पर ही उसका निकाह पढ़वाने भेजते हैं|
एक पूरे दृश्य में नवाज़ भाई रईस में शाहरुख़ से बाज़ी मार ले जाते हैं जब वे मुहल्ले में आकर कैरमबोर्ड खेलकर बतलाते हैं कि कैसे कैसे वे रईस की सारी गैंग को तेज़ी से ख़त्म कर देंगे, उस दृश्य का स्क्रीनप्ले इतना तेज़ है कि दो मिनट में सारा दृश्य समाप्त हो जाता है, लेकिन उन्हीं दो मिनट में ज़िंदगी भर का मज़ा आ जाता  है| इस दृश्य को आने वाले समय में कैरमबोर्ड दृश्य के रूप में याद किया जायेगा| इस कैरमबोर्ड दृश्य में तो पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है|
निर्देसक राहुल ने इस फ़िल्म में एक भी गंदी गाली का इस्तेमाल नहीं किया है, जिससे फ़िल्में नवाज़-शाहरुख़ की लड़ाई का बहुत ही मज़ा आता है, नवाज़ इसमें दिन रात शाहरुख़ के पीछे लगा रहता है उसे सालों लग जाते हैं रईस तक पहुंँचने में लेकिन नवाज़ कोशिश में चाय पी पीकर लगा रहता है| एक छोटा दृश्य बहुत अच्छा है कि शाहरुख़ को बेटा पैदा होता है, वह नवाज़ के पास मिठाई भी भिजवाता है, नवाज़ बिना पता चले मिठाई खा जाता है, लेकिन पता चलने के बाद भी मिठाई पसंदीदा होती है, इसलिए अपराधी की मिठाई होते हुए भी मिठाई रख लेता है, उसे वापस नहीं करता है|
फ़िल्म में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है कि समाजवाद के समय कैसे छोटे बच्चे इस तरह के गंदे धंधों में अपना बचपन बर्बाद किया करते थे| बहुत अच्छा लगा कि इस तरह की पुराने फ़ैशन की कहानी को लेकर इस समय में बनाया गया है,उस समय भारत के लोग कैसे क़र्ज़ के बोझ तले मर जाया करते थे, और लोग उस समय बहुत ही सामान्य ज़िंदगी जिया करते थे| इसमें शुक्र है कि मोबाइल फ़ोन नहीं बताया गया है| ख़ास बात नवाज़ हर दृश्य में एक ़फ्रेश चेहरे के साथ सामने आते हैं चुस्त मुजरिम को पकड़ने के लिए चेहरे पर जो मुस्तैदी के भाव होने चाहिए वह बहुत ही रोचक है|
ये फ़िल्म बहुत अच्छी है ऐसी बात भी नहीं है, लेकिन शाहरुख़ के दो चार दृश्य और नवाज़ुद्दीन के कम से कम दस दृश्यों के लिए यह फ़िल्म देखी जा सकती है, कुछ भी हो राहुल ने बहुत ही फीका रोल नवाज़ के लिए लिखा है अंमित दृश्य को छोड़कर लेकिन नवाज़ ने जितने उम्दा और शायराना तरीक़े ये रोल निभाया है वह कम से कम कहें तो लाजवाब है वैसे फ़िल्म के पुलिस के किरदारों में मैं अभी भी शक्ति के दिलीप साहब को पहले नंबर पर रखता हूँ और दूसरे नंबर पर कंपनी फ़िल्म के मोहनलाल और अर्धसत्य के ओमपुरी को रखता हूँ और दीवार की बात की जाय तो रईस देखकर दीवार देखने का मन ज़रूर कर रहा है, बच्चन साहब जियो राजा जियो| शाहरुख़ को भी बधाई कि उनका रईस का रिस्क बहुत काम आया है फ़िल्म डेढ़ सौ करोड़ का धंधा ज़रूर करेंगी, क्योंकि अम्मीजान कहती है, धंधा कोई छोटा नहीं, सच में दो मियॉं भाईयों शाहरुख़ और नवाज़ मिया भाई की डेरिंग काम आई और बनिये का दिमाग़ भी|       

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