मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है
मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय, इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है, लोग होटलबाज़ी से ऊबकर घर की ओर लौट रहे हैं
नोटबंदी करने से नयी पीढ़ी में फ़ैशनबाज़ी, होटलबाज़ी, गुलछर्रेबाज़ी में बहुत कमी हो गयी है, नयी पीढ़ी नोटों की सप्लाई नहीं होने की वजह से सालों के बाद घरों के भीतर दिखाई दे रहे हैं| यह परिवारो के लिए बहुत ही अच्छा संदेश दिखाई दिया| लोगों के पास सिनेमा देखने के लिए चार-चार हज़ार रुपये नहीं दिखाई दिये|
लोगों को तनख़्वाह भी बहुत ही धीरे-धीरे करके मिलने लगी थी| कुल मिलाकर कुछ समय तक रुक कर जीवन के बारे में सोचने का समय भी लोगों को मिला और नोटों की अहमियत लोगों को पता चली| लेकिन एक बात तो तय है कि लोग जब शॉपिंगबाज़ी के बारे में नहीं सोचते हैं तो देश के लिए सोचने लग जाते हैं, और इस समय मोदीजी ने देश को सबसे अच्छा माहौल दिया है| कहीं पर भी सांप्रदायिकता नहीं है, कोई भी हिंदू-मुस्लिम के अलग-अलग होने की बात तक ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| लोग जातिवाद की बात पर भी ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| इस समय शेयर बाज़ार बहुत ही अच्छे तरीक़े से चल रहा है| लगभग २७ हज़ार के पार चल रहा है| यानी आपके पास पैसा है तो शेयर बाज़ार में डालिये और शान से रहिए| शहरों में आतंकवाद का डर भी नहीं सता रहा है|
जिस देश का सपना गांधीजी ने देखा था, वही देश अब दिखाई दे रहा है, पहले लोग मजबूरी का नाम महात्त्मा गांधी कहते थे, अब लोग मजबूरी का नाम नरेंद्र मोदी नहीं कह रहे हैं बल्कि मज़बूती का नाम नरेंद्र मोदीजी कह रहे हैं| यह मोदीजी की बहुत बड़ी जीत है|सो इस तरह से आप पूरे देश पर नज़र डालिये और सोचिये कि पिछले तीन साल में मोदीजी ने बहुत ही अच्छा माहौल दिया है| देश में इस समय आजकल हर तरह का व्यापार सौ के बजाय केवल तीस प्रतिशत का हो गया है| फिर भी लोग मचल नहीं रहे हैं| लोग कह रहे हैं कि जब शादी आप सस्ते में कर सकते हैं नोटबंदी का बहाना बनाकर, जब आप रियल इस्टेट में पैसा नहीं लगा सकते हैं नोटबंदी का बहाना बनाकर तो फिर मन में सभी से बेचैनी ही ख़त्म हो चली है, लोग कुछ भी नहीं है तो भी यह भजन गा रहे हैं पायो जी मैंने राम रतन धन पायो, पायो जी मैंने राम रतन धन पायो, क्योंकि सुख की बॉंसुरी लोगों के घर में बज रही है| पैसा आज नहीं कल आ आयेगा लेकिन जो माहौल है वह अब अच्छा चल रहा है| सबसे बड़ी बात यह हो गयी है कि लोगों में धन संचय, यानी धन भराई, करने से बेहद की घबराहट हो गयी है| और लोगों ने अपने आप ही फ़ाइव स्टार कल्चर से भी तौबा कर ली है| लोग कह रहे हैं कि पैसा आजकल की सबसे बड़ी मुसीबत हो गयी है| जैसे १९५० से भारत के समाजवाद में लोग पैसे से घबराया करते थे वैसे ही अब पैसे से घिन खाने लग गये हैं|
क्योंकि जैसे पहले लोग बीस लाख रुपये का नेकलेस लेकर लोगों को शान से दिखाया करते थे अब नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि कोई भी दुश्मन इनकम टैक्स को फ़ोन कर देता है तो नरेंद्र मोदीजी अपने सांभा, कालिया, को भेज रहे हैं अगले ही दिन आपका बहीखाता पूरा का पूरा बाहर आ सकता है| इधर रियल इस्टेट में एक से चार फ़्लैट बुक करने जाते हैं तो आपकी पूरी पुराण पोथी निकाली जा रही है| आज जो लोग पचास साल की उम्र के हो चुके हैं उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से पता चल गया है कि समाजवाद यानी १९५०-६०-७०-८० के दशक में इसी तरह का माहौल हुआ करता था, लोग उन लोगों को चोर समझा करते थे जिनके पास पैसा हुआ करता था| तब साठ करोड़ में से ५७ करोड़ तो मध्य एवं निम्न वग के लोग हुआ करते थे| बाक़ी के तीन करोड़ लोग ही क्लबगिरी किया करते थे| तब उसे पत्ते खेलने वाले लोग कहा करते थे, नाच देखने वाला इंसान किया करते थेे| झाड़ूवाली, सफ़ाईवाली को भी नहीं छोड़ने वाला कहा करते थे| लेकिन आजकल नोटबंदी होने के पहले घर के अच्छे से अच्छे पति भी इन्हीं चक्करों में पड़ गये थे| यहॉं से लड़कियों की पलटन आयी है, वहॉं से आयी है, मलेशिया मालिश कराने के लिए कौन गया है, गोवा घूमने कौन गया है, जो लोग जाते थे, वे अचानक बीमार होकर एड्स होकर तीन महीने के भीतर ही भारत आकर मर जाया करते थे| पत्नी बेचारी जवानी में विधवा होकर मर जाती थी, जबकि पति मलेशिया में मुँह काला करके आया होता था| ये सब चीज़ें चल रही थी, अब लोग रात दस से बारह बजे के पहले शान से घर आ जा रहे हैं, सति और सावित्री, सत्यवान बनकर जी रहे हैं|
नोटबंदी के बाद चार तरह के जीवन दोबारा याद आ रहे हैं, यौवन, गृहस्थ जीवन, तीर्थयात्रा जीवन, वानप्रस्थ जीवन| नोटबंदी बंद होने के पहले जो चार तरह के जीवन हो गये थे वे ये हो गये थे| सोलह से २५ साल गर्ल़फ्रेंड जीवन, शादी करने के बाद परायी नारी का जीवन, फिर चालीस साल के बाद कपैनियन के साथ रंगरलियॉं मनाने का जीवन इसे बीपी शुगर का भी जीवन कहकर पुकारा जा रहा था, क्योंकि पैसे के पीछे भागते भागते लोग अनगिनत बीमारियों के शिकार होते चले जा रहे थे| बीपी शुगर के बाद हार्टअटैक का जीवन लोगों का जीवन हो जा रहा था| फिर जो साठ साल के बाद जीवन होता था, वो मलेशिया में मालिश का जीवन हो जा रहा था, लोग गली हुई हड्डियों में ताक़त पैदा करने की कोशिश करते चले जा रहे थे|
१९९२ में मनमोहनसिंह ने देश को बाज़ार बनाकर रख दिया था, घर में बाज़ार को घुसेड़ दिया था, आज २०१६ में महान मोदीजी की वजह से घर से बाज़ार चला जा रहा है, दोबारा हमारा पुराना घर लौट रहा है लोग अपने विदेशों में बस चुके बेटों से कह रहे हैं बेटा अब भारत आ जा मोदीजी यहॉं महँगाई कम कर रहे हैं, रहने का माहौल अच्छा कर रहे हैं, गंदगी को दूर कर रहे हैं, दंगे यहॉं पर पूरी तरह से बंद हो चुके हैं, अपराध यहॉं पर पूरी तरह से बंद हो गया है, पैसे के लिए असीमित भूख लोगों में बंद होती चली जा रही है, आतंकवाद बंद हो चुका है, लोग अब चाह रहे हैं कि पेट्रोल के दाम जिस दिन कम हो जाएँगे लोग पेट्रोल की ग़ुलामी करने की आठ हज़ार रुपये या दस हज़ार की नौकरी को करना बंद कर देंगे| वो भारत लौट रहा है, वो भारत जो मॉं सरस्वती का था, भारत जो नानाजीदेशमुख का था, भारत जो चौबीस साल के भगत सिंह ने सोचा था, भारत जो इंदिरा गांधी के समय था| इंदिरा गांधी को लोग बहुत पसंद करते थे, सारा देश उनके भरोसे पर ही चला करता था|
नोटबंदी क्या हुई कि फ़ोन के अंदर जियो सिम में कितना सस्ते में बिल चल रहा है, ओला ऑटो कितना ज़्यादा सस्ते में आ रहा है, ओला कार कितने सस्ते में आ रही है, लोगों अब सिर पीट रहे हैं कि हमने कार क्यों ली, क्योंकि ढाई सौ रुपये की कार पर सौ रुपये का डिस्काउंट चल रहा है, छह महीने से दुनिया कितने हसीन लग रही है, मोदीजी मेरा देश पूरी तरह से अब असली रूप में सामने आ रहा है, अब नोटबंदी के बाद लोगों को ग़रीब की कुटिया भी ठीक लग रही है, वरना लोग अंबानी के घर को देखा करते थे| मैंने तो कहा भी है कि आठ नवबंर के यानी नोटबंदी के पहले सौ में साठ लोग मेरे को नमस्ते का जवाब नहीं देते थे, क्योंकि मैं लक्ष्मी पुत्र नहीं था, सरस्वती पुत्र था, सरस्वती पुत्र को धन का वरदान नहीं होता| लेकिन अब नोटबंदी के बाद मुझे सौ में सो अस्सी लोग नमस्ते का जवाब दे रहे हैं और बहुत ही श्रद्धा से जवाब दे रहे हैं|
एक बड़ा मानवता का बदलाव देख रहा हूँ कि पिछले दिनों मुझे चालीस हज़ार का इलाज का ख़र्च बीमारी से आया, मेडिक्लेम से भी ब्लडप्रेशर पुराना होने की वजह से वंचित हो गया, लेकिन यह समय इतना अच्छा चला रहा है कि लोग मदद के लिए हाथ मेरे ओर आगे बढ़ा रहे हैं| जबकि आठ नवंबर के पहले हर कोई पैसे किसी को भी देने से घिन खा रहा था, लोग सभी धन संचय में ही लगे हुए थे|
मेरा कबीर का देश, रामसुखदासजी महाराज का देश, मेरा गांधी का देश, मेरा जयप्रकाश नारायण का देश, मेरा राममनोहरजी लोहिया का देश, मेरा बाबा रामदेव का देश, बस यूँ ही चलता रहे, यहॉं मालिश हो मगर दंगल फ़िल्म की मालिश हो, मलेशिया की मालिश नहीं|
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