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नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा

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नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा नोटबंदी नोटबंदी के बाद अब अमेरिका से भारतीय लौटेंगे तो भला भारत का ही होगा एक छोटी सी ख़ुशख़बरी मोदीजी नेदी है कि पेट्रोल के दामों में पाँच रुपये की कमी कर दी है। अब जो लोग रोज़ानासौ किलोमीटर गाड़ी चलाते हैं वे बीस रुपया रोज़ बचा सकते हैं। कारवाले ज़्यादा बचा सकते हैं। यानी छह सौ रुपये महीने के बचा सकते हैं। इसी तरह से महँगाई को कम करते चले जाना है, तभी आम आदमी चैन की साँस ले सकते हैं। नोटबंदी होते ही सबसे पहले किसानों ने सब्जी और अनाज के दाम बहुत ही ईमानदारी से कम कर दिये हैं केवल किसान ही देश का सबसे ईमानदार इंसान है, किसान अपना सबकुछ लुटा देता है लेकिन आम आदमी का साथ हमेशा देता रहा है, आज़ादी के पहले से ही किसान ईमानदारी से जिया है। बाक़ीय कुछ सोने चाँदी की दुकान वाले, कुछ रियल इस्टेट वाले, कुछ शेयर बाज़ार वाले, कुछ महँगे स्कूल के फ़ीस वाले, कुछ महँगे अस्पताल वाले, ये सारे के सारे महाशय एक नंबर के बेईमान और बट्टेबाज़ होते हैं, इनकी गेंडे की चमड़ी पता नहीं कब इंसान की चमड़ी बनेगी। हमें मोदीजी पर पूरा भर...

बूढ़े लोग नयी पीडी से घबरा रहे है

बूढे माँ-बाप की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है या वे नये ज़माने से घबरा रहे हैं ? एक बूढे व्यक्ति ने कहा कि मैंने 70 साल तक नौकरी की। घर के पाँच बच्चों को पाला-पोसा उनके लायक बनाया, बडा घर बनाया, पाँच बेडरूम का। अपने घर को आगे बढाया। अपना मकान आज मैंने अपने बेटों के नाम पर कर दिया है। अब अचानक तबीयत बिगड जाने से घर पर बैठा हुआ हूँ। घर में मेरे से कोई बात तक नहीं करता है। चौबीस घंटों में बेटे-बहू मेरे से दो या तीन वाक्‌य ही बात करते हैं। वह भी मतलब की बात रही तो करते हैं। कोई रिश्तेदार आ जाता है तभी मेरे से बात किया करते हैं। कुछ कहता हूँ तो डाँट देते हैं, अब मैं आ°ड©र देने की हालत में तो बिल्‌कुल नहीं हूँ, हाँ, चुपचाप बच्चों का आ°ड©र सुन लेता हूँ, नहीं सुनो तो बुरी तरह से डाँट दिया करते हैं। अपने बारे में कुछ बुरा सुनता हूँ तो बुरा लगता है, कुछ बुरा देखता हूँ तो बुरा लगता है। मैंने तय कर लिया है कि मैं अपनी आँख बंद कर लूँगा, कान से सुनना बंद कर दूँगा। मुँह से कुछ भी कहना बंद कर दूँगा। ये तीनों खोलूँगा तो दुख मुझे ही होगा। मुँह से कुछ कहूँगा तो डाँट पडेगी, कुछ बुरा सुनूँगा तो सा...

नौजवानों में जलन कुंठा बहुत बढ गयी है

नौजवानों में कोई महीने के 8 हज़ार कमा रहा है तो कोई महीने के 1 लाख, इससे उनके बीच जलन-बेचैनी-कुंठा बहुत बढ गयी है  पहले बिरादरी के 500 नौजवानों में कोई एक डॉक्‌टर-इंजीनियर बना करता था। लेकिन अब तो हर दूसरे परिवार में आईटी वाला बच्चा भी पैदा हो रहा है। यहाँ अपने देश में पैसा नहीं मिल रहा है तो ये लोग विदेश भाग रहे हैं। हाल ही में एक पिता मिल गये उन्होंने अपने लडके पर 20 लाख रुपया खर्च किया वह भी कर्ज़ा लेकर। तब भी वह नौकरी ढूँढ रहा है। बेचारे पिता इसी आस में कर्ज़ का ब्याज भरते जा रहे हैं कि बच्चा आज नहीं तो कल एक लाख की नौकरी पा लेगा। लोग दोक्टोरी, इंजीनियरिंग,एम.बी.ए. बच्चे से करवा रहे हैं तो एम.बी.ए. भारत में 2 लाख में भी हो रहा है तो विदेश में यही पढाई 20 लाख रुपये में भी हो रही है। लोग ज्यादा पैसा खर्च करके बच्चे को बहुत ही ऊँचा मुकाम दिलवाना चाह रहे हैं।

माता पिता की लाशों पर घर बनाया

कई लोगों ने माता-पिता, भाई-बहन की छाती को रौंदकर, उनकी लाशों पर चलकर अपने मकान बनाये है  एक घर में पिता गुज़र गये। माता रह गयी। माता ने 8 हज़ार की नौकरी कर ली। वह बच्चों को पाल रही थी। बच्चे बडे हुए। बच्चों ने कमाना शुरू किया तो वे माता को एक भी पैसा नहीं देते थे। बडा बेटा एक भी पैसा नहीं देता था तो छोटे ने कहा कि बडा नहीं देता है तो मैं क्‌यों दूँ? बडा बेटा कहता था कि माता मुझे तन™वाह नहीं मिलती मैं अभी ट्रेिनग पर हूँ न, तीन साल तो ट्रेqनग में ही बिना तन™वाह के निकल जाएँगे। छोटे ने कहा मेरे व्यापार में नुकसान हो रहा है। मैं उस नुकसान को बहुत ही मुशि्कल से कवर कर पा रहा हूँ, तुमसे ही तो उल्‌टे एक-एक हज़ार लेकर लोगों को नुकसान भर रहा हूँ।

नोटबंदी के बाद रहन-सहन में फर्क आ गया है

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नोटबंदी के बाद लोगों के रहन-सहन में फर्क आ गया है, लोगों के पास पैसे की कमी बहुत हो गयी है, हालात बहुत ही बद से बदतर होते चले जा रहे हैं  नोटबंदी नोटबंदी के बाद दो महीनों तक तो लोगों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। जो लोग प्राइवेट नौकरी कर रहे थे, उनकी नौकरी खतरे में आ गयी थी, कईयों की नौकरी चली गयी, लोग बस बिना कुछ किये दो महीने तक जिंदगी गुजार रहे थे। व्यापारियें को कहीं से भी पेमेंट नहीं आ रहे थे। सारे होटलों में किसी तरह का ग्राहक ही नहीं था, सिनेमाघरों में भीड़ नहीं थी, लोगों के पास बड़ा इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे, ऑटो खाली जा रहे थे, कारों की सवारी कोई नहीं कर रहा था। जबकि करीब एक लाख युवाओं ने ओला, ऊबर कार वंपनियों के भरोसे ब्याज पर कारें खरीदीं थीं, उनकी हालत दो महीने तक बद से बदतर हो गयी थी। और आज तो हालात बद से बदतर हो गयी है, क्योंकि लोग अब अपनी लैविश यानी अमीरों जैसी fæजदगी जीने जैसे लायक ही नहीं रहे  गये हैं, पहले ऑटो वाला अपने दो बच्चों को महँगी फीस के स्कृल में पढ़ा रहा था। नोटबंदी के बाद उसके पास बच्चों की फीस भरने के लाले पड़ गये। उस...

मोदी समाजवाद ला सकते हैं

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आज मोदीजी का रूतबा इतना बढ़ गया है कि वे भारत से बाजारवाद को खत्म करके समाजवाद ला सकते हैं और पूरी जनता आँख बंद करके उनका पूरा सहयोग करेगी भारत की सारी जनता ने हर बार समाजवाद को ही गले से लगाया है, यहाँ पर पूँजीपतियों को कभी सराहा नहीं गया है। नेहरूजी-इंदिराजी और मोदीजी के सारे समय में समाजवाद ही देश में सिर उठाकर चला है। समाजवाद में सारे लोग अपना स्वाथर्र नहीं देखते थे बलि्क समाज का भला पहले चाहते हैं। अपने बेटे को जितना चाहते हैं पड़ोसी के बच्चे को उतना ही चाहते हैं, या कहिए कि पड़ोसी और रिश्तेदार के बच्चे को अपने बच्चे से ज्यादा चाहते हैं। जबकि बाजारवाद जो लगातार आज देश में चल रहा है। पिछले 24 साल से चल रहा है, उसमें स्वाथर्र पूरी तरह से बढ़ गया है। बाæजारवाद ने सबसे बड़ी बुरी आदत हर आदमी में यही दी है कि लोग अपनी ही तारीफ करने से नहीं थकते हैं और दूसरों की बुराई करने से भी नहीं थकते हैं। नेहपालक भी घोर स्वाथर्र पालक हो जाते हैं। इस बाजारवाद का सबसे बड़ा नारा यही रहा है कि अपना काम है बनता भाड़ जाये जनता। ऐसा होने से यह हुआ कि जनता का एक वगर्र तो पूरी तरह से गुलछरेर्रबाजी में लग गया, ल...

जिंदगी बहनों बेटीयों की शादी करते हुए गुजर जाती है

दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी जिंदगी बहनों और बेटीयों की शादी करते हुए गुजर जाती है  एक आदमी है जो बहनों की शादी कर चुका है, एक दो बहनें नहीं चार-चार बहनों की शादी उसने की है, जिसमें पिता का कोई सहयोग ही नहीं था, कोई  जमीन नहीं थी, न ही कोई जाति मकान ही था। वह एक सेठ के पास काम किया करता था। वह सेठ का पूरी तरह से गुलाम हो गया था। क्योंकि सेठ ही उसकी चार बहनों की शादी में बहुत सारी मदद कर दिया करता था। उसकी नौकरी का समय तय ही नहीं था। वह सुबह छह बजे वहाँ पहुँच जाया करता था और रात में एक बजे घर वापस आया करता था। दिन में जब सेठ को काम नहीं होता था तो वह कुसार्री पर एक घंटा नींद ले लिया करता था।  इस परिवार में ईश्वर की यह वृपा थी कि यह परिवार संघषर्र करना ही जानता था, चार-चार बेfटयों को संभालकर रखना भी बहुत ही बड़ा काम था। कई लड़के शादी का प्रस्ताव लेकर आया करते थे। उनको भी भगाने का काम करना पड़ता था। जाति-वाति भी देखना पड़ता था, अपनी ही जाति में ही लड़का देना पड़ता है, दो लड़के आये भी थे एक ने कहा कि मैं सरकारी नौकरी में हूँ और मुझे आपकी बेटी बहुत ही पसंद है, मैं जीवन ...

भारतीय टीम ने नंबर एक टीम बनने

भारतीय टीम ने नंबर एक टीम बनने वेÀ fलए बहुत मेहनत की है, उनको लाख-लाख बधाई इस उपलfब्ध वेÀ fलए भारतीय टीम सारी दुfनया की सबसे कfरश्माई टीम है, इसने नंबर एक रैंfवंÀग प्राप्त तो की, लेfकन बहुत ही चमत्काfरक तरी॰वेÀ से की। वह चमत्कार यह है fक fपछले आठ महीने में भारतीय टीम ने छह से लेकर आठ fखला॰fडयों को लगातार टीम में बदला। fजसमंे रहे गंभीर, पाfथ&व पटेल, मुरली fवजय, जयंत, रहाणे, सामी, करूण नायर, अfमत fमश्रा, इतने fखलाड़ी बदलकर कर भी आप नंबर एक बने रहते हैं यह बात बहुत ही हैरत में डालने वाली और fनराली हो जाती है। जबfक हर नंबर एक की टीम लगातार एक साल तक अपने fवजयी टीम को ही हरेक मैच में साथ लेकर चलती है। जब तक fक उसका कोई fखलाड़ी घायल नहीं हो जाता है। लेfकन कोहली का अध्ययन बहुत ही गहरा है और बहुत ही fक्रÀकेट वेÀ आला दजे& वेÀ fवद्वान की तरह है, या यह कह सकते हैं fक उनकी ॰fकस्मत ऐसी चल रही है fक वे fजस fखलाड़ी पर हाथ रख दे रहे हैं वह इंसान पारस या सोना बन जा रहा है। करूण नायर का fतहरा शतक इसी बात का उदाहरण है। अब ऑस्टे्रfलया दूसरा टेस्ट हारने वेÀ बाद यही सोच रही है fक भारत में आकर ख...

पहले टेस्ट में कयामत जैसी हार विराट कोहलीजी

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पहले टेस्ट में कयामत जैसी हार, दूसरे टेस्ट में चमत्कार जैसी जीत, क्या बात है विराट कोहलीजी  नीरज कुमार  जब भारत पहला टेस्ट बहुत ही बुरी तरह से हार गया था, लगभग भारत को धूल चटा दी गयी थी, उनकी ही धरती पर विश्वचैंपियन टीम वे केवल दो पारियों में वे केवल सौ पार रन ही बना पायी थी, तब किसी ने नहीं सोचा कि भारत क्या इस श्रृंखला में क्या एक भी टेस्ट जीत पायेगा, सभी लोग तय मान रहे थे कि इतनी धूल चटा दी जाने वाली हार के बाद भारत इस बार 0-4 से हार सकता है।  और यह बहुत दद&नाक हार होने जा रही थी, सभी को यह हार सदियों तक याद रहने वाली थी। क्योंकि ऑसी की टीम fस्पन की तैयारी बहुत ही अच्छे तरीवे के से करवे के आयी थी, वे पुणे टेस्ट और बैंगलुरू की पहली पारी में बल्लेबाजी भी जमकर कर रहे थे, और भारत को भी धूल चटाने जैसा ही आउट करते ही चले जा रहे थे। दूसरे टेस्ट में तो जब भारत 189 पर आउट हो गया था, उसमें सबसे बुरी बात तो यह थी कि अंत वे के पाँच विवे केट वे केवल बीस रन वे के भीतर ही धराशायी होते ही चले गये, जैसे बल्लेबाजों की बारात fनकल रही थी, जैसे लोग मंदिर मंे टीका लगाने वे के लि...

मोदीजी ने नोटबंदी करके सभी भारतवासियों के सिर से बहुत भारी बोझ उतार दिया है।

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मोदीजी ने नोटबंदी करके सभी भारतवासियों के सिर से बहुत भारी बोझ उतार दिया  है।  गंदे पैसे का बोझ, भ्रष्ट पैसे का बोझ, नोंच नोंचकर खाने के पैसे का बोझ, एक ही चोंट मारी तो सारी धरती fहल गयी। भूचाल आ गया, आत्मा भी रो पडी भ्रष्टाचाfरयों की।  जय हो मोदीजी, एक बाबा झोली लेकर आया और काम तमाम करके बैठा है शान से गद्दी पर। मोदीजी ने गरीबों के fलए सात सौ दवाओं के दाम भी कम कर fदये हैं, ये है मोदीजी का मानवता का उत्वृष्ट रूप वरना ये राक्षस दवाओं के दाम बढाकर जनता को रौंद रहे थे। इलाज पर तो चोंट धमाकेदार रही अब शिक्षा  के वहशीपन पर भी वृपा करके जल्दी से जल्दी मोदीजी वुछ कीfजए, हम आपको एक ईश्वर के भेजे दूत की तरह देख रहे थे, आप हमारे fपतातुल्य हैं, बा॰जारवाद को आप बुरी तरह पाताल में गाडने की तैयारी कर रहे हैं। यह भी हमें पता है, महँगाई को दफन कर रहे हैं, देश के सबसे गरीब आदमी के चेहरे पर fदन ब fदन मुस्कान आ रही, यह मुस्कान चौडी होती जाये हम ईश्वर से इसी तरह की सद्बुfद्ध की कामना आपके fलए कर रहे हैं। दाढी वाले बाबा को लाख लाख प्रणाम।   भ्रष्टाचार का गंदा बोझ सभ...

मोदीजी कालाधन की परिभाषा कैसे करेंगे

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मोदीजी कालाधन की परिभाषा कैसे करेंगे, अपने आपको आप देश के ग़रीब नागरिकों के साथ जोड़कर देखिये, जो आपके पास धन है उससे हिसाब लगाकर देखिये कि कालाधन क्या है, तब पता चल जायेगा कि आपके पास कितना काला धन है  जैसे-जैसे नोटबंदी के दिन बढ़ते जा रहे हैं लोग दूसरे लोगों से सवाल कर रहे हैं और अपने दिल और मन से भी पूछ रहे हैं कि मेरे पास जो धन है वह कालाधन है या सफ़ेद धन हैं? एक पत्रकार के नाते मैं आपसे नैतिक सवाल करता हूँ कि आपके पास जितना धन है क्या उतना ही भारत के आम नागरिक के पास है| एक आम आदमी की महीने की तनख़्वाह छह हज़ार से एक लाख रुपये तक हो सकती है, लेकिन क्या छह हज़ार रुपये जिसकी तनख़्वाह है क्या वो चैन से जी पा रहा है| अगर नहीं जी पा रहा है, तो आपके पास अगर तीस लाख से अधिक का धन है वह काला धन है| सरासर कालाधन है, आपके पास के तीस लाख यानी दस लाख के ब्याज से भोजन, दस लाख के ब्याज से रखरखाव और बचे दस लाख के भोजन से कपड़े लत्ते, यानी एक व्यक्ति के लिए तीस लाख पर्याप्त होते हैं, क्योंकि आजकल हरकोई दस साख शेयर-म्युचुअलफ़ंड में डालता है, या उसके मेच्योर होकर दस लाख हो चुके हैं, दस...

मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है

मोदीजी, नोटबंदी आने से समुभय, इंसानियत से भरा भारत लौट रहा है, लोग होटलबाज़ी से ऊबकर घर की ओर लौट रहे हैं  नोटबंदी करने से नयी पीढ़ी में फ़ैशनबाज़ी, होटलबाज़ी, गुलछर्रेबाज़ी में बहुत कमी हो गयी है, नयी पीढ़ी नोटों की सप्लाई नहीं होने की वजह से सालों के बाद घरों के भीतर दिखाई दे रहे हैं| यह परिवारो के लिए बहुत ही अच्छा संदेश दिखाई दिया| लोगों के पास सिनेमा देखने के लिए चार-चार हज़ार रुपये नहीं दिखाई दिये|  लोगों को तनख़्वाह भी बहुत ही धीरे-धीरे करके मिलने लगी थी| कुल मिलाकर कुछ समय तक रुक कर जीवन के बारे में सोचने का समय भी लोगों को मिला और नोटों की अहमियत लोगों को पता चली| लेकिन एक बात तो तय है कि लोग जब शॉपिंगबाज़ी के बारे में नहीं सोचते हैं तो देश के लिए सोचने लग जाते हैं, और इस समय मोदीजी ने देश को सबसे अच्छा माहौल दिया है| कहीं पर भी सांप्रदायिकता नहीं है, कोई भी हिंदू-मुस्लिम के अलग-अलग होने की बात तक ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| लोग जातिवाद की बात पर भी ज़ुबान पर नहीं ला रहे हैं| इस समय शेयर बाज़ार बहुत ही अच्छे तरीक़े से चल रहा है| लगभग २७ हज़ार के पार चल रहा है| यानी आपके पास पै...

नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में बहुत यादगार रोल निभाया

शाहरुख़ ख़ान से बेहतर और बहुत यादगार रोल निभाया है नवाज़द्दीन ने रईस फ़िल्म में  रईस फ़िल्म वैसे तो एक मसाला फिल्म की तरह ही है, इसमें शाहरुख़ ने जैसा अभिनय किया है, उससे कहीं बेहतर अभिनय अमिताभ बच्चन ने दीवार फ़िल्म में किया था, अब जाकर दीवार की अहमियत सामने आ रही है| लेकिन यहॉं रईस में शाहरुख़ ख़ान ने अतुल कुलकर्णी को मारते समय जो रो-रोकर उसकी हत्या करने का शांत अभिनय किया है वह लाजवाब है और दूसरे एक दृश्य में ग़ुस्से में फ़ोन पटकने का दृश्य है वह भी अति उत्तम है| अब आते हैं लिटिल मास्टर नवाज़ुद्दीन भाई पर|  नवाज़ का न चेहरा है, नक़द है, न काठी, न शरीर से बलवान, लेकिन एक्टिंग की मशीन| रईस फ़िल्म में निर्देशक राहुल ढोलकिया ने हालॉंकि नवाज़ को लंबे स्क्रीनप्ले नहीं दिये,ज़्यादा बाज़ी मार सकते थे| सीधे कट टू कट लगभग क्लोज़ अप दृश्य दिये हैं, जबकि शाहरुख़ को लंबे-लंबे स्क्रीनप्ले दिये हैं| लेकिन उनमें भी कम स्कोप रहने पर भी नवाज़ भाई ने अभिनय में जो जादू जगाया है, वह कम से कम कहें तो बहुत जादुई है| हर दृश्य को असीम गहराई से किया है, राहुल ने उन्हें कैमरा प्लेसमेंट बहुत ही अच्छी जगह दिये हैं हर...

नोटबंदी का बहुत फ़ायदा हुआ है

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नोटबंदी का बहुत फ़ायदा हुआ है लोगों का ख़ून चूस कर धन संचय करने की आदत कम हुई है, अब सरकार को वंचित लोगों का भला करना चाहिए   नोटबंदी के बाद महँगाई आश्‍चर्यजनक तरीक़े से कम हो गयी है, टमाटर पॉंच रुपये किलो हो गये थे, सड़कों पर फेंके जा रहे हैं, टमाटर सस्ते इसलिए हो गये कि दरअसल इसका सही दाम यही हुआ करता था, ये तो बिचौलिये थे जो इसका काम दाम बहुत ज़्यादा करने जनता को लूटा करते थे, अरहर-तुअर की दाल के दाम आश्‍चर्यजनक तरीक़े से कैसे नीचे आ गये, क्योंकि नोटबंदी के कारण लोगों ने महँगी दाल ख़रीदना बंद कर दिया था, तो व्यापारियों ने सोचा कि इतनी महँगी दाल बेचेंगे तो कोई लेगा नहीं, लोग दूसरी दालें खा लेंगे, और हमारी अरहर की दुकानें बंद हो जाएँगी, फिर लोगों ने या कहिए कालाबाज़ारियों ने झक मारकर नोटबंदी के कारण दाल को सस्ती कर दी और आज दाल सत्तर रुपये से लेकर केवल नब्बे रुपये में बेच रहे हैं, जबकि नोटबंदी के पहले यही दाल १६० रुपये से लेकर २५० रुपये किलो तक बिक रही थी| कालाबाज़ारी लोग अब लहसुन के दाम बढ़ा रहे हैं, ये वे ही कालाबाज़ारी करने वाले लोग है जो बाज़ार में किसी न किसी तरह का षड़यंत्र किया...

मोदीजी क्या व्यापारियों को पेंशन दी जायेगी? - EDITOR NEERAJ KUMAR

नोटबंदी की वजह से दो महीने के भीतर कई व्यापारियों की दुकानें व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं, क्या व्यापारियों को पेंशन दी जायेगी?  नोटबंदी में सारे देश की जनता ने मोदीजी का भरपूर सहयोग दिया है| मोदीजी अब इस समय उन लोगों की ओर ध्यान न दें जो कालाधन को सफ़ेद करने में सफ़ल रहे| क्योंकि करोड़ों लोगों के दिल में भ्रष्टाचार रग-रग में बस चुका था| लोगों में धारणा घर कर गयी थी कि पैसा होगा तभी इज़्ज़त होगी| रिक्शावाला से लेकर अरबपति सभी के लिए पैसा ही भगवान हो गया था| और इन बीस साल में सच में पैसा ही भगवान हो चुका था, पैसा है तो आप भगवान नहीं तो हैवान  कहला रहा था, इंसान| इस ज़माने में जो भ्रष्ट लोग हो गये थे, उनके आगे-पीछे सारी दुनिया चल रही थी, अगर आपने कहा कि मैं ईमानदार हूँ, तो लोग आपको गालियॉं दे रहे थे| पूरी तरह से उल्टी गंगा बह रही थी|  लोगों ने ईमानदारी में जीकर देखा तो उसमें नसीहतें, गालियॉं, ज़लालत, हिकारत, मुफ़लिसी, यही मिल रहा था| बहुत अच्छा हुआ कि मोदीजी ने नोटबंदी कर दी, इससे लोगों को एहसास तो हो गया कि जो पैसा भगवान माना जाता था, उसी पैसों पर चोंट की जा सकत...

क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है - EDITOR NEERAJ KUMAR

क्या आज के समय में ससुराल से पैसा लेना ठीक है या नहीं, हम नहीं लेते तो बच्चे हमें ताने मारते हैं कि आपने ईमानदारी की ज़िंदगी जीकर क्या हासिल किया? आजकल सबसे बड़ा पाप है तो वह यह है कि हम ईमानदारी से जी रहे हैं| आज ईमानदार आदमी के पास क्या है, दस साल पुराना ़िफ्रज, छह साल पुराना बत्तीस इंच का टीवी, एक कार पुरानी या नयी, दो स्कूटर, एक छोटा सा मकान, या नहीं तो एक किराये का मकान| जबकि दुनिया बहुत ही आगे निकल चुकी है| लोगों के पास बहुत सारे पैसे हो गये हैं| पचास इंच का टीवी, एक घर में तीन तीन कारें, हर कमरे में पचास इंच का टीवी, पचास हज़ार के तीन मोबाइल, कम से कम दो करोड़ का मकान, उसके अलावा तीन और मकान| लोग अपने रिश्तेदारों की तरफ़ देखते हैं तो कहते हैं वो लोग कितना आगे निकल गये, हम पीछे ही रह गये|  बहुत सारे लोगों ने अपनी ससुराल से एक भी पैसा नहीं लिया| और ससुराल वाले इस बात की तारीफ़ भी नहीं करते हैं वे कहते हैं कि आप गधे थे जो ससुराल से पैसा नहीं लिया| सभी लोग लेते हैं, आप ईमानदारी में ही मरते रह गये, लोगों ने तो अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए ससुराल से पैसे लिए और आज वे अपने बच्चो...

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