आज के बाद लोगों को विश्‍वास नहीं होगा कि धौनी जैसा चमत्कारिक कप्तान भारत के लिए क्रिकेट खेला था! - EDITOR NEERAJ KUMAR

आज के बाद लोगों को विश्‍वास नहीं होगा कि धौनी जैसा चमत्कारिक कप्तान भारत के लिए क्रिकेट खेला था!

औने पौने दे घुमा के, खर्चन खुरचन दे घुमा, जुटा हौसला, बदल फ़ैसला....दे घुमा के घुमा के दे घुमा के... यह गीत २०११ के विश्‍वकप का भक्ति गीत था, और इस गीत को पूरी तरह से दे घुमा देने वाला जुमला, हक़ीक़त में बदलने का जज़्बा धौनी की कप्तानी में ही देखा गया| यह बहुत ही बड़ी जीत एक जीती जागती सच्चाई के रूप में दिखाई दिया| और हम विश्‍वकप जीतकर २०११ के विश्‍वविजेता बने थे|

अपने समय के दि ग्रेट फ़िनिशर (मैच बल्लेबाज़ी से  आसानी से ख़त्म कर लेना) और अपने समय के बेहतरीन कप्तान के रूप में उन्हें आँका जाना बेशक हमारे लिए शान रही और दुनिया के लिए मजबूरी भी रही| विश्‍वकप जीतना, २०-२० कप जीतना और चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीतने का आला दर्जे का कप्तानी कीर्तिमान केवल और केवल इन्हीं महाशय को जाता है|
एक जादूगर कप्तान और एक अभेद्य बल्लेबाज़ के रूप में एकदिनी मैच में धौनी के भारतीय टीम में आने के पहले और बाद में दो बातें बदल गयीं, उनके टीम में आने के पहले हम सभी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का ब्लडप्रेशर क्रिकेट मैच देखते समय लो और हाई यानी नीचे ऊपर होता था, और धौनी के आने के बाद हम सभी का ब्लडप्रेशर अक्सर नॉर्मल ही रहता रहा| ब्लडप्रेशर नॉर्मल रहने के अलावा, धौनी ने वर्ष २००५ के बाद से लेकर २०१६ तक धौनी ने अपनी कप्तानी में सभी देशवासियों को रातों की नींद बहुत ही सुकून की दी है| इन ग्यारह वर्षों में हम जितना सुकून से सोये हैं, उतना हम गांगुली, अज़हर, कपिल देव के समय में शर्तिया रूप से नहीं सोये हैं| क्योंकि हमें दो बातें बर्दाश्त नहीं होती हैं, देश पे वार और क्रिकेट में हार| हम अक्सर गांगुली की कप्तानी में हर फ़ाइनल में आकर हारने की क़िस्मत भारत की हमेशा ख़राब चलती रही| अज़हर ने विश्‍व स्तरीय कुछ नहीं जीता था, और कपिल देव की शारजाह में अच्छी ख़ासी पिटाई हुई थी| कपिलजी ने ही भारत को पहला विश्‍वकप दिलाया था और उसका अच्छा बदला लेते हुए, यानी गावस्कर ने कपिल देव पर सुप्रिमेसी जमाने के लिए गावस्कर ने बेंसन एंड हेजेस में जीत दिलाई थी|

धौनी की कप्तानी में भारत एकदिनी मैचों में एक दो तीन चार के रैंकिंग पर ही दुनिया में रहा, इससे नीचे कभी नहीं गया, यानी भारत का वर्चस्व ख़ासे समय तक चलता रहा, पहले नंबर पर और दूसरे नंबर पर हम चलते ही रहते थे|  लेकिन एक दो मौक़ा छोड़ दें तो धौनी ने भारतीयों को कभी भी निराश नहीं किया|
२००७ के २०-२० फ़ाइनल में जोगिंदर शर्मा को मिस्बाह के सामने अंतिम ओवर देना, धौनी के जीवन का सबसे बड़ा जोखिम था, लेकिन आज उस ओवर को देखते हैं तो आज के दिन भी वह ओवर सबसे लाजवाब जोखिम दिखाई देता है, और उस अंतिम गेंद पर श्रीसंत जैसे शरारती फ़ील्डर द्वारा उस कैच को लपकना| उस मैच की झलकियॉं भी आज देखते हैं तो सभी का ब्लडप्रेशर बढ़ जाया करता है|
वो दिल हम कहॉं से लाएँ जो दिल धौनी ने कप्तानी के रूप में पाया था| ऑस्ट्रेलिया के साथ खेलने के लिए भारत में बहुत ही बड़े जिगर वाले कप्तान की ज़रूरत थी| दो बार धौनी ने अपने खेल की बादशाहत दर्शा दी थी ऑस्ट्रेलिया पर| एक बार वीबी सिरीज़ में जहॉं हमने बेस्ट ऑफ़ थ्री फ़ाइनल्स में दो फ़ाइनल में ही ऑस्ट्रेलिया में जाकर ऑस्ट्रेलिया को धूल चटा दी थी, और दूसरी बार जब ऑस्ट्रेलिया को हमने भारत में ३-२ से हराया था, जिस श्रृंखला में रोहित शर्मा के २६४ नाबाद रन की पारी शामिल थी| इस श्रृंखला में दोनों ओर से जब पॉंच सौ सात सौ रन बन रहे थे, तब धौनी की कप्तानी तब इतना ही कर रही थी कि कैसे बल्लेबाज़ों को ज़्यादा से ज़्यादा रन बनाने के लिए उकसाया जाये| इन दो श्रृंखलाओं में ऑस्ट्रेलिया को पस्त करने के बाद अब ज़िक्र करता हूँ २०११ का क्वाटर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया से मुक़ाबला, हम जीतते हैं तो उसका महत्त्व कम आँकते हैं, घर की मुर्गी दाल बराबर मानते हैं| लेकिन उस समय तीन बार के लगातार विश्‍व चैंपियन को पहली बार जब भारत ने उन्हें हराया तो ऑसी की तैसी ऐसी हुई कि तीन बार की बादशाहत को ग्रहण लगाने वाले भारत के धौनी ही साबित हुए|
भारतीय क्रिकेट इतिहास में धौनी के क्रिकेट में आने के बाद से भारत की सबसे बड़ी बादशाहत यह रही कि उनके बाद कभी भी पाकिस्तान, भारत के सामने मुँह उठाकर खड़ा नहीं रहा, दो श्रृंखलाओं में पाकिस्तान भले ही जीता, २००४ और २०१३ में लेकिन उसके अलावा हर बड़े टूर्नामेंट में भारत ने पाकिस्तान को बहुत ही बुरी तरह से शिकस्त दी है| इसके अलावा केवल एक मैच में यानी बांग्लादेश में पाकिस्तान ने शाहिद अफ़रीदी ने बल्लेबाज़ी में धौनी की कप्तानी से एक मैच बुरी तरह से छीना था, लेकिन उसके बाद अफ़रीदी की मजाल नहीं रही कि कभी वे धौनी की कप्तानी में भारत से मैच छीन सके, धौनी ने अफ़रीदी को कभी भी अपने सामने उभरने तो क्या अर्धशतक बनाने का भी मौक़ा नहीं दिया था|
सच में कहा जाये तो १९८० के दशक में पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने जिस तरह से भारत को बुरी तरह से अपनी बल्लेबाज़ी से डराकर रखा हुआ था, तब जावेद भारतीयों के लिए बेहद ख़तरनाक बल्लेबाज़ हुआ करते थे, उससे भी दो या तीन गुणा बढ़कर,धौनी ने पाकिस्तान को ग्यारह साल तक न सिर्फ़ बुरी तरह से दबोचे रखा, बल्कि भारत-पाक के जितने भी बड़े मैच रहे, उसमें पाकिस्तान के लिए एक तयशुदा बात हो गयी थी कि धौनी कप्तान हैं तो पाकिस्तान का जीतना नामुमकिन हो जाता था|
यहॉं एक बात का ज़िक्र यह भी करना चाहिए कि भारत को सलमान बट्ट और मोहम्मद आसिफ़ ने बहुत परेशान करने की कुछ हद तक कोशिश की थी, लेकिन धौनी ने एक बार मोहम्मद आसिफ़ की ख़ूब पिटाई कर दी, उसी मैच के बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने बात को बदलते हुए धौनी से कहा था कि आपका ये जो बालों का लंबा स्टाइल है यह आकर्षक है इसे काटिये मत|
धौनी की कप्तानी को लेकर कई तरह के मैनेजमेंट गुरुओं ने जॉंच पड़ताल करने की कोशिश भी की कि इतने दबाव में धौनी इतने ठंडे दिमाग़ से काम कैसे लेते हैं| युवराज ने हाल ही में धौनी के ठंडे दिमाग़ पर कहा था कि जब तक वह ठंडे दिमाग़ से काम लेते रहते थे, तब तक तो ठीक माहौल रहता था, लेकिन जब वे गरम हो जाते थे तो हरकोई उनके ग़ुस्से का शिकार हो जाया करता था|
मेरे हिसाब से धौनी का सबसे संकटकाल २००७ का २०-२० का विश्‍वकप रहा, जहॉं उन्हें पॉंच दिन के ही भीतर तीन बड़ी टीमों से मैच जीतना बेहद ज़रूरी हो गया था, वे टीमें थीं, द. अ़फ्रीका जो मेज़बान टीम थी, साथ ही ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान भी| और किसी ने नहीं सोचा था कि धौनी जैसा कप्तान जो हारी हुई विश्‍वकप टीम २००७ का भी सदस्य था, वह ऐसा करिश्मा कर पायेगा? लेकिन धौनी ने यह करिश्मा कर दिखाया, बाद में तो सारी दुनिया ही हर तरह से धौनी को करिश्माई खिलाड़ी के रूप में ही देखती रह गयी फटी की फटी आँखों से| धौनी के क्रिकेट में पदार्पण के पहले गांगुली ने भरोसा तो दिलाया कि भारत की जीतें क़िस्मत से जीती हुई जीत नहीं है, क्योंकि गांगुली ने बहुत ही जी जान लगाकर टीम बनायी थी, और धौनी को भी गांगुली ने ही टीम में लाया था, लेकिन धौनी के कप्तान बनने के बाद जब हम लगातार, लगातार हरेक बड़ी टीम को हराते चले गये तब जीतना हमारी आदत बन गयी तब लगा कि जैसा कि कपिलदेव और अज़हर के ज़माने में अक्सर कहा जाता था,  भारत हर बड़ी जीत फ़्लूक यानी क़िस्मत की जीती है, वह फ़्लूक शब्द धौनी की कप्तानी के आने के बाद से हमेशा के लिए भारतीय क्रिकेट से जाता रहा| यह भारतीय क्रिकेट के लिए कप्तान धौनी की सबसे बड़ी सौग़ात रही है| धन्यवाद धौनीजी हम ने अपनी ४७ वर्ष की आयु में क्रिकेट का सबसे अच्छा युग आपके समय में ही देखा है, बहुत-बहुत आभारी हैं हम| बल्लेबाज़ के रूप में हम आपसे कई और करिश्मों की उम्मीद कर रहे हैं|  

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