हम तो फ़कीर हैं झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे
हम तो फ़कीर हैं झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे
हम तो फ़कीर हैं झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे, मोदीजी की यह बात आज़ादी के परवानों की याद दिल गयी जो अपनी जान की आहुति देकर देश के लिए जान दे दिया करते थे
होनी को कौन टाल सकता है| और होनी भी नोटबंदी की ऐसे व्यक्ति से हुई जो हमारे सबसे प्रिय व्यक्ति रहे-नरेंद्र दामोदर मोदीजी से हुई| इससे सबक़ यह सीखना चाहिए कि हमें पैसे का भूखा नहीं होना चाहिए| हर सरकार की ब्यूरोक्रैसी से बहुत अनबन रही थी, इस नोटबंदी ने ब्यूरोक्रेसी की ताक़त को बहुत हद तक कम कर दिया है| संंासद से लेकर हर छुटभैय्या नेता ने धन बहुत जमा कर लिया था, सारा कुछ चला गया|
लोगों ने बहुत ही मेहनत करके पैसा कमाया था, होते-होते वह सफ़ेद धन काला धन हो गया था| अब सारा धन हाथ का मैल होकर रह गया है| ऐसा होगा किसी से नहीं सोचा था, लेकिन अब सोचना यह है कि हमंें तौबा करके भी पैसे से ख़ासकरके नोटों से प्रेम नहीं करना चाहिए| नयी पीढ़ी तो धन की पागल हो गयी थी| उसके लिए धन का लालच नहीं करना उनके जीवन का सबसे बड़ा सबक़ होना चाहिए|ये धन-दौलत कभी भी भारतीय जीवनशैली की नस-नस में बसी हुई नहीं थी, यहॉं लोग बहुत ही सीधे ईमानदार थे, चीनों अरब हमारा हिंदुस्तॉं हमारा रहने को घर नहीं है, सारा जहान हमारा| इस तरह के गीत गाकर दिल बहला लिया करते थे| बात मार्के की कह रहा हूँ कि आज से भी बेहतर विद्वान लोग पुराने ज़माने में थे, लेकिन तब कोई भी अपने ज्ञान को बेचा नहीं करते थे| जैसा कि पिछले तीस-चालीस साल से लोगों पर पैसों का भूत बुरी तरह से सवार हो गया था| वैसा पहले नहीं था|
हम तो फ़कीर है झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे, यह बात जैसे ही मुरादाबाद में नरेंद्र दामोदर मोदीजी ने कही तो सभा में बैठे लोग, दिल आत्मा से चिल्ला-चिल्लाकर मोदीजी की बात का समर्थन करने लगे|
भारत में संपत्ति का मोह कभी भी नहीं रहा था| हाल ही के दिनों में ही धन के प्रति लोलुपता बुरी तरह बढ़ गयी थी| भारत में फ़कीर तबीयत के लोग ही बहुत हुआ करते थे|
मोदीजी भी बहुत ही रहस्यमयी व्यक्ति शुरू के ढाई साल तक लगते रहे, मुझे तो मोदीजी पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं था, मैं उनका घोर विरोधी हो गया था, लोग मुझे समझा रहे थे, कि मोदीजी बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं लेकिन मन नहीं मान रहा था| लेकिन अब तो मोदीजी का जो रूप सामने आया है, वह कम से कम एक महात्त्मा के समान है, क्योंकि उन्होंने भारतीय जनमानस की आत्मा को पहचान लिया है|
आज भी भारतीय जनमानस में यही बात चलती है कि मेहनत और ईमानदारी से काम करने पर मुश्किल से भोजन मिल जाता है और सिर छुपाने के लिए घर मिल जाता है| छोटा सा किराये का घर मिल जाता है| उसके अलावा जीवन में कुछ भी नहीं मिल पाता है, और सारा भारत ठीक इसी मानसिकता के साथ ही जीवन भर जीता रहा था|
आपको जानकर दुख होगा कि करोड़ों लोग बंधुआ मज़दूर बनकर पीढ़ियों दर पीढ़ियों अपना जीवन गुज़ार चुके हैं| उनका भी ईमानदारी के साथ यही कहना था कि हम तो फ़कीर है झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे| मैंने मेधा पाटकर और अन्ना हज़ारे को आदर्श माना| एक बार इंदौर में मैंने मेधा पाटकर के लिए नौकरी छोड़ दी थी, पत्रकारिता की| क्योंकि मेरे टीवी चैनल के मालिक मेधा पाटकर का साक्षात्कार नहीं करने पर मुझपर दबाव डाल रहे थे| मैं तब पूरी शिद्दत से महसूस करता था कि मेधा पाटकर और अन्ना हज़ारे को हटा दें तो देश में नेता बचता ही कौन है|
और फिर २००४ में कांग्रेस सत्ता में आयी तो मुझे बहुत कोफ़्त हुई जब सोनिया और अंबानी बंधुओं ने आपस में मुलाक़ात की| तब मुझे लगा कि सोनिया जी को तो हज़ारे-मेधाजी से मिलना चाहिए, हम लोग सत्ता मिलते ही, कश्मीरियों और नक्सलियों से क्यों नहीं मिलते हैं| यह सोचकर कांग्रेस को लेकर बहुत दुख होता था| मोदीजी आये, नक्सलवाद कम हुआ, आतंकवाद बड़े शहरों में कम हुआ|
मोदीजी अपनी कुर्सी के पीछे गंाधीजी की तस्वीर लगाकर काम करते हैं| अब जाकर पता चला कि मोदीजी गांधी जी के कितने अनन्य भक्त हैं| मैं तो कहता हूँ कि राष्ट्रीय स्वयं सेवी के जो कर्मठ भक्तगण जो शुरू में थे, उनके मन में भी यही उथल-पुथल थी होगी कि कैसे भी करके यह कालाधन भारत से बाहर निकाला जाना चाहिए| यह बात और है कि संघ में बाद में जाकर बहाव में बहने वाले लोग आये, लेकिन कृपा है मोदीजी की उन्होंने कभी भी कलुषित विचार अपने भीतर नहीं आने दिये| जो संघ के सच्चे भक्त थे वह ऐसा ही भारत चाहते थे| कालाधन रहित भारत|
जो गांधीजी के भक्त थे वह आज जैसा ही भारत चाहते हैं| लेकिन अभी आठ नवंबर से ३० दिसंबर २०१६ तक का जो भारत है वही सच्चा भारत है उसके बाद क्या होगा यह ईश्वर जाने| लेकिन मोदीजी की इसी बात पर आज भी भरोसा हो रहा है कि वे और हम तो फ़कीर है झोला उठाएँगे और चल पड़ेंगे| यह मोदीजी जीवन भर की सबसे अच्छी पंच लाइन हो चुकी है|
मैं तो यही चाहता हूँ कि भारत यूँ ही रहे, पैसे का महत्व कम हो लोग पैसे को भगवान न माने, पैसे को जीवन का साधन भर माने| अब तो ऐसा हो गया था कि लोग पैसे को ही भगवान मान रहे थे| जो पैसा आजकल तिजोरियों, तहख़ानों में से निकल रहा है, अंत में जाकर किसी के काम नहीं आया है| जहॉं से आया था, वहॉं ही चला गया| जिस सरकार से नज़र छुपाकर चुराया था, वहीं पर चला गया है| जिन ग़रीबों को सता सताकर कमाया था, उसी ग़रीब के पास ही जाने वाला है|
मोदीजी ने ठीक ही कहा है कि चाणक्य नीति में कहा गया है कि अनैतिकता से कमाया धन हमारे पास दस साल से बढ़कर नहीं रहा करता है| शास्त्रों में भी कहा गया है कि लक्ष्मी बहुत ही चंचल है, घर में आती है तो जाने का भी रास्ता निकाल लिया करती है|
मुसलमान लोग तो पिछले दस साल से कह रहे थे कि क़यामत बहुत ही नज़दीक ही है, और वह क़यामत इस रूप में हमारे सामने आयी है| पैसा जितना कम होगा, लोगों में पैसा ध्यान हटते ही इंसानियत की ओर सभी का ध्यान जायेगा|
संत कबीर ने कहा था कि साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय मैं भी भूखा ना रहूँ साधु भी भूखा न जाये, लोगों ने साधुओं को हकाल दिया, सज्जन पुरुषों सो धक्के मारकर निकाल दिया, धन का अनाप शनाप संचय किया, और सारा संचय किया हुआ संचय आज दोबारा सरकार के पास चला गया है| इसलिए आज हम दृढ़ संकल्प लेते हैं कि धन से दो कोस दूर रहना चाहिए जो ईमान की मिले वही खाना चाहिए, बेईमानी की रोटी ज़्यादा फलती नहीं है|
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