पिछले तीन साल से हिंदी बोलने वाला अनपढ़ हीरो ही हिंदी सिनेमा पर राज कर रहा है

पिछले तीन साल से हिंदी सिनेमा में फिर से वही अनपढ़ हीरो जो बिल्कुल पढ़ा-लिखा नहीं है वह राज कर रहा है| २०१४ की फ़िल्म में पीके अनपढ़ है अनपढ़ फ़िल्म के हीरो ने आठ सौ करोड़ कमा लिये हैं| अनपढ़ हीरो सुल्तान यानी सल्लू भाई ने छह सौ करोड़, केवल दसवीं पास बजरंगी भाईजान ने छह सौ करोड़ कमा लिये हैं| और इधर अनपढ़ कपिल शर्मा जिनको अंग्रेज़ी नहीं आती है, वह अंग्रेज़ों से भी, ख़राब अंग्रेज़ी में बात करके साल भर में हिंदी के नाम पर पंद्रह करोड़ रुपया तो टैक्स दे रहे हैं| सो, हिंदी पत्रिका का संपादक होने के नाते आज मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है मैं अपने आपको सातवें आसमान पर महसूस कर रहा हूँ कि भाड़ में गयी अंग्रेज़ी और हिंदी हो गयी है सारी दुनिया की महारानी|  देखिये हमारी हिंदी आज आठ सौ करोड़ रुपया कमा रही है| 



पिछले बीस साल से अंग्रेज़ीदॉं टर टर टर टर टर करने वाले मेंढक शाहरुख़ ख़ान ने तो पूरे माहौल को अंग्रेज़ीदॉं बना दिया था| सारे संगीत को बदल दिया था, ंसंगीत की लयबद्धता को दफ़नाकर शाहरुख़ ने संगीत को छम्मक छल्लो बनाकर रख दिया था| आज शाहरुख़ के समय में दस साल पहले से ही लताजी, सोनू निगम, सुखविंदर सिंह, अभिजीत ने तो गीत गाने ही छोड़ दिये थे| सोनू निगम तो अब केवल राजकुमार हीरानी के लिए ही गा रहे हैं| इसीलिए  शाहरुख़ आज आमिर, सल्लू से बहुत पीछे हो गये हैं क्योंकि वे हाथ फैला कर सैनोरिटा कह रहे थे, और अंग्रेज़ीदॉं लड़कियों को बाहों में बुला रहे थे, मगर हमारे हिंदी के सुल्तान एक गीत लेकर आये बहुत ही प्यारा गीत जग घूमया थारे जैसा न कोई....उधर आमिर बहुत अच्छा गीत लेकर आये.. तुझे तक तक तक तकते रहना, तेरी बक बक बक सुनते रहना कामकाज सब भूल भुलाके .. लव इज ए भेस्ट ऑफ़ टाइम...ये दो बहुत ही प्यारे गीत रहे... और इनके साथ आया एक बहुत ही छिछोरा गीत लेकिन बहुत प्यारा गीत... मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये...इसमें डमरू और ढोलकी की लय इतनी सुंदर थी कि बच्चे से लेकर बूढ़ों का मन नाच नाच कर थक गया था| साथ में एक और छिछोरा गीत आया, लेकिन प्यारा गीत आया...तूने मारी एंट्रियॉं तो दिल में बजी घंटियॉं टन टन टन टन टन टन, इस गीत को भी लोग सुनकर अपनी जवानी की आवारगियॉं याद करने लग गये, इन सारे गीतों ने मिलकर हिंदी की ठेठ पहचान को आसामान में ला दिया और शाहरुख़ को कचरे के डिब्बे में डाल दिया| इधर शाहरुख़ तो दिल में मेरे है दर्दे डिस्को और हम इंडियावाले जैसे नक़ली गीत बनाने लग गये, दरअसल ये प्यार के असली गीतों की शुरूआत तो दबंग से शुरू हुई| ठेठ हिंदी की ट्रेंड सेटर फ़िल्म दबंग ही कही जा सकती है| इसने सारे हिंदी सिनेमा को देहात की तरफ़ खींचा| वह सुंदर गीत था... तेरे मस्त मस्त दो नयन मेरे दिल का ले गये चैन मेरे दिल का ले गये चैन तेरे मस्त मस्त दो नयन...| और फिर इसी फ़िल्म का गीत जिसने सबके मन को नचा डाला उसका अंतरा कुछ इस तरह है...शिल्पा सी फ़ीगर बेबो सी अदा बेबो सी अदा... उफ़ देहात के लोकगीत का जो रस है वह इस गीत से मिला, हालॉंकि इनका स्तर बहुत ख़राब रहा मगर बाई हुक और कु्रक हिंदी तो इन गीतों से आसामान पर चढ़ गयी| और शाहरुख़ का बंटाधार हो गया| हॉं, सच में सुल्तान भाई जिस तरह से अपना असली दॉंव खेलकर माफ़ी मॉंग कर चले जाते हैं उसी तरह  से हिंदी ने अपना दॉंव खेला है और अंग्रेज़ी से क्षमा भी मॉंग ली है, हॉं, ये होती है गांधीजी की अंहिंसात्मक लड़ाई| गांधीजी ज़िंदाबाद...| पीके फ़िल्म में जब आमिर ख़ान अपनी चप्पलों को बॉंधकर मंदिर जाते हैं तो चप्पलों का बॉंधने का नुस्खा मुझे गांधीवादी लगा कि चप्पल के खोने पर हिंसा क्यों अपना चप्पल बॉंधकर मंदिर में चलो, प्रिवेन्शन इज़ बेटर देन क्योर...| हॉं तो साहब सुल्तान ने कुश्ती का ऐसा दॉंव खेला कि शाहरुख़ की अंग्रेज़ी को धोबी पछाड़ मारकर उन्होंने शाहरुख़ को धूल चटा दी है, अंग्रेज़ी के चारों ख़ाने चित्त कर दिये हैं| हिंदी से जो टकरायेगा वो मिट्टी में मिल जायेगा| आज हिंदी अपने जांघ पर धौल जमाकर अंग्रेज़ी को ललकार रही है कि दम है तो आ जाओ मैदान में चारो गाने चित्त कर देंगे| 
शाहरुख़ ख़ान की अंग्रेज़ीदॉं फ़िल्म डियर ज़िंदगी तो दुनिया भर में दो सौ करोड़ रुपये भी नहीं कमा सकी है| क्योंकि वो अंग्रेज़ीदॉं लोगों के जीवन की पद्धति है, हमारे सुल्तान ने सच कहा है कि हमारे यहॉं पत्नी से प्यार गहरा होता है जी, हमारे यहॉं तलाक़ नहीं होता है जी...| जहॉं एक ओर दुनिया में लोग बहुत ही बड़ी पढ़ाइयॉं कर रहे हैं| करोड़ों रुपये कमाने के लिए दिन रात पढ़ कर बहुत ही इंटेलिजेंट बन रहे हैं उन्हें हिंदी सिनेमा के ये अनपढ़ हीरो कैसे पसंद आ रहे हैं यह बहुत ही हैरत की बात हो गयी है| दरअसल सुल्तान, बजरंगी, पीके में सभी को प्रेम और मानवता की सच्चाई दिखाई दे रही है| सुल्तान को अरफ़ा नायिका मिल जाती है, लेकिन बेचारा पीके तो अपनी अनुष्का शर्मा की तरफ़ पीछे मुड़कर भी नहीं देखता है, बस उसके कैसेट लेकर चला जाता है, कितना प्यारा और पवित्र प्रेम था वो, वैसे प्रेम तो ठेठ हिंदी वाला ही कर सकता है, ख़ास बात देखिये कि सुल्तान, पीके, बजरंगी में आजकल की गंदी गंदी लिप लॉक पप्पियॉं भी नहीं थी, जो कि परिवार के साथ देखने में शर्म आती है| बहुत ही साफ़ सुथरी और मनोरंजक फ़िल्में रही ये तीनों, अरे भाई ठेठ हिंदी की फ़िल्में हैं चुम्मा चाटी क्यों होगी|
इधर अपना भोजपुरिया यानी हिंदी का पीके ज़रा मज़ाकिया भी है, वह पुलिसवाले को पेशाब करके दिखलाता है और उसे ठुल्ला कहकर थाने में बंद हो जाता है| लेकिन है वह बहुत ही सच्चा और पूरी सच्चाई से लड़ाई लड़ता है| बजरंगी तो पूरा गांधीवादी है, सच कहकर बहुत बार पिटता है, लेकिन सच का साथ नहीं छोड़ता|  अपने सुल्तान साहब तो केबल टीवी का काम करते हैं और हर बूढ़ा उनसे फ़ैशन टीवी की दरकार रखता है| हैरत है कि पतंग लूटते हैं  सुल्तान साहब| पचास साल का सलमान पतंग लूटता हुआ बिल्कुल बूढ़ा भी नहीं लगता है| और हैरत देखिये कि वह उसका नाम फ़िल्म में सुल्तान अली  ख़ान है लेकिन पूरी पिक्चर देखते समय भी नहीं लगा कि वह मुसलमान है| जबकि उधर बजरंगी भाईजान में ब्राह्मण पवन कुमार चतुर्वेदी यानी बजरंगी को मस्जिद में सो जाना पड़ता है| और वह दृश्य तो सुंदर है जहॉं पर छोटी बच्ची को पड़ोस से मांस मच्छी की ख़ुशबू आती है तो वह वहॉं जाकर मांस खाती है, और पाकिस्तान क्रिकेट जीतता है तो वह नाचती है| पहले की फ़िल्मों में अमिताभ भी अनपढ़ ही थे, अमर अकबर एंथोनी फ़िल्म में अनपढ़ आदमी की अमिताभ बच्चन ने इतनी शानदार एक्टिंग की थी कि आज भी उस किरदार को कई पढ़े-लिखे लोग भी बहुत ही करीने से किया गया अभिनय मानते हैं| राम और श्याम के आवारा दिलीप कुमार में लोग आज भी बहुत अभिनय की बारीकी ढूँढ रहे हैं| के.एल. सहलग, बैजू बावरा के भारत भूषण से लेकर, क़िस्मत के अशोकर कुमार से लेकर, श्री ४२० के राजकपूर से लेकर, सुल्तान ने छह सौ करोड़ रुपये कमा लिए हैं| ये सारे के सारे नायक अपनी इन फ़िल्मों में अनपढ़ क़िरदार में ही रहे हैं| और हैरत देखिये कि ये सारी फ़िल्में न सिर्फ़ हिट रहीं बल्कि ट्रेंड सेटर भी रही हैं| आज के पीके फ़ेम निर्देशक राजकुमार हीरानी तो कहते हैं कि जब भी मैं अपनी हर नयी फ़िल्म बनाता हूँ तो सबसे पहले श्री ४२० ज़रूर देखता हूँ| 
अब इधर देखिये कि सुल्तान पूरी तरह से अनपढ़ है और वह पढ़ी लिखी अभिनेत्री से प्रेम करके यह गीत गाता है- तेरी अँखियॉं इंग्लिश बोले मेरी अनपढ़ अँखियॉं रे...बेबी को बेस पसंद है| इस गीत में पचास साल के सलमान ने इतनी मस्ती की है कि वे कूदते फांदते बिल्कुल बूढ़े नहीं लगे हैं| 
पिछले साल बजरंगी भाईजान आयी थी, उसका हीरो सलमान ख़ान दस बार दसवीं में फ़ेल होता है और अंत में पास हो जाता है तो उसके पिता का ख़ुशी के मारे देहांत हो जाता है| वही बजरंगी भाई, गांधीवादी आदमी है, अहिंसा और सच्चाई से काम लेता है, लेकिन उसके साथ वाली छोटी सी बच्ची सारी दुनियादारी जानती है और जब वह सलमान से ठीक उल्टा सोचती है तो फ़िल्म में हास्य पैदा होता है| 
तीन साल पहले आयी थी पीके फ़िल्म| उसका हीरो भी पहले तो गूंगा होता है, फिर भोजपुरी भाषा ट्रांसफ़र मारता है हाथ से हाथ पकड़कर| सो, इस तरह के भोलेपन के साथ हिंदी आगे ही आगे बढ़ती चली जा रही है, लेकिन इस हिंदी के भोलेपन को दुनिया भर में पहुँचाने वाले बहुत ही इंटेलिजेंट लोग हैं जैसे कि अभिजात जोशी पीके लिख चुके हैं, सौरव शुक्ला दबंग लिख चुके हैं, इनको ही आधा क्रेडिट दिया जाना चाहिए| 
हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए कपिल शर्मा शो के मशहूर गुलाटी का नाम लेना बहुत ही आवश्यक है उनकी वजह से एक्टिंग की बारीकी और हिंदी को किस तरह से, किस लहज़े से असल में कहा जाता है वह असली रंग दिखाई दे रहा है| 

आज हिंदी और उसका अनपढ़ हीरो सारी दुनिया पर राज कर रहा है, और शाहरुख़ को अपना विदेशी लिबास, प्रेम सब छोड़ना ही होगा, शाहरुख़ घबरा गये हैं और अंग्रेज़ी भी बुरी तरह से घबरा गयी है अब देखना है आगे क्या होता है, हमारा तो कहना है कि हिंदी का यही भोलापन परदे पर जारी रहे तो बहुत अच्छा होता है, समाज में भी अच्छा मेसेज जाता है| सच में सलमान के मारफ़त हमने हिंदी का प्रेम रतन धन पाया है, अरे हॉं, याद आया प्रेम रतन धन पायो में भी सलमान ख़ान अनपढ़ ही होते हैं और उस फ़िल्म में अपनी बहन को वे अपनी पूरी जायदाद देने को तैयार हो जाते हैं, ऐसे होते हैं हिंदी वाले, एकदम दिलेर..| अरे वाह एक और गांधीजी पैदा हो गये| चलने दो बालकिशन| आज देश को हिंदी और भारतीयता की बहुत ही ज़रूरत है| हम स्वागत करते हैं कि हिंदी हरयाणवी लहज़े में बहुत ही सुंदर लग रही है, अभी तो हिंदी के और भी कई रूप आने बाक़ी हैं सच में हिंदी का सिनेमा कोई भी हो, अगर हज़ार करोड़ एक ही फ़िल्म से कमा लेता है तो बहुत बड़ी बात होगी, एक बात बताते हैं कि भारत में मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल केवल छह हज़ार हैं चीन में बीस हज़ार हॉल हैं अगर भारत में भी बीस हज़ार सिनेमा हॉल हो जाएँ तो बल्ले बल्ले हो जाये| 

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