आजकल के माता-पिता बहुत ही ईमानदार हैं लेकिन उनके बच्चे ईमानदार नहीं

महानगरों में जीवन से लड़ता आदमी - 3

आजकल के माता-पिता बहुत ही ईमानदार हैं लेकिन उनके बच्चे उतने ईमानदार नहीं, या नहीं तो बच्चे भोले होते हैं क़र्ज़ के चक्कर में पड़ जाते हैं, क़र्ज़ देने वाला बच्चे के पिता से कहता है कि आपके बेटे ने मेरे से क़र्ज़ लिया है तो पिता कहता है उसे मार डालो, क्या ऐसा करना ठीक है 


पुराने ज़माने के लोग बहुत ही ईमानदार होते थे, एक पैसे का किसी से क़र्ज़ नहीं लिया करते थे| रूखी रोटी खा लिया करते थे, अचार से खा लिया करते थे, दाल या सब्ज़ी बनाये बिना खा लिया करते थे, लेकिन किसी से क़र्ज़ नहीं लिया करते थे| बहुत ही ईमानदार लोग थे, कई किलोमीटर पैदल चलकर पैसे बचाया करते थे| तीन-तीन बस बदलकर घर आया-जाया करते थे| नौकरी भी बहुत ही ईमानदारी से किया करते थे| रिश्‍वत कभी भी नहीं ली| अपने मालिक के सामने आज्ञाकारी बने रहते थे| एक ही कंपनी में काम करते थे, और वहीं से रिटायर होकर निकला करते थे| हरकोई पहले ईमानदारी की मिसाल हुआ करते थे|

आजकल के माता-पिता बहुत ही ईमानदार हैं लेकिन उनके बच्चे उतने ईमानदार नहीं, या नहीं तो बच्चे भोले होते हैं क़र्ज़ के चक्कर में पड़ जाते हैं क़र्ज़ देने वाला बच्चे के पिता से कहता है कि आपके बेटे ने मेरे से क़र्ज़ लिया है तो पिता कहता है उसे मार डालो, क्या ऐसा करना ठीक हजब उन्हें बच्चे हुए, तब तक उनके पास ज़रा सा पैसा जमा हो गया| उनका घर जो उन्होंने तीन लाख में ख़रीदा था, वह एक करोड़ रुपये का हो गया| और अब उन्होंने अपनी ज़िंदगी बदलनी शुरू कर दी| पिता पीपल के झाड़ के नीचे बैठकर दाढ़ी बनवाया करते थे| लेकिन अमीर होने के बाद से अपने बच्चे को पॉंच सौ रुपये की कटिंग करवाने की इजाज़ देने लग गये थे| मोटर कार आने की वजह से ठेले-बंडी की आइस्क्रीम नहीं खाते हैं, बल्कि एयरकंडीशन की होटल की आइस्क्रीम खाने लग गये| फिर भी उनके शरीर में ईमानदारी का कीड़ा अभी तक मरा नहीं है|
कई पिता ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को ताकीद कर देते हैं कि देखो तुमने कहीं से भी पैसा उधार लिया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा| लेकिन आजकल की यारी-दोस्ती इस तरह की हो गयी है कि पचास हज़ार का तो मोबाइल आ रहा है| चश्मा पॉंच हज़ार का आ रहा है| बच्चे क्या करते हैं कि पिता को बिना बताये पचास हज़ार का मोबाइल ले लेते हैं और माता की कमाई में से पिता को बिना बताये हर महीने की क़िस्त भरते रहते हैं| एक बार बच्चों को पैसे आसानी से मिल गये तो उनको पैसा ख़र्च करने की लत पड़ जाती है|
एक बच्चे के पिता को अचानक पता चला कि उसके बच्चे को एक लाख रुपये का क़र्ज़ हो गया है| पिता ने क़र्ज़ देने वाले से कहा कि क्या तुमने मेरे से पूछकर मेरे बेटे को क़र्ज़ दिया था| क़र्ज़दार ने कहा कि मैं तो आपके पास हर हफ़्ते आया करता हूँ| और आप तो मुझे जानते हैं अब आपके बेटे ने मेरे से पैसे मॉंगे तो मैंने दोस्ती की ख़ातिर दे दिये| पिता ने कहा वो सब मैं नहीं जानता लेकिन मैं तुम्हें पैसे नहीं दूँगा| बेटे की माता ने रोते हुए कहा कि एक बार ग़लती हो गयी है, बच्चे को माफ़ कर दीजिए| आगे से वह ऐसा नहीं करेगा| पिता ने माता से कहा कि पैसा कितनी मुश्किल से आता है, यह तुम्हें भी पता है, मुझे भी| हमने बसों में धक्के खा-खाकर पैसे जमा किये हैं, हमने अपने बेटे की हर ख़्वाहिश पूरी की है| फिर उसे यहॉं-वहॉं से पैसे लेने की क्या ज़रूरत थी| बेटे से पूछा गया कि वह पैसे किसलिए लेता था| बेटे ने कहा कि उसके दोस्त भी उसे पार्टी दिया करते थे| हरेक की बारी हर दो महीने में हुआ करता थी| मेरा साल में छह बार नंबर आता था| और एक बार में बीस हज़ार रुपये फ़ाइवस्टार होटल में बिल आ जाया करता था, जिसमें शराब का ही दस हज़ार बिल हुआ करता था| जब माता को यह सारी बातें बताने के बाद पिता को बताई गयी तो पिता ने कहा कि ये हरामज़ादा शराब भी पीता है, हमारी पीढ़ियों ने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया और इस कमीने ने यह कुकर्म भी कर डाला| पिता ने कहा कि इसकी शराब और गुलछर्रेबाज़ी के लिए तो मेरे पास एक भी पैसा नहीं है| ऐसा कहकर क़र्ज़दार दोस्त को वहॉं से हकाल दिया गया|
दो दिन तक घर में बहुत ही तनाव रहा| पिता मान ही नहीं रहे थे कि वे बेटे का क़र्ज़ फेडेंगे, पिता ने कहा कि वह मेहनत करके पैसा कमा कर दे तो ठीक है नहीं तो मैं तो पैसे नहीं देने वाला हूँ| जबकि असलियत यह थी कि पिता के बैंक में २३ लाख रुपया मौजूद था, लेकिन उन्होंने कहा कि बेटे की गुलछर्रेबाज़ी के लिए मेरे पास एक पैसा नहीं है| दिन बीतते गये| एक दिन बेटे ने घर छोड़ दिया| और दूसरे शहर भाग गया| बीस दिन तक तो पता ही नहीं चला कि वहॉं कहॉं गया है, ज़िंदा भी है या मर गया है| पिता रोज़ाना फ़ोन पर टकटकी लगाये बैठे रहते| पुलिस में भी इत्तेला कर दी गयी| पच्चीस दिन के बाद बेटे ने माता से कहा कि मैं फ़लाने शहर में हूँ और अपने ज़ालिम पिता के पास आने वाला भी नहीं हूँ|
पिता ने फ़ोन पर बेटे से बात की, उधर से बेटे ने जवाब ही नहीं दिया| इस तरह से बेटे और पिता में ज़बरदस्त झगड़ा शुरू हो गया| कैसे भी करके बेटा दो महीने के बाद वापस घर को आ गया| क्योंकि माता रो-रोकर बच्चे को फ़ोन से बुलाया करती थी और कहती थी कि पिता तुम्हारे कुछ नहीं कहेंगे| वे भी तुमको लेकर बहुत परेशान हो रहे हैं| बच्चा वापस आते ही दोबारा से क़र्ज़दार दोस्त का आना शुरू हो गया| तब पिता ने बेटे से कहा कि वह बीस हज़ार हरेक महीने करके उसका क़र्ज़ा फेड़ देंगे| तब जाकर घर में शांति हुई| इस कहानी का अंत तो बहुत ही अच्छा रहा है|
लेकिन जो लोग बहुत ही ईमानदार लोग होते हैं उन्हें आजकल के बच्चे की दिमाग़ी हालत को देखकर चलना चाहिए| या नहीं तो बच्चे को सरकारी स्कूल या कॉलेज में ही पढ़ाने के लिए भेजना चाहिए| जहॉं के बच्चे ग़रीब माता पिता के होते हैं और उनमें बड़ी पार्टियॉं करने के पैसे नहीं होते हैं| बड़ी फ़ीस के कॉलेज में तो अमीर घर के बच्चे ही होते हैं| उनके लिए महीने में दो से पॉंच हज़ार रुपया ख़र्च करने के लिए उनके माता-पिता ही दे दिया करते हैं| और कॉलेज से होटलों में जाना आजकल आम बात हो गयी है| बच्चे बहुत ही बड़ी पढ़ाई करते हैं इसलिए उनसे नहीं कहा जा सकता कि किसी को ट्यूशन पढ़ा कर पैसा कमा लो, जैसा कि उनके बाप ने किया था, बेचारे पिता दस बच्चों को शाम में अपने ही घर में ट्यूशन पढ़ाया करते थे और सबके मिलाकर तीन हज़ार रुपये ही तब मिला करते थे| अब मगर इस बेटे ने तो पिता पर एक लाख का बिल फाड़ दिया था, तो पिता को बहुत दुख हो रहा था, नयी पीढ़ी के बच्चे ट्यूशन इसलिए पढ़ाते कि उनकी अपनी पढ़ाई ही बहुत ज़्यादा होती है| इसलिए बच्चे के जेब ख़र्च के लिए कम से कम दो हज़ार महीने के तो अलग से निकालकर पिता को  रख ही लेने चाहिए|
और आज के ज़माने में तो यह सोचकर चलना चाहिए कि मेरे बच्चे का पैर फिसल गया तो उसके लिए पिता को कम से कम दो लाख रुपये तो अलग से निकालकर रख लेना ही चाहिए| क्योंकि बच्चे के अतराफ़ यह ऑफ़र भी आते ही रहता है कि यूरोप की यात्रा डेढ़ लाख में हो रही है, दो सौ ग़ज़ ज़मीन केवल दो लाख में मिल रही है, तो बच्चा क्या करता है कि माता-पिता को बिना बनाये यह ख़र्च कर लेता है और जब माता-पिता को बताता है तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है| बच्चे की जवानी की उम्र बहुत ही चंचल होती है, प्यार-व्यार तो होता ही है, साथ ही पैसे के ख़र्चे भी बहुत सारे होते ही रहते हैं| सो, बच्चे को डॉंटने फटकारकर घर से निकाल देने के बजाय अपने बेटे को ज़िंदगी में दो या तीन मौक़े ज़रूर दिये जाने चाहिए| क्योंकि तब तक बच्चा पैरों पर खड़ा भी नहीं होता है, उसे दुनियादारी के बारे में पता ही नहीं होता है|
पिता अगर बहुत कड़क होता है तो वह एक भी पैसा नहीं देता है, लेकिन घर के बाहर आपका बच्चा क्या कर रहा है वह तो आपको पता ही नहीं चल पाता है| घर आने के बाद आप तो समझते हैं कि बच्चा तो बाप का नाम कमाकर आ रहा है, लेकिन क्या पता दस बजे से चार के बीच में आपका बच्चा क्या-क्या गुल खिला रहा है|
आजकल के बच्चे बहुत अच्छा अभिनय कर लेते हैं| घर के दरवाज़े के पास आते हैं तो अपना चेहरा बहुत ही भोला कर लेते हैं ताकि माता-पिता को कुछ पता नहीं चले, और इतना अच्छा व्यवहार करते हैं कि पिता को लगता है कि मेरा बच्चा तो बहुत ही समझदार है| लेकिन जैसे ही बच्चे की एकाध बड़ी करतूत पता चलती है तो पिता के पैर के नीचे से ज़मीन ही खिसक जाती है| बेटे तो क्या बेटियों का भी यही हाल हो गया है| बेटी के रहस्य उसकी सहेली को ही पता चल पाते हैं| वह भी कम नहीं होती है| घरवाले तो समझते हैं कि बेटी बहुत ही सुशील है, लेकिन उसकी असली सुशीलता कभी भी माता-पिता को दिखाई ही नहीं देती है|
बच्चे की समस्या को पिता को अपनी समस्या समझनी चाहिए| यह समझना चाहिए कि जो समस्या मेरे पर आनी थी, यानी मेरी कहीं टक्कर हो जानी थी, तो दवाख़ाने में दो लाख लग जाते थे, मेरे पर बला नहीं आयी, वही बला बच्चे पर दूसरे रास्ते से आयी है, वह बच्चे के क़र्ज़े के रूप में सामने आयी है, समस्या के रूप अलग-अलग होते हैं, वह किसी भी रूप में आ सकती है, हमें तो यह समझना चाहिए कि दो लाख का बच्चे को क़र्ज़ है तो इतने में ही बला टल रही है| दो लाख की जगह दस लाख का क़र्ज़ लेकर बच्चा बाप के सामने खड़ा होता तो बाप का तो हार्टफ़ेल ही हो गया होता| घर की हर समस्या पर चिंता नहीं चिंतन करना शुरू कर देना चाहिए|
बच्चे को घर से भागने नहीं देना चाहिए| शांति से काम लेना चाहिए| अगर आपने जाने दिया, बच्चा और भी बुरी सौहबत में पड़ गया तो ज़्यादा बड़ा अपराधी बन सकता है, आजकल आपने देखा ही होगा कि किसी सभ्य पिता का बेटा आतंकवादी भी निकल जाया करता है, माता-पिता को पता भी नहीं चल पाता कि ऐसा कब और कैसे हो गया है| इससे परिवार का नाम दो तीन पीढ़ी तक मिट्टी में मिल जाया करता है| बच्चों का क्या है, उनका तो गरम ख़ून होता है, सड़कों पर बच्चे बाइक लेकर जाते हैं तो चिल्लाते हुए जाते हैं, क्योंकि अंदर से ख़ून उबाले मार रहा होता है| लड़की को देखते ही चीख़ते हैं, क्योंकि ख़ून उबल रहा होता है| जवानी में हरेक भावना बहुत ही तीव्र होती है, तीर के समान होती है, अभी होना है मतलब अभी होना है जैसा माहौल हो जाता है|
बच्चा शुरू से लेकर अंत तक पिता से किसी न किसी बात पर उलझता ही रहता है, ऐसे में पिता को ठंडा-गरम दोनों तरह के हालात देखकर काम लेना चाहिए| ऐसे पिता हमने बहुत देखे जो जीवन भर ईमानदारी से जी गये, लेकिन उनके बच्चों ने पिता का उतना ही नाम बदनाम किया, लेकिन पिता ने बच्चों के क़र्ज़ें फेड़-फेड़कर घर की इज़्ज़त को कलंकित होने नहीं दिया| तो इस तरह पिता को अपने जीवन के अंत तक अपने परिवार के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है, ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर आराम ही नहीं मिला करता है| अच्छा है जीवन के अंत तक हम किसी न किसी तरह का काम करते रहें, भले ही बच्चे का क़र्ज़ क्यों न फेड़ते रहें| सब ऊपर से लिखकर आता है, जो लिखा है, उसे ख़ुशी-ख़ुशी झेल लेना चाहिए| इसी का नाम ज़िंदगी है| जो हमें चैन से बैठने नहीं देती है| 

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