महिलाएँ पैसा कमाने का बहुत सारा टेंशन ले रही हैं - EDITOR NEERAJ KUMAR

महिलाएँ पैसा कमाने का बहुत सारा टेंशन अपने पर ले रही हैं जिससे उनकी मौत जवानी में ही हो जा रही है, जबकि पहले मर्द पहले मरते थे और महिलाएँ बहुत जिया करती थीं

पैसे के लोभ-हिरस के कारण महिलाओं का जीवन बहुत ही टेंशन से भरपूर हो चुका है, एक केवल पैंतीस साल की महिला ब्यूटीपार्लर का काम सिखाने का काम तीस लड़कियों को सिखाया करती थी| तीस लड़कियों के साथ उसने क्रिसमस की पार्टी मनायी| क्रिसमस के दिन उसने बहुत सारा केक खा लिया| उसे पता था कि उसे शुगर की बीमारी है, और वह शुगर की गोलियों में एक हज़ार रुपया लग रहा है, इसलिए वह गोलियॉं भी नहीं खा रही थी, वह सोच रही थी कि मीठा कम खाऊँगी तो शुगर कंट्रोल में रहेगी| लेकिन केक खाते समय शुगर के बारे में सोचना बंद कर दिया, उसके यह बात ध्यान से ही निकल गयी थी| उस दिन रात में केक खाने से शुगर शूटअप हो गयी और बेहोश होकर गिर गयी| और पॉंच मिनट के भीतर ही उसकी अस्पताल ले जाते समय मौत हो गयी| सो, उस केवल पैंतीस साल की महिला की मौत केवल एक दिन के पार्टी के मनाने और बहुत मीठा खाने से मौत हो गयी| 

उसकी चार साल और आठ साल की दो बेटियॉं हैं| अब उनकी ज़िंदगियों का क्या होगा| उन्हीं बेटियों को बहुत अचछी  पढ़ाई पढ़ाने के लिए वह यह सब मेहनत कर रही थी| उसका पति एक कंपनी में काम करता है जिससे उसे बारह हज़ार रुपये की तनख़्वाह मिलती है| हालॉंकि उससे तो इन बच्चियों का गुज़ारा हो जायेगा| लेकिन ज़्यादा पैसा कमाने के लिए इस महिला ने अपने जीवन को बर्बाद कर दिया| यही महिला पहले किसी के घर पर भोजन बनाने जाया करती थी| वहॉं पर उसे तीन हज़ार रुपया मिला करता था| जिससे जीवन बहुत ही सुकून से चला करता था| पति की कमाई से घर चला करता था और ये तीन हज़ार जो लाती थी उसकी एक चिट्ठी-बिस्सी चलाया करती थी|

शादीशुदा महिलाओं को आठ से १२ घंटे की नौकरी करनी चाहिए और नौकरी कर रही है तो उसे एक समय का भोजन होटल से खाना चाहिए| या नहीं तो भोजन बनाने के लिए एक नौकरानी रखनी चाहिए| साथ ही बच्चियों को स्कूल को तैयार करने के लिए पिता को तैयार करना चाहिए| या नहीं तो बच्चों को तैयार करने के लिए दादादादी को सहयोग करने चाहिए| जब घर में पति और पत्नी कमाते हैं किसी न किसी को सहयोग करना चाहिए|
जान से बढ़कर कोई बात नहीं होती है, अगर हमें कोई बीमारी है तो हमें दवा ज़रूर लेना चाहिए| तबीयत ठीक रहेगी तो ही आप पैसा कमा सकते हैं, तबीयत बिगड़ जाती है तो जान भी चली जाती है| समय से लोग भोजन भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि आजकल की नौकरियॉं इतनी मुश्किल की हो गयी हैं कि भोजन को ढंग से करने का समय ही नहीं मिल पाता है, एक स्कूल में टीचर है, वह स्कूल के लंच के समय भोजन करने बैठती है तो पेरेंट्स आ जाते हैं तो उसे भोजन छोड़कर उनसे मिलना पड़ता है| हर दूसरे दिन उसका भोजन ठीक से नहीं हो पाता है|
जो भी महिलाएँ नौकरी करती हैं उन्हें एक बार के भोजन के साथ या तो दूध, सलाद के पॉंच टुकड़े या हल्का बिना मसाले का भोजन करना चाहिए| जिससे उसके शरीर का संतुलन ठीक रहता है|
आजकल की महिलाओं को व्यापार करने का भी बहुत शौक़ हो गया है| एक महिला है जो तीन तरह के व्यापार करती है| उसकी साड़ियों की दुकान है, फिर उसी दुकान के सामने एक गोलगप्पे-गपचुप की दुकान भी लगा चुकी है, और इमिटेशन गहनों की भी दुकान भी लगा चुकी है| वह दिन भर ख़ाली रहती है लेकिन ग्राहक आते हैं तो एक साथ तीन दुकानों में आते हैं तो बहुत ही टेंशन में आ जाती हैं, ये सँभालूँ या वो संभालूँ| उसका पति महीने में तीस हज़ार रुपया कमा लेता है, लेकिन उसे पैसे कमाने का लालच हो गया है|
पैसा आता है तो अमीरी भी बढ़ती है, हम बड़ा घर ले सकते हैं, बड़ी कार ले सकते हैं, बच्चों को महँगे स्कूल में पढ़ा सकते हैं,महिलाएँ बहुत कुछ कर सकती हैं| अब हमने ऊपर जो शुगर से मरी महिला का ज़िक्र किया है, उसकी हालत यह हो गयी थी कि वह बच्चियों या बेटियों को दो-दो हज़ार की फ़ीस में पढ़ाया करती थी लेकिन अपनी जान को खाने के लिए उसके पास हज़ार रुपये महीने की दवाई के पैसे तक नहीं थे, वह पहले ब्यूटीपार्लर के दिन में एक बार क्लासेस लिया करती थी, लेकिन बाद में दो बार क्लास लेने लग गयी थी| वह दिन-रात यही सोचती थी कि कैसे ट्रेनिंग के बच्चे बढ़ते रहें| उसके पास पहले पॉंच बच्चियॉं थी अब जाकर तीस बच्चियॉं हो गयीं थी| फिर भी उसे चैन नहीं आ रहा था, वह तीस के बजाय पचास बच्चियॉं चाह रही थी, कुल कहा जाये तो ९९ के फेर में पड़ चुकी थी| उसका पति समझाता रहता था कि जैसे भी हम घर तो चला ही रहे हैं, कैसे भी करके हम बच्चियों को निभा लेंगे| वह कहती थी कि बच्चियों को मैं डॉक्टर की पढ़ाई पढ़ाना चाहती हूँ, तुम्हें पता है कि डॉक्टर की फ़ीस पच्चीस से पचास लाख रुपया होती है, हम तो जीवन में कुछ नहीं कर सके, बच्चों को हमें बड़ी पढ़ाई करानी चाहिए| वह दो घंटे बच्चियों को ख़ुद लेकर पढ़ाने बैठा करती थी, जिसमें एक बच्ची कमज़ोर थी तो उसे बहुत पीटा करती थी, क्योंकि उसने बड़े सपने पाल लिये थे| आजकल बच्चे कमज़ोर निकल जाते हैं तो माता को बहुत ही तनाव हो जाता है, वह बच्चा दूसरी कक्षा में होता है तभी से उसे ट्यूशन में डाल दिया करती है| ट्यूशन पर भी पॉंच सौ से हज़ार रुपया ख़र्च करने को तैयार हो जाती है|
इस तरह के सपने पालने से ही महिलाओं को बहुत सारी बीमारियॉं होती चली जा रही हैं और अंत में जाकर आजकल बेचारी महिलाओं की मौत होती चली जा रही है| पुराने लोग सही कहा करते थे कि जो भी ऊपर से लिखा आता है, हम कितना भी चाहें हम बच्चों की क़िस्मत को बदल नहीं सकते हैं| एक माता अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना चाहती थी, लेकिन पैसे नहीं होने के कारण पहले बहुत हाथ पैर उसने मारे, लेकिन जब पैसे जमा नहीं हो पा रहे थे तो माता अंत में थक हार गयी, दो बीमारियॉं सिर पर ले लीं और अब वह बच्ची को फ़ीज़ियोथेरेपी करवा रही है| जिसमें चार लाख की ही फ़ीस है| जितनी चादर होती है उतना ही पैर पसारना चाहिए, यह कहावत है बहुत ही छोटी लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं तो इसके बहुत ही बुरे हालात हमें भुगतने पड़ते हैं|
आज क्यों ऐसा हो रहा है कि हर महिला को बीमारी हो रही है, किसी को थाइराइड, किसी को हर्निया, पथरी, बीपी, शुगर, भयंकर सिरदर्द, पाइल्स, डिप्रेशन, ये सब क्यों हो रहा है, क्योंकि जो लोग बहुत मेहनत कर रही हैं उन्हें रोग लग जा रहे हैं| पुरानी महिला पूजापाठ करती थी तो वो पूजा ध्यान, मेडिटेशन की तरह होता था, तबीयत उस समय बहुत शांत, मन हल्का रहता था, उसके बजाय आजकल की महिलाएँ किसी तरह के शोर में लगी रहती है, महिलाओं को दो बच्चे पैदा करने पड़ते हैं पहले की महिला कम से कम चार बच्चे पैदा किया करती थी, क्योंकि तब महिलाओं को पैसे की पड़ी नहीं रहती थी, मर्द ही पैसा कमाया करता था, और इतने सपने नहीं थे, लड़कियॉं, लड़कियों की तरह ही जिया करती थी|  पहले सौ महिलाओं में ८० महिलाएँ गृहिणी ही रहा करती थीं| केवल बीस महिलाएँ ही काम पर जाया करती थीं| आजकल बीस घर पर रहती हैं और अस्सी काम पर जाया करती हैं और उन अस्सी में सत्तर महिलाओं को कोई न कोई परमनेंट बीमारी ज़रूर लगी रहती है|
महिलाओं का शरीर लंबी नौकरियों के लिए नहीं बना होता है, उसे तो बहुत हुआ आठ घंटे की ही नौकरी करनी चाहिए| महिला के लिए टीचरी करना, भोजन बनाने का काम करना, बैठकर दफ़्तर में आठ घंटे तक की ही नौकरी करना रास आता है| और वैसे कहा जाये तो हर मर्द में दस तरह के काम करने की ताक़त रहती है, मर्द को भरपूर मेहनत करके महिला को आराम देना चाहिए| महिला का फ़र्ज़ होता है कि घर में रहकर वह बुज़ुर्गों की सेवा करे| बच्चों को संभाले| आज जो भी महिला नौकरी पर जाती है, उसके बच्चे बिगड़े हुए हो जाते हैं या नहीं तो बहुत ज़िद्दी होकर मनमानी किया करते हैं| बच्चे ज़िद्दी हो गये तो आगे जाकर उनके शादी के बाद तलाक़ भी हो जाया करते हैं| इसलिए घर में किसी न किसी को हमेशा रहना चाहिए ताकि बाहर से हम आयें तो कोई तो हो जो मुस्कुराकर हमारा दरवाज़ा खोलकर स्वागत करें|
मगर आज की तारीख़ में हमें ज़रूरत इसी बात की है कि हम कैसे भी करके जवान महिलाओं की मौत को रोकें| उन्हें यथोचित आराम दें| सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि हर साल में महिला को छह महीने तक ही काम करने दिया जाना चाहिए| बाक़ी के छह महीने उसे घर पर बैठाना चाहिए| या नहीं तो लगातार दो साल काम करवाना चाहिए| फिर अगले दो साल तक घर में बैठाना चाहिए| और सौ बात की एक बात बच्चे अपना भविष्य ख़ुद बनाएँगे, उनके लिए हमें दिन रात नहीं मरना चाहिए| अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहिए|
बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए हम अपना जीना पूरी तरह से हराम कर रहे हैं, ऊपर जो शुगर की महिला मरी, वह तो चली गयी, उसके बच्चे बेचारे बुरी तरह से अनाथ हो गये हैं, अब उसके पति को दूसरी शादी करने के लिए कहा जा रहा है, एक महिला तैयार हो गयी है, लेकिन वह कह रही है कि दोनों बच्चियों को होस्टल में डाल दिया जाये तभी वह शादी करेगी, हे भगवान ये क्या हो जाता है, एक माता मर जाती है तो बच्चियॉं बेचारी पूरी तरह से माता के साये से दूर हो जाती है, बेचारी चार साल की बच्ची से माता की गोद छिन गयी, बेचारी अगले पंद्रह साल तक होस्टल में ही रहेगी, माता का साया उससे छिन जाता है, अकेले रहने से बच्चों में डर रहता है, उनका आत्मविश्‍वास पनप नहीं पाता है, उसके साथ दादा दादी होते हैं तो वह हिम्मतवाले हो जाते हैं, दादा बच्चों को हिम्मती निडर बनाते हैं| सच में हम ही अपने परिवार को संयमित तरीक़े से चला सकते हैं और महिलाओं को संकट होने पर ही पैसा कमाना चाहिए| जितने में चल रहा है, उतने में कमीबेशी करके चलाना चाहिए| और परिवार को सुखी रखना चाहिए|

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