आम आदमी तो चार चीज़ों से प्रताड़ित है- महँगाई, स्कुल की फ़ीस
आम आदमी तो चार चीज़ों से प्रताड़ित है-महँगाई, स्कूल-कॉलेज की फीस , पेट्रोल के दाम, इलाज पर ख़र्च, इससे भी मोदीजी निजात दिला दें तो हम उनका उपकार मानेंगे नोटबंदी के बाद अब, आज़ादी के सत्तर साल के बाद ऐसा पहली बार लग रहा है कि हम आज़ाद भारत में सॉंस ले रहे हैं| लाईन में खड़े होकर हमने भी देश के लिए कुछ कर दिखाया है, ऐसा लग रहा है, जैसे एक महायुद्ध होने के बाद जनता कैसे अपने नये देश को बनाने में लग जाती है, उसी तरह की अनुभूति हो रही है| बैंकों में क़रीब दस लाख करोड़ जमा होने के बाद ऐसा लग रहा है कि हमने अपने लिए कुछ पैसा हासिल कर लिया है|
पहली बार ऐसा लग रहा है कि ग़रीबों के लिए मुफ़्त में घर बनेगा, ग़रीबों को दो वक़्त की सम्मान की रोटी मिलेगी| मेरा भारतवासी ग़रीब, जो ग़रीब आजकल विदेशी बैंकों की फुटपाथ पर सोता था, उस ग़रीब को पुलिस उसे वहॉं से हटने तक लगातार डंडे मारा करती थी, उस तरह के दिल दहला देने वाले दृश्य ग़रीबों को लेकर अब देखने को नहीं मिलेंगे, और ईश्वर से प्रार्थना है कि वैसे ग़रीबों के लिए दृश्य अब मोदीजी हमें न दिखाएँ तो उनका लाख-लाख शुक्र होगा|उस ङ्गुटपाथ पर सोये भिखारी के मन में अब इच्छा जागी है, क्योंकि वह भिखारी हम सभी को नोटों की लाइन देखकर यही सोच रहा था, कि हम भिखारी की तरह ये सभ्य लोग भला लाईन क्यों लगा रहे हैं, क्या इस लाइन में भी भोजन मिल रहा है? ङ्गिर उसे क्षण भर पता चल गया कि यह वही एटीएम की लाइन है जहॉं से मैं पिटते-पिटते नींद से उठा करता था| इन सबके बाद मुझे तो लग रहा है जैसे अनाड़ी ़िङ्गल्म का राजकपूर सड़क पर निकल चला है, यह गीत गाते हुए... किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते तो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है| कालेधन की हैवानियत के बाद आज़ाद भारत की आठ नवंबर के बाद नौ नवंबर २०१६ की वह सुबह सबसे सुंदर सुबह कही जा सकती है| ऐसा लग रहा है जैसे नरेंद्र दामोदर मोदी एक देवता की तरह आये हैं और इस देश को किसी बहुत बड़े ऊँचे स्तर पर ले जा रहे हों| इस पैसे पैसे पैसे की पुकार से तो दम घुट रहा था, क्योंकि हरकोई पैसे के नशे में चूर हो गया था| मगर आठ नवंबर के बाद से दस दिन के लिए सारी गुलछर्रेबाज़ी ख़त्म हो गयी, कार में डलाकर लांग ड्राइव को जाने के लिए पेट्रोल के पैसे तक नहीं थे, सिनेमा देखने को पैसे नहीं, पीत्ज़ा-बर्गर खाने को पैसे नहीं, मैंने नौ नवंबर के दिन नेकलेस रोड पर ठहर का बीस रुपये की मूँगङ्गली बहुत शान से खाई, कि चलो मूँगङ्गली के दिन अब अमीरों के लिए भी दोबारा आ गये| और टैंकबंड पर बुद्धजी की प्रतिमा को देखकर कहा कि हॉं, भगवन ये है मेरा असली भारत| आज भी अधनंगों का भारत, क्या मैं आज के बाद ये गीत नहीं गाऊँगा,.....ये महलों, ये तख़्तों, ये ताजों की दुनिया, ये इंसॉं के झूठे समाजों की दुनिया, ये दुनिया अगर भी मिल भी जाये तो क्या है, ये है मेरे साहिर लुधियानवी का भारत, ये है मेरे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भारत, क्योंकि अब नहीं होगी वह कविता इलाहाबाद के पथ पर, वह तोड़ती पत्थर... और सबसे बड़ी बात यह है मेरे गांधीजी का भारत और हॉं, यही है मेरे कबीर का भारत| अरे साहब नौ नवंबर की सुबह एक सेल़्ङ्गी लेना भूल गया| मैं इतना ख़ुश क्यों हो रहा हूँ आपको बतलाता हूँ| सभी के सभी पैसे के नशे में चूर थे, मैं मेरी जान पहचान के सौ लोगों को नमस्ते करता था तो उसमें से केवल चालीस लोग ही मेरे नमस्ते का जवाब देते थे, चूँकि मैं बहुत छोटी औक़ात का हूँ इसीलिए, उनका सोचना भी ठीक था, कि वो लोग इस जैसे को पलटकर नमस्ते करेंगे तो उनका नमस्ते बेकार चला जायेगा, मैंने कुछ लोगों से पूछा कि मेरे नमस्ते का जवाब लोग क्यों नहीं देते हैं, लोगों ने कहा कि आपके पास पैसा नहीं है, इस ज़माने में पैसे वाले, पद वाले और पॉवर वाले व्यक्ति को ही नमस्ते किया जाता है| या नमस्ते का जवाब दिया जाता है| जब आप जैसे लोग नमस्ते करते हैं तो जिसको आप नमस्ते करते हैं तो उसको बड़ी तकली़ङ्ग भी होती है कि हाय लो अब ऐसे लोगों की नमस्ते का जवाब देने के भी दिन आ गये हैं क्या? बात भी पैसे वाले की सुनी जाती है, और बात भी पैसे वाले से ही की जाती है| आपका तो भगवान ही मालिक है| पैसे की वजह से बुज़र्गों का सम्मान बुरी तरह से चला गया, लेकिन नोटबंदी के बाद लोग हक़ीक़त से इतने घबरा गये हैं कि अब बुज़ुर्गों को थोड़ा-थोड़ा सम्मान देने की कोशिश कर रहे हैं|
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