अब समय आ गया है कि दूल्हा छोटी उम्र का हो और दुल्हन बड़ी उम्र की हो

महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी - 8

अब समय आ गया है कि दूल्हा छोटी उम्र का हो और दुल्हन बड़ी उम्र की हो, तो इससे दो परिवारों का फ़ायदा हो सकता है, बेटी अपने माता-पिता के लिए पैसा जमा करके दे सकती है, या नहीं तो दुल्हन को अपने मायके को, शादी के बाद में लगातार पैसे देने चाहिए, ऐसा क़रार ससुराल के साथ करना चाहिए


अब हमारे देश में करोड़ों माता-पिता ऐसे हो गये हैं जिन्हें दोनों ही लड़कियॉं पैदा होती हैं, महँगाई इतनी बढ़ गई है कि तीसरी बार बच्चा पैदा करने की कोशिश ही कोई माता-पिता नहीं कर रहे हैं| दो पर ही पूर्णविराम या फ़ुलस्टॉप लगा दे रहे हैं| पहले क्या था कि बेटी पेट में होती थी तो उसे पेट में ही मार दिया जाता था, क्योंकि बेटी होती थी तो पचास लाख या बीस लाख तो शादी में लगाने ही होते थे| लेकिन अब हरेक बेटी कमाने भी लगी है तो लोग बेटी को पैदा कर भी रहे हैं|

जिनको दोनों बेटियॉं पैदा होती हैं, उसके पिता का बहुत ही बुरा हाल पहले हुआ करता था| बेटियॉं होते ही वह यह सोचता था कि बेटियॉं हो गयी, हाय अब मैं क्या करूँ| सारी ज़िंदगी काम ही काम करना पड़ेगा| दहेज़ जुटाना पड़ेगा| बेटा होता तो जवान होकर पैसा कमाता था, माता-पिता की मरने तक देखभाल करता था| मगर बेटी होती है तो शादी के बाद बेटी के ससुराल को लगातार कुछ न कुछ देते ही जाना पड़ेगा| मेरी तो ज़िंदगी ही बर्बाद हो गयी| सारा जीवन वह तनाव में गुज़ार दिया करता था| उसका किसी में भी दिल नहीं लगता था|
लेकिन उसको जो बेटियॉं होती थीं| वह इतनी प्यारी होती थीं कि वह अपने पिताजी से बहुत ही प्रेम से रहा करती थीं| बच्चियों का प्रेम देखकर पिता को बहुत ही अच्छा लगता था| मेरी बेटियों के बग़ैर मैं आगे जाकर कैसे रहूँगा, क्योंकि बेटियॉं तो पराया धन होता है| मगर अभी तो मेरी बेटियॉं इतनी आज्ञाकारी हैं, कुछ कह देता हूँ तो रोने लगती हैं, पलटकर कभी जवाब नहीं देती हैं| फिर उसे जीवन बहुत ही अच्छा लगने लग जाता है| लेकिन शादी के दिन वह फिर से उदास हो जाता था, कि हाय कितना सारा प्यार देकर चली जा रही हैं, लेकिन पैसे के हिसाब से देखा जाय तो एक ही बेटी की शादी होते ही घर की सारी की सारी तिजोरी ख़ाली हो जाया करती थी| दोबारा उस पिता को नया जीवन ज़ीरो से शुरू करना होता था| उन पिताओं को हम तहे दिल से धन्यवाद देते हैं जो असली मर्द बनकर उन्होंेने अपनी बेटियों की शादी की|
अब के ज़माने पर आते हैं| अब लोग बेटों पर जितना पैसा पढ़ाने पर लगा रहे हैं उतना ही पैसा बेटियों पर भी लगा रहे हैं| जैसे एक बेटी पर दस लाख रुपया शादी तक पढ़ाई में लगा देते हैं तो शादी में भी वे बीस से लेकर पचास लाख तक लगा देते हैं| बच्चियों को पढ़ाना इसलिए ज़रूरी हो गया है कि जो दूल्हा होता है उसे तो कमाऊपूत बेटी चाहिए होती है, आजकल तो शादियॉं नहीं, पैकेज का सौदा हो रहा है| लड़का दस लाख कमा रहा है, तो चलो भाई लड़की आठ लाख के पैकेज की है तो बोलो, नहीं तो फुटो| उधर लड़की कहती है मेरा पैकेज पंद्रह लाख का है, अगर लड़का बीस लाख या पच्चीस लाख का है तो बोलो नहीं तो फुटो यहॉं से, सो, पैकेज से पैकेज की शादी हो रही है, लड़का और लड़की की नहीं हो रही है, ख़ानदान से ख़ानदान भी नहीं देखा जा रहा है, एक दूसरे की जातियॉं भी नहीं देखी जा रही हैं| बे सिर पैर की जातियॉं, ऊट पटांग ख़ानदान देखे जा रहे हैं| बस पैसा देखा जा रहा है| एक फ़िल्म का गाना भी है जो आज के समय में ज़्यादा अच्छा लगता है...ना बीवी ना बच्चा ना बाप बड़ा न मैय्या दि होल थिंग इज़ दैट कि भैया सबसे बड़ा रुपय्या....
अब आते हैं असली मुद्दे पर, कहा जा सकता है कि आज भी बेटी नुक़सान का ही सौदा है| लेकिन इस नुक़सान के सौदे को फ़ायदे का सौदा बनाया जा सकता है| इसके लिए हमें एक नया काम करना होगा| हमें लड़के से बड़ी लड़की की शादी करनी शुरू कर देनी चाहिए| जैसे लड़के से लड़की यदि तीन साल बड़ी होती है तो भी शादी कर लेनी चाहिए| नये ज़माने के हिसाब से हमें चलना ही होगा| जैसे अगर आजकल की बेटी कमाने लग जाती है तो वह अपने मायके की तिजोरी भर सकती है, और यही पैसा माता-पिता के बुढ़ापे में काम आ सकता है| मान लीजिए बेटी ने चौबीस साल की उम्र में पैसा कमाना शुरू कर दिया तो वह अगले तीन साल तक अपनी शादी के पैसे ख़ुद ही जमा कर सकती है, उसके बाद २७ की उम्र से तीस साल तक की उम्र तक वह तीन साल तक अपने मायके के लिए पैसा जमा कर सकती है| इससे माता-पिता को बहुत आसरा हो जाता है| मान लीजिए लड़की महीने के तीस हज़ार कमा रही है तो वह तीन साल के नौ लाख या कम से कम सात लाख तो जमा कर सकती है, जिसका ब्याज पॉंच हज़ार आता है जो कि बहुत काम आ सकता है|  फिर तीस साल की उम्र में जाकर वह शादी कर सकती है| लड़की तीस साल की हो तो फ़र्क नहीं पड़ता है, लेकिन लड़का तीस साल का हो तो उसकी जवानी की बैटरी ज़रा सी कमज़ोर हो जाती है| लड़की क्या है कि चालीस साल तक बच्चा पैदा कर सकती है| लेकिन लड़का चालीस से लेकर पचास साल तक में उसकी बैटरी डाउन हो जाती है| और बैटरी रीचार्ज होने में दो दिन लग जाते हैं| यह बात हम मज़ाक के लिए नहीं, जो जीवन की हक़ीक़त है उसे बतला रहे हैं| इस बात को आप गंभीरता से लें, क्योंकि इसी से जीवन का सुख और दुख जुड़ा रहता है| अब पहले के जैसा खानापान नहीं रहा है| इसलित बच्चे की शादी २३,२५ या २७ में कर देना चाहिए| उधर लड़की की देर से शादी हुई तो वह मायके के माता-पिता के हाथ में अगर पॉंच से दस लाख रुपये रखकर आती है तो वह पैसे माता-पिता को जीवन में बहुत काम आते हैं|
और सौ बात की एक बात जैसे-जैसे उम्र बढ़ती चली जाती है, इंसान को पैसे की ज़रूरत बढ़ती ही चली जाती है| क्योंकि बुढ़ापे में पैसा ताक़त बनकर सामने आता है| लड़की के माता-पिता के हाथ में पैसा नहीं हो तो रिश्ते सारे टूट जाते हैं| पोता-पोती, नवासा-नवासी के हाथ में सौ या पॉंच सौ रुपया नहीं रखो तो रिश्तेदार भी दूर होते चले जाते हैं| बीमारी में पैसा नहीं होता है तो कुत्ते की मौत बेचारे माता-पिता मर जाते हैं| शादी के समय लड़की की उम्र को तीन साल से छिपा देना चाहिए| कहना चाहिए कि लड़की २४ की है| आजकल मेकअप के साधन इतने बढ़ गये हैं कि लड़की उम्र तीन चार साल कम ही लगती है| वैसे भी आजकल कौन यह सब जॉंच करता है| लड़की पैसा कमा रही होती है तो तभी उसके सारे अवगुण छिप जाते हैं| लोग सोचते हैं कि लड़की ने सीए, या डॉक्टरी की है तो तीस की हो ही गयी होगी, वहॉं झूठ कह देना चाहिए कि लड़की को दो बार दो दो क्लासों में डबल प्रमोशन दिलाया गया था| वह होशियार थी तो टीचर ने दो क्लास उसे आगे बढ़ा दिया| और बाद में पता भी चल गया तो लोग बोलते हैं चलो वह पैसा तो ज़ोरदार कमा रही है, बस है और क्या होना चाहिए| उम्र-वुम्र छोड़ो यार| तब दूल्हे को भी एडजस्ट कर लेना चाहिए और मन ही मन सोचना चाहिए कि सचिन तेंडुलकर की बीवी भी तो सचिन से तीन साल बड़ी है| मेरा भी हाल यही है तो क्या हुआ|
 नहीं तो क्या हो रहा है कि इधर बेटी के मायके में बेटी का पिता पूरी तरह से क़र्ज़ में डूबा जा रहा है| फिर सारा जीवन वह अशांत रहता है और बेटी के पिता की मौत बहुत ही जल्दी यानी चालीस या पैंतालीस साल में ही हो जा रही है| ऐसा होने से सारा का सारा ख़ानदान ही उजड़ जाता है| आजकल तो कोई भी आदमी को, कोई भी मदद नहीं कर रहा है,जिसकी दो बेटियॉं होती हैं उसके सगे भाई भी उसे लात मारते हैं| जिसकी दो बेटियॉं होती हैं उसे घर के हिस्से में ज़्यादा भी नहीं मिलता है| कि चलो भाई बेचारे की दो-दो बेटियॉं हैं, बेचारा कैसे बेटियों की शादी करेगा, ऐसा कोई भी नहीं सोचता है| ताकि बच्चियों की शादी के लिए कुछ रखा जा सके| आजकल की दुनिया तो इतनी ज़ालिम है कि बेटियों के पिता ने पैसा नहीं जमा किया तो बेचारी बेटियों की शादी तक होना बहुत ही मुश्किल हो जाता है| एक बेटी की माता ने एक होशियारी की जिससे उसकी बेटी की शादी आराम से हो गयी| उसने बेटी पैदा होते ही अपना दो लाख का सोना बेच दिया और उसे नौ साल के लिए पोस्ट ऑफ़िस में डबल के लिए डाल दिया| उसे दो बार बेटी के अट्ठारह साल की उम्र तक डाल दिया तो उसका उसे आठ लाख रुपया मिला| जिससे बेटी की शादी आठ लाख में हो गयी क्योंकि लड़के वालों ने ज़्यादा दहेज़ नहीं क्योंकि लड़की शादी के समय तीस हज़ार कमा रही थी|
या नहीं तो जिसकी दो बेटियॉं हैं और जिसके पास ज़्यादा पैसा नहीं है तो उस बेटी के ससुराल वालों को शादी के बाद बेटी के मायके से ज़्यादा सामान नहीं मॉंगना चाहिए| उल्टे दामाद और बेटी को मिलकर उस परिवार की कभी-कभी मदद कर देनी चाहिए|
कुछ लोग तो आजकल उल्टा ही सोचते हैं वह ऐसा कि जिस पिता को दो ही बेटियॉं होती हैं बेटा नहीं होता है, तो उस बेटी के माता पिता के पास क्या उनका अपना ज़ाति मकान है या नहीं, यह देखते हैं क्योंकि बेटी के माता-पिता मर गये तो वह मकान तो दोनों दमादों को ही मिलने वाला होता है| ऐसी लंबी-लंबी योजना वह बनाकर चलते हैं| सो, दो दामाद रिश्ता तय होते ही पचास लाख के घर या एक करोड़ के घर के मालिक बन जाते हैं और बेटी के माता-पिता के मरने का इंतज़ार करना शुरू कर देते हैं| वाह ही दुनिया वाह|
आज इंसानियत यही कहती है कि बेटियों के माता-पिता के लिए कुछ न कुछ पक्का काम करना बहुत ही ज़रूरी हो गया है| नहीं तो उनका जीवन पूरी तरह से नरक के समान हो जाता है, अगर बेटियों के दामाद लालची निकले तो बेटियों का मायके आना-जाना भी बंद हो जाता है, जिससे माता-पिता को देखने वाला कोई नहीं रह जाता है| जिससे उनका जीना हराम हो जाता है| इसलिए दामादों को बहुत ही अच्छा होना चाहिए| और पैसे की जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए| हमने ऐसे-ऐसे परिवार भी देखें हैं जहॉं पर चार-चार दामाद हैं माता-पिता के पास बेटा नहीं है लेकिन चार-चार दामाद ही मिलकर सास-ससुर यानी बेटी के माता-पिता को बहुत अच्छा देख लेते हैं|   

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