हर शहर में एक तरह का जंगलराज चलता है

महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी - 7

हर शहर में एक तरह का जंगलराज भी चलता है,जहॉं पर एक इंसान दूसरे इंसान की जान भी ले लेता है,पैसों के लिए, यहॉं पर दस हज़ार बीस हज़ार से लेकर एक लाख के लिए भी एक-दूसरे की हत्या तक कर दी जाती है यह खेल होता है ब्याज पर पैसे देने का,और यह पैसा बहुत ही ऊँचे ब्याज पर दिया जाता है

एक आदमी को शादी के बाद पंद्रह साल तक बच्चा नहीं हुआ| इस पर उसने अपनी सारी कमाई डॉक्टरों पर लगा दी, उसके बाद उसको शादी के सोलह साल के बाद एक बच्ची पैदा हुई| पैदा होने में बहुत तकलीफ़ हो रही थी, तो इलाज में क़रीब चार लाख रुपये लगाने थे, अब उसके पास चार लाख रुपये नहीं थे, एक आदमी ने उसे तीन प्रतिशत ब्याज पर उसे चार लाख रुपये दिये| गिरवी उसने कुछ नहीं रखा| केवल भरोसे पर दिया| भरोसे पर दिया गया पैसा बहुत सारे ब्याज का होता ही है| यानी बारह हज़ार रुपया तो उसका ब्याज ही आ रहा था| अब उस बच्ची के बाप के पास दो ही बातें थीं या तो बच्ची को मरने दूँ या फिर चार लाख रुपये देकर बच्ची को पैदा करूँ| बाप ने सोचा कि बेटी पैदा हो रही है, पैदा होने के बाद भी मेरा सारा जीवन उसको पालने-पोसने और उसकी शादी के समय पैसा लगाने में ही चला जायेगा| उसने सोचा नुक़सान पर नुक़सान होने ही वाला है, इसलिए बच्ची को पेट में ही मार देता हूँ| फिर उसको ख़याल आया कि पंद्रह साल के बाद तो बच्ची पैदा हो रही है, मर गयी तो लोगों की नज़र में निःसंतान यानी बिन बच्चे का बाप ही कहलाऊँगा तो उधर से वह ताना भी सुनना ही पड़ेगा| और मेरे बुढ़ापे में कम से कम मेरी बच्ची तो कभी कभार पूछने आ जाया करेगी| इसलिए सोचता हूँ कि ये बच्ची पैदा कर ही दूँ|

सो, चार लाख रुपये लगाकर बेटी को पैदा किया गया| घर में ख़ाली-ख़ालीपन जो था वह पूरी तरह से चला गया| घर में बच्चे का रोना पिता और माता को बहुत ही अच्छा लग रहा था| बेटी बहुत ही चंचल थी, लेटे-लेटे बहुत ज़ोर-ज़ोर से पैर मारा करती थी, और बहुत ही खिलखिलाकर हँसा करती थी| माता यह देखकर बहुत ही ख़ुश होकर बेटी को सीने से लगा लिया करती थी| लेकिन इधर चार लाख का ब्याज १२ हज़ार रुपये भरना बहुत ही मुश्किल होता चला जा रहा था| क्योंकि बच्ची का पिता ऑटो चलाया करता था, उसकी उम्र भी अब चालीस साल की हो चली थी| वह महीने में कैसे भी करके जी-तोड़ मेहनत करके बीस हज़ार रुपया घर लाया करता था, जिसमें से १२ हज़ार रुपये तो ब्याज में ही चले जाया करते थे| बाक़ी के आठ हज़ार रुपये में वह घर का किराया तीन हज़ार रुपया और बहुत ही टाइट करते हुए आठ हज़ार रुपये में घर चलाया करता था| कभी-कभी तो वह रात भर काम पर जाया करता था क्योंकि रात में उसे पैसे थोड़े से ज़्यादा मिल जाया करते थे| एक बार उसे पंद्रह दिन के लिए बुख़ार आ गया| जिससे वह १२ हज़ार का ब्याज नहीं दे पाया| क़र्ज़ देने वाला आकर उससे कहने लगा कि तुमने बारह हज़ार रुपये नहीं दिये इसलिए उस बारह हज़ार रुपये का एक हज़ार रुपया पेनाल्टी यानी जुर्माना लगाता हूँ| और तुम्हें एक हज़ार अगले महीने देने होंगे| पिता ने पूछा पेनाल्टी किस बात की| इसने कहा कि हम तो १२ हज़ार रुपये जब ब्याज पर देते हैं तो वह पैसा हम दस प्रतिशत ब्याज के हिसाब से ही दिया करते हैं| मैं क्यों अपनी कमाई पर लात मारूँ| पिता बहुत गिड़गिड़ाया तो वह आदमी कहने लगा कि तुम जितना ज़्यादा कहोगे उतनी ही क़र्ज़ का पेनाल्टी चढ़ाऊँगा| पिता ने कहा बात करने पर, जिरह करने पर तुम जुर्माना लगा रहे हो, मैं यहॉं के एमएलए के यहॉं जाकर तुम्हारी शिकायत करूँगा कि तुम मुझे कितनी बुरी तरह से लूट रहे हो| तभी क़र्ज़ वाले आदमी ने कहा तुम कहो तो अभी एमएमए से बात करवा देता हूँ| उसने तभी एमएलए से फ़ोन पर बात करायी तो उस पिता ने सोचा कि एमएलए तो जनता की रक्षा के लिए होते हैं, उसने एमएलए से बात करते हुए कहा कि देखो भाई यह मेरे पर ज़ुल्म कर रहे हैं| आप इनसे कहो कि ब्याज की पेनाल्टी न मारी जाये| एमएलए ने कहा कि जैसा यह आदमी कह रहा है करो, यही आदमी मेरे लिए चुनाव में मेरे कार्यकर्ता को भोजन कराने का ठेका लेता है| वह भी मुफ़्त में| मैं क्यों अपनी सेवाएँ बंद करूँ| तब यह पिता डर गया और सोचा कि आजकल तो किसी के पास न्याय भी मॉंगा नहीं जा सकता है|
छह महीेने गुज़र गये किसी ने इस पिता को राय दी कि तुम्हारे पास जो ऑटो है उसे बेच दो, उससे पचास हज़ार रुपये आएँगे और जब तुम पचास हज़ार उसे दे दोगे तो तुम्हारे पंद्रह सौ रुपये ब्याज के तो कम हो जाएँगे| यह आईडिया उसे पसंद आया उसने सोचा कि अपना ऑटो बेच देता हूँ और रोज़ाना किराये के ऑटो में तीन सौ रुपया ही तो लगता है उसी से काम चला लूँगा| उसने अपना ऑटो बेच दिया उससे तीन महीने तक तो पंद्रह सौ रुपये बचते ही चले जा रहे थे, जिससे वह ख़ुश हो रहा था| लेकिन उसका साढ़े तीन लाख रुपये का ब्याज साढ़े दस हज़ार था वह चल ही रहा था| इतने में क्या हुआ कि इसको चार दिन का दोबारा बुख़ार आ गया| जिससे ब्याज वाले को वह छह हज़ार रुपये ही दे पाया| तो फिर जो वह बचत कर रहा था वह दोबारा जहॉं की तहॉं आकर अटक गयी|
सो, इस तरह से वह दिन ब दिन बहुत डिप्रेशन में आता ही चला जा रहा था| इस दौरान उसे दुबई से नौकरी का ऑफ़र आया, जहॉं उसे महीने के चालीस हज़ार रुपये मिलने वाले थे, लेकिन उसकी बीवी और बच्ची की देखभाल करने वाले कोई नहीं थे| उसने अपने भाइयों से कहा कि तुम लोग हर तीन दिन में आकर मेरी पत्नी को देखकर जाया करो, तो वे लोग मान गये, लेकिन यहॉं भी कबूतरबाज़ी में उसे फिर से दो लाख रुपये देने पड़ गये थे, और प्लेन का किराया मिलाकर उसे चार लाख दोबारा क़र्ज़ के लेने पड़ गये थे| उसने डर के मारे यह इरादा छोड़ दिया| और इस तरह वो इस ब्याज के चक्रव्यूह में बहुत ही बुरी तरह से फँस चुका था, उसके पास इस ब्याज से बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं दिख रहा था|
एक आदमी ने उसे राय दी कि तुम दोबारा ऑटो ख़रीद लोग जिससे जो तुम तीन सौ रुपये रोज़ किराया देते हो, उसके नौ हज़ार रुपये तुम्हारे महीने के बच जाएँगे| उसने दोबारा ऑटो ख़रीदा सकेंड हैंड ऑटो था| जिसको उसने अस्सी हज़ार में ख़रीदा| फिर उन्हीं लोगों से पैसा लिया जिनसे उसने चार लाख रुपये लिये थे| पहले महीने वह इस नयी गाड़ी का ब्याज नहीं भरा तो वहॉं पर दोबारा पेनाल्टी पॉंच सौ रुपये लगा दी गयी थी| दिन भर वह ऑटो चलाता तो यही सोचा करता था कि मैं तो यार पिछले दो साल से बेकार में उन लोगों की तिजोरी भर रहा हूँ| मेरे पास एक फूटी कौड़ी तो बच ही नहीं रही है उल्टे मैं ही लगातार क़र्ज़ के वज़न से डूबता ही चला जा रहा हूँ| तो उसने एक उपाय सोचा, उसने सोचा कि एक वकील के पास जाकर एक इनसॉल्वेंसी सर्टिफ़िकेट ला लेता हूँ| इसमें होता क्या है कि आप दिवालिया यानी कंगाल घोषित हो गये जैसा सर्टिफ़िकेट होता है, और कोई क़र्ज़दार आपके पास आ नहीं सकता है| कोई क़र्ज़दार आपको सताता है तो आपको पुलिस का प्रोटेक्शन होता है| उसने वैसा ही किया, उसके बाद क़र्ज़दार उसके पास आये तो उसने वो सर्टिफ़िकेट दिखा दिया| तो क़र्ज़दार केवल गाली-गलौज करके चले गये| सो, इधर क़र्ज़ देने वाले छह महीने तक नहीं आये तो इस आदमी ने अपनी ईमानदारी नहीं छोड़ी| उसने एक दो लाख की चिट्ठी में पैसे डाले जहॉं वह हर महीने दस हज़ार रुपये भरा करता था| उसने सोचा कि बेचारे क़र्ज़दार मेरी मदद कर ही रहे हैं| मैं भी उनका पैसा लौटा देता हूँ| आठ महीने के बाद उसने चिट्ठी-बिस्सी उठा ली जिसका उसे डेढ़ लाख रुपया आया|
उसने उस क़र्ज़ वाले को पैसे दिये, तो क़र्ज़ वाले ख़ुश हो गये| पिता ने कहा कि अब इसके बाद आपका केवल दो लाख रुपये देना रहता है| तो क़र्ज़ वाले ने उस डेढ़ लाख में से पचास हज़ार रुपये लौटाते हुए कहा कि यह एक लाख तो केवल छह महीने का ब्याज ही होता है, कैसे तुमने समझ लिया कि ब्याज नहीं भर रहे हो, असल के पैसे में दे रहे हो, उसने कहा कि ये जो तुम दिवालिया सर्टिफ़िकेट लेकर बैठे हो, क्या हम उससे डर गये समझ गये क्या| हमको पुलिस का भी प्रोटेशन प्राप्त है| उसने तभी सर्किल इंस्पेक्टर को फ़ोन लगाया तो इंन्सपेक्टर ने भी क़र्ज़ वाले के साथ दिया| इस पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी| क़र्ज़ देने वाले ने कहा कि तुम जो चिट्ठी में शरीक हुए क्या उसका पता हमें नहीं है, ज़रूर पूरी ख़बर रख रहे थे| और तुम ये पैसे हमें नहीं देते को मुँह में हाथ डालकर पेट से तुम्हारा कलेजा निकालना भी हम जानते हैं| बेचारा ग़रीब आदमी बौखला गया था, उसने तैश में आकर उस क़र्ज़ देने वाले का गला पकड़ लिया और बिलख-बिलखकर रोते हुए कहा कि पिछले दो साल मेरा जीना हराम हो गया है और तुम हो कि मेरा ख़ून चूस रहे हैं| तभी क़र्ज़ वाले का गला पक़ड़ने वाले के सामने दो चार गुंडे आ गये| उन्होंने इस पिता को बहुत पीटा|
लोहे की रॉड से उसके पैर पर मारते ही चले गये| उसके बाद उसके पेट पर मारते ही चले गये| उनका पूरा-पूरा इरादा था कि इस आदमी को आज के आज में ख़त्म कर देना है| लेकिन उतने में क्या हुआ कि एक मिनिस्टर इस आदमी के पास आ गया| जिससे इस आदमी का पीटना रुक गया| लेकिन इस पर तो मुसीबतों को पहाड़ टूट गया था| इस आदमी का एक पैर पूरी तरह से लटक गया था|
बाद में अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने कहा कि यह पैर अब कभी काम नहीं करेगा| यह ऐसा ही लटका रहेगा एकदम बेजान| उसके बाद क़र्ज़ वाले इसके घर को नहीं आये| बाद में पता चला कि उस क़र्ज़ के आदमी का बीस करोड़ रुपया ब्याज पर चलता है| वह बीस करोड़ रुपया बहुत ही सभ्य लोगों से लेता है| एक प्रतिशत पर और चलाता है तीन प्रतिशत पर| वह यह धंधा डर के आधार पर ही करता है, नहीं तो यह धंधा चल ही नहीं पाता है| इस आदमी के पास ऐसे-ऐसे उदाहरण हैं कि कई लोग जो कंगाल थे वह अमीर भी हो गये हैं| लेकिन जो पैसा वापस नहीं देता वह उसको जान से मार दिया करता है| इस आदमी को भी वह मार देने वाला था, ईश्‍वर की वजह से बच गया|
यह आदमी आज जी रहा है| ऑटो चला रहा है| पैर से जो ब्रेक मारा करता था| वह अब हैंडिल में ब्रेक लगाकर काम चलाता है| उसका पैर वह लटकाकर चलता है| बैसाखी लेकर चलता है| सप्ताह में एक रात उसे उसी पैर में बहुत पीड़ा होती है| रोता है दो दो घंटे तक, यही याद करता है कि क्या दुनिया में इंसानियत पूरी तरह से मर गयी है| फिर सोचता है कि वह मिनिस्टर जो आया उससे जान बच गयी मेरी| नहीं तो कुत्ते की मौत मारा जाता| आज बीस साल गुज़र गये हैं बच्ची बड़ी हो गयी है| बच्ची को साठ हज़ार की नौकरी लग चुकी है| अब परिवार सुखी है, पिता भी सुखी है, सोचता है जीवन है यह सब होता ही रहता है| इस पिता ने दुख बहुत झेला है| भगवान ने इसका भला किया है| एक आम आदमी कर भी क्या सकता है| कोई ये फ़िल्म तो नहीं है, लेकिन समाज में असामाजिक तत्त्व तो रहते ही हैं| उनका सामना करना सच में बहुत कठिन होता है|

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