अपने बच्चों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाइये
महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी - 1
अपने बच्चों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाइये, लाखों के सपने देखने में मॉं-बाप अपना सारा जीवन बर्बाद कर रहे हैं, मॉं-बाप की कमाई ४० हज़ार है तो बच्चे की ३५ होनी चाहिए, लोग बच्चों के लिए तीस लाख पढ़ाई में डाल रहे हैं
पहले के पुराने लोगों की तनख़्वाह इतनी ज़्यादा नहीं होती थी, १९७० से लेकर १९९० तक लोगों की तनख़्वाह पॉंच सौ रुपये से लेकर बस केवल तीन हज़ार रुपये तक ही हुआ करती थी| और आज ये पुराने लोग महसूस करते हैं कि तभी का जीवन बहुत ही सुंदर हुआ करता था| कमाई कम थी इच्छाएँ तो बहुत ही कम थी लोग स्कूल का ड्रेस पहनकर ही शादियों में चले जाया करते थे| एक ही थान में परिवार के सारे बच्चों के कपड़े सिला दिया करते थे|
हरेक को कम से कम तीन और ज़्यादा से ज़्यादा तेरह बच्चे हो जाया करते थे| लोगों के पास कहने को तीन या चार जोड़े ही कपड़े थे| शादी में दुल्हन की बनारसी साड़ी ही आया करती थी, आजकल की तरह अनारकली, मसक्कली,या एक लाख की साड़ी नहीं हुआ करती थी| दुल्हन की साड़ी छह सौ से हज़ार तक ही हुआ करती थी| ससुर तो सादी धोती पहना करते थे, आज तो ससुर ही तीस हज़ार का ड्रेस पहन रहे हैं, दोनों समधनें तो ब्यूटी पार्लर में तैयार होकर आ रही हैं| तब पैसा नहीं होता था तो बड़े-बूढ़ों का बहुत ही ज़्यादा सम्मान हुआ करता था, बूढ़ों के आस-पास क़रीब दस से लेकर बीस लोग हर दिन मिलने आया करते थे| वो भी क्या दिन थे, चाचा, मामा, ताऊ, फूफा, सभी की बहुत ही इज़्ज़त हुआ करती थी| तब मानवता बहुत हुआ करती थी| तब कोई कंजूस होता था तो भी उसे निभाया जाता था, कोई लड़ाकू भी होता था तो उसे भी निभाया जाता था|
लोग पहले ज़्यादा जिया करते थे, कोई अस्सी-नब्बे जीता था, लेकिन आजकल महिलाएँ चालीस तो क्या पैंतीस साल में ही विधवा हो रही हैं| हालॉंकि डॉक्टरी इतनी बढ़ गयी है, लेकिन लोगों की मौत भी जल्दी होती चली जा रही है| पहले हार्ट अटैक होना यानी बिरादरी में बहुत ही बड़ी बात होती थी| हज़ारों में किसी एक का, हार्ट का ऑपरेशन हुआ करता था| लेकिन आजकल तो पचास साल के बाद हर तीसरे इंसान का हार्ट का ऍापरेशन हो जाया करता है| डॉक्टर पैसा कमाने के लिए ऍापरेशन कर दिया करते हैं| न कराओ तो वो अलग डर लगा रहता है कि कहीं कल परसो ही मेरा राम नाम सत्य न हो जाये| कहा जा रहा है कि आजकल हार्ट की नसों में किसी को भी तीन या कम से कम दो ब्लॉकेज यानी दो नसों में ख़ून रुका हो रहा है, जिससे ऍापरेशन कराना बेहद ज़रूरी हो गया है|
ये कमबख़्त पैसा ऐसी चीज़ हो गयी है कि उसके सामने इंसान की औक़ात दो क ा़ैड़ी की हो गयी है| आज माता-पिता मिलकर कम से कम तीस हज़ार या कम से कम एक लाख रुपया कमा रहे हैं| जो लोग इतना पैसा कमा रहे हैं| वे सारे लोग अपना बहुत सारा पैसा बच्चों की पढ़ाई में ही लगा रहे हैं| कोई बच्चे को पढ़ाई के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या चीन भेज रहा है| बच्चे की पढ़ाई पर ही कम से कम तीस लाख रुपया ख़र्च किया जा रहा है| हमारा कहना है कि पैसा है तो ज़रूर बच्चे पर लुटाइये, मगर अपनी संपत्ति बेचकर या अपने बच्चों के लिए कर्ज़ लेकर बच्चों को मत पढ़ाइये| इससे हो क्या रहा है कि परिवार में दुनिया भर का टेंशन पैसों को लेकर दिन-रात लगा रहता है, और अक्सर देखा गया है माता-पिता बहुत बड़ी बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं, या नहीं तो उनकी असमय मौत हो जा रही है|
जिन लोगों के माता-पिता महीने में तीस हज़ार रुपया कमा रहे हैं| उनके बच्चों को बस एक बीस हज़ार या चालीस हज़ार की नौकरी मिल जाय तो सुकून से ज़िंदगी कट जाती है| ज़िंदगी में इंसान को सबसे पहले अपना सुकून देखना चाहिए| मगर बच्चे माता-पिता को चैन से रहने ही नहीं दे रहे हैं| पढ़ाई के लिए कहीं से भी पैसा लाओ, दिन रात माता-पिता के सामने यही चीख़ना-चिल्लाना चल रहा है|
बच्चा अगर शुरू में पच्चीस हज़ार रुपया भी कमा लेता है तो और उसे डॉक्टर बनने का शौक़ है तो वह अपना नौकरी करते हुए डॉक्टरी पढ़ सकता है और डॉक्टरी की सारी फ़ीस वही भर सकता है| इससे वह माता-पिता पर बोझ नहीं बनता है और अपना काम अपनी मर्ज़ी से कर सकता है| लेकिन बच्चे क्या हैं कि बस अपनी फ़रमाईश माता-पिता के सामने रख दिया करते हैं और रोज़ाना घर में थन-थन-थन पैर पटककर चलते हैं, या घिंगा मस्ती या रोना धोना शुरू कर देते हैं| इससे घर में कई वर्षों तक तनाव बना रहता है जिससे माता या पिता को शुगर या हार्ट की बीमारी हो जाती है| लेकिन बच्चे की ज़िद्द चलती ही चली जाती है, जिससे बीमार माता-पिता को दोबारा से नौकरी करनी पड़ती है| एक घर में तो माता पहले से दिनभर स्कूल में टीचरी कर रही थी, बेटी ने डॉक्टरी की फ़रमाईश कर दी तो माता चार बजे से लेकर रात नौ बजे तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही है| जिससे उसे छह हज़ार रुपये कमा लेती है, टूयूशन में तो सारे के सारे कूड़मग़ज़ बच्चे आते हैं उनके साथ माथापच्ची करते-करते वह रात को मौन रहकर सो जाती है| बेचारी को शुगर, बीपी, पाइल्स, सिर में दर्द की बीमारी और माइग्रेन हो गया है, लेकिन वह दिन-रात बच्ची के लिए खट-मर रही है| वह दो लाख की चिट्ठी में शरीक हो गयी है जहॉं हर महीने वह दस हज़ार कैसे भी करके भर देती है| कहा जा रहा है कि उसे अब यह काम दस साल करते ही रहना है| बीस से चालीस लाख रुपये पढ़ाई पर ख़र्च करने ही है|
बच्ची बहुत होशियार तो है लेकिन उसका वज़न बेचारे माता-पिता पर क्यों पड़ना चाहिए| यही सवाल हम समाज से करते हैं| आज लाखों माता-पिता इसी संघर्ष में डूब चुके हैं और अपनी सारी जवानी और सारा समय केवल पैसा कमाने में ही लगा रहे हैं| इसमें सबसे ज़्यादा परेशानी तनख़्वाह वालों और व्यापार करने वाले को हो रही हैं क्योंकि दोनों ही तरह के लोग इतना पैसा जमा करने में दिन-रात एक कर देते हैं| बेचारा टकला बाप दिन रात मोटर साइकिल में ट्राफ़िक में धक्का खाते हुए पैसा कमा रहा है| उसके शरीर में दिन-रात यही बेचैनी रहती है कि बच्चों की पढ़ाई की इच्छा को कैसे पूरा करूँ|
इसमें कई लोग सफ़ल भी हुए हैं, ठीक है सफ़ल हुए हैं लेकिन किन शर्तों पर? अपना सारा शरीर जलाकर सफ़ल हुए हैं| लेकिन जितने सफ़ल हुए हैं उनसे कई ज़्यादा लोग तो इस लंबी लड़ाई को लड़ते-लड़ते हार भी गये हैं| कई लोगों की चालीस या पैंतीस साल में मौत भी हो चुकी है, क्योंकि वे इस वज़न को बर्दाश्त ही नहीं कर पाये| क्योंकि किसी के पास पैसा कमाने का दिमाग़ नहीं होता है, कोई बहुत ईमानदार होने की वजह से फँस जाता है तो कोई दिमाग़ का सही इस्तेमाल नहीं करने से बेचारा हार जाता है| जो लोग सफ़ल हुआ उनके घर में किसी न किसी की पेंशन से बच्चों की बड़ी पढ़ाई हो गयी, किसी के पास बीवी सरकारी नौकरी में थी उनका घर सँभल गया लेकिन जो लोग रोज़ाना किसी कंपनी की मार्केटिंग का काम कर रहे थे, उनके लिए तो ऐसा होता है कि दिन भर की मेहनत के बाद रात को उनकी जेब में दस हज़ार भी आ जाते हैं नहीं तो एक पैसा भी नहीं आता है, बेचारे वैसे लोगों ने जब इस तरह से लाखों की फ़ीस देने के सपने पाले तो वे या तो बीच में ही हार्टअटैक का शिकार होकर मजबूरन घर पर बैठ गये नहीं तो हार्टअटैक को लेकर आज भी संघर्ष कर रहे हैं या नहीं तो उनकी बीच में ही मौत हो गयी है, या नहीं तो वे बीपी-शुगर आदि भयंकर बीमारी को लेकर आज भी दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं| ऐसे लोगों को बिल्कुल भी किसी भी तरह का टेंशन नहीं लेना चाहिए| जो लोग टेंशन लेने को मजबूर हो गये हैं उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो रही है|
एक पिता ने अपने रिश्तेदारों की देखादेखी में अपनी बच्ची को इंजीनियर बनाने के सपने देखे, बेचारा चार लाख रुपया जुटाने में अपनी जान से हाथ धो बैठा| उसने एक समझदारी की थी कि चार लाख का इंश्योरेंस करवा लिया था| उस चार लाख से घर का राशन तो आ जाता है| साथ ही उसकी बीवी और अट्ठारह साल के बेटे और उतनी ही बड़ी बेटी को छोटी जगह पर नौकरी करनी पड़ रही है| माता जो है सुबह से लेकर शाम तक घर-घर जाकर साड़ियॉं बेचने का काम कर रही है| उसे इतनी सारी बातें सौ-सौ रुपये के लिए सुननी पड़ती है जिसकी कोई हद नहीं| अगर पिता ने पहले ही सपने नहीं पाले होते तो बेचारा पिता भी आज जीवित रहता था बीवी को इस तरह ज़लालत भरी ज़िंदगी जीना पड़ती थी| और बच्चे भी कहीं न कहीं बीस हज़ार की नौकरी कर रहे होते थे| क़िस्मत सभी का साथ नहीं देती है, इसलिए जितना पैसा है उतने में ही जीने का ज़रिया निकालकर शांति से जीना चाहिए|
हमने ऊपर लिखा है कि पहले के लोग कितने शांत थे, आज हम रिश्तेदारी में ही मुक़ाबला कर रहे हैं| कोई हमसे आगे निकल जाता है तो हमारी जान जल जाती है| लोग ज़मीन-जायदाद पर भाई-भाई को पीटने के लिए आमादा हो गये हैं वह किसलिए क्योंकि वे पहले से ही सोच लेते हैं कि मेरे बच्चे को मैं बहुत पढ़ाऊँगा बहुत आगे ले जाऊँगा इस चक्कर में वे जायदाद पर झपट्टा मारकर पहले बहुत सारी ज़मीन ले लेते हैं फिर भाई गया भाड़ में कहकर अपने बच्चों के बारे में ही सोचने लग जाते हैं| सारी बिरादरी में जायदाद का झगड़ा हो गया तो बहुत थू-थू हो जाती है| हम अपने परिवार के लिए ख़ून जला रहे हैं, रिश्ते जला रहे हैं| बदनाम हो रहे हैं| सारी ज़िंदगी मुँह छिपाकर जीना पड़ रहा है| इसलिए कम से कम में जीना सीखकर चैन की ज़िंदगी जीना चाहिए| रात को चैन की नींद लेना चाहिए|
आजकल हो क्या गया है कि नया साल आता है तो हम सोचते हैं कि इस साल हमें क्या करना है| हम डायरी में ख़र्चे लिखने लगते हैं उसमें हमें लिखना होता है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए हमें तीन लाख रुपये अलग से निकालकर रखना है| जबकि जेब में एक पैसा भी नहीं होता है, इतना पैसा कमाने के लिए हमें दिन-रात नौकरी और व्यापार में मेहनत करनी होती है| जबकि जितना पैसा आप बच्चों की पढ़ाई में लगा रहे हैं उतने ही पैसे के ब्याज से आपका जीवन सुखमय हो सकता है| लोग क्या कर रहे हैं कि बच्चों की पढ़ाई के लिए तीन चार जगह पर ज़मीन ख़रीद लेते हैं, ज़मीन की क़िस्ते मरते-मरते भरते हैं| उतना भरते-भरते ही इंसान की कमर टूट जाती है| वह बीमारी से ग्रसित हो जाता है तो महीने की तीन हज़ार रुपये की तो उसकी दवाई आती है जो जीवन भर उसे खानी पड़ती है| सो, संसार बसाने वह निकलता है बेचारा उसी फेर में ख़ुद बीमारी का शिकार होकर फँस जाता है| फिर जब आठ साल के बाद ज़मीन को देखते हैं तो उसका दाम उतना नहीं बढ़ा होता है जितना कि होना चाहिए|
सो, हम एक बहुत ही झूठी ज़िंदगी जी रहे हैं| बहुत ही खोखली ज़िंदगी जी रहे हैं| पैसा उतना ही हो जितने की ज़रूरत होनी होती है| बेकार में पैसे की अमीरी दिखाने से किसी को क्या फ़र्क पड़ता है, चमचमाती कारें, चमकदार बंगलों से कुछ हासिल नहीं होता है| बंगलों में कौन रह रहा है, उनमें बीमारियों से ऊपर से नीचे तक सने हुए इंसान ही उस घरों में रह रहे हैं| सच में पत्थर की दीवारें खड़ी करने में इंसान आज अपनी ही हालत को कहॉं से कहॉं लेकर आ चुका है, यह हम आईना देखकर अपने आपको देखकर ही समझ गये तो अच्छा है| हमारा तो कहना है कि आपकी तनख़्वाह अगर चालीस हज़ार है तो बच्चे की तनख़्वाह यदि शुरू में ही बीस या पच्चीस हज़ार होती है तो वह भी आराम से अपनी ज़िंदगी को काट सकता है| चैन की बंसी बजा सकता है| आप किसी भी सदी में चले जाइये, रावण, कंस को देखिये इनके पास इतना पैसा आ गया था कि अंत में ये अपने आपको बहुत ही शक्तिशाली समझकर सारी दुनिया को जीतने के लिए निकल पड़े थे, अंत में वे बदनाम हुए और उनकी मौत हो गयी| इसलिए जितना बजट इजाज़त देता है उतना ही पैसा लुटाना चाहिए|
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